फिर मिलेंगे, या नहीं मिलेंगे, या नहीं पता...
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जीवन जैसा ही बनना है। चाहे जो भी हो, जीवन को कोई फर्क नहीं पड़ता। सांस हर हाल में चलती ही रहती है। सुख से जीवन को कोई सुख नहीं मिलता, न दुख से दुख। अपनी बनाई चीजों से तो कतई कुछ नहीं मिलता और दूसरा कोई न था, न है, न होगा। होगा भी तो महज लगना ही होगा और लगना होना नहीं होता नीला बाबू। वैसे भी जीवन की गति गतिहीनता में ही है। बाकी तो दुर्गति है।
फिर मिलेंगे नीला बाबू, शायद जीवन की जड़ता से पार कहीं। या नहीं मिलेंगे, क्या फर्क पड़ता है, या नहीं पता...
तबतक तुम्हारे बुंदे का एक मोती मेरे पास है।
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