इसे अन्यथा न लें
हिंदू होने के फायदे -८
थोड़ी ही देर मे उस लडकी को पता चल गया कि कई सारी आंखें उसके बदन का पोस्ट मार्टम करने में जुटी हुई हैं। सो उसने पानी से अठखेलियाँ करने की इच्छा तुरंत पानी के हवाले की और निकलकर घाट पर आ गयी। वहाँ नयी मुसीबत उसका इंतज़ार कर रही थी।
"कपडे कहॉ बदले जाएँ?"
हालांकि सरयू घाट पर महिलाओं के कपडे बदलने के लिए एक सरकारी "कपड़ा बदलन केंद्र "बना तो हुआ है लेकिन उसकी हालत भी सरकारी ही थी और अभी भी है। ऊपर से इतनी भीड़... उसने देखा कि उसकी माँ ने ऊपर से सूखा पेटीकोट डाला और नीचे से गीला वाला निकाल दिया। उसे ये जुगाड़ मेंट समझ मे आ गया। सो उसने भी अपनी माँ की ही तरह कपडे बदलने की कोशिश करनी शुरू कर दीं। लेकिन आंखें थीं कि उसका पीछा ही नही छोड़ रही थी । तब तक हम लोग भी पानी से बहार निकाल आये थे और कपडे वगैरह बदल कर घाट की सीढ़ियों पर बैठकर धुप खा रहे थे और उस उम्र की भाषा में कहें तो आंखें सेंक रहे थे। और इस काम मे हमारे साथ कुछ पुलिस वाले कुछ नए बने जवान बाबा लोग और वहाँ पर रेह्डी लगाने वाले दूकानदार भी थे जिनकी निगाहों का मरकज़ वही लडकी थी। हवा काफी तेज़ चल रही थी सो हमे पता था कि कुछ ना कुछ तो होगा ही। (नोट:- ये सारी चीज़े अयोध्या ही नही बल्कि उन सारे घाटों पर काफी आम होती हैं जहाँ ऐसे मेले लगते हैं , इसलिये कृपया इसे अन्यथा ना लें ) इतनी देर मे एक तेज़ हवा का झोंका आया और बस्स... सब एक दूसरे का मुह देखकर मुस्की मारने लगे। इसके बाद हमे भी वहाँ बैठना फ़ालतू लगने लगा और बाकी बचा हुआ रास्ता पार करने के लिए हम लोग आगे बढ़े। राम की पैढी के बाहर समोसे की दुकान पर हमने समोसे खाए पानी पिया।
(जारी.....)
थोड़ी ही देर मे उस लडकी को पता चल गया कि कई सारी आंखें उसके बदन का पोस्ट मार्टम करने में जुटी हुई हैं। सो उसने पानी से अठखेलियाँ करने की इच्छा तुरंत पानी के हवाले की और निकलकर घाट पर आ गयी। वहाँ नयी मुसीबत उसका इंतज़ार कर रही थी।
"कपडे कहॉ बदले जाएँ?"
हालांकि सरयू घाट पर महिलाओं के कपडे बदलने के लिए एक सरकारी "कपड़ा बदलन केंद्र "बना तो हुआ है लेकिन उसकी हालत भी सरकारी ही थी और अभी भी है। ऊपर से इतनी भीड़... उसने देखा कि उसकी माँ ने ऊपर से सूखा पेटीकोट डाला और नीचे से गीला वाला निकाल दिया। उसे ये जुगाड़ मेंट समझ मे आ गया। सो उसने भी अपनी माँ की ही तरह कपडे बदलने की कोशिश करनी शुरू कर दीं। लेकिन आंखें थीं कि उसका पीछा ही नही छोड़ रही थी । तब तक हम लोग भी पानी से बहार निकाल आये थे और कपडे वगैरह बदल कर घाट की सीढ़ियों पर बैठकर धुप खा रहे थे और उस उम्र की भाषा में कहें तो आंखें सेंक रहे थे। और इस काम मे हमारे साथ कुछ पुलिस वाले कुछ नए बने जवान बाबा लोग और वहाँ पर रेह्डी लगाने वाले दूकानदार भी थे जिनकी निगाहों का मरकज़ वही लडकी थी। हवा काफी तेज़ चल रही थी सो हमे पता था कि कुछ ना कुछ तो होगा ही। (नोट:- ये सारी चीज़े अयोध्या ही नही बल्कि उन सारे घाटों पर काफी आम होती हैं जहाँ ऐसे मेले लगते हैं , इसलिये कृपया इसे अन्यथा ना लें ) इतनी देर मे एक तेज़ हवा का झोंका आया और बस्स... सब एक दूसरे का मुह देखकर मुस्की मारने लगे। इसके बाद हमे भी वहाँ बैठना फ़ालतू लगने लगा और बाकी बचा हुआ रास्ता पार करने के लिए हम लोग आगे बढ़े। राम की पैढी के बाहर समोसे की दुकान पर हमने समोसे खाए पानी पिया।
(जारी.....)
1 comment:
हमारे यहाँ "हिन्दू-फ़ोबिया" से ग्रस्त लाखों लोग हैं, जिन्हें हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान का नाम लेते ही दस्त लग जाते हैं, उनका मन इन्हें गालियाँ देने को करने को लग जाता है.. सरस्वती वन्दना पर इन्हें ऐतराज है, सरस्वती नदी कहीं थी ही नहीं, राम-सेतु को अब तक ये लोग कहानी बताते रहे, मुसलमानों के पक्ष में बोलना मतलब प्रगतिवादी होना यह इनकी परिभाषा है, भारत की संस्कृति नामक कोई चीज है ही नहीं, ठीक है भाई लगे रहो.. हम भी लगे हैं अपने काम में जैसे आप अपने काम में..आज तक नहीं सुना कि जे एन यू के किसी प्रोफ़ेसर ने तस्लीमुद्दीन, शहाबुद्दीन या बुखारी को फ़ाँसी की माँग की हो, लेकिन हाँ तोगडिया-मोदी कुछ बोलें तो सही, फ़िर देखो कैसे टूट पडते हैं...तो भईया जितना आप लोग हिन्दू धर्म का मजाक उडाओगे (देवताओं का अपमान, उन्हें शराबी, वेश्यागामी बताओगे) उतना ही हमारा इरादा मजबूत होता जायेगा...लाखों स्वयंसेवक, हजारों सरस्वती शिशु मन्दिर यूँ ही नहीं खडे हो गये...
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