हवा में रहेगी, मेरे ख्याल की बिजली : भगत सिंह और आज का भारत
दखलवाले मित्र चंद्रिका ने हमें यह आलेख बहुत पहले भेजा था. हमने सोचा था कि इसे 28 को पोस्ट किया जायेगा. पर पटना में बारिश ने इस तरह के रंग दिखाये कि दिन-दिन भर या तो बिजली गायब रही याइंटरनेट कनेक्शन ठीक से काम नहीं कर पाया. इसलिए इसमें देर हुई. फिर भी, चंद्रिका ने जो सवाल उठाये हैं, वे मौजूं हैं और हमें उन पर सोचने की ज़रूरत है.
चंद्रिका
हर बार की तरह इस बार भी 28 सितंबर को भगत सिंह का जन्म दिवस मनाया जायेगा. स्कूलों में बच्चे भगत सिंह की तरह हैट पहन कर आयेंगे, जिस पर लिखा रहेगा 'आइ मिस यू भगत सिंह,! उनकी प्रतिमा के बगल में लाल झंडे टांग कर नेता चिल्लाते हुए बतायेंगे कि भगत सिंह ने संसद में बम क्यों फोड़ा, दूसरे दिन कुछ और सेज परियोजनाओं की मंजूरी पर हस्ताक्षर किये जायेगें. विचार-गोष्ठी में यह बताया जायेगा कि भगत सिंह आम जनता की आजादी चाहते थे, कुछ लोगों को नक्सली होने के आरोप में गिरफ्तार किया जायेगा, अखबारों में छपेगा कि भगत सिंह, छुआछूत, धर्म, जाति की संकीर्णता को दूर करना चाहते थे, नीचे के कालम में किसी दलित को मंदिर में घुसने के कारण पीट-पीट कर मार डालने की खबर रहेगी. जन्म दिवस मनाने के बाद भगत सिंह की प्रतिमा को किसी कमरे में रख दिया जायेगा और गांधी के जन्म दिवस की तैयारी शुरू कर दी जायेगी. यह एक परंपरा रही है.
देश को अंगरेजी सत्ता से मुक्त होने के 60 साल बाद भी देश का आम जन उस आजादी को नहीं महसूस कर पर रहा है, जो भगत सिंह, पेरियार, आंबेडकर का सपना था. आज वे स्थितियां, जिनका भगत सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय आकलन किया था, लोगों के सामने हैं. आंदोलन के चरित्र को देखते हुए भगत सिंह ने कहा था कि कांग्रेस के नेतृत्व में जो आजादी की लडाई लड़ी जा रही है, उसका लक्ष्य व्यापक जन का इस्तेमाल करके देशी धनिक वर्ग के लिए सत्ता हासिल करना है. यही कारण था कि देश का धनिक वर्ग गांधी के साथ था. उसे पता था कि जब तक देश को अंगरेज़ी सत्ता से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक बाजार में उसका सिक्का जम नहीं सकेगा. आखिरकार हुआ भी वही, जिसे भगत सिंह गोरे अंगरेजों से मुक्ति व काले अंगरेजों के शासन की बात करते थे. आज आम आदमी इस शासन तंत्र में अपनी भागीदादी महसूस नहीं कर रहा है. उसके लिए आज भी अंगरेजों द्वारा दमन के लिए बने नियम-कानून नाम बदल कर या उसी स्थिति में लागू किये जा रहे हैं. आजादी के 60 वर्ष बाद सरकार को एफ़्स्पा, पोटा, राज्य जन सुरक्षा अधिनियम जैसे दमन कानूनों की जरूरत पड़ रही है, क्योंकि जन प्रतिरोध का उभार लगातार बढ़ रहा है.
आजादी के बाद कई मामलों में स्थितियां ओर भी विद्रूप हुई हैं. जहां 42 में केरल के वायनाड जिले में इक्का-दुक्का किसानों की मौतें होती थीं, वहां आज स्थिति यह है कि देश के विभिन्न राज्यों में हजारों हजार की संख्या में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं. आज भी देश में कालाहांडी जैसी जगह है, बल्कि काला हांडी से एक कदम ऊपर देश की एक बड़ी आबादी है, जो जीवन की मूलभूत जरूरतों से जूझ रही है. जो इसलिए भी जिंदा रखी गयी है ताकि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये वह सस्ते में श्रम को बेच सके. इसके बावजूद आज एक बड़े युवा वर्ग के लिए करने को काम नहीं है. इस कारण वह किसी भी तरह का अपराध करने को तैयार है. भारत एक बड़ी युवा संख्या की विकल्पहीन दुनिया है.
ऐसी स्थिति में यह बात सच साबित होती है कि भगत सिंह जिस आजादी की तीमारदारी करते थे वह आजादी देश को नही मिल पायी है. भगत सिंह देश, दुनिया को लेकर एक मुकम्मल समाज बनाने का सपना देखते थे, जिसमें वे अंतिम आदमी को आगे नहीं लाना चाहते थे, बल्कि सबको बराबरी पर लाना चाहते थे. जहां जाति, धर्म, भाषा के आधार पर समाज का विभाजन न हो. वे शोषण व लूट-खसोट पर टिके समाज को खत्म करना चाहते थे, वे किसी प्रकार के भेदभाव को खारिज करते थे. उनका मानना था कि दुनिया में अधिकांश बुराइयों की जड़ निजी संपत्ति है. इस संपत्ति को शोषण व भ्रष्टाचार के जरिये जुटाया जाता है, जिसकी सुरक्षा के लिए शासन की जरूरत पड़ती है. यानी निजी संपत्ति के ही कारण समाज में शासन की जरूरत पड़ती है.
एक लंबे अरसे तक भगत सिंह को आतंकी की नजर से देखा जाता रहा, जिसको भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श करते हुए कहा कि मैं आतंकी नहीं हूं. आंतकी वे होते हैं, जिनके पास समस्या के समाधान की क्रांतिकारी चेतना नहीं होती. क्रांतिकारी चिंतन की पकड़ के अभाव की अभिव्यक्ति ही आतंकवाद है, पर क्रांतिकारी चेतना को हिंसा से कतई नहीं जोड़ा जाना चाहिए, हिंसा का प्रयोग विशेष परिस्थिति में ही करना जायज है, वरना किसी जन आंदोलन का मुख्य हथियार अहिंसा ही होनी चाहिए. हिंसा-अहिंसा से किसी व्यक्ति को आतंकी नही माना जा सकता. हमें उसकी नीयत को पहचानना होगा, क्योंकि यदि रावण का सीताहरण आतंक था तो क्या राम का रावण वध भी आतंक माना जाये? अपने अल्पकालिक जीवन के दौरान भगत सिंह ने कई विषयों पर लिखा, पढ़ा व सोचा समझा, और यह कहते गये कि-
हवा में रहेगी, मेरे ख्याल की बिजली.
ये मुस्ते खाक है फानी रहे, रहे न रहे...
2 comments:
yah des ka durbhagy hai ki ajadi ke satth vars bad hi sahido ki kurbani ko ham log bhoolate ja rahe hai. hamari sarkare to sahido ki aisi taisi kab ki kar chuki hai. afsos hai ki hamare des ki yuwa pidi bhi sahido ko boolati ja rahi hai.
bhagat singh ke sath gumnam sahido ko meri bhavbhini sharadhanjali
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