Tuesday, August 23, 2011

ग्रेट इंडियन कनवर्टर शो

तेजगढ़ी से जरा सा आगे बढ़ें तो एक पलिक स्कूल टाइप का स्कूल है। पलिक स्कूल टाइप का इसलिए, योंकि न तो व पूरी तरह से पलिक स्कूल की अवधारणा को पूरा करता है और न ही सामान्य स्कूल की सोच को। एक तरह से खिचड़ी हो चुका है। बहरहाल, शाम का समय था और मैं और मेरा बेटा जरा तफरीह को निकले। बेटा अभी डेढ़ साल का है। घूमते-घूमते दोनों उस स्कूल के सामने जाकर खड़े हुए। स्कूल में दो ढाई साल से लेकर दस साल के बच्चों को कराटे सिखाया जा रहा था। छोटे-छोटे बच्चों को हू हा करते देख बेटे को उनमें कुछ देखने लायक सा लगा और हम दोनों कराटे लास देखने लगे। तकरीबन बीस मिनट बाद कराटे लास खत्म हुई। खत्म होने से ठीक पांच मिनट पहले बुलेट पर एक स्टाइलिश युवक आया। कराटे पूरी तरह से सिस्टम पर आधारित है। आप शुरू करते हैं तो एक दूसरे को कमर के बल पर थोड़ा सा झुक कर प्रणाम करते हैं और जब खत्म करते हैं, तो भी यही करते हैं। तो जैसे ही कराटे लास खत्म हुई, गुरूजी वहां पहुंचे। कमर के बल पर वह थोड़े से झुके। लेकिन यहां भी वही चाऊमीन वाली हालत थी। बच्चे झुक भी रहे थे और गुरूजी को पैरीपौना भी करते जा रहे थे। गुरूजी झुक भी रहे थे और सभी पैरीपौना करने वाले बच्चों को खुश रहो, आबाद रहो- जो कि शायद वो मन में बोल रहे हों- का आर्शीवाद देते जा रहे थे। ये चीनी कराटे का शुद्ध भारतीय संस्करण था। इसमें कोई मिलावट नहीं थी योंकि हम हमेशा से बाहरी चीजों का इसी तरह से भारतीयकरण करते आए हैं।
जीरा चाऊमीन
याद कीजिए जब शुरू शुरू में हमारे यहां चाऊमीन आया था। मतलब चाऊमीन आ तो गया होगा सालों पहले, लेकिन लोकप्रिय होना शायद ढाई दशक पहले शुरू हुआ था। ठीक ठाक होटलों में यह मिलता था और इसमें तरह तरह की सजी और केंचुए जैसे तार को देखकर सुड़ुकने में जी खुश हो जाता था। तब इसमें चीन की महक डालने के लिए सोया सॉस और अजीमोमोटो पाउडर डाला जाता था। लेकिन अब जो चाऊमीन बिक रहा है, वह शुद्ध भारतीय संस्करण है। बगैर जीरे के कैसा चाऊमीन। बगैर गरम मसाले के कैसा चाऊमीन और बगैर कद्‌दू वाले लाल सॉस के कैसा चाऊमीन। अजीमोमोटो तो अब भी डाला जाता है।
बर्गर मसाला
बर्गर भी काफी कुछ यही हालत हो गई। मैडॉनल्ड वाले बेचारे या बर्गर बेचते होंगे जो हमारे यहां टिक्की वाले बनाकर बेचते हैं। उनकी तो पॉव रोटी भी कच्ची ही रहती है। सिर्फ आलू की टिकिया पकाई और क्रीम डालकर दे दी खाने को। भला इसमें कोई स्वाद है। स्वाद तो तब आता है जब बर्गर की पॉवरोटी बढ़िया से सेंकी जाए, उसमें आलू मटर की टिक्की डाली जाए, ऊपर से हरी चटनी फिर पनीर की एक स्लाइस भी हो। थोड़ी से कतरी हुई पाागोभी भी चलेगी, लेकिन उसके ऊपर इमली की लाल चटनी और गरम मसाला जरूर होना चाहिए। आखिर जीभ को करंट मिलना भी तो जरूरी है। बर्गर अब बर्गर नहीं रहा, बल्कि यह चाट पकौड़ी की प्राचीन श्रृंखला में शामिल हो चुका है। कभी कभी मुझे लगता है कि भारतीय कयुनिस्ट आंदोलन चाऊमीन और बर्गर नहीं बन पाया, वरना वह भी लोकप्रिय होता और आज किसी को बंदूक उठाने की जरूरत न पड़ती।
आलू गोभी
अभी कुछ दिन पहले एक ट्रैवेल एंड लिविंग चैनल देख रहा था। उसमें कुछ विदेशी लोग थे जो तरह तरह का खाना पका कर जज लोगों को खिला रहे थे और जज खाना खाकर बता रहे थे कि इसमें फलां सॉस कम है और इसमें पता नहीं कौन से समुद्र की पता नहीं कौन से मछली का टेस्ट आ रहा था। इन लोगों ने एक भारतीय परिवार को भी बुला लिया। मजे की बात देखिये कि भारतीय परिवार ने इन्हें जो खिलाया, जज लोगों का कहना था कि ऐसा टेस्ट उन्हें पहले कभी नहीं मिला। इन लोगों ने जज को आलू गोभी की सूखी सजी और रोटी खिलाई। एक जज ने कहा कि ये जबान पर करंट भी देता है और तरावट भी। ऐसी चीज उन्होंने पहले नहीं खाई। अब पता नहीं किसने इन लोगों को जज बना दिया कि इन्हें ये तो पता है कि पता नहीं कौन से समुद्र की पता नहीं कौन सी मछली कैसा स्वाद देती है लेकिन एक अरब बीस करोड़ लोगों की लोकप्रिय आलू गोभी की सजी का स्वाद इन्हें नहीं पता और वह इन्हें जबरदस्त करंट देती है।
करंट
कांग्रेस ने इस करंट को अच्छी तरह समझा। उसे पता है कि अमेरिका की नीतियां कब इस देश में लानी है, मैडॉनल्ड को कब इस देश में घुसने देना है। वह मैडॉनल्ड में बैठकर बढ़िया क्रीम वाला बर्गर भी खाते हैं और ठेले पर खड़े होकर पांच रुपये वाला बर्गर दूसरों को खिलाते हैं। आखिर बर्गर तो बर्गर ही है। और लोगों को जब तक करंट न लगे, कैसा बर्गर। बाकी इस करंट के झटके में चार काम और हो जाएं तो हर्ज या है। कभी कभी मुझे लगता है कि कांग्रेस और भाजपा में आपसी सुलह हो गई है जो अमेरिका ने कराई है। राजा का मामला कोर्ट में है, वालमार्ट को देश में जगह बनानी है। अब अगर लोग अन्ना के आंदोलन में खोये रहें और राजा का भला हो जाए, कलमाड़ी की सुलह हो जाए और वालमार्ट दुकान खोल ले तो मजे ही मजे। अखिर है तो आखिर वही पांच रुपये वाला बर्गर ही। भाजपा भी इसमें पूरा साथ दे रही है। बेरोजगार हैं तो हों, इन दोनों की बला से। बीस से चालीस करोड़ लोगों को दोनों वक्त खाना न मिले, बर्गर तो पांच रुपये में मिल रहा है। बढ़िया चटखारेदार बर्गर। जिसमें एक परत हरी चटनी की है, एक परत गरम मसाले की है और ऊपर से खट्‌टी इमली वाली मीठी चटनी।

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