शाखाओं पर बैठे बंदर और नास्तिक सम्मेलन में उछलकूद
दुनिया के किस कानून में लिखा है कि मानव योनि में जन्म लेने वालों को ईश्वर को, उसकी सत्ता को मानना ही होगा? दुनिया की जाने दीजिए, भारत के किस कानून में ऐसा लिखा है कि भगवान को मानना ही होगा? क्या भारत हिंदू राष्ट्र है? क्या भारत मुस्लिम देश है? किसी भी समझदार और विचारवान का यही जवाब होगा कि ऐसा नहीं है। भगवान या ईश्वर या अल्लाह को मानना या न मानना बेहद व्यक्तिगत वस्तु है। इसी वजह से कोई भी कानून यह कभी नहीं कहता कि अगर हम इंसान हैं तो ईश्वर को मानना ही होगा। लेकिन इस वक्त अपने देश में जो अंधी आंधी चल रही है, उसमें वह सारी चीजें कानून हैं जो कहीं से भी कानून नहीं हैं। वृंदावन में हुए नास्तिकों के सम्मेलन पर बीजेपी और संघ के गुंडों का हमला यह साफ जाहिर करता है कि जब तक देश में इन लंपटों की सरकार रहेगी, आम आदमी की श्रद्धाएं और आस्थाएं इसी तरह से बम और बंदूक का निशाना बनती रहेंगी।
हमारे देश में ही आस्तिकता और नास्तिकता की लंबी परंपरा मौजूद रही है। सैकड़ों ऐसे ऋषि मुनि हुए हैं जो किसी भी ईश्वरीय सत्ता में विश्वास नहीं रखते थे। पूरे भारतीय दर्शन को नास्तिक और आस्तिक, दो भागों में विभाजित किया गया है। चार्वाक से लेकर बौद्ध दर्शन तक नास्तिकता की जितनी लंबी परंपरा हमारे पास रही है, दुनिया के किसी भी देश में नहीं रही है। जो लोग मार्क्सवाद से घृणा करते हैं, खुद उन्हें नहीं पता कि वाम चिंतन सदा से इस देश के जनमानस में व्यवहार की चीज तो रहा ही है, यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं है कि इसका आधारभूत विचार यहीं पर जन्मा है। वैदिक दर्शन के समानांतर ही हमारे यहां अवैदिक दर्शन की एक लंबी चिंतन परंपरा चली आई है। भारतियता और इससे जुड़े कुछ छिछले प्रतीकों को लेकर नफरती हिंदुत्व की राजनीति करने वाले संघ को इससे राई रत्ती भर लेना देना नहीं है। पढ़ाई लिखाई जैसी चीजों से संघी बंदरों का अदरक वाला नाता रहा है और यही वजह है कि अब जब पूरी दुनिया गॉड पार्टिकल्स के रहस्यों को जानने की ओर बढ़ रही है, ये भगवान और लोगों की आस्थाओं के ही टुकड़े करने वाली गंदी राजनीति लट्ठ नचाकर कर रहे हैं।
नास्तिकता को समझे बगैर यह लोग जिस तरह से देश विदेश से इस नास्तिक सम्मेलन में आए लोगों पर लाठियां भांज रहे हैं, जिस तरह से संघ के लोग शाखा से निकलकर सीधे महिलाओं को पीट रहे हैं, उन्हें सड़कों पर घसीट रहे हैं, असल में ये खुद सबके सामने नंगे हो रहे हैं। ये खुद अपने उस ईश्वर के सामने पाप कर रहे हैं जिसे ये मानने का दावा तो करते हैं, लेकिन मानते कतई नहीं। ईश्वर को मानने वाला क्या महिलाओं और बच्चों को पीट सकता है? जाहिर है कि नहीं। लेकिन ये कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं? क्योंकि ये हर हाल में ईश्वर को मनवा लेना चाहते हैं। डंडे और झंडे का जोर तो है ही इनके पास। डंडे के जोर से तो लोगों ने शैतान को भी न माना, ईश्वर क्या चीज है।
नास्तिकता ईश्वर का विरोध करना या उसे न मानना नहीं है। नास्तिक होना आस्तिक होने का विरोध नहीं है। क्या किसी ने कभी कहीं देखा कि कोई नास्तिक किसी से जबरदस्ती नास्तिक होना कबूल करा रहा हो? देश की तो जाने दीजिए, दुनिया में कभी कहीं ऐसी कोई घटना देखी, पढ़ी या सुनी? जाहिर है कि नहीं। नास्तिकता कोई धर्म नहीं है और न ही अनास्था का कोई प्रकार। मैं खुद नास्तिक हूं लेकिन मेरा दावा है कि सनातन धर्म के विषय में और वेदों के बारे में मैं इन आतातइयों से कहीं अच्छा प्रवचन दे सकता हूं। ज्ञान कहीं भी हो, न मैंने उसे लेने से इन्कार किया है और न ही कोई नास्तिक करता है। दरअसल नास्तिकता ज्ञान पाने का वह कठिन मार्ग है, जिसपर विरले ही चल पाते हैं। ज्ञान से बंदरों का संबंध किसी से नहीं छुपा। किसी से छुपा हो तो बंदर को उस्तरा देकर देख ले।
