Saturday, February 27, 2021

ईवीएम के जरिए लोकतंत्र पर डाका

 


क्या ईवीएम को लेकर भारत का चुनाव आयोग हम सभी से कोई बड़ा झूठ बोल रहा है? क्या ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग हम सभी से अभी तक कोई ऐसी बात छुपाता आया है, जिससे कि हमारे लोकतंत्र को कहीं न कहीं कोई बड़ा धक्का लग रहा है? ईवीएम को लेकर देश भर के लोगों के दिमाग में ढेरों सवाल चल रहे हैं, लेकिन अब ईवीएम को लेकर पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने बड़ा खुलासा किया है। आपको बता दें कि पूर्व आईएएस कन्नन गोपीनाथन ने ईवीएम पर इतना बड़ा खुलासा तकरीबन साल भर से अधिक के इंतजार के बाद किया है। बल्कि उनकी मानें तो जब वे सर्विस में थे, तभी से उनका इलेक्शन कमीशन के साथ इस मसले पर पत्राचार चल रहा है। चुनाव आयोग को उनके सवालों का जवाब देते नहीं बन रहा है। अब इधर उधर की बात बंद और सीधे ईवीएम पर हुए महाखुलासे की ओर चलते हैं। आपको बता दें कि जब मोदी सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था तो इसके विरोध में आईएएस अधिकारी रहे कन्नन गोपीनाथन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा है कि चुनाव आयोग बार-बार दावा करता है कि वीवीपैट यानी वो मशीन, जिससे कि वोट देने के बाद पर्ची निकलती है और ईवीएम के साथ किसी एक्सटर्नल डिवाइस यानी बाहरी मशीन को नहीं जोड़ा नहीं जाता। लेकिन ईवीएम और वीवीपैट बनाने वाली कंपनी बीइएल यानी भारत इलेक्ट्रिकल लिमिटेड के मैनुअल से यह शीशे की तरह साफ होता है कि वीवीपैट को ऑन करने के लिए किसी बाहरी लैपटॉप या कंप्यूटर की ज़रूरत होती है। कन्नन पूछते हैं कि अगर वीवीपैट स्टैंडअलोन डिवाइस है तो उसकी कमीशनिंग के लिए लैपटॉप या कंप्यूटर की ज़रूरत क्यों पड़ती है? कन्नन गोपीनाथन के इन सवालों से चुनाव आयोग का यह दावा संदेह के दायरे में आ गया है कि ईवीएम एक स्डैंडअलोन मशीन है, जिसे किसी बाहरी मशीन से नहीं जोड़ा जाता। ईवीएम के साथ वीवीपैट जोड़ने के पीछे 2012 में आया सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला है, जिसमें उसने कहा था कि लोगों के विश्वास के लिए ईवीएम के साथ वीवीपैट जोड़ा जाना चाहिए। उसके बाद से देश भर में होने वाले चुनावों में ईवीएम से वीवीपैट जोड़ने की कवायद चल रही है


