Friday, March 12, 2021

बधाई हो, भारत में तानाशाही आई है

 


डेमोक्रेसी पर दुनिया भर के देशों की लगातार रिसर्च करने वाले एक विदेशी इंस्टीट्यूट ने बताया है कि भारत अब चुनावी तानाशाही में बदल चुका है। पिछले साल इस इंस्टीट्यूट ने वॉर्न किया था कि भारत बस अपनी लोकतांत्रिक हालत खोने ही वाला है। स्वीडन के रिसर्च इंस्टीट्यूट वेरायटीज ऑफ डेमोक्रेसी, यानि की वी डेम ने पूरे एनालिटिकल डेटा के साथ अपनी यह रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की है और खास बात ये कि यह रिपोर्ट स्वीडन के विदेश मंत्री रॉबर्ट रिडबर्ग की मौजूदगी में पेश की गई। स्वीडन की गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी से जुड़े इस इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि खासतौर से 2019 के बाद से, जबसे नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में आए, तबसे मीडिया, अकादमियां और सिविल सोसायटी कुचली जा रही हैं। 2019 के बाद से सेंसरशिप तो बिलकुल रूटीन की चीज बन गई है और पहले सरकारें ही सेंसर करती थी, अब तो भारत में जिसकी जो मर्जी आ रहा है, वो सेंसर कर दे रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी के आने से पहले भारत सरकार सेंसरशिप जैसी चीजों का कभी कभार ही यूज करती थी। मोदी जी लगातार राजद्रोह, मानहानि जैसे कानूनों का तो यूज कर ही रहे हैं, जो भी उनके खिलाफ बोलता है, उस पर काउंटर टेररिज्म का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसा कि हम अनुराग ठाकुर से लेकर कपिल मिश्रा तक को आतंकवादियों जैसा व्यवहार करते देख ही चुके हैं। आपको सिर्फ एक नंबर बताता हूं। ये नंबर और इस नंबर से जुड़ी बस एक लाइन की कहानी सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। मोदी जी जबसे केंद्र की सरकार में आए हैं, उन्होंने सात हजार से ज्यादा लोगों पर देशद्रोह लगा डाला है। और ये देशद्रोह की धारा उसने अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों पर तो लगाया ही है, बीजेपी के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर भी लगाया है। स्वीडन की यह रिपोर्ट कहती है कि मोदी जी ने भारत की सिविल सोसायटी को लाचार कर दिया है और भारतीय संविधान में जो सेक्युलिज्म, यानी धर्मनिरपेक्षता शामिल है, उसे छिन्न भिन्न कर दिया है। 


इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी यानी मोदी जी ने फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशंस रेग्युलेशन एक्ट यानी एफसीआरए का यूज सिविल सोसायटी को कमजोर करने के लिए जमकर किया है। याद रखें, जिस भी लोकतांत्रिक देश में सिविल सोसायटीज कमजोर होती हैं, लोकतंत्र में इसका मतलब तानाशाही माना जाता है। हालांकि बीजेपी और संघ से जुड़े जितने भी संगठन हैं, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वो धड़ल्ले से विदेशों से पैसा मंगा रहे हैं। इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि मोदी जी ने अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट यानी कि यूपा को सिर्फ अपने राजनीतिक विरोधियों पर यूज किया है और उन पर सभी लोगों पर किया है, जो उनकी नीतियों का विरोध करते हैं या फिर विरोध करने के लिए सड़क पर उतरे। आपको बता दें कि यह रिपोर्ट साल 2021 की है, जो बुधवार 10 मार्च को जारी हुई है। कोई भी इसे वी डेम डेमोक्रेसी रिपोर्ट के नाम से गूगल पर सर्च करके पढ़ सकता है, यह पूरी तरह से फ्री है। यह रिपोर्ट कहती है कि इन सारे फैक्ट्स की रौशनी में यह घोषित करने में उन्हें कोई हिचक नहीं है कि पिछले दस सालों के बाद भारतीय लोकतंत्र अब एक चुनावी तानाशाही में बदल चुका है। अच्छा, एकबारगी कोई कह सकता है कि स्वीडन की क्या औकात, या नॉर्वे की क्या औकात या फिर कोई बड़ा भक्त हुआ तो ये भी कह सकता है कि अमेरिका की क्या औकात। लेकिन अगर हम वाकई भारत की डेमोक्रेसी को लेकर या सिर्फ डेमोक्रेसी को ही लेकर चिंतित हैं तो इसके बारे में और जानना चाहते हैं तो हमें पिछले कुछ सालों में आई सारी रिपोर्टें देखनी चाहिए। आखिर मोदी जी भी तो अपने मर्जी का सर्वे लेकर आते हैं, उनके भी रिजल्ट देखने चाहिए। तो चलिए, सारी तो नहीं, लेकिन मेन मेन देखने की कोशिश करते हैं। 



