Thursday, August 14, 2014

Letter to Red Fort: लालकि‍ले को एक पत्र

प्रि‍य लालकि‍ला, 

इससे पहले कि तुम कल 15 अगस्‍त को भगवा कि‍ला बनकर एक फासि‍स्‍ट सरकार के नुमाइंदे को अपनी छत पर चढ़कर वि‍कास के चाचा बनने की इजाजत दो, आज स्‍वतंत्रता दि‍वस पर मैं तुमसे चंद बातें करना चाहता हूं। आज ही ये बातें इसलि‍ए कर लेना चाहता हूं, क्‍योंकि कल के बाद मुझे तुमसे कोई खास उम्‍मीद नहीं रहेगी। अपने इति‍हास के चलते तुम मुझे प्रि‍य जरूर रहोगे, लेकि‍न इस प्रेम में कसूरवार मेरी अतीतजीवी होने की आकांक्षा का ही है, यकीन मानो, इसमें तुम्‍हारा जरा सा भी दोष नहीं है। 

लालकि‍ले, पि‍छले दस सालों में मैं सैकड़ों बार तुम्‍हारे सामने से गुजरा। हमेशा तुम्‍हें वहीं खड़ा पाया, जहां कि तुम पि‍छले कई सौ सालों से खड़े हो। पर आज शाम पता नहीं क्‍यों ऐसा लग रहा है कि जैसे कल तुम पहले जैसे नहीं रहोगे। जैसा कि मैनें अपनी चि‍ट्ठी की शुरुआत में ही कहा, तुम भगवा होने जा रहे हो। इस भगवे का तुम्‍हारे ऊपर लहराने वाले ति‍रंगे वाले भगवे से भी कोई खास मतलब नहीं है। इस भगवे का तुम्‍हारे सामने के मंदि‍र और गुरुद्वारे से भी कोई खास मतलब नहीं है। इस भगवे का अगर कि‍सी से कुछ मतलब है तो उन लफंगों से जो हाहा हूती करके कल तुम्‍हारे सीने पर मूंग दलने आ रहे हैं। 

तो क्‍या मैं ये सोचूं लालकि‍ला, कि कल से मेरे मन में तुम्‍हारे लि‍ए इज्‍जत कम होने जा रही है। क्‍या मैं ये समझूं कि कल से मैं अगर तुम्‍हारे सामने से गुजरा तो तुम भरभराकर मेरे ऊपर गि‍र भी सकते हो। पता नहीं क्‍यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि मेरे अंदर चचा बहादुर शाह का कोई अंश आ गया है और मैं पता नहीं कि‍तनी दूर से तुम्‍हें देख रहा हूं और अपने मन को बार बार बेचैनी से मल रहा हूं। मुझे तुमसे प्रेम था लालकि‍ले, अब भी है, पर जब तुम कल भगवा हो जाओगे, तो... तो का तो कोई जवाब ही नहीं होता। 

मुझे पता है लालकि‍ला कि कल तुम्‍हारी छत से वि‍कास का तूफान चलेगा। अब ये दीगर बात है कि लालकि‍ला से चलकर ये तूफान चावड़ी बाजार या मीना बाजार में ही कहीं गुम हो जाएगा। कल एक बार फि‍र से तुम्‍हारी छत से अच्‍छे दि‍न का हवाई लॉलीपाप दि‍खाया जाएगा। कल एक बार फि‍र से देश को समझाया जाएगा कि देश के वि‍कास के लि‍ए देश को बेचना जरूरी है, न कि देश के सभी लोगों को एक साथ लेकर चलना या उनके लि‍ए कैसा भी या कहीं भी रोजगार उपलब्‍ध कराना, या उसके मौके देना। कल एक बार फि‍र से तुम्‍हारी छत से एक अदृश्‍य पतंग उड़ाई जाएगी जो या तो वि‍कास के पप्‍पा को दि‍खेगी या फि‍र उनके भी पप्‍पा अंकल ओबामा को। 

एक वक्‍त था लालकि‍ले, जब तुम अपनी सेना देखते थे। पर अब कल से एक बि‍की हुई सेना, भले ही आधी बि‍की हुई, पर बि‍की हुई सेना देखोगे। क्‍या मुझे तुमपर तरस खाना चाहि‍ए या तुम्‍हारे लि‍ए दुख में आंसू बहाने चाहि‍ए। बोलो लालकि‍ला। पर तुम क्‍या बोलोगे। तुम्‍हारी बोलती तो तभी बंद हो गई थी, जब तुम्‍हारी छत पर अवैध कब्‍जे के लि‍ए देश में जगह जगह प्‍लास्‍टि‍क के लालकि‍ले बना दि‍ए गए और उसपर चढ़कर तुमपर चढ़ने की बद्तमीज हुंकार भरी गई। आज स्‍वतंत्रता दि‍वस की पूर्वसंध्‍या पर मैं तुम्‍हें बात देना चाहता हूं लालकि‍ला कि कल से तुम आधे बि‍के हुए होगे। कोई आश्‍चर्य नहीं कि अगले साल तुम पूरे बि‍क जाओ। मुझे तुमसे सहानभूति है लालकि‍ला। मैं अकेला हूं और अकेले बैठकर तुम्‍हारी एक एक ईंट भगवा होते देख रहा हूं, एक एक महराब बि‍कते देख रहा हूं। 

तुम्‍हारा पुराना आशि‍क 
बीज भंडार वाले राहुल 

2 comments:

Parmeshwari Choudhary said...

आपको मालूम तो है न कि फासिस्ट सरकार क्या और कैसी होती है ?देश की संस्थाओं और जनमत का सम्मान ना करना अपने भीतर का फसिस्म नहीं है क्या ?कमसे कम आज़ादी के दिन तो जनतंत्र में आस्था न भी हो इसे गालियाँ तो ना दें

Rising Rahul said...

मेरी जूती तले है ऐसा जनमत जो देश की 70 फीसद आबादी का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व न करता हो।