Letter to the mike of Red Fort: लालकिले के माइक को पत्र
प्रिय लालकिले के माइक,
आज तुम्हें देखा। कितने दुबले हो गए हो तुम। एकदम मेरे देश की तरह कुपोषणग्रस्त। हो सकता है तकनीक ने तुम्हें ऐसा बना दिया हो, वैसे भी तकनीक हम लोगों में से 30 फीसद लोगों को कुपोषणग्रस्त बना ही चुकी है। चाहे वो दिमागी कुपोषण ही रहा हो जिसने आज तुम्हारी ये हालत कर दी। आज तुम अपने पूरे कुनबे के साथ लालकिले पर दिखे तो लगा कि चलो, किसी के तो 2020 तक जिंदा रहने की उम्मीद है, भले ही वो तुम हो। वैसे तो हमारे प्रधानमंत्री महोदय के भक्तगण गली गली हर बैठकी में यह कहते देखे-सुने जा सकते हैं कि 2020 तक वो ''हिंदुस्तान'' से किसी एक नस्ल को संपूर्ण रूप से मिटा देने वाले हैं। उम्मीद थी कि आज बरास्ते तुम उस योजना का भी खुलासा वो भगवान कर देते, जिससे कि यह सारी घोषणाएं उनके भक्तगण कर रहे हैं, लगातार करते जा रहे हैं।
माइक, कितनी अच्छी बात है (डोंट मांइड माइकजी प्लीज) कि तुम बोल नहीं सकते। बोल सकते होते तो आज कम से कम हमें उस लफ्फाजी से तो निजात मिलती जो बुद्ध की भूमि नेपाल बता रही थी। पता नहीं क्यों मेरे मन के तार बार बार इस बात से जुड़ रहे हैं कि जो बुद्ध को मानते हैं, उनका देश नेपाल होने का फतवा बहुत जल्द आने वाला है। अल्लाह को मानने वालों का फतवा तो नरेंद्र मोदी के कारिंदे कई बार दे ही चुके हैं कि उनका देश पाकिस्तान/बांग्लादेश है। मेरे सामने से इतिहास का वह मंजर हूबहू गुजर रहा है जब दक्षिण भारत के रामानंद संप्रदाय के लोगों ने बौद्ध धर्म को मानने वालों को उत्तर भारत से काफी दूर खदेड़ दिया था। माना कि उस वक्त भारत वारत का कोई अस्तित्व नहीं था, पर बात क्षेत्र के मौजूदा भौगोलिक पहचान की है। यानि कि अगर बार बार बुद्ध की भूमि नेपाल बोली जा रही है, तो मैं से लंबी अवधि की साजिश (लांग टर्म कांस्पिरेसी) मान सकता हूं। माइक, सच्ची कहता हुं, तुम उस वक्त थोड़ा सा तो खराब हुए होते। मगर ये तकनीक मुई जो है ना, ये तुम्हारा खून चूसकर ही मानेगी, ठीक वैसे ही, जैसे कि देश के 35 साल के लोगों का चूस रही है। उन्हें कुपोषित बना रही है।
तुम्हें प्रिय लिखना मेरी कोई मजबूरी नहीं है, सिर्फ इसलिए तुम्हें प्रिय लिखा क्योंकि तुम्हें प्रिय न लिखने का मेरे पास कोई ठोस कारण नहीं था और आमतौर पर मैं चीजों को प्रेम के साथ ही शुरू करना चाहता हूं, शुरू करता भी हूं। और प्रेम करना भी चाहिए। मैनें सुना माइक कि तुमने भी सुना कि महिलाओं की घटती संख्या पर तुम्हारे मुंह में अपनी आवाज ठूंसने वाला पितृसत्तात्मक फासिस्ट चिंतित था। मुझे इस चिंता ने और भी चिंता में डाल दिया है क्योंकि मैं जानता हूं कि संघ की सनातनी पितृसत्ता कैसे काम करती है। इसी तरह से मां बेटियों बहुओं बेटों में उलझाकर किस तरह से ब्लैकमेल करती है महिलाओं को, यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। चिंता ने चिंता जताई पर हिस्सा देने से पूरी तरह निश्चिंत रही। अगर आज बजरिए तुम, मुझे यह सुनने को मिलता कि देश की आधी आबादी को उसका हक मिलेगा और वो जीरो टॉलरेंस के लेवल पर मिलेगा तो शायद मेरी चिंता को और चिंता नहीं होती पर चूंकि चिंता ये नहीं थी, इसलिए हो रही है। एक तरफ महिलाओं के प्रेम के खिलाफ आरएसएस और भाजपा अभियान चलाती हैं, खाप पंचायत का समर्थन करती हैं, लव जिहाद जैसे फर्जी नारे देकर दंगे कराए जाते हैं जिसमें कितनी महिलाओं की अस्मत लूट जाती है और दूसरी तरफ उनकी रक्षा की जो लफ्फाजी की जाती है... तुम फिर से क्यूं नहीं खराब हो गए थे माइक। क्या तुम्हें उस वक्त जसोदा बेन की भी याद न आई।
