Sunday, April 15, 2007

पुलिस ,पंडे और पॉकेट मार .. १

के पी सिंह
अगर मौसम की आँधी आये तो अंदेशा है कि के पी भाई उड़ जाएँगे , वो क्या है कि शरीर से हल्के बहुत हैं , हमने भी एक बार झेली थी आँधी के पी भाई के साथ और तब से पक्का यक़ीन हो गया कि ये धुरंधर जितने आराम से उड़ सकते हैं उतने ही आराम से किसी को अपनी कलम से उड़ा सकते हैं ... इनकी कलम से एक बार बड़ी भयंकर आँधी चली थी जो राजा अयोध्या तक को उड़ा ले गयी थी और तब से आज का दिन है , के पी भाई भी वही हैं लेकिन राजा अयोध्या का वो जमूरा उस आँधी मे ऐसा उड़ा ..ऐसा उड़ा कि क्या दिल्ली और क्या लखनऊ और क्या अयोध्या कहीं भी टिक ही नही पा रहा है , बहर हाल बजार के लिए इन्होने इस बार बस थोड़ी सी हवा भर चलाई है .. लेकिन आशा है कि आँधी इस बजार मे भी आएगी ..

' हद है कि आज हद से गुज़रने लगे हैं लोग ' सुनते थे म्रिदुल जी और मरहूँ शायर शमीम अहमद ' शमीम ' कह उठते थे कि कुछ भी हो जाए , ' ये अयोध्या है , यहाँ युध्द नहीं हो सकता . ' ठीक समझे आप, बात उन दिनों की है जब कई लोगों ने ख़ून खौलाने का धंधा शुरू कर रखा था और नारा लगाते थे - अब भी जिसका ख़ून ना खौला , ख़ून नहीं वो पानी है . शिकायत थी उन्हे शमीम जैसों से कि वे आड़े आ जाते हैं . एक तो वैसे ही लोगों की नसों मे ज़्यादा ख़ून नहीं बचा है , उपर से आँच भी नहीं लगने देते उसे . इसके बावजूद दावा था कि ग़लत सिध्द कर देंगे उन्हे , ईंट से ईंट बजकर और अयोध्या मे युध्द करा कर ही रहेंगे . कई और लोग भी थे जिन्हे लगता था कि बस अब रड़ भेरी बज ही उठेगी .

मगर उसे नहीं बजना था और नहीं बज़ी . राम की नगरी ने अपना धैर्य नहीं खोया और शैतान की नगरी बनने से साफ़ मना कर दिया . इस बीच तमाम शस्त्र सज्जित सेनाएँ आती और सर पटक कर लौट जाती रहीं . ख़ून खौलाने वालों को भी बदल जाना पड़ा आख़िरकार . धंधा मंदा हो चला था , क्या करते ? फिर भी आदत जो पड़ी होती है , वह दूर कहाँ होती है जल्दी ? ख़ून खौलाते खौलाते कितनी जवानियाँ बेकार कर दीं उन्होने और अब जब ख़ुद उनका ही ख़ून पानी हो गया है तो भी ख़ून की लत हैं कि जाती ही नहीं . स्वाद मुँह से लगा हुआ है ईसका . इसीलिए तो रामभरोसे कहता है - पहले खौलाते थे और आजकल जलते हैं . ख़ून ही नहीं , जान भी . मगर उन्हे इससेक़या ? जो भी जलना हो जले ..
जारी ....

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