अथ श्री श्वान कथा: शराफत से सुपर शराफत तक...
वैसे तो ये गदर्भ कथा भी हो सकती थी, गोवंशीय भी और उलूक भी। पर मध्यमवर्ग से इनका सीधा कोई जुड़ाव न पाते हुए श्वान कथा लिखनी मजबूरी है। श्वान में दो चीजें होती हैं, पहली उसकी चाटुकारिता और दूसरी खूंखारता। मध्यमवर्ग में भी यही दो चीजें हैं। और तो और, ब्राह्म्णवाद भी इन्हीं दो गुणों से लैस है, फल फूल रहा है। जिस तरह से कांग्रेस ने पिछले तीन दशकों में मध्यमवर्ग का निर्माण किया, उसी तरह से ब्राह्म्णवाद ने अपनी सुविधा के लिए उच्च वर्ण का इस्तेमाल किया। बहरहाल, दोनों, आई मीन तीनों चीजों में एक चीज कॉमन है, और वो कि घर में भूंजी भांग न हो पर दरवाजे पर कुत्ता हो। जो शू कहने पर खूंखार हो जाए और ले कहने पर चाटुकार।
हमारी कहानी के हीरो श्री श्वान भाई ने अपने कॅरियर की शुरुआत मंदिर के बाहर झूठे पत्तलों को चाटने से की। रोज सैकड़ों की संख्या में वहां पर श्रद्धालु आते और प्रसाद में मिले पत्तल मंदिर के बाहर बने कचरे के डिब्बे में फेंक जाते। श्वान भाई आराम से वहां जाते और जूठे पत्तलों को साफ कर देते। कभी कभी मंदिर में भंडारा हो जाता तो इनके मजे ही मजे। हालांकि श्वान भाई को नॉनवेज भी पसंद था और रात वात में कसाबबाड़ा के पीछे के कूड़ाघर में भी देखे जाते थे, ऐसा कसाबबाड़ा वालों का कहना था। दरअसल जब ये पहुंचते तो दूसरे के इलाके में पहुंचते ही जाग हो जाती और ये दौड़ा लिए जाते। वहां खा पीकर तंदरुस्त मुटल्ले श्वान रहते थे।
जिंदगी ऐसे ही गुजर रही थी कि एक दिन मंदिर में सभा हुई। पांच दिन बाद फिर से सभा हुई। उसके तीन दिन बाद जब सभा हुई तो श्वान भाई की उत्सुकता बढ़ी। उन्होंने सोचा कि आखिर किस बात पर ये लोग इकठ्ठा हो रहे हैं। संयोग से दूसरे ही दिन फिर से सभा बुला ली गई। श्वान भाई ने आव देखा न ताव, सीधे पहुंच गए मंच के पास और बड़ी ही इश्टाइल से कभी सलाम मारें तो कभी लोटपोट होकर दिखाएं। दो तीन बार तो श्वान भाई ने दो पैरों पर भी चलकर दिखाया। अब इसके बाद सभा की निगाहों का मरकज कौन था, इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है।
उस दिन की सभा में दिखाए करतब के बाद से श्वान भाई की ख्याति पूरे राज्य में फैलने लगी। उस वक्त की सभा के नेता बड़े नेता हो गए थे और केवटी की दाल से अब जूस और अंकुरित दालों पर आ गए थे। हालांकि रात में कंट्रोल नहीं हो पाता था, लेकिन श्वान भाई को अगर साथ ले लें, तो घर से थोड़ी छूट मिल जाती थी। सबके घरों में श्वान की 'भगवद भक्ति' को लेकर कोई संदेह नहीं था। आखिर श्वान भाई ने वर्षों मंदिर के बाहर जूठी पत्तलों को साफ करके अपना गुजारा किया था। पूरे सड़ातनी माने जाते थे। लंगोट के पक्के।
बहरहाल, नेताओं की नेतागिरी शुरू हो गई जिसके फेस वैल्यू बने अपने श्वान भाई। अरे, एक बात तो बताना ही भूल गया। मंदिर में पत्तल चाटने और साफ करने के दौरान श्वान भाई को एक श्वानिनी (कृपया श्वान के स्त्रीलिंग के बारे में मुझे करेक्ट करें) मिली। उन्होंने उसे न सिर्फ अपने हिस्से में हिस्सा दिया, बल्कि दुनिया की नजरों से छुपा कर रख दिया। अब ये दीगर बात है कि वो श्वानिनी इतनी खूबसूरत थी और राजनीति इतनी गंदी कि श्वान भाई को उसे छुपाकर रखना पड़ा। कमबख्त ये यूट्यूब का जमाना न आया होता तो श्वान भाई वाली भाभी को कोई जानता तक नहीं।
श्वान भाई ने मंदिर में उठे मुदृदे को खूब भुनाया और दो पैरों की जगह एक पैर पर खड़े होकर डांस करने लगे। मगर उनका हमेशा से निशाना थे वो श्वान, जो उन्हें कसाबबाड़ा में नहीं खाने देते थे। उनका मानना था कि हर किसी को पौष्टिक खाना नसीब नहीं होता है इसलिए जितने भी कुपोषित हैं, वो बहुसंख्यक हैं। वो सभी कुपोषित बहुसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए हट्टे कट्टे श्वानों को खत्म होना होगा, तभी असल कुपोषित श्वान राष्ट्र का निर्माण होगा। इसके लिए एक दिन श्वान भाई ने बैठक कर सैकड़ों कुपोषित श्वानों को मोदक खिलाया और कसाबबाड़ा में रेल दिया। संख्या में ज्यादा थे, इसलिए ज्यादा नुकसान करके वापस पहुंचे।
फिर क्या था, समूचे देश के कुपोषित श्वान भाइयों में एक लहर उठ गई कि अगर कुपोषितों का सरदार कोई है तो अपने श्वान भाई ही हैं। एक मिनट... अपने श्वान भाई नई तकनीक के काफी करीब थे। आखिरकार उन्हें मध्यवर्ग जो मिल गया था। घर में पप्पू को देखें कि उड़ी बाबा, जे मॉडल का फोन, जे मॉडल की कार, विदेशी लुक... उड़ी बाबा। सीखा घर में पप्पू से और अप्लाई किया खुद पर। अब भला इंटरनेट पर ऐसा कौन है जो श्वानों की फोटो न पसंद करे। नहीं नहीं, बताइये, मध्यवर्ग में ऐसा कौन सा बंदा है जो श्वान की तरह तरह की कलाकारी कारीगरी बाजीगरी की फोटो लाइक नहीं करता। असल में हुआ भी यही। श्वान भाई इंटरनेट पर हिट हो गए और समझ गए कि मध्यमवर्ग की नब्ज पकड़ ली।
श्वान भाई आजकल बड़े परेशान हैं। अपने गुरु पप्पू... भले ही वो उनके बेटे की उम्र के हों, उन्हें वो भरी सभा में गरिया रहे हैं। श्वान भाई के पार्टी वाले जानबूझकर पप्पू भाई की फोटो मंच पर रखते हैं। अपने श्वान भाई मंच पर कभी एक पैर पर तो कभी दूसरे पैर पर उचकते हुए, पूरी कलाकारी बाजीगरी दिखाते हुए आते हैं और तीन पैर जमीन पर रखकर सिर्फ एक टांग फोटू पर उठा देते हैं।
वैसे कहानी अभी खत्म नहीं हुई है क्योंकि देश में अकुपोषित और लाल गुलाल जैसे लोग अभी तक राज कर रहे हैं।
1 comment:
क्या खूब एनिमल फ़ार्म की याद दिलाई
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