Friday, August 22, 2008

कैसा सच और कैसी जीत

एन डी टी वी के स्टिंग ऑपरेशन पर कोर्ट ने दो वकीलों पर जुरमाना लगाया, चार महीने तक उनकी प्रैक्टिस पर रोक लगा डी और चैनल ने इसे सच की जीत कहा, अपने रिपोर्टर की पीठ थपथपाई । वैसे रिपोर्टर के काम का असली फल होता भी यही है की उसके काम का कुछ तो नतीजा निकले। लेकिन इस पूरे मामले को सच की जीत कहना एक अदना से मामले को कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढा का कहना लगता है। एसा लगने के अपने कारण है और इनकी अपनी एक कड़वी जमीनी हकीकत भी है। हमारे यहाँ , जहाँ तक मेरी समझ है, कोर्ट मे सिविल के मामले फौजदारी से कही ज्यादा होते हैं। हो सकता है कुछ एक ख़ास परिस्थितियों मे फौजदारी के मामले ज्यादा हो जाए, लेकिन ज्यादा होते सिविल के ही हैं। ये वही मामले होते हैं जिनमे या तो खेत की मेड काट ली जाती है, चकबंदी मे ग़लत नपाई हो जाती है, किसी के बाग़ के आम के पेड़ की कोई टहनी कोई काट ले जाता है तो कोई तालाब के किसी हिस्से पर जबरन कब्जा कर लेता है। या फ़िर इसी तरह के दर्जनों, सैकडों और हजारों मामले। छह महीने की फसल बोने के बाद किसान अपना खाली वक्त कचहरी मे गुजारना पसंद करता है जिसके लिए उसे एक मुकदमा चाहिए होता है। और मुकदमा लड़ने के लिए एक वकील। मुकदमा तो खेत का पानी कटा लेने से ही शुरू हो जाता हैलेकिन वकील अपनी सेटिंग की काबलियत से तय किया जाता है। कचहरी वकीलों की भेड़ मंडी होती है। मुकदमा करने वाले को इससे कोई मतलब नही होता है की वकील कितना पढ़ा लिखा है या फ़िर कितना जानकार है। उसे तो बस इस बात से मतलब है की वकील की कितने जजों से सेटिंग है , वह कितने जजों को पैसा पहुचता है और इसी दम पर वह कितने फैसले करवा ले जाता है । और सच मे, मैं माफ़ी के साथ नाम लेना चाहूँगा, मश हूर वकील चाहे वो प्रशांत जी हो या जेठमलानी जी, बगैर मिडिया और जज को बताये लोअर कोर्ट मे पहुच जाएँ , भले ही क़ानून के हिसाब से फैसला उनके पक्ष मे होता हो, लेकिन फ़ैसला करवा के दिखा देन तब तो मना जाएगा की सच की जीत हुई। लेकिन ऐसा होगा नही। क्यों ? क्योंकि वकील साहब ने जज को चढावा नही चढाया, मुंशी की मुठ्ठी मे दो चार बार बीस का नोट नही दिया। वी ओ आई के आर के सिंह ने अभी हाल मे ही एक इंटर व्यू मे कहा था की मिडिया ख़ुद की नही, ये जनता की है। जज भी ख़ुद के नही है हैं, ये जनता के हैं, जनता के लिए हैं, ऐसा मेरे मानना है। तो फ़िर अगर वकीलों पर स्टिंग हो सकता है तो इन जजों पर क्यों नही। शर्त लगा लीजिये, आधे से ज्यादा जज पैसे लेते हुए दिखाई देंगे। सच की जीत दिखाते हुए मिलेंगे।