उफ ये बच्चे और इनके नखरे
पेड़ हों या पौधे, एकदम बच्चे जैसे होते हैं। जमीन में हों तो बड़े हो भी जाएं, लेकिन गमलों में ये ताजिंदगी बच्चों जैसे ही होते हैं। पता नहीं, शायद इसके लिए सौंदर्यशास्त्र को दोष दिया जाए या नहीं, पर हम सभी लोग अपने आसपास हरा भरा ही देखना चाहते हैं। भले ही असलियत हरी भरी ना हो, कंकरीटी हो, एसी से तपती हुई धूप की तरह जलती हुई हो, पर आसपास हरा भरा जरूर हो। हो सकता है कि इसके लिए हमारे दिमाग के सामंती अवशेष जिम्मेदार हो या फिर ये भी हो सकता है कि... कुछ और हो, बहरहाल कुछ तो है जो हम अपने आसपास हरा भरा देखना चाहते हैं। सभी लोग अपने घर में अपने इस नयन सुख के लिए (बाज़ लोग इसे चाहे जैसा सुख समझें) गमले पौधे लगाते ही हैं, मैनें भी लगाए हैं। अक्सर लोगों से उनके बारे में राय भी लेता रहता हूं जो पौधे मैने लगाए हैं। बहरहाल बात ये नहीं कि मैने पौधे लगाए हैं, बल्कि बात ये है कि आज मेरे दो पौधों में मारे जलन के बुरी तरह से लड़ाई हुई है और कुल मिलाकर चूंकि मेरे ही दो बच्चों में लड़ाई हुई है, इसलिए भुगतना मुझे पड़ रहा है।
गुड़हल भाई मेरे घर के सबसे पुराने मेंबर हैं। भाईजान एक बखुद एक मिट्टी भरे अदद सीमेंटेड गमले सहित हमारी छत पर पधारे थे। उसी वक्त हम इनकी जगह ठीक उस जगह तय कर दिए, जहां सबसे पहले सूरज की रोशनी आती थी। मिट्टी भरे दूसरे गमले में साइकस बहुत बाद में लगा और अभी भी ठीक से सर्वाइव नहीं कर पाया है। गुड़हल भाई को हम रोज पानी देते थे और आते जाते हाथ फेर देते। तकरीबन 3 महीने तक भाई साहेब का मजाल कि एक फूल दिए हों। पहले दूसरी जगह पर थे और रोजाना दो तीन फूल देते थे। जब हम जगह बदले तो भाईजान तीन महीने तक नाराज रहे हैं। हम रोज पानी दें और कमोबेश रोज हाथ फेर दें। इस बीच हमरे पास एक और कदंब चच्चा आ गए। ये वाले चच्चा तो लगावे के एक महीने के अंदर शेषनाग के फन भए। भरी गर्मी में गुड़हल और कदंब, दोनों लोगों का दिन में दो बार पानी देना पड़े, तब जाके दूनों की प्यास शांत हो।
परसों की बात है। सारे गमलों में पहले गुड़ाई किए, फिर कुछ देर बाद हलका पानी डाल दिए। ईमानदारी से बता रहे हैं कि गुड़हल और कदंब में भी डाले थे, हमको पक्का याद है। और इन दोनों की गुड़ाई भी नहीं किए थे। कल दोनों को पानी नहीं दिए, सोचे कि ठंड में कम सूख रहा है... लेकिन गुड़हल चच्चा तो ये रंग दिखाए कि पूछिए मत। गलती हमसे ये हुई कि कदंब को कल रात में एक गिलास पानी पिला दिए, लेकिन गुड़हल को कुछ नहीं दिए। आज सुबह भी दोनों को कुछ नहीं दिए, लेकिन सुबह ही गुड़हल 3-4 हरी से पीली होती पत्तियों से चेतावनी जारी कर रहा था। अभी रसोई आते जाते वक्त भाई साहब कई बार ध्यान दिलाए कि 7-8 पत्ती पीली हो चुकी है, जल्दी से पानी दिए हैं। देखिए भाईजान को कब तक आराम मिलता है। और तुर्रा ये कि सामने वाला कदंब, जिससे इनका कंपटीशन है, लहलहा रहे हैं। हम अभी खड़े होकर भाईजान को समझाकर आए हैं कि ऐसे परेशान न हुआ करें। वो घर के सबसे बुजुर्ग सदस्य हैं। कदंब के चिढ़ाने पे तो बिलकुल ना जाया करें।