जीवन की आदम आस
एकांत की अज़ीब अनमनी उदासी के बीच बने रास्ते में जब मैं पूरा दम लगाकर दौड़ लगाता हूं तो कुछ भी पीछे जाता हुआ न लगता है न दौड़ते वक्त चीज़ों के पीछे जाने में रत्ती भर यकीन हो पाता है। हर बार चलती हवा पर, हर वक्त गिरती धूप पर और हर पल छपती चीजों पर मैं पूरा यकीन करना चाहता हूं तो हवा में उड़ती नमी हरएक चीज़ को गलाकर बहा देती है। अक्स हैं जो उभरते हैं तो दूसरे पल पहाड़ के किसी कोने में जाकर एक गांव बन जाते हैं जिसके कतरे महानगरों की जिंदगी में बहते दिखते हैं, शायद किसी अभ्यस्त पहाड़ी की पकड़ में आते होंगे।
मींज मींजकर नशे में डूब मोटी हुई उंगलियों को फोड़ने की कोशिशें न तो किसी पहाड़ पर लेकर जाती हैं न किसी तराई में। धान काटकर सूज गई उंगलियां रात सानी लगाते हौदी में घिसती कहां किस प्रेम की दरकार करती होंगी, किसे पता, खुद उंगलियां भी दरकार का प्रेम महसूसना बंद कर चुकी हैं। कहते हैं कि बाल टूटते रहते हैं। कहते हैं कि हम भी टूटते रहते हैं। जो नहीं कहते वो क्या वो कि हम हमारे बाल बराबर भी नहीं।
पहाड़ मैदानों से ज्यादा लौटकर न आने का ज़हर ढोते बड़े होते जाते हैं। हम पी-पीकर मैदानों से भी ज्यादा फैलते जाते हैं। पाप चीड़ की घास बने हमें उगने देकर मार देते हैं। पुण्य किए नहीं तो वो पाप के नंबर ही बढ़ाते हैं। हिसाब तो हमेशा चलता रहेगा, जो नहीं चलेगा, वो हम होंगे। हम, जो न समय के ठीक ठीक अपराधी बन पाए न अपने खुद के अच्छे जज। अब तो जो फैसला होगा, वो शब्द करेंगे। जो सजा होगी, वो बातें फुसफुसाएंगी। जीवित न रहने की आदम आस हमें हर सजा में जीवित रखेगी।
मींज मींजकर नशे में डूब मोटी हुई उंगलियों को फोड़ने की कोशिशें न तो किसी पहाड़ पर लेकर जाती हैं न किसी तराई में। धान काटकर सूज गई उंगलियां रात सानी लगाते हौदी में घिसती कहां किस प्रेम की दरकार करती होंगी, किसे पता, खुद उंगलियां भी दरकार का प्रेम महसूसना बंद कर चुकी हैं। कहते हैं कि बाल टूटते रहते हैं। कहते हैं कि हम भी टूटते रहते हैं। जो नहीं कहते वो क्या वो कि हम हमारे बाल बराबर भी नहीं।
पहाड़ मैदानों से ज्यादा लौटकर न आने का ज़हर ढोते बड़े होते जाते हैं। हम पी-पीकर मैदानों से भी ज्यादा फैलते जाते हैं। पाप चीड़ की घास बने हमें उगने देकर मार देते हैं। पुण्य किए नहीं तो वो पाप के नंबर ही बढ़ाते हैं। हिसाब तो हमेशा चलता रहेगा, जो नहीं चलेगा, वो हम होंगे। हम, जो न समय के ठीक ठीक अपराधी बन पाए न अपने खुद के अच्छे जज। अब तो जो फैसला होगा, वो शब्द करेंगे। जो सजा होगी, वो बातें फुसफुसाएंगी। जीवित न रहने की आदम आस हमें हर सजा में जीवित रखेगी।
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