आपको बता दें कि ईवीएम के बारे में चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर साफ साफ लिखा है कि ईवीएम एक स्टैंड अलोन डिवाइस है, यानी कि इसे चलाने के लिए किसी दूसरी डिवाइस की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा इसे किसी भी नेटवर्क से रिमोट से भी कनेक्ट नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग यह भी कहता है कि ईवीएम को चलाने के लिए किसी ऑपरेटिंग सिस्टम की भी जरूरत नहीं होती। इसलिए चुनाव आयोग यह दावा करता है कि ईवीएम से किसी भी तरह की छेड़छाड़ मुमकिन नहीं है। लेकिन कन्नन गोपीनाथन ने ईवीएम को लेकर जो सवाल खड़े किए हैं, वे चुनाव आयोग के इन दावों को धुंए की तरह उड़ा रहे हैं। पूर्व आईएएस कन्नन गोपीनाथन का कहना है कि चुनाव आयोग बार-बार दावा करता है कि वीवीपैट और ईवीएम के साथ किसी एक्सटर्नल डिवाइस यानी बाहरी मशीन को जोड़ा नहीं जाता, लेकिन ईवीएम और वीवीपैट बनाने वाली कंपनी बीइएलके यानी भारत इलेक्ट्रिकल लिमिटेड के मैनुअल में बिलकुल साफ साफ लिखा है कि वीवीपैट को शुरू करने के लिए बाहरी लैपटॉप या कंप्यूटर की ज़रूरत होती है। स्क्रीन पर आप जो कटिंग देख रहे हैं, वह खुद चुनाव आयोग के मैन्यूअल की है और जिसमें खुद आयोग डेस्कटॉप या लैपटॉप से कनेक्ट करने की बात करता है। कन्नन गोपीनाथन का कहना है कि इस हिसाब से तो फिर ज्यों ही ईवीएम से जुड़ी वीवीपैट मशीन लैपटॉप या कंप्यूटर से जुड़ती है, वैसे ही चुनाव आयोग का मशीन के स्टैंड अलोन के दावे में कहीं न कहीं एक सेंध जरूर लग जाती है। शनिवार को हुई कन्नन गोपीनाथन से हुई हमारी बातचीत में उन्होंने बार बार कहा कि इसका मतलब यह बिलकुल न समझें कि हम चुनाव पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हमें दिख रहा है कि कहीं न कहीं एक दरवाजा खुला हुआ है और हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि चुनाव आयोग कम से कम एक बार इसे चेक तो कर ले, हम सबको बता तो दे कि दरवाजा खुला है या बंद, या फिर अगर खुला था तो उसे बंद कर दिया गया है। 


वैसे बात सिर्फ मशीन को शुरू करने की होती, तो भी गनीमत थी। पूर्व आईएएस अधिकारी ने इसके लिए उपयोग में लाए जाने वाले एक एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर की भी पोल खोली है, जिसके बारे में चुनाव आयोग का दावा है कि ईवीएम को चलाने के लिए किसी ऑपरेटिंग सिस्टम की जरूरत नहीं होती। गोपीनाथन ने बताया है कि एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर के ज़रिए ईवीएम और वीवीपैट पर उम्मीदवारों के नाम और उनके चुनाव चिह्नों को लोड करने के लिए लैपटॉप का इस्तेमाल किया जाता है। और लैपटॉप या डेस्कटॉप बिना किसी ऑपरेटिंग सिस्टम के काम नहीं करता है। यानि ईवीएम से किसी न किसी हालत में एक ऑपरेटिंग सिस्टम कनेक्ट किया जा रहा है, क्योंकि उसके बगैर ईवीएम चलेगी ही नहीं। कन्नन ने ईवीएम-वीवीपैट मशीनों की मैन्युफैक्चरिंग और खरीद को लेकर भी सवाल उठाए हैं। कन्नन का कहना है कि चुनाव आयोग दावा करता है कि ये मशीनें बीइएल/इसीआईएल द्वारा बनाई जाती हैं, लेकिन उनका दावा है कि बीईएल की ई-प्रोक्योरमेंट साइट पर मशीन की पीसीबी समेत कई कंपोनेंट के लिए टेंडर मंगाए गए हैं। कन्नन ने सवाल उठाया है कि अगर उपकरणों का निर्माण बीइएल/इसीआईएल  द्वारा किया जाता है, तो पीसीबी के लिए टेंडर क्यों आमंत्रित किए गए? और अगर टेंडर जारी ही किए गए तो वह टेंडर किन कंपनियों को दिए गए, या किसी सरकारी कंपनी को दिए गए या प्राइवेट, इसकी जानकारी नहीं दी गई है। कन्नन जी ने इन सभी सवालों पर चुनाव आयोग से जवाब मांगे हैं। गोपीनाथन ने निर्वाचन आयोग के प्रवक्ता को ट्विटर पर टैग करते हुए लिखा है कि अगर मैं गलत हूं तो मुझे जवाब देने और गलत साबित करने की ज़िम्मेदारी आपकी है, ताकि मैं भ्रामक जानकारी न फैला सकूं और अगर मेरी बात में सच्चाई है, तो इसे संज्ञान में लेकर सुधार करना भी आपकी जिम्मेदारी है। कन्नन का कहना है कि चुनाव आयोग की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। 


