कलंदर की मौत
कलंदर की मौत
कल रात कलंदर के घर से
गाने की आवाज नहीं आई
और न ही आई देर रात
बटुली में लड़कर खनखनाती कलछुल की आवाज,
सारी रात बस टीवी पर चलने वाले डायलॉग
ही सुनाई देते रहे।
सुबह भी यही लगा कि
कलंदर के घर टीवी ही चल रहा होगा
पर डायलॉग कुछ बदले से लगे
दरअसल डायलॉग फुसफुसाहट में बदल चुके थे
टीवी बंद हो चुका था
कलंदर भी।
जितने मुंह उतनी बातें
जितनी मात्राएं उतनी कहानियां
चलने लगी थीं कलंदर के दरवाजे पर
और जो नहीं चलीं,
वो आइंदा दिनों के लिए
पलने लगी थीं लोगों के पेट में।
कलंदर की मौत का पता चलने के ठीक दो घंटे बाद
कलंदर की कहानियां उसका दरवाजा छोड़कर
मेहता, मिश्रा, गुप्ता और बंसल जी की
नाश्ते की प्लेट में अचार का
जायका बढ़ा रही थीं।
कलंदर जिंदा था तो रात में गाना सुनाता था
कलंदर मर गया तो अचार की लज्जत लाता है।
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