Friday, March 7, 2008

बिहार को नरक मीडिया ने बनाया

आज सुबह अखबारों की सुर्खी बने बाल ठाकरे के एक बयान पर नजर गई। लिखा था कि सामना मे छपे उनके सम्पादकीय मे उन्होंने लिखा कि बिहार को नरक से बदतर बना दिया गया है। मैं बिहारी नही। यू पी का हूँ। कभी सोचा नही कि बिहारी क्या और यू पी क्या..या फ़िर कुछ और ही क्या और क्यों। लोग अच्छे मिले और मिलते गए। बहरहाल, मुझे लगता है की बिहार को नरक बाल ठाकरे या नितीश या फ़िर लालू ने उतना बुरा नही बनाया जितना की मीडिया ने। यू पी मे इस वक्त मैं मेरठ मे काम कर रहा हूँ। हर रोज़ यहाँ पर क्राइम की दो बड़ी खबरें होती हैं। अपहरण , लूट, हत्या, डकैती तो यहा के लिए सामान्य बात है। एन सी आर बी की रिपोर्ट मे मुम्बई मे भी क्राइम कुछ कम नही दिखाया जाता। और ये क्राइम ना तो मुम्बई मे रह रहे बिहारी करते हैं और ना ही मेरठ मे रह रहे बिहारी। ये बात अलग है की मीडिया बिहार मे जरा सा भी कुछ होता है तो उसे कुछ ज्यादा ही बड़ा बनाकर दिखाता है। एक तरह से ट्रेंड चल पड़ा है ये कहने का की अगर ये बिहार मे हुआ होगा तो वहा तो ये सब चलता ही रहता है। सड़कें जैसी बिहार मे हैं वैसी दिल्ली मे भी हैं, मुम्बई मे भी हैं, उसी तरह से टूटी फूटी। सरकारी अस्पतालों की बिहार मे जो हालत है, यू पी मे उससे भी बुरी ही है, मुम्बई के सरकारी अस्पतालों मे शायद डॉक्टर एक मरीज को ज्यादा टाइम दे पाते होंगे...मुझे तो नही लगता। हाँ, मुझे ये जरूर लगता है की मिडिया का काम छिछला होता जा रहा है। या फ़िर आत्मकेंद्रित। आत्म मुग्ध । ये जो कर रहे हैं, सनसनी फैला रहे हैं, आज से नही, पिछले दस सालों से, अब उसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है। और ये आक्रोश दिख भी जाता है। निठारी काण्ड मे तो लोकल मिडिया का एक पत्रकार मेरे सामने ही पिटा। पहाड़गंज बोम्ब ब्लास्ट मे भी एक बड़े चैनल का पर्त्रकार मे सामने पिटा। और लोग पिटते ही रहते हैं। अभी मेरठ मे भी कुछ एक पत्रकारों की पिटाई हुई थी। कारण जो भी रहे हों। बहरहाल, इस समय जो बिहारियों पर राजनीती हो रही है, मुझे लगता है कि ये सब मीडिया की नासमझी का ही परिणाम है।

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