Tuesday, March 3, 2020

मिशेल बैचले : शुक्र मनाइये कि वे खुद सुप्रीम कोर्ट आई हैं

बात तनिक पुरानी है। सितंबर सन 1973 की। साउथ अमेरिकी देश चिली में अमेरिका ने सेना के एक गुट से विद्रोह करा दिया। इनका इरादा तख्तापलट करके सत्ता हथियाने का था। उस वक्त चिली में लोक कल्याणकारी जनवादी सरकार बनी थी। इस सरकार में चिली की तकरीबन आधा दर्जन कम्यूनिस्ट पार्टियां शामिल थीं। चिली में एक अरसे से ठीक वैसे ही लोगों का शासन था, जैसा कि हम भारत में कांग्रेस, बीजेपी और बिना कोई विचारधारा वाली क्षेत्रीय पार्टियों के शासन में देखते हैं। लब्बोलुआब यह कि बस लूटो खाओ और कोई बोले तो मोदी और शाह बन जाओ। इन लोगों को जनवादियों का शासन बर्दाश्त नहीं हो रहा था। एक वजह यह भी थी कि राष्ट्रपति सल्वादोर अलांदे की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी।

उधर सेना और तथाकथित डेमोक्रेट्स की नेतागिरी सेना का ही एक अफसर आगस्तो पिनोचेट कर रहा था। उसने सल्वादोर की रातों-रात हत्या करा दी। इसके लिए उसे अमेरिका ने पैसा दिया था। तब रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। जानकार बताते हैं कि जब सागा को मारा जा रहा था तो उस कमरे में आगस्तो भी मौजूद था। उसी रात चिली भर में हजारों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया, दर्जनों लोगों को गोली मार दी गई, जिनमें चिली एयरफोर्स के ब्रिगेडियर अल्बर्तो आतुरो मिगुएल बैचले, उनकी आर्कियोलॉजिस्ट पत्नी एंजेला जेरिया गोम्ज और बेटी मिशेल बैचले भी थी। ब्रिगेडियर ने पिनोचेट के शासन का विरोध किया था। ऐवज में पिनोचेट ने ब्रिगेडियर अल्बर्तो बैचले को तब तक यातना दी, जब तक की उनकी मौत नहीं हो गई। यातना का यह दौर कई महीनों तक चला।

ब्रिगेडियर की बेटी मिशेल ने मुल्क में तानाशाही को हम भारतीयों से भी अधिक नजदीक से देखा। पिनोचेट ने चिली के 29वें राष्ट्रपति/तानाशाह के रूप में कुर्सी हथियाई और उसके बाद वहां की सरकारी संस्थाएं बेच दीं, बैंक बेच दिए, बाजार बेच दिए, व्यापारी बेच दिया, मतलब, जो कुछ भी उसके दिमाग में आया, सब बेच दिया और जो उसके दिमाग में अमेरिका ने भरा, वह भी बेच दिया। पिनोचेट की यह बेखौफ बिकवाली लगातार सत्रह साल तक चलती रही, शुक्र मनाइये कि अभी बीजेपी वालों को छह साल ही हुए हैं। पिनोचेट ने एक कमेटी बनाई और उससे चिली का संविधान पूरा बदलवा दिया। सन 85 आते-आते चिली में वही हाल हो गया, जैसा कि अभी नोटबंदी के बाद शुरू हुआ है।

पिनोचेट चिली पर सन 90 तक शासन करता रहा। जब रिटायर हुआ तो सेनाध्यक्ष बन बैठा और जनता पर वैसा ही अत्याचार कराता रहा, जैसा इन दिनों मोदी जी की तरह तरह की सेनाएं कर रही हैं, बल्कि इससे भी बुरा। सन 98 तक वो जबरदस्ती सेनाध्यक्ष बना रहा और जब रिटायर हुआ तो बिना चुनाव लड़े अपने आप सांसद बन बैठा। वैसे वह मरने तक संसद का सदस्य बना रहे, इसके लिए उसने तरकीब की हुई थी। जब वह संविधान बदलवा रहा था, तभी उसने अपने लिए संसद का सदस्य बने रहने की बात उसमें डलवा ली थी। मतलब जब तक इसने जिंदा रहना था, तब तक जुल्म करते रहना था, इसकी इसने पूरी व्यवस्था करा ली थी। मोदी जी चाहें तो पिनोचेट से भी सीख ले सकते हैं, आखिर डोलांड ट्रंप उनको भी बहुत-बहुत मानते हैं।

सांसद बनने के बाद एक बार पिनोचेट लंदन गया इलाज कराने। वहां पर उसे मानवाधिकारों के उल्लंघन के सैकड़ों मामलों के आरोप में इंटरपोल ने गिरफ्तार कर लिया। दो साल तक तो पिनोचेट वहां बंद रहा। सन 2000 में सेहत खराब होने का बहाना बनाकर वह वापस चिली लौटा। चार साल तक चिली में ही रहा, कहीं बाहर नहीं निकला। चार साल बाद चिली के ही एक जज जॉन गज्मॅन तापिया ने फैसला दिया कि पिनोचेट की हेल्थ टनाटन है, इन पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इस फैसले के दो साल बाद यानी 2006 में पिनोचेट मर गया। जब वह मरा, उसके ऊपर तीन सौ क्रिमिनल चार्जेस पेंडिंग थे।

बहरहाल, एक बार फिर से लौटते हैं मिशेल बैचले पर। ब्रिगेडियर की बेटी चिली की पहली चुनी हुई समाजवादी राष्ट्रपति बनी, और बेहद लोकप्रिय भी। 2006 में एक बार तो 2014 में एक बार। मिशेल चिली की पहली महिला राष्ट्रपति भी हैं। और ब्रिगेडियर की इस बेटी की चिली में लोकप्रियता की सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है- मानवाधिकारों के प्रति उनका डेवोशन। जब वे चिली की राष्ट्रपति नहीं होती हैं तो दुनिया भर में घूम-घूमकर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करती हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले भी वे मानवाधिकारों के लिए काम करती थीं, अब तो खैर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की हाई कमिश्नर हैं ही।

इन्हीं मिशेल ने ही सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम के लिए याचिका दाखिल की है। भारत को और सुप्रीम कोर्ट को इनका आभारी होना चाहिए कि मिशेल ने सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में याचिका दाखिल की है। वरना मिशेल चाहें तो जेनेवा से ही मोदी जी, शाह जी और इनकी सेना के खिलाफ इतने वारंट तो जारी कर ही सकती हैं, जितने अभी दिल्ली में लोग मर गए। और यकीन मानिए, ये सारे वारंट उन सारे देशों में तामील होंगे, जिन्होंने यूएन ह्यूमन राइट कमीशन के चार्टर पर साइन किए हैं।

तो हे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मिस्टर रवीश कुमार, जिस तरह का आपका बयान है कि संसद भारत में कुछ भी कर सकती है तो भारत के बाहर रहने वाले लोग भी यही कुछ भी भारत के तानाशाहों के साथ भी कर सकते हैं। और बोबडे साहब, आप तो अंतराष्ट्रीय कानूनों के प्रकांड पंडित हैं, आप तो साफ साफ जानते हैं कि मिशेल ने सीन में एंट्री ले ली है तो अब मामला कहां तक पहुंच चुका है। क्या इससे बड़ी कोई और बेइज्जती हमारे लिए होगी कि पीएम और होम मिनिस्टर के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के वारंट इश्यू हो जाएं? 

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