Wednesday, February 21, 2018

सुख है!

जाते-जाते जाता है दुख। आते-आते आता है सुख। तुम्हारा आना, सुख का आना है। तुम्हारा जाना, सुख का जाना है। जाते-जाते जो जाता है, वह तुम्हारे जाने जितनी जल्दी नहीं जाता। सुख की बात समझते हो ना नीला बाबू? सुखी कैसे दिखते हो नीला बाबू? हमको भी सिखाओ सुखी दिखना। हमने भी सीखना है सुख! क्या कहा? दूर से सिखाओगे? कितनी दूर से?

हिंदी में कोई सुख नहीं है नीला बाबू। बिंदी में भी कोई सुख नहीं है। तुम्हें मिला? तो फिर धोती में बुंदे बांधकर क्यों घूम रहे हो? पीठ पर चिपकाकर क्यों घूम रहे हो? ऐसे क्यों दिखाते हो जैसे धोती में सुख बांधकर घूम रहे हो? क्यों कहते हो कि सुख पीठ पर चिपकता है? अच्छा बताओ, धोती में बंधा सुख कब निकालते हो? और पीठ से? जब नहीं निकालते हो तो क्या निकलता रहता है नीला बाबू? जो है? है क्या? क्या है नीला बाबू? सुख है? कहां है? धोती में बंधा है? पीठ पर चिपका है? सुख पर गांठ क्यों लगा रखी है नीला बाबू? गांठ कब खोलोगे सुख की? या यूं ही बोलोगे- सुख है!

हंसते हो? हंसो। हंसने में सुख है। हंसने में सुख है? वाकई है? हंसना सुखी होना है? नहीं नीला बाबू, नहीं। हंसना सुखी होना नहीं। दुख एक चुटकुला है नीला बाबू, कब समझोगे? हंसी है। किससे लिपटी है हंसी? मेरी तरह छत देखकर हंसते हो? दीवार देखकर? जमीन देखकर? सड़क, गली या बिजली का खंबा देखकर? नहीं नीला बाबू, दिमाग नहीं चला है मेरा। दुख चल रहा है। दुख में हंसता हूं नीला बाबू। दुख पर हंसता हूं। हंसता तो हूं ना नीला बाबू? नहीं?

गांठ में सुख बांधकर मुझे भी चलना है नीला बाबू। पुरानी ख्वाहिश है। जब चाहा, गांठ खोली और कतरा भर सुख सूंघ लिया। सूंघने से सुख तो मिल जाएगा ना नीला बाबू? नहीं? क्यों नहीं? नाक में बसाना है सुख। आंखों में लगाना है सुख। तुम कहोगे तो सिर पर भी पहन लूंगा, गांठ तो खोलो नीला बाबू! या अपने पास ही बांधे रहोगे सुख के बुंदे? मुझे भी तो पहनाओ थोड़ा सा सुख। धान का पुआल दुआरे पड़ा है। बटकर नई रस्सी बनाई है। ढीला होगा तो कसकर बांध लूंगा। दो तो सही! सुख की गांठ खोलो तो सही नीला बाबू!

(परसाई हंसते थे। हंसते थे?)

मिलेगा तो देखेंगे- 23

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