ख़ज़ाना हमारा है ...
प्राचीन भारत से लेकर अब तक हमारी व्यवस्था कृषि व कुटीर उद्योग आधारित रही है। हमारे खेतों में उगने वाले खाद्यान्न और खुदरा व्यापार की चेन ने हमें विश्व में एक अलग तरह की अर्थव्यवस्था दी है। इसी अर्थव्यवस्था के चलते हमने विश्र्वव्यापी मंदी से मुकाबला किया और सफल भी रहे। इस अर्थव्यवस्था से देश की आधी आबादी जो गांवों में बसी है व बीस करोड़ की शहरी आबादी का गुजर बसर होता है। जिस बचत से मंदी से बचने के दावे किए जा रहे थे, वह इसी आबादी की डाकघरों व बैंकों के बचत खातों की धनराशि थी। इस बात पर हमने तो डंका पीटा कि बच गए लेकिन उसे संभालकर रखने की बात अब सिरे से ही गायब हो चुकी है। हालांकि विदेशियों की पूरी नजर इस बचत की धनराशि पर है। खतरनाक बात तो यह है कि अंग्रेजों के जमाने की तरह किसी एक ईस्ट इंडिया कंपनी की नजर इस खजाने पर नहीं है बल्कि अमेरिका सहित कई देशों की नजर में यह खजाना किसी कुबेर के खजाने से कम नहीं है। आखिर अस्सी करोड़ लोगों ने अगर सौ रुपया महीना भी बचाया होगा तो सोचा जा सकता है कि यह रकम महीने में या साल भर में कितनी होगी।
विदेशी पूंजीपति किसान व खुदरा व्यापारी का सैकड़ों साल पुराना रिश्ता तोड़ देना चाहते हैं। वह इस चेन को तोड़कर सीधे किसान या व्यापारिक भाषा में उपभोक्ता तक पहुंचना चाहते हैं। इस उपभोक्ता को वह सब कुछ बेचा जाएगा, जिसकी उसे जरूरत भी न हो। जब उपभोक्ता की सारी बचत समाप्त हो जाएगी तो उसे उधार भी दिया जाएगा। यह सब बचत के खजाने को लूटने के लिए किया जा रहा है और इसमें पूरी साजिश है। दरअसल सबसे ज्यादा विदेशी निवेश संयुक्त राज्य अमेरिका की तरफ से होने के करार हो रहे हैं। लेकिन इसी अमेरिका का विदेश व्यापार घाटा दुनिया में सबसे ज्यादा है। कहीं से कपड़ा तो कहीं से जूता, कहीं से चाय कॉफी तो कहीं से डॉटर इंजीनियर उनके लिए जा तो रहे हैं लेकिन उनके यहां पैदा नहीं हो रहे। निर्यात कम व आयात ज्यादा होने की वजह से अमेरिका पर दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज है, जिसे उतारने के लिए उसकी कंपनियों की नजर, जाहिर है हमारे इस खजाने पर है। यह तभी संभव है जब देशी व्यापारियों का अस्तित्व खत्म कर दिया जाए। और ऐसा हो भी रहा है, केंद्र सरकार एक के बाद एक बेतुके कानून बनाए जा रही है। केंद्र की कांग्रेस सरकार के इस बारे में अमेरिका से समझौते भी हो चुके हैं। अमेरिकी कंपनी वालमार्ट का ही उदाहरण लें। वालमार्ट जैसी कंपनी के भारत में खुदरा व्यापार की अनुमति देना न सिर्फ देश के स्थानीय बाजारों को खत्म करने की, बल्कि भारत की रीढ़ बनी बचत व्यवस्था को भी लूट की सरकारी छूट देने की अनुमति देना है।
विदेशी कंपनी को खुदरा व्यापार की अनुमति देने व स्थानीय बाजार को खत्म करने से महंगाई और बढ़ेगी। हमारा खजाना तो खाली होगा ही, हम अमेरिका की तरह कर्ज के तले दबे नजर आएंगे। और ऐसा शुरू भी हो गया है। केंद्र की कांग्रेस सरकार ने महंगाई से निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। न तो लोगों को दाल में कोई राहत मिली और न ही प्याज में। यह सब व्यापारियों व व्यापार के लिए बनाए गए बेतुके कानूनों का भी नतीजा हो सकता है। बढ़ते टैस ने ही नहीं, उस टैस को चुकाने तक की प्रक्रिया ने व्यापारी की कमर तोड़कर रख दी है। सवाल पैदा होता है कि हम दुनिया भर की विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए मुक्त व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, सेज-स्पेशल इकोनॉमिक जोन बना रहे हैं, लेकिन हमारे अपने ही देश के व्यापारी एक राज्य से दूसरे राज्य तक मुक्त व्यापार नहीं कर सकते। टैस के अलावा रास्ते में होने वाली लूट खसोट अलग से जोड़ी जा सकती है। यहां तक कि अगर किसान अपनी खेती से मिला उत्पादन यदि मंडियों में लाता है तो सड़क पर आने से लेकर मंडी की पर्ची कटाने तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। सरकार की तरफ से संरक्षण प्राप्त सट्टा बाजार इस महंगाई में घी का काम कर रहा है। इसे रोकने के लिए कांग्रेस की केंद्र सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। सरकार यदि कुछ कर रही है तो यह कि विदेशी कंपनी की मांग पर एक के बाद एक विधेयक पारित कर कानून में संशोधन किया जाता है। अगर देश के नागरिक साधारण सी भी कोई मांग कर दें तो सरकार को सांप सूंघ जाता है और बयानबाजियां शुरू हो जाती हैं।
उार प्रदेश में तो और भी बुरे हालात हैं। यहां पर न तो महंगाई कम करने की मांग की जा सकती है और न ही रोजगार देने की। भ्रष्टाचार के चलते कत्ल दर कत्ल होते चले जा रहे हैं। जिस तरह से विधायक स्वयं अपराध के दलदल में फंसे हैं और प्रदेश सरकार उन्हें निकालने के लिए अदालत में मुकदमा वापस लेने के आवेदन करती जा रही है, आने वाला समय या होगा, इसकी परिकल्पना करना कोई मुश्किल काम नहीं है। दरअसल विनिमय के सभी सिद्धांत बदल चुके हैं। अब विनिमय मात्र वस्तुओं के लेनदेन तक सीमित नहीं रह गया है। अधिकारों से लेकर कानून तक विनिमय ने हर वस्तु को बिकाऊ बना दिया है। ऐसे में अगर महंगाई बढ़ती है तो कोई अचरज की बात नहीं है बल्कि लाजमी है।
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