Wednesday, March 10, 2021

महिलाओं ने मांगा इस्तीफा, सीजेआई बोले- सवाल नहीं कर सकते

 


पिछले महज हफ्ते भर में समूचे देश भर से पांच हजार से ज्यादा लोगों ने एक ऑनलाइन पेटीशन साइन करके मांग की है कि भारत के चीफ जस्टिस एसए बोबडे तुरंत अपनी कुर्सी छोड़ दें। इतना ही नहीं, तकरीबन चार हजार से अधिक महिलाओं ने चिट्ठी लिखकर मांग की है कि अब उन्हें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उस दिन कोर्ट में जिस तरह से उन्होंने बलात्कार के आरोपी से पूछा कि क्या वो उस महिला से शादी कर लेगा, जिसका कि उसने बलात्कार किया है, उसके बाद से सीजेआई बोबडे लगातार महिलाओं के निशाने पर हैं। मामला बढ़ता देखकर सोमवार को उन्होंने सफाई भी दी कि वो महिलाओ का बहुत सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि उनको गलत समझा जा रहा है। उनकी सोच एकदम ऐसी नहीं है। उन्होंने कहा कि वे महिलाओं का सर्वोच्च सम्मान करते हैं, उन्होंने रेपिस्ट से शादी का प्रस्ताव कभी नहीं दिया और इस मसले पर मीडिया ने गलत रिपोर्टिंग की। इंग्लैंड का अखबार द गार्डियन इस बारे में लिखता है कि बोबडे साहब से पहले जो सीजेआई थे, गोगोई साहब, वो भी अपने ही एक महिला स्टाफ के साथ मीटू मामले में आरोपी बनाए थे। उनपर भी सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप था, मगर उनको जुडिशरी ने छोड़ दिया। अब जरा देखिए कि बोबडे साहब के उस कमेंट पर, जिस पर उन्होंने बलात्कारी से यह पूछा था कि तुमने जिससे रेप किया, उससे शादी करोगे या नहीं, उस पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की जो बेंच बैठी, उसमें क्या हुआ। आपको कसम है, भाषा की शालीनता बनाए रखिएगा। बहरहाल, चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने पिछले हफ्ते बलात्कार के एक मामले की सुनवाई पूरी तरह से गलत तरीके से किए जाने पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें उसने कथित तौर पर एक बलात्कार के आरोपी से पूछा था कि क्या वह पीड़िता से शादी करने जा रहा है। 


सुनवाई की शुरुआत में चीफ जस्टिस बोबडे ने साफ किया कि उन्होंने नारीत्व को सर्वोच्च सम्मान दिया है। सीजेआई ने कहा कि उन्होंने पूछा क्या आप शादी करने जा रहे हैं? हमने उसे शादी करने का आदेश नहीं दिया। CJI बोबडे की बेंच ने कहा कि उस मामले में अदालती कार्यवाही की पूरी तरह से गलत रिपोर्टिंग की गई। क्या उससे शादी करोगे पूछने और जाओ और शादी करो का आदेश देने में बहुत अंतर है। आरोपी से तो बस पूछा गया था? मीडिया और एक्टिविस्टों ने इसे दूसरा एंगल दे दिया है। जज साहब जब यह बोले तो मोदी जी, मतलब भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बिना देर लगाए कहा, यस माई लॉर्ड, यू आर राइट। कथित गलत बयानबाजी को सुप्रीम कोर्ट की इमेज खराब करने वाला करार दिये जाने के बाद, चीफ जस्टिस बोबडे ने तुषार मेहता से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 को पढ़ने के लिए कहा, जिसमें कहा गया है कि धारा 165 सवाल करने या पेश करने का ऑर्डर देने की अदालती ताकत जज प्रॉपर फैक्ट्स का पता लगाने के लिए या उनका उचित सबूत पाने के लिए, किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकारों से, किसी सुसंगत या विसंगत फैक्ट के बारे में कोई भी सवाल, जो वह चाहे, पूछ सकेगा तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा। और न तो पक्षकार और न उनके एजेंट इसके हक़दार होंगे कि वे किसी भी ऐसे सवाल या ऑर्डर के प्रति कोई भी आक्षेप करें, न ऐसे किसी भी सवाल के जवाब में दिए गए किसी भी जवाब पर किसी भी साक्षी की अदालत की इजाजत के बिना एंटिसिपेशन के हकदार होंगे। जब वकील बीजू ने कोर्ट की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए एक सिस्टम के बारे में बात की तो सीजेआई बोबडे ने कहा कि हमारी प्रतिष्ठा हमेशा बार के हाथों में होती है। 