पिछले हफ्ते, यानी मार्च 2021 की शुरुआत में ही अमेरिकी थिंक टैंक फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा था कि भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के शासन में भारत में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता लगातार गिर रही है और ‘भारत ने एक वैश्विक लोकतांत्रिक अगुवा का रास्ता बदलकर एक संकीर्ण हिंदु हितकारी देश का रुप अख्तियार कर लिया है। और इसकी कीमत समावेशी और समान अधिकारों को तिलांजलि देकर चुकाई जा रही है।‘ यह कहना है लोकतांत्रिक संस्था फ्रीडम हाऊस का, जिसने भारत की रैंकिंग स्वतंत्र देश से घटाकर ‘आशंकि स्वतंत्र’ देश के रूप में की है। आपको बता दें कि फ्रीडम हाऊस अमेरिकी सरकार से मदद पाने वाला एक स्वतंत्र लोकतंत्र रिसर्च इंस्टीट्यूट है। अपनी रिपोर्ट में इस संस्था ने कहा है कि भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं, पत्रकारों को धमकियां देने और उत्पीड़न की घटनाओं और अत्यधिक अदालती हस्तक्षेप की घटनाओं में बहुत तेजी आई है। रिपोर्ट कहती है कि इन सबमें तेजी 2014 में नरेंद्री मोदी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार आने के बाद हुई है। फ्रीडम हाऊस की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने विश्व में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने वाले देश के तौर पर अपना रुतबा बदलकर चीन जैसे देशों की तरह एक तानाशाही रुख अपना लिया है। मोदी और उनकी पार्टी ने भारत को एक अधिनायकवादी राष्ट्र के रूप में बदल दिया है। एक सर्वे मोदी का भी देख लेते हैं। 10 फरवरी को आजतक ने खबर छापी कि अमेरिका में रह रहे भारतीयों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अभी भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं. कार्नेगी सेंटर फॉर एनडाउमेंट ऑफ़ पीस के सर्वे के मुताबिक अमेरिका में रह लोगों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर भरोसा अभी भी कायम है. हालांकि भारत में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति को लेकर भारतीय अमेरिकियों की राय बंटी हुई है. यह सर्वे पिछले साल यानी 2020 में एक सितंबर से बीस सितंबर के बीच ऑनलाइन करवाया गया था. 


गजब बात तो यह कि जहां स्वीडन के वी डेम में करोड़ों लोगों की हिस्सेदारी थी, दस साल की रिसर्च थी, वहीं इस सर्वे में सिर्फ 1200 लोगों ने हिस्सा लिया और भारत भर के सारे मीडिया हाउसों ने इसे हाथोहाथ लिया। आज अभी जब मैं वीडेम की रिसर्च रिपोर्ट की खबर बना रहा हूं, हिंदी में यह खबर दोपहर तक कहीं नहीं आई है, जबकि इसकी रिपोर्ट बुधवार को ही जारी हो चुकी थी। बहरहाल, इस सर्वे में शामिल लोगों से जब पूछा गया कि क्या भारत सही रास्ते पर है तो 36 फीसदी ने कहा कि हां, सही रास्ते पर है, मगर इस सर्वे में भी 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नहीं, भारत सही रास्ते पर नहीं है। मगर यह बात भारतीय मीडिया हाउसों ने हाइलाइट नहीं की। ऐसे ही एक सर्वे जनवरी 2021 में आया था, जिसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक अमेरिकी डाटा फर्म ने अपने सर्वे में दुनिया का सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनेता माना है। अमर उजाला में छपी खबर बताती है कि दुनियाभर के राजनेताओं की लोकप्रियता पर नजर रखने वाली कंपनी मॉर्निंग कंसल्टेंट ने अपने सर्वे में कहा है कि 75 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है। वहीं, 20 फीसदी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है। कुल मिलाकर 55 फीसदी लोगों ने माना है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे स्वीकार्य राजनेता हैं। यह सर्वे अमेरिका, फ्रांस, ब्राजील, जापान समेत दुनिया के 13 लोकतांत्रिक देशों में हुआ था। जब जब भारत की डेमोक्रेसी को लेकर कोई रिसर्च रिपोर्ट या कोई सर्वे आती है या कोई बड़ा आदमी कोई बात कहता है तो मोदी जी फटाक से एक सर्वे करा डालते हैं। आपको बता दें कि दुनिया भर में सर्वे करने वाली हजारों कंपनियां हैं, जिन्हें आप पैसे देकर मनचाहा सर्वे करा सकते हैं और मनचाहा रिजल्ट भी पा सकते हैं। मगर किसी कंपनी से कहीं ज्यादा मायने एक रिसर्च इंस्टीट्यूट रखता है, जो जनता के पैसे से बिना किसी लाभ या फायदे के लिए चलता है। तो फिर से एक बार वापस हम अपनी डेमोक्रेसी की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि कबसे इसका महासत्यानाश शुरू हुआ है।  