अभी वो बच्चा है और ऐसे ही बचपने की हरकत करता रहेगा। और देखिए तो, छठ हो ना हो, वैदिक रीति से भगबान सूरज को आपै रोज नमस्ते करते हैं, कदंबवा को तो हम करने भी नहीं देते। न तो बेचारा चांद देख पाता है ना सूरज, अब ऐसे में तनिक हंसी ठिठोली कर लिया आपसे तो आप लगे पीले होने। ये कोई बात नहीं होती और अब तो आप सबके खुश होने के दिन हैं। कुछ दिन में आपके बगल वाली गुलदाउदी भी आपका पूरा साथ देगी। कदंबो देगा, लेकिन आप तो जानते ही हैं कि अभी वो बच्चा है। रात में पांच मिनट तक गुड़हल भाईजान को प्रवचन दिए हैं, तब अभी सुबह जाकर देखते हैं कि कुछ कुछ हरापन लाना शुरू किए हैं।. उफ ये बच्चे और इनके नखरे।
गुड़हल भाई मेरे घर के सबसे पुराने मेंबर हैं। भाईजान एक बखुद एक मिट्टी भरे अदद सीमेंटेड गमले सहित हमारी छत पर पधारे थे। उसी वक्त हम इनकी जगह ठीक उस जगह तय कर दिए, जहां सबसे पहले सूरज की रोशनी आती थी। मिट्टी भरे दूसरे गमले में साइकस बहुत बाद में लगा और अभी भी ठीक से सर्वाइव नहीं कर पाया है। गुड़हल भाई को हम रोज पानी देते थे और आते जाते हाथ फेर देते। तकरीबन 3 महीने तक भाई साहेब का मजाल कि एक फूल दिए हों। पहले दूसरी जगह पर थे और रोजाना दो तीन फूल देते थे। जब हम जगह बदले तो भाईजान तीन महीने तक नाराज रहे हैं। हम रोज पानी दें और कमोबेश रोज हाथ फेर दें। इस बीच हमरे पास एक और कदंब चच्चा आ गए। ये वाले चच्चा तो लगावे के एक महीने के अंदर शेषनाग के फन भए। भरी गर्मी में गुड़हल और कदंब, दोनों लोगों का दिन में दो बार पानी देना पड़े, तब जाके दूनों की प्यास शांत हो।
परसों की बात है। सारे गमलों में पहले गुड़ाई किए, फिर कुछ देर बाद हलका पानी डाल दिए। ईमानदारी से बता रहे हैं कि गुड़हल और कदंब में भी डाले थे, हमको पक्का याद है। और इन दोनों की गुड़ाई भी नहीं किए थे। कल दोनों को पानी नहीं दिए, सोचे कि ठंड में कम सूख रहा है... लेकिन गुड़हल चच्चा तो ये रंग दिखाए कि पूछिए मत। गलती हमसे ये हुई कि कदंब को कल रात में एक गिलास पानी पिला दिए, लेकिन गुड़हल को कुछ नहीं दिए। आज सुबह भी दोनों को कुछ नहीं दिए, लेकिन सुबह ही गुड़हल 3-4 हरी से पीली होती पत्तियों से चेतावनी जारी कर रहा था। अभी रसोई आते जाते वक्त भाई साहब कई बार ध्यान दिलाए कि 7-8 पत्ती पीली हो चुकी है, जल्दी से पानी दिए हैं। देखिए भाईजान को कब तक आराम मिलता है। और तुर्रा ये कि सामने वाला कदंब, जिससे इनका कंपटीशन है, लहलहा रहे हैं। हम अभी खड़े होकर भाईजान को समझाकर आए हैं कि ऐसे परेशान न हुआ करें। वो घर के सबसे बुजुर्ग सदस्य हैं। कदंब के चिढ़ाने पे तो बिलकुल ना जाया करें।अभी वो बच्चा है और ऐसे ही बचपने की हरकत करता रहेगा। और देखिए तो, छठ हो ना हो, वैदिक रीति से भगबान सूरज को आपै रोज नमस्ते करते हैं, कदंबवा को तो हम करने भी नहीं देते। न तो बेचारा चांद देख पाता है ना सूरज, अब ऐसे में तनिक हंसी ठिठोली कर लिया आपसे तो आप लगे पीले होने। ये कोई बात नहीं होती और अब तो आप सबके खुश होने के दिन हैं। कुछ दिन में आपके बगल वाली गुलदाउदी भी आपका पूरा साथ देगी। कदंबो देगा, लेकिन आप तो जानते ही हैं कि अभी वो बच्चा है। रात में पांच मिनट तक गुड़हल भाईजान को प्रवचन दिए हैं, तब अभी सुबह जाकर देखते हैं कि कुछ कुछ हरापन लाना शुरू किए हैं।. उफ ये बच्चे और इनके नखरे।
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