इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकारिता के पेशे में ब्राह्म्ण व अन्य सवर्ण जातियां जरूरत से ज्यादा हैं। इनमें भी जबरदस्त ब्राह्म्णवाद है जिसे जेपी नाम बदलने का नारा देने के बाद भी खत्म नहीं कर पाए। उनके नारे के साथ अपने नाम का नाड़ा बांध चुके ये पत्रकार किस मानसिकता से लैस हैं, इसका काफी अच्छा खुलासा भारत ने किया है। भारत तेज तर्रार युवा पत्रकार हैं जो फिलहाल अपनी तेजी के चलते फेसबुक पर कई संपादकों के बैन का शिकार चल रहे हैं। प्रस्तुत है पूरा आलेख...
पतकार वो पूरा था पर उससे पहले था ब्राह्मणवादी, इसका पर्दाफाश बस अभी हुआ जाता है। हालांकि नाम के आगे से उसने अपना ब्राह्मण उपनाम हटा दिया था और वह अब कुछ इस तरह हो गया था- कुमार 'गजेंद्र'। फेसबुक पर अपने नामकरण के बाद उसने घोषणा कर दी थी कि वह आज से ब्राह्मणवादी नहीं रहा, पर ब्राह्मण कहाने में उसे गुदगुदी जैसा फील गुड होता था। गजेंद्र का मतलब उसे पता हो न हो लेकिन वह हमेशा सिंगल कॉमा में घिरा रहता। पतकार ऊंची कॉरपोरेट कंपनी में था, लेटेस्ट मीडियम ऑफ जर्नलिज्म में। आगे है दिन की शुरुआत का आंखों देखा हाल-
ऑफिस पहुंचने के बाद उसने अपने बैग और शरीर को टिकाया और जेब से नए स्टाइल की मगर मैली कंघी निकाली। बालों पर कंघी मारने के बाद मुंह पोंछा और पहला नमन अपने कंप्यूटर के बाईं ओर करीने से
सजाई देवी-देवताओं की चार मिनी मूर्तियों को छोड़ा। दूसरा नमन मिला दाईं ओर लगी दो मूर्तियों को (हालांकि वाम से उसका कोई जुड़ाव नहीं था पर अपनी ही बनाई वास्तु की एक फर्जी खबर पढ़कर उसने बाईं ओर ज्यादा ताकतवर और गुस्सैल देवताओं को जगह दी थी)। गला खंखारते हुए उसने पैंट्री का नंबर मिलाया और संपादकीय अंदाज में आदेश दिया- एक पानी-एक चाय। उधर से आवाज आई- सर एचआर और आईटी में नाश्ता लगाना है, थोड़ी देर लगेगी, करीब आधा घंटा (पतकार पतंगे की तरह जल-भुन गया पर दस कदम दूर पानी और चाय लेने नहीं गया, हालांकि वह जाता तो उसे पता चल जाता कि पैंट्री वाले ने जानबूझकर पतकार को टरकाने को ऐसा कहा था जिसे कुछ गैर ब्राह्मणवादी और पापी पतकारों ने ऐसा सिखाया था)।
कंप्यूटर ऑन करते समय उसे पता चला एक मूर्ति कम है। 'बाप रे बाप'। वह घबरा उठा। इधर-उधर नजर फिराई तो मूर्ति नीचे डस्टबिन में पड़ी मिली। उठाने लगा तो उस पर लगी च्यूइंगम भी हाथ में चिपक गई। बजरंगबली की ऐसी दुर्दशा देख उसकी कंजी आंखों से दो आंसों लुढ़के और गुंदाज गालों का स्पर्श करते हुए उसके मोटे पेट पर जा अटके। यहां पर पतकार भावुक हो चुका था। लेकिन कंप्यूटर पर स्क्रॉल होती खबर देख तीन नैनो सैंकेड में ही उसके आंसू सूखकर आंखों में चमक आ गई। उसके इलाके में एक रेप की खबर चल रही थी। उसने संपादक के केबिन में नजर मारी, वो भी आ चुका था। पतकार ने वहां पहुंचकर लगभग सांष्टांग प्रणाम किया और कहा- सर, बड़ा मसाला है। आगे का हाल-