जबकि इस मामले में और भी कई लोगों ने आरटीआई लगा रखी है, चुनाव आयोग उनको भी जवाब नहीं दे रहा है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में इलेक्शन कमीशन ने जो एफिडेविट दाखिल किया है, उसमें उसे ईवीएम को स्टैंड अलोन डिवाइस बता रखा है। कन्नन पूछते हैं कि अगर वह स्टैंड अलोन डिवाइस है तो वीवीपैट को जिस उम्मीदवार को वोट दिया, उसे छापने का कमांड कहां से मिलता है? इसका मतलब है कि ये कमांड उसमें कहीं न कहीं से फीड किया गया है। गोपीनाथन का दावा है कि पेपर ट्रेल मशीनों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को छेड़छाड़ की चपेट में ले लिया। आपको याद दिला दें कि साल 2017 के गोवा विधानसभा चुनावों के बाद से सभी ईवीएम के साथ मतदाता-सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल मशीनों का इस्तेमाल किया गया है। आम चुनाव के दौरान दादर और नगर हवेली में निर्वाचन अधिकारी रहे गोपीनाथ ने फरवरी 2019 में चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित ‘मैनुअल ऑन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वीवीपीएटी’ के नए संस्करण का हवाला देते हुए कहा है कि वो अभी भी अपने इस पक्ष पर कायम हैं, सिवाय इसके कि वीवीपैट के साथ हुए पहले चुनाव ने उनका भरोसा छीन लिया है। वीवीपैट ने ईवीएम कवच में एक छेद कर दिया है और इस प्रोसेस को हैकिंग के लिए रिस्पॉन्सिबल बना दिया है। कन्नन ने कहा कि अब ये चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वह मुझे गलत साबित करे। उन्होंने कहा कि अगर वे जनता के बीच में कुछ भी गलत शक डाल रहे हैं तो भी इलेक्शन कमीशन की जिम्मेदारी बनती है कि मुझे गलत साबित करे। मगर शायद राजनीतिक पार्टियां अभी तक इस पर कोई सवाल नहीं उठा रही हैं तो नागरिक के सवाल उठाने का शायद उनके यानी इलेक्शन कमीशन के लिए कोई मतलब नहीं है। लेकिन कन्नन ने ये जोर देकर कहा कि उनके कहे का यह मतलब बिलकुल भी ना निकाला जाए कि वे ये कह रहे हैं कि 2019 का चुनाव हैक हो गया था। 


