अंडरलाइन उदासी
फोटो- गार्जियन के लिए एटकिंस भाई साब |
कब हुआ होगा वो आखिरी बार उदास। इस सवाल का जवाब खोजने में उसने कामवाली को चार बार डांटा और पांचवी बार दोबारा आने से मना कर दिया। उदासी का ये सवाल उसे चिड़चिड़ा कर रहा था पर बता के ही नहीं दे रहा था कि कब हुआ होगा वो आखिरी बार उदास। क्यों नहीं उसने अपनी आखिरी उदासी को अंडरलाइन करके किसी वर्डफाइल में सेव कर रखा था। बोल्ड इटैलिक भी कर देता तो भी शायद काम चल जाता। पर दवाइयों का जो असर था, उनकी वजह से उसे वर्ड की वो फाइलें ही याद नहीं रह गई थीं जिनमें उसने अपनी उदासियों को, अपनी खुशियों को या अपनी किसी भी चीज को अंडरलाइन किया था। मतलब जवाब सामने तो था, पर जवाब सामने रखी किन चीजों में था, ये याद नहीं। गनीमत रही कि सवाल उसे याद रहा।
आखिरी बार की उदासी को पता लगाने के लिए वो बाकायदा बाजार गया और लाला बैजनाथ की मूढ़ी संग प्याज की पकौड़ी जबरदस्ती उस लाल वाली चटनी के साथ खाई जो जबान पर आते ही जैसे कारबाइड की गैस बनाती थीं। सोचा कारबाइड से उसे कुछ याद आए। कारबाइड के साथ उसकी खुशी का पुराना रिश्ता रहा था। चाहे वो दिवाली हो या आम या केले का मौसम... कारबाइड उसके लिए हमेशा खुशी लेकर आया था और तब तक उसने भोपाल की त्रासदियां नहीं सुनी थीं, देखने की तो बात दूर की रही। बहरहाल, खुश होने की गैस मिलने के बावजूद मुसीबत बढ़ती जा रही थी क्योंकि उदासियों की याद के जवाब के लिए कमबख्त को ए बी या सी या डी का ऑप्शन भी नहीं दे रहा था जिससे कि कम से कम तुक्का तो भिड़ाया जा सकता था और वो उस तुक्के से संतुष्ट भी हो जाता क्योंकि कोई भी, सिवाय उसके, उस तुक्के को गलत नहीं ठहरा सकता था। जाहिर है कि ऑप्शन नहीं थे इसलिए अब तक उसके पास कोई जवाब नहीं था।
ऐसा नहीं है कि सबकुछ एकसाथ गायब हुआ हो। हो ये रहा था कि एक लाइन याद आती थी फिर उसके दो दिन या चार महीने के बाद की लाइनें याद आती थीं। दिमाग में गोले फूट रहे थे तो जीभ पर कभी गोले तो कभी कांटे उगने से परेशान वो बैठे बैठे उठ जाता था तो खड़े खड़े बैठना भी पड़ रहा था। सोचा कि किसी को फोन करे, पर नहीं। सोचा कि शायद फेसबुक के टाइमलाइन पर हो, पर नहीं। सोचा कि शायद ब्लॉग में हो पर वहां भी नहीं। ऑरकुट तो पहले ही खत्म हो चुका था। उदासी की तलाश थी कि खाए जा रही थी, सिर धुने जा रही थी।
अचानक बत्ती जली। आखिरकार वो ये क्यों याद करना चाहता था कि वो आखिरी बार कब उदास हुआ था। सवाल फिर से शुरू हो गए। जीभ पर गोले और कांटे फिर से बनने लगे। इस पर तो उंगलियों में झनझनाहट भी हो रही थी। उसने तुरंत अपने साइकैट्रिस्ट को फोन लगाया। बताया कि एक बार फिर से उदास होना चाहता हूं। साइकैट्रिस्ट हंसा, तुरंत उसने दो दवाइयां नोट कराईं और बोला, ज्यादा उदास होने की जरूरत नहीं। अब वो नए तरीके से उदास होने लगा। उसने अभी तक वो दवाइयां नहीं खरीदी थीं। उसके पास उदासी की सबसे बड़ी वजह थी कि वो एक बार फिर से उदास होना चाहता था। साथ ही उसके पास अपने लिए एक अच्छी खबर भी थी कि उसे उदासियां याद नहीं आ रही थीं।
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