Sunday, April 15, 2007

नमस्ते सदा वत्सले

हिंदू होने के फ़ायदे - २

थोड़ी देर बाद अली हुसैन की अम्मा चली गयीं। बाहर निकल कर देखा तो वो अनिल की अम्मा के चबूतरे पर बैठी हुई थीं। वहां गया तो उनकी पंचायत चल रही थी। अब सोचता हूँ तो हंसी आती है कि दुनिया का सबसे बड़ा झूठ यही हो सकता है कि दो औरतें एक कमरे में चुप बैठी थीं। मैं वहाँ पंहुचा और एक सोहर (जो हमारे यहाँ बच्चा होने पर गाया जता है ) गाने लगा। " नीम्बू ना खायू , इमलिया ना खायू , कवन फल खाए रहू भौजी , ललन बड़ा सुन्दर हो "। इतना सुनना था कि पीछे से मेरी अम्मा , सामने से अनिल और अली हुसैन की अम्मा ने मुझे मारने के लिए दौडा लिया। मैं थोड़ी दूर भागा फिर पीछे मुड़कर देखा तो तीनों हँस रही थीं। अनिल की अम्मा मेरी अम्मा से कह रही थी कि तोहार लड़का तो बहुत पाजी है।

थोड़ी देर बाद घर वापस आया। खाना खाया और बाबू के पेट पर तबला बजाने लगा । तब तक संजू और अप्पू क्रिकेट खेलने के लिए बुलाने आ गए। क्रिकेट हम लोग शाखा वाले मैदान में खेलते थे। कल्लू कभी कभी वहाँ हम लोगों के साथ शाम को क्रिकेट खेलने आ जता था । लेकिन जैसे ही वह टंडन जी को या खाकी हाफ पैंट पहने कुछ लोगों को देखता, तुरंत वहाँ से सरक लेता था। हालांकि तबरेज़ और घम्मड़ को मैंने कई बार उसी मैदान मे कबड्डी और फुटबाल खेलते देखता था लेकिन तब मेरी हिम्मत नही होती थी। मेरा स्कूल बारह बजे के आस पास छूटता था और तब काफी तेज़ धूप रहती थी। शाखा वाले मैदान मे तब कोई भी नही रहता था और तकिया के सारे बच्चे आकर या तो वहाँ पतंग उड़ाते या कबड्डी खेलते या फिर फुटबाल खेलते। लेकिन शाखा के बगल मे रहने वाले टंडन जी अगर उन्हें वहाँ खेलते देखते तो अपना वही डंडा जिसे लेकर वह रोज़ सवेरे टहलने जाते और लौटकर अपनी बगल मे दबाकर शाखा लगाते और नमस्ते सदा वत्सले गाते , उसे लेकर इन सारे बच्चों को दौडा लेते। इन सबको भागते देख मैं भी डर के मारे भागता । हालांकि मैं मैदान के बगल से गुजरने वाली सड़क पर चल रहा होता लेकिन भीड़ को भागते देख मैं भी उसके साथ हो लेता और हम लोग हो हो करते अपनी गली मे पहुचते । शाम को जब मैं बाबू को बताता कि टंडन जी ने दौड़ाया था तो बाबू हँसते। बोलते , तुम क्यों डरते हो ? तुम्हे वो कुछ नही बोलेंगे। वो तो सिर्फ तकिया वाले मुसलमानो के बच्चों को भगाने के लिए डांटते होंगे। मैं कहता , लेकिन वो तो मेरे दोस्त हैं। तो बाबू कहते , ऐसा तुम समझते हो ना। लेकिन टंडन जी ऐसा नही सोचते।
( जारी ....)

1 comment:

रंजू भाटिया said...

रोचकता है इस में..... आगे जानने की जिग्यासा है ....