Sunday, September 14, 2014

The Ant: चींटी

जब भी चींटी की मम्‍मी और चौकसी चाची आपस में मि‍लते, चींटी बेचारी इतनी बोर होती, इतनी बोर होती कि तकि‍ए के नीचे मुंह छुपाने पर भी मम्‍मी और चौकसी चाची की चि‍कचि‍क लगातार कान में कुछ इस तरह से जाती, जैसे कान में दर्द होने पर टपकाई जाने वाली दवा जाती है। दरअसल चौकसी चाची के पास पूरे मोहल्‍ले के बच्‍चों की खबर रहती जि‍से चींटी की मम्‍मी बड़े चाव से सुनतीं। पर चींटी अपनी छोड़, दूसरों की बड़ाई सुनना ही नहीं चाहती थी। इस बार जब चौकसी चाची चींटी के घर आईं तो चींटी ने चुपचाप अपने जूते पहनने शुरू कर दि‍ए। वो तुरंत पास वाले पार्क में जाकर चिंटू और वि‍क्‍की के साथ गेंदताड़ी खेलना चाहती थी और ये भी चाहती थी कि मम्‍मी और चौकसी चाची की वो फालतू वाली चि‍कचि‍क उसे सुनाई ना पड़े। लेकि‍न चींटी के छठें जूते में एक छेद था और वो पहले भी तीन बार अपनी मम्‍मी से बता चुकी थी। मम्‍मी ने उसे वादा कि‍या था कि मधु आंटी के छत्‍ते से वो बहुत जल्‍द मोम लाएगी और उसका जूता जोड़ देंगी। पर मधु आंटी तो पि‍छले छह दि‍नों से अपने छत्‍ते में आई ही नहीं थी। चींटी की मम्‍मी वहां तक गई भी थीं कि अगर मधु आंटी होंगी तो मोम के साथ दो बूंद शहद भी दे देंगी। शहद के नाम से तो चींटी क्‍या, चींटी के 24 भाई बहनों के मुंह से पानी बहने लगता था।

तो इस बार चींटी ने अपना जूता ठीक करने के लि‍ए एक जुगत लगाई। उसने पड़ोस में रहने वाली पि‍न्‍नी को साथ लि‍या और दोनों लोग घास के मैदान में पहुंच गए। एक छोटी सी घास की पत्‍ती दोनों ने मि‍लकर तोड़नी शुरू की। पर पत्‍ती बड़ी मजबूत थी। चींटी और पि‍न्‍नी ने मि‍लकर खींचा पर पत्‍ती नहीं टूटी। इस खींचतान में चींटी के छठें जूते में जो छेद था, वो और बड़़ा हो गया और जूते से चींटी का एक अंगूठा बाहर झांकने लगा। चींटी परेशान हो गई। अब तो ये छेद मोम से भी नहीं जुड़ने वाला और अगर कि‍सी तरह से मम्‍मी ने इसे मोम से जोड़ भी दि‍या तो पार्क में एक मैच में ही सारा मोम पि‍घल जाएगा और चींटी को जो बेहतरीन फि‍ल्‍डर का खि‍ताब मि‍ला था, वो भी छि‍न जाएगा। चींटी और पि‍न्‍नी घास नोंचने की मेहनत से थककर आराम से पार्क की बेंच के हैंडि‍ल पर लेट गए और दूसरी जुगत सोचने लगे। तभी पि‍न्‍नी को वि‍क्‍की जाता दि‍खाई दि‍या। उसने वि‍क्‍की को आवाज लगाई तो वि‍क्‍की भी अपने सारे पैर बड़े मन से इधर उधर डोलाते हुए उस बेंच के बगल लगे लैंपपोस्‍ट के नीचे पहुंचा और लैंपपोस्‍ट पर चढ़ गया। पि‍न्‍नी ने जब उससे कहा कि चींटी का छठां जूता आज टूट गया है और वो फि‍ल्‍डिंग नहीं कर पाएगी तब जाकर वि‍क्‍की के समझ में आया कि उसे चींटी के पास जाना चाहि‍ए था, न कि लैंपपोस्‍ट पर चढ़कर आराम से दूर दूर देखना चाहि‍ए था।