संपादक- हम्मम, बताओ।
पतकार- सर एक लड़की का रेप हो गया, उसी के ब्वॉयफ्रेंड और दो दोस्तों ने किया है।
संपादक- हां, ठीक है, चलाओ।
पतकार- अरे सर, लड़की रात को खाने के बाद खुद अपने ब्वॉयफ्रेंड को घर पर बुलाती थी, कल उसके दो और दोस्त आ गए, बीयर पीकर। घर के पीछे कई बोतलें भी मिली हैं।
हालांकि संपादक नहीं था प्रकाण्ड बुद्धिजीवी, फिर भी बोला- अरे कहां यार, बचा करो इससे।
पतकार- सर किसी के पास नहीं है ये मसाला, लड़की के पड़ोसी भगवान जी की कसम खाकर बता रहे हैं, अब सर झूठी कसम थोड़ी ना खाएंगे, वो भी भगवान जी की।
संपादक- देख लो यार, अपन को किसी लफड़े में नहीं पड़ना।
केबिन से बाहर को लपकते हुए उसने अगला फोन (ऑफिस के नंबर से) उसने अपने अधीन और सुदूर बैठे पतकार को मिलाया, आगे की बातचीत-
पतकार- कहां रहते हो, सुबह से पांच बार फोन मिला दिया है उठाते क्यों नहीं हो।
छोटा पतकार- सर, नहीं सर, मेरे पास तो कोई फोन नहीं आया।
पतकार- अनरीचेबल रहोगे तो फोन कैसे आएगा, सुनो आज यूनिवर्सिटी का चक्कर लगा लेना।
छोटा पतकार- पर सर, परसों ही गया था, कोई खबर नहीं मिलती।
पतकार- अरे मिकी (बहन) को घी का डिब्बा और फेयर एंड लवली पहुंचाना है, अब भी कह रहा हूं काम करना भी सीख लो, संपादक जी पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में, मैंने कहा ढीला है पर ठीक हो जाएगा।
छोटा पतकार- मन ही मन गाली देते हुए- ठीक है सर।
पतकार ने दो मिनट आंखें बंद कर सोचा
पतकार- और सुनो जो रेप हुआ है उसे पड़ोसियों से बुलवाओ कि लड़की- लौंडे से अपने घर पर मिलती थी, उनसे कहो कि नाम नहीं जाएगा किसी का।
छोटा पतकार- मन ही मन नई गाली देते हुए- ठीक है सर।
पतकार ने मन ही मन बजरंग बली को नमन किया और धांसू स्टोरी के आइडिए के बारे में सोचने लगा। सोचते-सोचते उसे एक झपकी आ गई और वह कुर्सी समेत लुढ़कते-लुढ़कते बचा। झटके से आंख खुली तो आंखें लगभग चमक रही थी, उसने कुंभ में तैनात दूसरे छोटे पतकार को फोन लगाया।
पतकार फिर से संपादकीय अंदाज में- हां, कुछ कर नहीं रहे हो, ऐसे काम चलेगा नहीं।
छोटा पतकार- अरे सर क्या करूं, ये बाबाओं का मेला है और आपको चाहिए मसाला।
पतकार- हम्मम। चलेगा तो वही, कितने बाबा दिखाओगे, ज्यादा बाबा किया तो लोग देखने आएंगे नहीं।
छोटा पतकार- सर आप ही बता दो क्या करूं।
पतकार- यार हम तो जब भी इलाहाबाद में गंगा घाट पर जाते थे वहां कोई न कोई महिला या लड़की नहाते दिख जाती थी और झीने कपड़ों में हो तो भीड़ लग जाती थी उसे देखने को। किसी घाट से ऐसी फोटो नहीं ला सकते हो तुम?