माइक, तुमको तब भी खराब होना था, जब आतंकवादियों और माओवादियों को एक तराजू में तौला जा रहा था और उनके द्वारा की जाने वाली हत्याएं निर्दोषों की हत्याएं कही जा रही थीं। क्या महेंद्र कर्मा निर्दोष थे। ठीक है, मैं मानता हूं कि कानून व्यवस्था का शासन होना चाहिए, पर क्या सिर्फ एकपक्षीय। क्या सिर्फ 35 वर्ष के टैलेंटेड युवाओं की ही बात होनी चाहिए, क्या सिर्फ मेड इन इंडिया की ही बात होनी चाहिए। कितना बड़ा तबका तो ऐसा है जो अनप्रोफेशनल है। पर तुम्हारे मुंह में बोलने वाले को शायद यह नहीं पता क्योंकि वह जहां से आए हैं, उसकी खिड़की फेसबुक और ट्विटर पर भी खुलती है। और यहां से अगर वो हमें इतिहास बताती है तो सिर्फ वैदिक काल का इतिहास बताती है। वैदिक काल में भी वह बड़े चूजी हैं। अब काल की बात चली है तो काश तुम बताते कि तुम किस काल से आए हो। कहीं चुनाव के ठीक पहले वाले उस काल के नहीं जब बड़े बड़े प्लास्टिक के लालकिले बनाए जाते थे?
वैसे कहने को तो बहुत कुछ मन कर रहा है माइक अंकल, पर चूंकि साहेब ने तुम्हारे एक बच्चे का सिर वहीं मौके पर ही कलम कर दिया था तो मैं समझ सकता हूं कि तुम गमजदा होगे। इसलिए चलते चलते उन लोगों के लिए कबीर का ये एक दोहा कहे जा रहा हूं जो लोग अब गुस्से में लाल पीले होंगे-
''यह कलियुग आयो अबै, साधु न मानै कोय।
कामी क्रोधी मसखरा, तिनकी पूजा होय।।''
तुम्हारा तो कभी नहीं
खाद भंडार वाला राहुल
आज तुम्हें देखा। कितने दुबले हो गए हो तुम। एकदम मेरे देश की तरह कुपोषणग्रस्त। हो सकता है तकनीक ने तुम्हें ऐसा बना दिया हो, वैसे भी तकनीक हम लोगों में से 30 फीसद लोगों को कुपोषणग्रस्त बना ही चुकी है। चाहे वो दिमागी कुपोषण ही रहा हो जिसने आज तुम्हारी ये हालत कर दी। आज तुम अपने पूरे कुनबे के साथ लालकिले पर दिखे तो लगा कि चलो, किसी के तो 2020 तक जिंदा रहने की उम्मीद है, भले ही वो तुम हो। वैसे तो हमारे प्रधानमंत्री महोदय के भक्तगण गली गली हर बैठकी में यह कहते देखे-सुने जा सकते हैं कि 2020 तक वो ''हिंदुस्तान'' से किसी एक नस्ल को संपूर्ण रूप से मिटा देने वाले हैं। उम्मीद थी कि आज बरास्ते तुम उस योजना का भी खुलासा वो भगवान कर देते, जिससे कि यह सारी घोषणाएं उनके भक्तगण कर रहे हैं, लगातार करते जा रहे हैं।
माइक, कितनी अच्छी बात है (डोंट मांइड माइकजी प्लीज) कि तुम बोल नहीं सकते। बोल सकते होते तो आज कम से कम हमें उस लफ्फाजी से तो निजात मिलती जो बुद्ध की भूमि नेपाल बता रही थी। पता नहीं क्यों मेरे मन के तार बार बार इस बात से जुड़ रहे हैं कि जो बुद्ध को मानते हैं, उनका देश नेपाल होने का फतवा बहुत जल्द आने वाला है। अल्लाह को मानने वालों का फतवा तो नरेंद्र मोदी के कारिंदे कई बार दे ही चुके हैं कि उनका देश पाकिस्तान/बांग्लादेश है। मेरे सामने से इतिहास का वह मंजर हूबहू गुजर रहा है जब दक्षिण भारत के रामानंद संप्रदाय के लोगों ने बौद्ध धर्म को मानने वालों को उत्तर भारत से काफी दूर खदेड़ दिया था। माना कि उस वक्त भारत वारत का कोई अस्तित्व नहीं था, पर बात क्षेत्र के मौजूदा भौगोलिक पहचान की है। यानि कि अगर बार बार बुद्ध की भूमि नेपाल बोली जा रही है, तो मैं से लंबी अवधि की साजिश (लांग टर्म कांस्पिरेसी) मान सकता हूं। माइक, सच्ची कहता हुं, तुम उस वक्त थोड़ा सा तो खराब हुए होते। मगर ये तकनीक मुई जो है ना, ये तुम्हारा खून चूसकर ही मानेगी, ठीक वैसे ही, जैसे कि देश के 35 साल के लोगों का चूस रही है। उन्हें कुपोषित बना रही है।
