बड़े नेताओं का भला क्या बिगाड़ लेगी मोदी की नोटबंदी?
बीजेपी अध्यक्ष श्री अमित शाह ने हाल में यूपी के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं का नाम लेकर कहा है कि बड़े नोटों की बंदी से मुलायम सिंह और मायावती की हालत खराब हो गई है। यूपी में चुनावी माहौल चल रहा है। ऐसे में नेता विरोधी पार्टियों के विरुद्ध और एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करेंगे ही। लेकिन स्वयं प्रधानमंत्री अपनी सरकार की जिस पहल को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए इतनी महत्वपूर्ण बता रहे हैं कि इसके पक्ष में खड़े होने के लिए उन्हें रोते हुए जनता से 50 दिन तक सारी तकलीफें बर्दाश्त कर लेने की अपील करनी पड़ रही है, उसका इस्तेमाल उन्हीं की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा संकीर्ण राजनीतिक लड़ाइयों के लिए करना थोड़ा अटपटा लग रहा है।
चलिए, नोटबंदी को लेकर मुलायम सिंह और मायावती के अतिशय कष्ट को देखते हुए मैं उनको एक तरफ कर देता हूं, और थोड़ी देर के लिए उनकी जगह खुद को रख देता हूं। मैं एक मान्यताप्राप्त पार्टी का मुखिया हूं और मेरे पास 200 करोड़ रुपये 1000 और 500 रुपये के नोटों की शक्ल में मौजूद हैं। ये रुपये मैं दस-दस करोड़ करके विभिन्न बैंकों में जमा कराने ले जाता हूं। वहां बैंककर्मी मुझसे साफ कहते हैं कि इस रकम में से ढाई लाख रुपया तो वे साफ जमा कर लेंगे, लेकिन बाकी की रकम आपकी तभी जमा हो पाएगी, जब आप इसका स्रोत बताएंगे। अन्यथा इस रकम पर आपको 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा और टैक्सेबल रकम पर 200 प्रतिशत की पेनाल्टी अलग से देनी पड़ेगी।
अब, उनके इस सवाल के सामने मैं क्या करूंगा? क्या चीख-चिल्लाकर अपनी बेचैनी जताऊंगा, वहीं बैंक में खड़ा होकर भरी भीड़ में सिर पीट-पीट कर रोऊंगा? बिल्कुल नहीं। अगर मैं एक सीजन्ड राजनेता हूं तो तार्किक रुख अपनाते हुए अपने पक्ष में मौजूद कानूनी व्यवस्था का उपयोग करूंगा। व्यवस्था यह कि राजनीतिक दलों के लिए 20 हजार रुपये से कम मात्रा में दिए गए चंदों की रसीद दिखाना, दूसरे शब्दों में कहें तो इस तरह हुई समूची आय का स्रोत बताना जरूरी नहीं है।
लंबे अर्से से सूचना आयोग राजनीतिक दलों से अपनी आय को आरटीआई के तहत लाने की अपील कर रहा है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस समेत देश की कोई भी पार्टी इसके लिए तैयार नहीं है। और तो और, कोई भी दल अपना ऑडिट तक सार्वजनिक नहीं करता। राष्ट्रीय पार्टियां अपनी जितनी आय को टैक्सेबल बताती हैं, उतने से तो वे एक मंझोले स्तर के राज्य का भी चुनाव नहीं लड़ सकतीं। मेरी बात को लेकर जिस भी मित्र के मन में संदेह हो, वह किसी भी पार्टी के भीतरी स्रोतों से यह पता लगाकर बताए कि वित्त वर्ष 2015-16 में उसने कितना टैक्स चुकाया था। मुझे बीजेपी के बारे में पता है कि उसने पिछले साल अपनी सालाना राष्ट्रीय आय साढ़े चार सौ करोड़ के आसपास दिखाई थी। इतने पैसों में वह सिर्फ यूपी का चुनाव लड़कर दिखा दे!