पिछले महीने यानी फरवरी में खबर आई कि भारत लोकतंत्र सूचकांक में दो स्थान नीचे फिसल गया है. '2020 लोकतंत्र सूचकांक' की वैश्विक रैंकिंग में भारत दो स्थान फिसलकर 53वें स्थान पर आ गया है. 'द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट' (ईआईयू) ने कहा कि प्राधिकारियों के 'लोकतांत्रिक मूल्यों से पीछा हटने' और नागरिकों की स्वतंत्रता पर 'कार्रवाई' के कारण देश 2019 की तुलना में 2020 में दो स्थान फिसल गया. हालांकि भारत इस सूची में अपने अधिकतर पड़ोसी देशों से ऊपर है.  ईआईयू ने बताया कि नरेंद्र मोदी ने 'भारतीय नागरिकता की अवधारणा में धार्मिक तत्व को शामिल किया है और इसे कई आलोचक भारत के धर्मनिरपेक्ष आधार को कमजोर करने वाले कदम के तौर देखते हैं. इस रिपोर्ट में भारत को अमेरिका, फ्रांस, बेल्जियम और ब्राजील के साथ 'त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र' के तौर पर वर्गीकृत किया गया है. ईआईयू की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत और थाईलैंड की रैंकिंग में 'प्राधिकारियों के लोकतांत्रिक मूल्यों से पीछे हटने और नागरिकों के अधिकारों पर कार्रवाई के कारण और गिरावट आई.' विडियो की शुरुआत में स्वीडन के जिस वी डेम इंस्टीट्यूट के बारे में बताया, उसने पिछले साल यानी 2020 में बताया था कि नरेंद्र मोदी की सरकार में मीडिया, नागरिक समाज और विपक्ष के लिए कम होती जगह के कारण भारत अपना लोकतंत्र का दर्जा खोने की कगार पर है. तब इसने बताया था कि 2001 के बाद पहली बार ऑटोक्रेसी यानी निरंकुशतावादी शासन बहुमत में हैं और इसमें 92 देश शामिल हैं जहां वैश्विक आबादी का 54 फीसदी हिस्सा रहता है. इसमें कहा गया है कि प्रमुख जी-20 राष्ट्र और दुनिया के सभी क्षेत्र अब ‘निरंकुशता की तीसरी लहर’ का हिस्सा हैं, जो भारत, ब्राजील, अमेरिका और तुर्की जैसी बड़ी आबादी के साथ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहा है. रिपोर्ट की प्रस्तावना कहा था कि भारत ने लगातार गिरावट का एक रास्ता जारी रखा है, इस हद तक कि उसने लोकतंत्र के रूप में लगभग अपनी स्थिति खो दी है. 


दो साल पहले मशहूर पत्रकार प्रताप भानु मेहता ने एक कॉन्क्लेव में कहा था कि एक बात तो साफ़ है कि भारतीय लोकतंत्र ना केवल ख़तरे में है. 2019 के चुनाव में दांव पर बहुत कुछ लगा है लेकिन उम्मीद बहुत कम है. ऐसा क्यों है, क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोकतंत्र बचेगा या नहीं. पिछले कुछ सालों में जो माहौल बना है उससे बीते 10-15 सालों में जो उम्मीदें जगाई थीं वो सब दांव पर लगा हुआ है. जाहिर है कि इन सारी रिपोर्टों के आने के बाद यह कहना मायूब न होगा कि हम भारतीय अपने देश को और ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की लड़ाई लगातार हारते जा रहे हैं। प्रताप भानु मेहता का कहना अब सही हो रहा है। 

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