पुराने झोले से निकलीं बासी लाइनें
ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आवे..
1
जहर भरे खुद को ले जाऊं मैं कहां,
हर तरफ तो तू ही तू दिखाई देता है।
2
मुझे यकीन है तेरे फिर से आने का,
तेरे बिना मेरी तन्हाई अकेली है।
3
तूने फिर किया है साथ देने का वादा,
मैँ फिर से तेरा यकीन करता हूं।
4
कौन कहता है कि गुजरा वक्त नही आता,
यारों आज फिर मैं अकेला हूं।
5
मेरा होना मुश्किल की दो बूंदे ही तो हैं,
फिर मेरे जिबह की राहें इतनी मुश्किल क्यों हैं।
6
ख्यालों में बोलो कि कोई सुन न ले,
ख्वाहिशें तुम्हारी बड़ी बेहिसाब हैँ।
7
रम मिटाए गम,
बेहिसाब पियो रम।
8
प्रेम गले का खूंटा है
जिसने भी दिल लूटा है
सबसे बड़ा वो झूठा है ।
9
मुस्लमां न हुए तो कैसे आएगा,
हुनर तेरी आंखों मे झांकने का।
मुस्लमां हो भी गए तो क्या हुआ,
तेरी आंखे तो कुछ और ही चाहती हैं।
10
मेरे न होने पे ताज्जुब न करना दोस्तों,
इस गली से पहले भी कई गुजरे हैं।
11
मैनें देखा है तुम्हें उमस भरी दोपहरों में,
बासबब बातों पे तुम मन उतारा करते थे,
यूं हंस के गले मिलते थे तुम हमसे,
और तंगहाली में हम हंसी संवारा करते थे।
12
साल दर साल जो बनते रहे अनजान हमसे,
टूटे रास्ते तो मुड़कर पीछे देखते हैं..
13
मतलबी लोगों ने फिर निशाना साधा है,
क्या पता, इस बार क्या लूटने का इरादा है।
14
सुना है कि तूने खामोश रहना सीखा है,
कहीं ये तेरे प्यार सा इक धोखा है?
15
जो अपनी दुश्वारियां रखीं उसके सामने,
वो लगा मेरी रूबाइयों की दाद देने।
16
सारी रात बह गई, अकेला दिन थम गया, तुमने तो आने को कहा था, पीठ पे टिक के लंबी सांस भी तो ली थी. . इसे उधार मानूं या दान. ? सूद चुकाऊं या असल या फिर दोनोँ . . .? कितना तो अच्छा होता कि सांसों को मेरी पीठ पर देने से पहले ही बातें साफ हो जातीं। अब उन सांसों को वापस कैसे करूं . . ?
17
उनके चंद रोज के फरेब पे हुआ आशिक मैं,
वो थे कि सालों सूद ही वसूलते रहे।
18
शराबियों में होते हैं कुछ खास शराबी,
वो पीने से पहले ही महक जाते हैं।
प्याले मे मय न हो पानी ही सही ,
गिलास भरा देखकर ही चहक जाते हैँ।
19
धूप का इक टुकड़ा अब मेरे घर भी आता है,
भरी दुपहरी रहता है, शाम तलक खो जाता है।
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