गनीमत थी कि खटिया में पाया था
अबसे मैं बनियान पहनूंगा तो उसके पहनने का तरीका लिखूंगा। ये भी लिखूंगा कि बनियान पहनने के बाद मैनें बुधवार को लाल रंग की चड्ढी पहनी थी जिसमें नाड़े की जगह इलास्टिक लगी थी। ये भी कि इलास्टिक थोड़ी टाइट थी इसलिए कमर पर रेघारी पड़ गई थी। ये भी कि सुबह कामवाली दाल भात पका के तो गई लेकिन दाल में इतना पानी भर गई कि दो बार पानी पसाना पड़ा। हालांकि कोई सुंदर प्लेट कटोरी नहीं है मेरे पास, हॉस्टल की चुराई तीन थालियां हैं जिनमें चार खाने हैं और खाना सज भी नहीं सकता, फिर भी मैं अपने बेढंगे ढंग के खाने को जिस पचास रुपये के दो सौ ग्राम वाले अचार के साथ खाउंगा तो उसकी फोटो पोस्ट करके दो की जगह तीन बार पानी पसाने की बात भले ही झुट्ठे लिखूंगा, पर लिखूंगा जरूर। चैनल पर रबीस बाबू अगर छींके भी तो उन्हें भी बकअप रबीस, का गजब कर गुजरे... भरे स्टूडियों में छींक मारे... तुम सच में अलग हो रबीस, ये भी लिखूंगा। मैं लिखूंगा कि जब मैं घर लौटकर आया तो अरगनी पर टांगी दो तौलिया एक चड्डी में से चड्ढी उड़कर खटिया के पाए से उलझी पड़ी थी। वो तो गनीमत रही कि खटिया में पाया था नहीं तो उड़कर का जनी कहां चली जाती। इकलौती नहीं है फिर भी जितनी पुरानी चड्ढियां हैं, सबको करीने से लगाकर फोटो लूंगा और मेरी बात का यकीन मानिए, मैं बड़ा ही मार्मिक लिखूंगा कि यही तो वो सामान था... खैर। मैं लिखूंगा और अब से हर चीज लिखूंगा। आपके दिमाग का दही होता रहे तो क्या, वैसे भी गर्मी का सीजन है, दही की लस्सी सबको चाहिए होती है भई....
No comments:
Post a Comment