Thursday, April 5, 2018

फिर मिलेंगे, या नहीं मिलेंगे, या नहीं पता...

आता तो है इधर, लेकिन ठहरता नहीं है। गलती से कभी ठहर भी गया, तो राम कहां ठहरने वाले। मन में रंग रहता है, रंग में मन रहता है। आता है जब सुख तो जीवन में कुछ ढंग रहता है, लेकिन ढंग के जीवन जैसी कोई चीज ढंग से कभी होती नहीं, पहले कभी यूजी ने कुढ़कर कहा था, मैं सपाट कहता हूं। लगता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है और लगता ही है। लगना होना नहीं होता। ढंग की उमंगे लगने को होने देने के लिए बार-बार ऊपर लेकर आती हैं, और बार बार राम थोड़ा और नीचे गिर जाते हैं।
जीवन जैसा ही बनना है। चाहे जो भी हो, जीवन को कोई फर्क नहीं पड़ता। सांस हर हाल में चलती ही रहती है। सुख से जीवन को कोई सुख नहीं मिलता, न दुख से दुख। अपनी बनाई चीजों से तो कतई कुछ नहीं मिलता और दूसरा कोई न था, न है, न होगा। होगा भी तो महज लगना ही होगा और लगना होना नहीं होता नीला बाबू। वैसे भी जीवन की गति गतिहीनता में ही है। बाकी तो दुर्गति है।
फिर मिलेंगे नीला बाबू, शायद जीवन की जड़ता से पार कहीं। या नहीं मिलेंगे, क्या फर्क पड़ता है, या नहीं पता...
तबतक तुम्हारे बुंदे का एक मोती मेरे पास है।

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