Saturday, April 28, 2007

हरी पाठक के कारनामे-२

दुकान खोलने और बंद करने ,दुकान का पैसा बैंक पहुचाने के अलावा हरी का दुकान मे कोई और काम नही था। बाकी बचे समय मे वंही अपनी कुर्सी पर बैठकर औंघाते रहते। लेकिन हरी दुःखी थे। उन्हें सपने नही आते थे। गाँव के बनिया के घर वाली टी वी में हरी को इतवार को शक्तिमान देखने मे बड़ा मजा आता। वो शक्तिमान बनने का सपना देखना चाहते और इस लालच में दुकान के ऊपर जाकर सोते कि कोई डिस्टर्ब ना करे। लेकिन फिर भी सपने थे कि आते ही नही थे।
अब हम चलते हैं वहाँ , जहाँ से हरी पाठक में चमत्कारी शक्ति का संचार शुरू हुआ और उसके बाद से हरी ने चमत्कार दिखने शुरू कर दिए। उन चमत्कारों से दुकान का मलिक , मलिक के नौकर , दुकान के पडोसी, कनक चित्र मंदिर का गेटकीपर और यहाँ तक कि हरी पाठक की बीवी भी चमत्कृत हुई, और उसके बाद तो हरी पाठक एक से बढकर एक चमत्कार करने लगे। पूरी तरह से चमत्कार पुरुष बन गए।
हरी पाठक के घर से रेलवे लाईन के रास्ते में एक बहुत बड़ा सा पाकड़ का पेड था। वैसे पेड तो बहुत थे लेकिन ये कुछ खास था। एक तो ये बहुत बड़ा था दूसरे इस पर काफी सारे चमगादड़ लटके रहते थे। दिन मे भी भुतहा लगता था। चमगाद्ड़ों की साइज़ भी काफी बड़ी थी। पेड को घेरकर एक चबूतरा बना दिया गया था और जब रेल की लाईन बिछाई जा रही थी तो किसी ने वहाँ से तीन चार गोल मटोल पत्थर उस पेड के नीचे लाकर रख दिए थे। तब से वहाँ चमगादड़ वाले शंकर बाबा प्रगट हो गए थे और पूरा गाँव चमगादड़ वाले शंकर बाबा की थान पर पूजा करता , जल चढ़ाता और कराही देता। गाँव की कुंवारी लडकियां और लड़के अक्सर उसके आस पास मंडराते नज़र आते क्योंकि उस पेड की एक तरफ काफी सारी बांस और सरपत की झाडियाँ थी और अक्सर वहाँ से कभी कुत्ते की तो कभी कोयल की अजीब अजीब सी आवाजें आती। और चमगादड़ वाले शंकर बाबा का प्रताप कुछ ऐसा था कि इन आवाजों के आने के के तुरंत बाद वो लडकियां पता नही कहॉ अंतर्धान हो जाती। बहरहाल हमारी कहानी के नायक हरी पाठक भी उस थान पर जरूर शीश नवाते। ये उनका रोज़ का नियम था। उस दिन भी वह शीश नवाने के लिए अपनी साइकिल से उतरे थे। पोटली से अगरबत्ती निकली और थान पर जलते दिए से सुलगाई । शंकर बाबा को प्रणाम करने के लिए उनके आगे अपना सर झुकाया। लेकिन अचानक एक तेज़ हवा चली और पेड के चमगादड़ कें कें करते हुए उड़ने लगे। सर अभी थान पे झुका ही था कि एक चमगादड़ ऊपर से सीधे उनके सर पर गिरा। ऊपर से लगा धक्का तो सर जाकर थान की फर्श पे टकराया। हरी पाठक को ऐसा लगा जैसे खुद भगवान् भोले नाथ उनके सामने खडे हैं और सारे चमगादड़ उनके चारों तरफ उड़ रहे हैं... बस उड़ते ही जा रहे हैं। होश खोने से पहले उन्होने देखा कि शंकर बाबा ने एक चमगादड़ के कान मे कुछ कहकर उनकी तरफ इशारा किया। इसके बाद हरी पाठक अचेत हो गए। बमुश्किल दो मिनट मे ही उनकी बेहोशी टूट गयी। आंख खुली तो देखा , शीला , रूपा और अजयी उनके अगल बगल खडे होकर घबराए हुए उन्हें देख रहे थे। चमगादड़ उनके सर से टकराने के बाद जहाँ गिरा था , वहाँ एक बड़ा सा गढ्ढा हो गया था। हरी पाठक का सर थान के जिस हिस्से से टकराया था , वह पूरी तरह से टूट गया था लेकिन अचरज तो ये था कि हरी पाठक को खरोंच तक नही आयी थी। उनके अट्ठारह साल सात महीने से अकडे हुए कंधे और सर भी सीधे हो गए थे। एक तेज़ सा उनके चहरे पर आ गया था।
(जारी....)
अगले अंक मे पढे- हरी पाठक का पहला चमत्कार

3 comments:

अभय तिवारी said...

चिमगादड़ पुरुष..?

Rising Rahul said...

चमगादड़ नही आएगा तो चमत्कार कैसे होगा ? लेकिन चिंता न करें , ये कोई चमगादड़ पुरुष नही है , हमारा हरी पाठक एक आम आदमी है जिसका हिला हुआ दिमाग़ अब ठिकाने आ गया है . अब वह ग्राहकों की डिमांड पर चमत्कार दिखाने के लिए तैयार है . बताइए , क्या और कैसा चमत्कार देखना चाहते हैं ??

अभय तिवारी said...

चिमगादड़ पुरुष खड़ा बजार में..?