बहरहाल, मैं शुरू में ही स्वयं को एक राजनीतिक दल के मुखिया के रूप में प्रस्तुत कर चुका हूं, लिहाजा मैं, या मेरी तरफ से मेरा सीए बैंक के प्रतिनिधि से कह सकता है- चलिए, आज नहीं तो कुछ दिन बाद पक्का कहेगा- कि पांच सौ और एक हजार के नोटों की शक्ल में मेरे पास मौजूद यह दो सौ करोड़ रुपया मेरी पार्टी की जायज स्रोतों से अर्जित की गई संपत्ति है, जिसे इसके गरीब समर्थकों ने रुपया-दो रुपया चंदा देकर जमा किया है। कुछ लोगों को शायद याद हो कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में यूपी के उपरोक्त दोनों नेताओं द्वारा यह दलील अदालत में पहले ही दी जा चुकी है और अदालत दोनों को सारे आरोपों से बाइज्जत बरी भी कर चुकी है।
इस लिए राजनेताओं के पास मौजूद काले धन को लेकर आप न तो अपनी रातें बर्बाद करें, न ही उनकी बर्बादी को लेकर चुनावी मंचों से सार्वजनिक जश्न मनाएं। इत्मीनान रखें महोदय, आपकी नोटबंदी से न तो तिजोरियों में तहें लगाकर रखे गए उनके पैसों का कुछ बिगड़ने वाला है, न ही आपके। हां, व्यक्तिगत रूप से जिन उम्मीदवारों ने चुनाव में करोड़ों अलग से खर्च करने का मन बना रखा था, उन्हें अब यह काम विकेंद्रित रूप से करना होगा। खासकर यूपी को लेकर तो पक्की सूचना है कि वे यह काम शुरू भी कर चुके हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि अन्य क्षेत्रों में- मसलन भ्रष्ट अफसरों और व्यापारियों के पास- मौजूद नकदी काला पैसा भी बड़ी पार्टियों के शीर्ष राजनेताओं के पास पहुंचने लगा है, जो अपना (या अपनी पार्टी का) कमीशन काट कर देर-सबेर इसे बैंकों में जमा करने का इंतजाम कर देंगे। तो, जैसा मैं कह चुका हूं कि मैं एक मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल का प्रमुख नेता हूं, और आज की रात चैन से सोने के लिए नींद की दवा खाने की फिलहाल मुझे कोई जरूरत नहीं महसूस हो रही है।
लेखक चंद्रभूषण एनबीटी एडिट पेज के संपादक हैं।
चलिए, नोटबंदी को लेकर मुलायम सिंह और मायावती के अतिशय कष्ट को देखते हुए मैं उनको एक तरफ कर देता हूं, और थोड़ी देर के लिए उनकी जगह खुद को रख देता हूं। मैं एक मान्यताप्राप्त पार्टी का मुखिया हूं और मेरे पास 200 करोड़ रुपये 1000 और 500 रुपये के नोटों की शक्ल में मौजूद हैं। ये रुपये मैं दस-दस करोड़ करके विभिन्न बैंकों में जमा कराने ले जाता हूं। वहां बैंककर्मी मुझसे साफ कहते हैं कि इस रकम में से ढाई लाख रुपया तो वे साफ जमा कर लेंगे, लेकिन बाकी की रकम आपकी तभी जमा हो पाएगी, जब आप इसका स्रोत बताएंगे। अन्यथा इस रकम पर आपको 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा और टैक्सेबल रकम पर 200 प्रतिशत की पेनाल्टी अलग से देनी पड़ेगी।
अब, उनके इस सवाल के सामने मैं क्या करूंगा? क्या चीख-चिल्लाकर अपनी बेचैनी जताऊंगा, वहीं बैंक में खड़ा होकर भरी भीड़ में सिर पीट-पीट कर रोऊंगा? बिल्कुल नहीं। अगर मैं एक सीजन्ड राजनेता हूं तो तार्किक रुख अपनाते हुए अपने पक्ष में मौजूद कानूनी व्यवस्था का उपयोग करूंगा। व्यवस्था यह कि राजनीतिक दलों के लिए 20 हजार रुपये से कम मात्रा में दिए गए चंदों की रसीद दिखाना, दूसरे शब्दों में कहें तो इस तरह हुई समूची आय का स्रोत बताना जरूरी नहीं है।
