Monday, October 8, 2007

ये कूड़ा नही, इन्सान है

बात कल की है। कल सुबह तकरीबन दस बजे की। परसों रात मे देर से आया था इसलिये सुबह सोकर भी देर से ही उठा। वही दस बजे। बॉस का फोन आया कि जली कोठी के पास किसी आदमी को कूड़े मे फेंक दिया गया है, एक्सक्लूसिव है और जल्दी से कवर करना है। एक्सक्लूसिव के चक्कर मे मैं उठा , पैंट शर्ट डाली और दस मिनट मे जली कोठी पहुच गया। वहां जो कुछ भी देखा , मुझे नही पता कि दिल्ली या टी वी मे ये सब दिखाया गया होगा लेकिन इतना खराब था कि मानवीयता , इंसानियत या ऐसे किसी शब्द का प्रयोग करना उसके लिए बेकार है।

जली कोठी मेरठ की वह जगह है जहाँ पर पूरे शहर का कूड़ा डाला जाता है। यही पर नशे की हालत मे एक लड़का बेहोश पड़ा था और लोगो ने उसपर और कूड़ा डाल दिया था जिससे उसका बदन पूरी तरह से ढँक गया था। नगर निगम की जे सी बी मशीन आई और कूड़े समेट उसे दूसरे कूड़े वाले ट्रक मे डाल दिया। आसपास के लोगो ने कूड़े मे हरकत होती देखी तो शोर मचा। पता चला कि कूड़े के ही साथ एक जिंदा इन्सान को फेंक दिया गया है। उसके सर मे गहरी चोट थी। तुरन्त उसे अस्पताल पहुचाया गया। अस्पताल मे इमरजेंसी मे जो डॉक्टर था , उसने पहले से ही नशे की गोलियां ले रखी थी और उसी हालत मे वह उसे देख रहा था। उस डॉक्टर ने उसे वार्ड मे भरती कर दिया। जब स्ट्रेचर से लोग उसे ले जा रहे थे तो एक आदमी ने उसके हाथ मे लगी ड्रिप नोची और उसे उसके मुह से लगा दिया। मैं फिर से उसी डॉक्टर के पास आया और उससे पूछा कि उसका इलाज क्यों नही कर रहे। उसने बताया कि उसने सर्जन और फिजिशियन को लिख दिया है। जब वो आएंगे तब उसे देखा जाएगा। मैंने उससे पूछा कि वो खुद क्यों नही देखता तो वह उल्टे मुझसे पूछने लगा कि क्या मैं पत्रकार हूँ ? मैंने कहा कि क्या मेरे पत्रकार होने की वजह से आप उसे देख लेंगे ? उसने कहा कि अगर आप पत्रकार हैं तो जाइए छाप दीजिए और अगर नही हैं तो इस कमरे से बाहर निकल जाइये। बहरहाल बहस तो ख़ूब हुई लेकिन उसका जिक्र यहाँ बेमानी है। एक घंटे तक मैं अस्पताल मे रहा लेकिन उसे देखने कोई नही आया। परसों ही दो बच्चियाँ डायरिया से उसी अस्पताल मे मरी और सिर्फ इसलिये क्योंकि रात भर उन्हें कोई डॉक्टर देखने नही आया। दोनो सगी बहने थी और उनके अलावा उनके घर मे कोई दूसरा बच्चा नही था। ठीक उसी तरह यहाँ मेरठ मे हर दूसरे दिन डेंगू से एक मौत हो रही है। अस्पताल के लोग मानने के लिए तैयार ही नही हो रहे हैं कि शहर मे डेंगू है। यहाँ तक कि कमला , जाकिर कालोनी , लाख्खिबाग, इस्लामाबाद और ऐसे कई सारे इलाक़े हैं जहाँ स्वास्थ्य विभाग के लोग रोज दावे करते हैं कि दवाईयां डाली जा रही है , फागिंग हो रही है लेकिन हकीकत मे कही कुछ भी नही हो रहा है।

मैं परेशान हूँ क्योंकि अस्पताल के डॉक्टर कहते हैं कि वो बच्चियाँ पहले से ही बीमार थीं। मैं परेशान हूँ क्योंकि मुझे आये दिन यही सब देखना पड़ता है। मैं परेशान हूँ कि मैं कुछ भी नही कर पा रहा। क्या इस परेशानी से निकलने का कोई रास्ता है ?

:- फोटो उसी आदमी की है।

3 comments:

Bhupen said...

परेशानी से ख़ुद को कमजोर मत करो. छटपटाहट बरकरार रहे तो कोई न कोई रास्ता ज़रूरू मिलता है. अपना ख़्याल रखना.

डॉ .अनुराग said...

khud meerut me rahta hun ,isliye dukh hua,doctor bhi hun,isliye kahi jyada dukh hua.parantu jaisa ki bhupen ji na kaha hai,baichaani banaye rakhiye ,ye aapko insan banane me aor madadgar sabit hogi.

अमित said...

मुझे याद आया.. रिपोर्टर ने जब इसके विजुअल भेजे थे.. बड़ा ही दर्दनाक था.. जितने भी शॉट्स थे. खींचतान कर एक लंबा सा वोसोट बना दिया बस.. शायद किसी स्थानीय निवासी की बाइट भी थी.. लेकिन फिर क्या हुआ उस आदमी का. आपके माध्यम से ही जान पाया.. वैसे भी खबरों की भेड़चाल में खबरों का पीछा कर उसके अंजाम तक पहुंचा चाए.. ऐसा बहुत कम होता है..