यही हाल इन संघिियों का है। बचपन में कुछ दिन मैं शाखा गया था जहां सबसे प्रचलित कहावत कही जाती थी- पढ़ब लिखब की ऐसी की तैसी, कट्टाा लेके करौ डकैती। मुझे न पढ़ने लिखने की ऐसी की तैसी करनी थी और न ही डकैती, सो मैंने शाखा जाना छोड़ दिया, लेकिन शाखा में जाने वाले लोग मथुरा में हुए नास्तिक सम्मेलन में क्या कर रहे हैं, यह पूरी दुनिया देख और सुन रही है।
हमारे देश में ही आस्तिकता और नास्तिकता की लंबी परंपरा मौजूद रही है। सैकड़ों ऐसे ऋषि मुनि हुए हैं जो किसी भी ईश्वरीय सत्ता में विश्वास नहीं रखते थे। पूरे भारतीय दर्शन को नास्तिक और आस्तिक, दो भागों में विभाजित किया गया है। चार्वाक से लेकर बौद्ध दर्शन तक नास्तिकता की जितनी लंबी परंपरा हमारे पास रही है, दुनिया के किसी भी देश में नहीं रही है। जो लोग मार्क्सवाद से घृणा करते हैं, खुद उन्हें नहीं पता कि वाम चिंतन सदा से इस देश के जनमानस में व्यवहार की चीज तो रहा ही है, यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं है कि इसका आधारभूत विचार यहीं पर जन्मा है। वैदिक दर्शन के समानांतर ही हमारे यहां अवैदिक दर्शन की एक लंबी चिंतन परंपरा चली आई है। भारतियता और इससे जुड़े कुछ छिछले प्रतीकों को लेकर नफरती हिंदुत्व की राजनीति करने वाले संघ को इससे राई रत्ती भर लेना देना नहीं है। पढ़ाई लिखाई जैसी चीजों से संघी बंदरों का अदरक वाला नाता रहा है और यही वजह है कि अब जब पूरी दुनिया गॉड पार्टिकल्स के रहस्यों को जानने की ओर बढ़ रही है, ये भगवान और लोगों की आस्थाओं के ही टुकड़े करने वाली गंदी राजनीति लट्ठ नचाकर कर रहे हैं।
नास्तिकता को समझे बगैर यह लोग जिस तरह से देश विदेश से इस नास्तिक सम्मेलन में आए लोगों पर लाठियां भांज रहे हैं, जिस तरह से संघ के लोग शाखा से निकलकर सीधे महिलाओं को पीट रहे हैं, उन्हें सड़कों पर घसीट रहे हैं, असल में ये खुद सबके सामने नंगे हो रहे हैं। ये खुद अपने उस ईश्वर के सामने पाप कर रहे हैं जिसे ये मानने का दावा तो करते हैं, लेकिन मानते कतई नहीं। ईश्वर को मानने वाला क्या महिलाओं और बच्चों को पीट सकता है? जाहिर है कि नहीं। लेकिन ये कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं? क्योंकि ये हर हाल में ईश्वर को मनवा लेना चाहते हैं। डंडे और झंडे का जोर तो है ही इनके पास। डंडे के जोर से तो लोगों ने शैतान को भी न माना, ईश्वर क्या चीज है।
नास्तिकता ईश्वर का विरोध करना या उसे न मानना नहीं है। नास्तिक होना आस्तिक होने का विरोध नहीं है। क्या किसी ने कभी कहीं देखा कि कोई नास्तिक किसी से जबरदस्ती नास्तिक होना कबूल करा रहा हो? देश की तो जाने दीजिए, दुनिया में कभी कहीं ऐसी कोई घटना देखी, पढ़ी या सुनी? जाहिर है कि नहीं। नास्तिकता कोई धर्म नहीं है और न ही अनास्था का कोई प्रकार। मैं खुद नास्तिक हूं लेकिन मेरा दावा है कि सनातन धर्म के विषय में और वेदों के बारे में मैं इन आतातइयों से कहीं अच्छा प्रवचन दे सकता हूं। ज्ञान कहीं भी हो, न मैंने उसे लेने से इन्कार किया है और न ही कोई नास्तिक करता है। दरअसल नास्तिकता ज्ञान पाने का वह कठिन मार्ग है, जिसपर विरले ही चल पाते हैं। ज्ञान से बंदरों का संबंध किसी से नहीं छुपा। किसी से छुपा हो तो बंदर को उस्तरा देकर देख ले।
यही हाल इन संघिियों का है। बचपन में कुछ दिन मैं शाखा गया था जहां सबसे प्रचलित कहावत कही जाती थी- पढ़ब लिखब की ऐसी की तैसी, कट्टाा लेके करौ डकैती। मुझे न पढ़ने लिखने की ऐसी की तैसी करनी थी और न ही डकैती, सो मैंने शाखा जाना छोड़ दिया, लेकिन शाखा में जाने वाले लोग मथुरा में हुए नास्तिक सम्मेलन में क्या कर रहे हैं, यह पूरी दुनिया देख और सुन रही है।
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