इसके बाद बेंच ने लड़की के माता-पिता के साथ बात करने की इच्छा जताई और मामले को शुक्रवार 12 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया। तो ये तो अदालत में सोमवार को जो कुछ भी हुआ, वह था। कुल मिलाकर इसका मतलब है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के मुताबिक वे जो चाहें, पूछ सकते हैं, और कोई ये नहीं पूछ सकता कि ऐसा कुछ पूछते वक्त जज साहब के दिमाग में क्या चल रहा था। लेकिन क्या यह मामला सिर्फ यह कह देने से खत्म हो जाने वाला है, जैसा कि कानून में कहा गया है? बोबडे साहब ने जो सवालात पूछे, उससे भारत भर के महिला संगठनों और एक्टिविस्ट और बुद्द्जीवियों में घनघोर नाराजगी है। इसी गुस्से को उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के नाम लिखे एक ओपन लेटर में व्यक्त किया है। आइए देखते हैं कि इस ख़त का मजमून क्या है ? कौन से सवाल पूछ कर नाराजगी जताई गई है। इस चिट्ठी में लिखा है कि माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, हम भारत की महिलाओं से जुड़े आंदोलनों के, प्रगतिवादी सोच से जुड़े आंदोलनों के प्रतिनिधि हैं। मीडिया के ज़रिये पता चला कि आरोपी मोहित सुभाष चव्हाण बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में आपने जो टिप्पणी की है वो काफी आपत्तिजनक है। उससे हम आक्रोशित हैं। आपका सवाल था कि क्या आरोपी, पीड़िता से शादी करेगा? ये सुझाव मात्र भी एक पीड़िता को एक ज़िंदगी भर के रेप में धकेलने वाला था। ये बात हमें घृणा से भर देती है कि एक महिला को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के सामने सिडक्शन, रेप और शादी जैसे शब्दों के मायने एक्सप्लेन करने पड़ें। भारत में महिलाएं ऐसे लोगों से घिरी हुई हैं, जिन्हें लगता है कि  रेप के लिए आरोपी से ‘कॉम्प्रोमाइज़’ करने से उनकी तकलीफ़ का समाधान हो जायेगा। इस पत्र में आगे लिखा है कि बस बहुत हो चुका  आपके शब्द कोर्ट की गरिमा को नीचे गिराने वाले हैं। 

 


चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित पद से देश की अन्य अदालतों, पुलिस और अन्य एजेंसियों तक ये संदेश जा रहा है कि भारत में महिलाओं के लिए न्याय उनका संवैधानिक अधिकार ही नहीं है। वहीं रेपिस्ट को ये मैसेज जा रहा है कि शादी, रेप का लाइसेंस है। चीफ जस्टिस से इस सुझाव के लिए माफ़ी की अपेक्षा करते हुए साफ़ लिखा है कि हम कहना चाहेंगे कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को 1 मार्च 2021 को कोर्ट में कहे अपने इन शब्दों को वापस लेना चाहिए, माफी मांगनी चाहिए। बिना एक पल गंवाए पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। चीफ जस्टिस के नाम ये ओपन लेटर लिखने वालों में महिला अधिकारों की बात करने वाले तमाम नाम शामिल हैं। एनी राजा, मरियम धवले, कविता कृष्णन, मीरा संघमित्रा आदि जैसे तमाम नाम हैं। साथ ही तमाम ग्रुप और एक्टिविस्ट भी इस मुहिम में शामिल हैं। एक तरफ जहां बोबडे साहब की महिला विरोधी हरकत के चलते महिलाएं बेहद नाराज हैं, वहीं उनकी इस हरकत पर देश दुनिया के बड़े अखबारों या मीडिया हाउसों में एक बार फिर से भारत की जुडिशरी की छवि वाकई धूमिल हुई है। अदालत और कानून चाहे जो समझे या कहे, मगर जिस तरह के तथ्य पूरी दुनिया के सामने हैं, उससे कोई भी यह आरोप बड़ी आसानी से लगा सकता है कि इंडियन जुडिशरी में महिलाओं की इज्जत तो हो सकता है कि बहुत है, मगर औकात कुछ भी नहीं है। बोबडे साहब के बहाने, जैसा कि हमने पहले बताया कि द गार्डियन अखबार ने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के भी तार छेड़ दिए हैं और यह कहने की कोशिश की है कि इंडियन जुडिशरी तो भई, बस ऐसी ही है। क्योंकि महिला संगठनों की जो चिट्ठी हमने आपको सुनाई, वह सोमवार को आए बोबडे साहब के कमेंट से पहले उनको लिखी गई थी, और जैसा कि देखा जा सकता है कि अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के पीछे कहीं न कहीं छुपने की कोशिश की और महिला संगठनों की नाराजगी को धारा 165 लगाकर खारिज कर दिया। जो शब्द इज्जत और औकात यूज किया गया, उसके बारे में भी तथ्य बड़े साफ हैं। औरत की इज्जत सुप्रीम कोर्ट में बहुत है, जिसके बारे में बोबडे साहब ने बयान दे ही दिया है। रही बात औकात की तो भारतीय जुडिशरी में कितनी महिला जज हैं, सुप्रीम कोर्ट में कितनी महिला जज हैं, हाई कोर्टों में कितनी महिला जज हैं, उनके नंबर्स बड़ी आसानी से गूगल पर देखे जा सकते हैं।


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