तुम्हें प्रिय लिखना मेरी कोई मजबूरी नहीं है, सिर्फ इसलिए तुम्हें प्रिय लिखा क्योंकि तुम्हें प्रिय न लिखने का मेरे पास कोई ठोस कारण नहीं था और आमतौर पर मैं चीजों को प्रेम के साथ ही शुरू करना चाहता हूं, शुरू करता भी हूं। और प्रेम करना भी चाहिए। मैनें सुना माइक कि तुमने भी सुना कि महिलाओं की घटती संख्या पर तुम्हारे मुंह में अपनी आवाज ठूंसने वाला पितृसत्तात्मक फासिस्ट चिंतित था। मुझे इस चिंता ने और भी चिंता में डाल दिया है क्योंकि मैं जानता हूं कि संघ की सनातनी पितृसत्ता कैसे काम करती है। इसी तरह से मां बेटियों बहुओं बेटों में उलझाकर किस तरह से ब्लैकमेल करती है महिलाओं को, यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। चिंता ने चिंता जताई पर हिस्सा देने से पूरी तरह निश्चिंत रही। अगर आज बजरिए तुम, मुझे यह सुनने को मिलता कि देश की आधी आबादी को उसका हक मिलेगा और वो जीरो टॉलरेंस के लेवल पर मिलेगा तो शायद मेरी चिंता को और चिंता नहीं होती पर चूंकि चिंता ये नहीं थी, इसलिए हो रही है। एक तरफ महिलाओं के प्रेम के खिलाफ आरएसएस और भाजपा अभियान चलाती हैं, खाप पंचायत का समर्थन करती हैं, लव जिहाद जैसे फर्जी नारे देकर दंगे कराए जाते हैं जिसमें कितनी महिलाओं की अस्मत लूट जाती है और दूसरी तरफ उनकी रक्षा की जो लफ्फाजी की जाती है... तुम फिर से क्यूं नहीं खराब हो गए थे माइक। क्या तुम्हें उस वक्त जसोदा बेन की भी याद न आई।
माइक, तुमको तब भी खराब होना था, जब आतंकवादियों और माओवादियों को एक तराजू में तौला जा रहा था और उनके द्वारा की जाने वाली हत्याएं निर्दोषों की हत्याएं कही जा रही थीं। क्या महेंद्र कर्मा निर्दोष थे। ठीक है, मैं मानता हूं कि कानून व्यवस्था का शासन होना चाहिए, पर क्या सिर्फ एकपक्षीय। क्या सिर्फ 35 वर्ष के टैलेंटेड युवाओं की ही बात होनी चाहिए, क्या सिर्फ मेड इन इंडिया की ही बात होनी चाहिए। कितना बड़ा तबका तो ऐसा है जो अनप्रोफेशनल है। पर तुम्हारे मुंह में बोलने वाले को शायद यह नहीं पता क्योंकि वह जहां से आए हैं, उसकी खिड़की फेसबुक और ट्विटर पर भी खुलती है। और यहां से अगर वो हमें इतिहास बताती है तो सिर्फ वैदिक काल का इतिहास बताती है। वैदिक काल में भी वह बड़े चूजी हैं। अब काल की बात चली है तो काश तुम बताते कि तुम किस काल से आए हो। कहीं चुनाव के ठीक पहले वाले उस काल के नहीं जब बड़े बड़े प्लास्टिक के लालकिले बनाए जाते थे?
वैसे कहने को तो बहुत कुछ मन कर रहा है माइक अंकल, पर चूंकि साहेब ने तुम्हारे एक बच्चे का सिर वहीं मौके पर ही कलम कर दिया था तो मैं समझ सकता हूं कि तुम गमजदा होगे। इसलिए चलते चलते उन लोगों के लिए कबीर का ये एक दोहा कहे जा रहा हूं जो लोग अब गुस्से में लाल पीले होंगे-
''यह कलियुग आयो अबै, साधु न मानै कोय।
कामी क्रोधी मसखरा, तिनकी पूजा होय।।''
तुम्हारा तो कभी नहीं
खाद भंडार वाला राहुल
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