छोटा पतकार- अरे सर लेकिन...
पतकार- अरे यार कोई काम तो कर लिया करो, एक तो तुम्हें खबरों की समझ है नहीं ऊपर से बहस करते हो। आज तक मीडियम ही नहीं समझ पाए हो तुम, अखबार की तरह नहीं है ये मीडियम।
छोटा पतकार- सर किसी ने कैमरा छीन लिया तो, वैसे भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है।
पतकार- अरे यार तुम तो लोगों के लिए काम कर रहे हो ना, कोई रोके तो बोलना कि अपने घर के लिए थोड़ी ना कर रहे हैं, लोगों की डिमांड है उनके लिए कर रहे हैं। कल तक मुझे कम से कम तीन सौ फोटो चाहिए लड़कियों के नहाने की। चाहे कपड़ों में हो या बिना कपड़ों के, यहां हम ब्लर करके काम चला लेंगे। बाबा-साबा बहुत दिखा लिए। कुछ ढंग का काम करो।
पतकार ने सशरीर शांति ढूंढने की कोशिश की और कुंभ में नहाती लड़कियों के लिए हेडिंग भी ढूंढ ली- देखिए क्या हो रहा है संगम में, नहीं-नहीं....संगम में देखिए स्वीमिंग पूल की मस्ती..हां, ये जबरदस्त रहेगा। इसी बीच फोन घनघना उठा। नंबर देख वह फिर से गिरते-गिरते बचा। सीधे समूह संपादक जी का फोन था।
पतकार- जी सर, नमस्ते सर, आदेश सर
बड़ा संपादक- ये रेप वाली खबर कौन लगाया।
पतकार- सर मैंने लगाई, हटा दूं क्या
बड़ा संपादक- अगर हटानी थी तो लगाई क्यों
पतकार- जी..वो...
बड़ा संपादक- तुम्हें नहीं पता रेप पीड़ित का नाम और पहचान छुपाई जाती है।
पतकार- जी सर, वो लड़की खुद सामने आकर बोली है।
बड़ा संपादक- अरे यार... खट्टाक से फोन रखा
पतकार के हाथ-पांव फूल गए। तुरंत रेप पीड़ित की फोटो ब्लर की लेकिन बड़बड़ाना छूटा नहीं- फोटो ब्लर कर देंगे तो खबर देखेगा कौन, पता नहीं सर भी नहीं समझते हैं। ज्याद कुछ कहूंगा तो कह देंगे डेमो पिक लगाओ...
इसके बाद दिन भर पतकार ने दूसरा काम नहीं किया। दोपहर बाद तक पतकार की खबर खूब चली और पतकार ने 35 रुपये के सात समोसे खरीदे और संपादक समेत अपने छह सीनियरों को खिला दिए (चाय फ्री की थी ही)। शाम तक फ्री की पंद्रह-बीस चाय पीने और आधे समोसे के अलावा कुछ न खाने से पतकार के पेट में गैस बनने लगी थी, लेकिन संपादक जी से पहले घर तो नहीं ना जा सकता था। एक लिफ्ट भी मिली थी, लेकिन पतकार ने कह दिया- संपादक जी कहते हैं कि उनके साथ ही जाया करूं (हालांकि संपादक रिक्शे से जाता था और पतकार का घर ठीक उससे उलट था, लेकिन स्वामिभक्ति भी कोई चीज होते है कि नहीं)। इसी बीच उसने सोचा कि ऑफिस में ही हल्का हो लूं तो संपादक जी ने उंगली से इशारा किया कि चलो तो उसने प्रेशर को हैंडल करते हुए राम और हनुमान का नाम लिया और कमर कसकर घर की ओर निकल पड़ा। उसकी चाल में कुछ लंगड़ाहट थी और इसे देख जमाने ने अफसाना बना दिया।