आह राग...वाह राग
फोटो- बिना बताए अजदक से साभार। |
ये तो पता था कि लयबद्ध ताल-चाल ही राग है। पर कभी सोचा नहीं, अराजकता से प्रेम जो रहा। पर पास गए तो पता चला कि यह तो हमसे भी ज्यादा अराजक है। कभी विलंबित ताल पर चलता है तो कभी छपताल पर। कभी सितार की उठान रोएं खडे करने लगती है तो कभी बिस्मिल्ला बाबू रुला जाते हैं। कभी तीन ताल की बंदिश पर समुद्र पार किसी टापू पर खुद को अकेले खडा पाते हैं तो कभी अलाप से उतरते उतरे झाले में फंसकर सरयू की गहराई में उसी तरह गुप्त हो जाते हैं, जैसे बचपन में बाबू से भगवान राम के गुप्त होने की बात सुनी थी। पता नहीं भगवान राम के गुप्त होने के वक्त गुप्तारघाट पर कौन सा राग बज रहा होगा। मृदंग के मामले में तो अयोध्या काफी पागल रही है। पागलदास थे वहां।
नंद समुद्र को पार न पायो... गिरिजा देवी ने गाया है, राग मालकौंस में। सुनेंगे तो यही मन करेगा कि न तो नंद समुद्र के पार जाएं और न ही आप। क्या रखा है समुद्र के पार, ये तो पता नहीं है, बहरहाल तीन ताल की इस बंदिश ने कुछ ऐसा बांधा है कि सोच रहा हूं कि अब शेव कराना शुरू कर दूं। साथ में बचपन में सुनी सारंगी, तानपुरा और तबले की स्निग्ध थापें। ताजा कर देती हैं। और कहीं से यह सुनते सुनते चरनजीत सिंह के सिंथेसाइजर पर दस तालों से डिस्को मिलाकर सुन लिया... अगर उपर वाला है कहीं पर, जो कि मेरा मानना है कि नहीं है, फिर तो वही मालिक है। आंख बंद करके बस सुनते जाएं...सुनते जाएं। बाकी इस दुनिया में रखा क्या है। अपनी दुनिया से निकलने के लिए जब भी कानों से हेडफोन निकाला तो मकान मालिक के जाट लडकों की चिल्लाने की आवाज। नहीं तो गली में बच्चों के लिए पिपिहिरी बेचने वाले की पिपिहिरी की आवाज। सडक पर निकले तो स्पीड ब्रेकर देखकर हॉर्न बजाते लोग या फिर दफ़तर पहुंचे तो बॉस की रेलम पेल।
किसी तरह से बच बचाकर आए, फिर से चाबी का छल्ला मेज की तरफ उछाला और लगे अंडा उबलते देखने को। लेकिन इस बार सीन थोडा अलग था। अंडा तो विलंबित ख्याल में जा चुका था... और मन, वो तो अपनी दुनिया में फिर से पहुंच गया। तुरंत मन को आराम देना हो तो देबू चौधरी और प्रतीक चौधरी की एक साथ की सितार पर जुगलबंदी सुनी जा सकती है। तबले की गहरी थाप से जो शुरूआत होती है, लगता है कि कहीं पानी में घुसे गहरे बैठे हों और धीमे धीमे बाहर आ रहे हों। आलाप, जोड और मसीतखानी से तीन ताल में लयबद्ध यह संगीत कम लगता है.....कलाकार से सिर जोडकर अपनी बात कहना ज्यादा लगता है। हम कुछ कहते नहीं पर सबकुछ कह जाते हैं। हम रोते नहीं पर आंसू हैं कि....
कोई बात नहीं, अब तो पानी से उपर आ गए। जाहिर है कि शोर आपको जीने नहीं देगा और ये सारे पंडित मरने नहीं देंगे। इनसे बचने का कोई उपाय नहीं। शोर से छनकर कहीं न कहीं ये सारी चीजें मन में गहरे पैवस्त होनी ही हैं, आज नहीं तो कल। कई लोग आज कहते हैं कि आह राग.... पर सुनने के बाद कहेंगे वाह राग।
No comments:
Post a Comment