लंबे अर्से से सूचना आयोग राजनीतिक दलों से अपनी आय को आरटीआई के तहत लाने की अपील कर रहा है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस समेत देश की कोई भी पार्टी इसके लिए तैयार नहीं है। और तो और, कोई भी दल अपना ऑडिट तक सार्वजनिक नहीं करता। राष्ट्रीय पार्टियां अपनी जितनी आय को टैक्सेबल बताती हैं, उतने से तो वे एक मंझोले स्तर के राज्य का भी चुनाव नहीं लड़ सकतीं। मेरी बात को लेकर जिस भी मित्र के मन में संदेह हो, वह किसी भी पार्टी के भीतरी स्रोतों से यह पता लगाकर बताए कि वित्त वर्ष 2015-16 में उसने कितना टैक्स चुकाया था। मुझे बीजेपी के बारे में पता है कि उसने पिछले साल अपनी सालाना राष्ट्रीय आय साढ़े चार सौ करोड़ के आसपास दिखाई थी। इतने पैसों में वह सिर्फ यूपी का चुनाव लड़कर दिखा दे!
बहरहाल, मैं शुरू में ही स्वयं को एक राजनीतिक दल के मुखिया के रूप में प्रस्तुत कर चुका हूं, लिहाजा मैं, या मेरी तरफ से मेरा सीए बैंक के प्रतिनिधि से कह सकता है- चलिए, आज नहीं तो कुछ दिन बाद पक्का कहेगा- कि पांच सौ और एक हजार के नोटों की शक्ल में मेरे पास मौजूद यह दो सौ करोड़ रुपया मेरी पार्टी की जायज स्रोतों से अर्जित की गई संपत्ति है, जिसे इसके गरीब समर्थकों ने रुपया-दो रुपया चंदा देकर जमा किया है। कुछ लोगों को शायद याद हो कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में यूपी के उपरोक्त दोनों नेताओं द्वारा यह दलील अदालत में पहले ही दी जा चुकी है और अदालत दोनों को सारे आरोपों से बाइज्जत बरी भी कर चुकी है।
इस लिए राजनेताओं के पास मौजूद काले धन को लेकर आप न तो अपनी रातें बर्बाद करें, न ही उनकी बर्बादी को लेकर चुनावी मंचों से सार्वजनिक जश्न मनाएं। इत्मीनान रखें महोदय, आपकी नोटबंदी से न तो तिजोरियों में तहें लगाकर रखे गए उनके पैसों का कुछ बिगड़ने वाला है, न ही आपके। हां, व्यक्तिगत रूप से जिन उम्मीदवारों ने चुनाव में करोड़ों अलग से खर्च करने का मन बना रखा था, उन्हें अब यह काम विकेंद्रित रूप से करना होगा। खासकर यूपी को लेकर तो पक्की सूचना है कि वे यह काम शुरू भी कर चुके हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि अन्य क्षेत्रों में- मसलन भ्रष्ट अफसरों और व्यापारियों के पास- मौजूद नकदी काला पैसा भी बड़ी पार्टियों के शीर्ष राजनेताओं के पास पहुंचने लगा है, जो अपना (या अपनी पार्टी का) कमीशन काट कर देर-सबेर इसे बैंकों में जमा करने का इंतजाम कर देंगे। तो, जैसा मैं कह चुका हूं कि मैं एक मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल का प्रमुख नेता हूं, और आज की रात चैन से सोने के लिए नींद की दवा खाने की फिलहाल मुझे कोई जरूरत नहीं महसूस हो रही है।
लेखक चंद्रभूषण एनबीटी एडिट पेज के संपादक हैं।
No comments:
Post a Comment