Saturday, February 15, 2020

डाटा से प्यार, डाटा से सेक्स और डाटा से बच्चे!

मुझे वो टिंडर पर मिली थी, या मैं उसे टिंडर पर मिला, यह तो ठीक से याद नहीं, लेकिन मैच हो गया था। झारखंड की थी, अनारक्षित वर्ग की और साढ़े तीन शादियां कर चुकी थी। साढ़े तीन यूं कि आखिरी में बात मंगनी के बाद टूट गई थी, लेकिन मिलना-मिलाना हो चुका था। हमारी बातें आगे बढ़ने लगीं तो पहले तो उसने धीमे से मुझे यह बताया कि उसके पापा मोदी जी के खिलाफ एक बात नहीं सुनते और अगर कोई कह दे तो उसको ऐसी-ऐसी सुनाते हैं कि पानी पनाह मांगे। मैंने उससे कहा, ‘तो क्या हुआ। मेरे घर में भी कुछ बीजेपी वाले हैं, कुछ कांग्रेस वाले हैं, सपा-बसपा वाले भी हैं और खुद मैं कम्यूनिस्ट हूं।’ तो वह बोली कि उसके यहां भी कुछ यही हाल है, उसका भाई कांग्रेसी है, भाभी को आम आदमी पार्टी अच्छी लगती है और मां इधर-उधर डोलती रहती हैं, और जो भी जोर से बोल दे, उसी की तरफ हो जाती हैं। मैंने उससे पूछा, ‘और तुम? तुम क्या हो’? वह बोली, ‘मैं तो वर्कोहलिक हूं। काम पसंद करती हूं। जो भी काम करता है, उसे पसंद करती हूं।’

यह सुनकर मेरे मन में लड्डू फूटा। आज के जमाने में जब लोग काम से ज्यादा नाम पसंद करते हों, ऐसे लोग मिलने मुश्किल होते हैं। कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा। फिर उसने धीमे-धीमे स्कूलों के बारे में फेक इन्फॉरमेशन मेरी ओर पुश करनी शुरू की। जैसे पहली तो यही कि अब देखो, सारे स्कूलों में पढ़ाई हो रही है। सारे टीचर्स स्कूलों में वक्त पर पहुंच रहे हैं और क्लासेस ले रहे हैं। लगातार आती इन फर्जी खबरों से जब मैं पक गया तो एक दिन मैंने उससे पूछ ही लिया, ‘आखिरी बार तुमने किस स्कूल का दौरा किया था?’ कहने लगी, ‘दौरा तो नहीं किया था, लेकिन उसका एक रिश्तेदार मध्य प्रदेश के स्कूल में पढ़ाता है, वही हमेशा सरकार से इस बात को लेकर हमेशा परेशान रहता है कि टाइम पर स्कूल पहुंचना है।’ मैंने उससे पूछा, ‘उसकी बीएलओ में ड्यूटी लगती है?’ वह बोली, ‘ये तो न पूछो, रोज ही जाने कहां कहां ड्यूटी लगती रहती है।’ मैंने फिर पूछा, ‘फिर वह स्कूल कब जाता है‌?’ इस पर वह थोड़ी नाराज हो गई और बोली, ये सब फालतू की बात है, वक्त पर तो स्कूल आना ही पड़ेगा।

फिर कुछ दिन बाद वह मुझसे सरकारी दफ्तरों की बेहतरी की बात बताने लगी। वहां भी आने-जाने के वक्त की पाबंदी की बात। मैंने पूछा, ‘अधिकारियों के दफ्तर वक्त पर आने जाने से क्या सारे काम वक्त पर होने लगे?’ वह बोली, ‘और क्या।’ मैंने पूछा, तुम अपनी जीएसटी कैसे फाइल करती हो तो बोली कि उसने इस काम के लिए एजेंट कर रखा है। मैंने पूछा कि अगर अधिकारी या सरकारी कर्मचारी अपने काम के इतने ही पाबंद हैं तो बीच में दलाल क्यों लगाया? क्या दलाल पूरा काम ईमानदारी से कराता है? छूटते ही वह बोली, ‘तुम मोदी विरोधी हो।’ पहले तो मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि मैं इस गलीच सिस्टम का विरोधी हूं, लेकिन वो तो समझने का नाम ही न ले। फिर मैंने उससे पूछा, ‘तुम मोदी समर्थक हो?’ इस बार वह खुलकर बोली, ‘हां। और मोदी जी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।’ मैंने पूछा, ‘क्या अच्छा काम कर रहे हैं?’ बोली, ‘नोटबंदी करके काले धन की कमर तोड़ दी।’ मैंने कहा, ‘लेकिन सारा पैसा तो रिजर्व बैंक वापस आ गया।’ इस पर वह बोली, ‘इतना अंधा विरोध तो न करो।’ मैंने कहा, ‘ये मैं नहीं, रिजर्व बैंक का डाटा कह रहा है। ’तो कहती है, ‘जाओ, उसी डाटा से प्यार करो, उसी से सेक्स करो और उसी से बच्चे पैदा करना।’

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