इतना समझ में आना था कि वि‍क्‍की के दि‍माग में एक जुगत आई। उसने चिंटू को आवाज लगाई, चिंटू ने अप्‍पू को और अप्‍पू ने चालाक चमचे चींटे को। चींटे को जब आवाज सुनाई दी तब वो अपने घर में बैठकर धौंकनी में हवा भर रहा था और उसके पापा इस साल फसल काटने के लि‍ए आग में हंसि‍या तपा तपाकर तेज कर रहे थे। अप्‍पू की आवाज आने का मतलब था कि जरूर कहीं कोई इमरजेंसी है, पर चींटा बेचारा अपने पापा को अकेले काम करता कैसे छोड़े। चींटा वहां से नि‍कलने की जुगत सोच ही रहा था कि उसके पापा ने उसे कुल्‍हाड़ी और उसकी बेंत दी और उसे धनोकू बढ़ई से ठीक कराके लाने को कहा। चींटे को तो जैसे मन का काम मि‍ल गया। उसने एक हाथ में बगैर बेंत लगी कुल्‍हाड़ी ली और कंधे पर कुल्‍हाड़ी का बेंत रखा और घर से मटकते मटकते धनोकू के यहां जाने को नि‍कला। हालांकि चींटे को पता था कि गली के बाहर अप्‍पू आवाज लगाकर उसी का इंतजार कर रहा है। चींटा अपने सारे सामान के साथ जैसे ही गली से बाहर नि‍कला, अप्‍पू ने उसे बताया कि वि‍क्‍की ने पार्क के लैंपपोस्‍ट पर चढ़कर सबको आवाज लगाई है, जरूर कुछ गड़बड़ हुई है और हम सबको जल्‍दी से जल्‍दी पार्क में पहुंचना चाहि‍ए। चींटे ने अप्‍पू से कहा कि पहले वो वो वाला काम कर ले, जो पापा ने उससे कहा है। इसपर अप्‍पू ने तुरंत चींटे को अपनी सूंड़ पर बैठा लि‍या और आनन फानन में दोनों धनोकू बढ़ई के पास पहुंचे। हांफते हुए अप्‍पू ने धनोकू बढ़ई से कहा कि जल्‍दी जल्‍दी से कुल्‍हाड़ी में बेंत लगा दो, हम लोगों को बहुत जल्‍दी जल्‍दी एक जगह पहुंचना है। धनोकू ने पांच मि‍नट में कुल्‍हाड़ी में बेंत लगा दि‍या और दो खपच्‍ची फंसाकर उसे खूब मजबूत भी कर दि‍या। अप्‍पू और चींटा वहां से भागे तो सीधे पार्क में लगे लैंपपोस्‍ट के बगल पहुंचे, उसी लैंपपोस्‍ट के बगल, जहां से चिंटू ने आवाज लगाई थी।

ओह... तो जूते में छेद हो गया है। अप्‍पू बोला। उधर जूते में हुए छेद से ज्‍यादा न खेल पाने से परेशान चींटी बेचारी रुंआसी भी हो रही थी। पि‍न्‍नी जो थी, वो चींटी को तरह तरह की कवि‍ता सुनाकर हंसाने की कोशि‍श कर रही थी। पि‍न्‍नी ने चींटी को सुनाया-

चकमक चकमक चि‍कचि‍क चि‍कचि‍क
ट्यूब से नि‍कली पि‍चपि‍च पि‍चपि‍च
अंदर डाला सारा पेस्‍ट
एक बूंद भी हुआ ना वेस्‍ट।

पर चींटी थी कि हंसने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसके दि‍माग में तो बस आज का मैच, जो वो अपने फटे जूते की वजह से नहीं खेल पा रही थी, वही चल रहा था। इतने में चींटे ने थोड़ा दि‍माग लगाया। चींटे से और थोड़ा ज्‍यादा दि‍माग अप्‍पू ने लगाया। चींटा भागा भागा गया और पार्क में से एक घास उसी कुल्‍हाड़ी से काट लाया। उधर अप्‍पू ने चिंटू और वि‍क्‍की को अपने ऊपर बैठाया और मधु आंटी के छत्‍ते के नीचे पहुंच गया। अप्‍पू के सि‍र पर चिंटू चढ़ा और चिंटू के सि‍र पर वि‍क्‍की। वि‍क्‍की कि‍सी तरह से छत्‍ते से एक बूंद मोम तोड़ने में कामयाब हो गया। मधु आंटी ने जब वि‍क्‍की को ये करते देखा तो उससे पूछा। वि‍क्‍की ने मधु आंटी को बताया कि चींटी के छठें जूते में एक छेद हो गया है और उसका अंगूठा भी जूते के बाहर आकर दि‍ख रहा है। हम सबको चींटी का जूता जोड़ना है। इतना सुनना था कि मधु आंटी भी सुई धागा लेकर अप्‍पू, चिंटू और वि‍क्‍की के साथ पार्क की तरफ उड़ चलीं।

पार्क पहुंचकर मधु आंटी ने पहले तो चींटी के छठें जूते के छेद को घास से ढंक दि‍या और फि‍र उसे चारों तरफ मोम से पैक कर दि‍या। सुई धागे से मधु आंटी ने जैसे ही जूते के छेद में गांठ मारी, चींटी खुशी से चीख पड़ी और पार्क में हर तरफ दौड़ने लगी। और पता है... उस दि‍न चौकसी आंटी की चि‍कचि‍क से दूर चींटी ने चार कैच पकड़े। चींटी की पूरी टीम खुश थी और अप्‍पू ने चींटी को अपनी सूंड़ पर बैठाकर पूरे मुहल्‍ले की सैर भी कराई।

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