ऐसा बिलकुल नहीं है। मगर हमने जो लूप होल दिखाया है, कम से कम उनको इसका तो जवाब देना चाहिए। एक दरवाजा खुल रहा है, जब आप ईवीएम को बाहरी डिवाइस यानी लैपटॉप या डेस्कटॉप से कनेक्ट करते हैं तो एक दरवाजा खुलता है। हम बस इतना कह रहे हैं कि एक बार उसे चेक करके हम सबको मुतमईन कर दिया जाए कि भाई दरवाजा बंद है। वहीं राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर एक बार फिर से गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस सिलसिले में पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन के उठाए प्रश्नों का समर्थन करते हुए चुनाव आयोग से उनका जवाब देने की मांग भी की है। कांग्रेस नेता ने कहा है कि कन्नन गोपीनाथन ने ईवीएम को लेकर जो खुलासे किए हैं, उनसे चुनाव आयोग के दावों पर सवालिया निशान लग गया है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि आयोग दावा करता रहा है कि ईवीएम एक स्डैंडअलोन मशीन है, जिसे किसी बाहरी मशीन से नहीं जोड़ा जाता, लेकिन कन्नन गोपीनाथ ने जो जानकारियां दी हैं, उनसे आयोग का यह दावा संदेह के दायरे में आ गया है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि चुनाव आयोग बार-बार दावा कर चुका है कि ईवीएम में वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप होती है, यानी एक ऐसी चिप जिसे एक ही बार प्रोग्राम किया जा सकता है, लेकिन ऐसी बहुत सी रिपोर्ट्स हैं, जिनमें दावा किया गया है कि वीवीपैट में मल्टी प्रोग्रामेबल चिप लगी है। मल्टी प्रोग्रामेबल चिप का मतलब है ऐसी चिप जिसे बार-बार प्रोग्राम किया जा सकता है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि अगर ऐसा है तो इसका यह भी मतलब हो सकता है कि कंट्रोल यूनिट को मैसेज देने का काम वीवीपैट से किया जाता है, बैलेट यूनिट से नहीं। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि निर्वाचन आयोग को कन्नन गोपीनाथन के उठाए गंभीर सवालों का जवाब ज़रूर देना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कहा कि कन्नन खुद चुनाव संपन्न कराने की प्रक्रिया में शामिल रह चुके हैं। ऐसे में निर्वाचन आयोग को उनकी शंकाओं का जवाब जरूर देना चाहिए, लेकिन क्या आयोग जवाब देगा? ये तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा।

Tuesday, February 16, 2021

रंजन गोगोई : पाप इतने कि सदियां भुगतेंगी


अक्टूबर 2018 में जब रंजन गोगोई सीजेआई बने तो उनके सामने राफेल लड़ाकू जहाजों का मामला आया। नरेंद्र मोदी ने फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन से 36 लड़ाकू जहाज खरीदने के लिए सौदा किया था। रंजन गोगोई के नेतृत्व में तीन जजों की बेंच ने भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच हुए समझौते से रिलेटेड चार याचिकाएं सुनीं. विपक्ष का आरोप था कि सरकार ने इन जहाजों की कीमत जानबूझकर इतनी बढ़ाई कि जिससे इस सौदे से जो लोग जुड़े हैं, उनके बेवजह का फायदा मिल सके. इस मामले में गोगोई ने ट्रांसपेरेंसी की हर थ्योरी सुप्रीम कोर्ट के गेट नंबर दो पर लगे कूड़ेदान में फेंक दी और इन जहाजों के दाम से रिलेटेड सारी जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में मंगा ली। इसके बाद उन्होंने एयरफोर्स के अफसरों के साथ एक अनौपचारिक मीटिंग की और फिर सारी याचिकाएं खारिज कर दीं. इनकी अंधेरगर्दी तो ये कि इन्होंने राफेल से जुड़े अंतिम फैसले में सीएजी की एक रिपोर्ट का हवाला दिया। कैग की ऐसी रिपोर्ट, जो न तो उस वक्त तक संसद में पेश की गई थी और न ही पब्लिकली अवेलबल थी. एक तरह से वह फर्जी रिपोर्ट थी। गोगोई ने अपने फैसले में कहा कि हमारे सामने जो चुनौती है उसकी छानबीन हमें राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में करनी होगी क्योंकि इन जहाजों को हासिल करने का मामला देश की संप्रभुता की नजर से बेहद इम्पॉर्टेंट है. पूरी दुनिया राफेल का रेट जानती है, बस गोगोई साहब नरेंद्र मोदी की ही तरह यही चाहते थे कि बस भारत के लोग इसका रेट ना जानें।

दूसरे नंबर पर है कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मामला

5 अगस्त, 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किया जाता है. इसके बाद समूचे कश्मीर की जनता को अनिश्चित काल के लिए लॉकडाऊन में डाल दिया, इंटरनेट बंद कर दिया और हर तरफ बड़ी बड़ी बंदूकें लेकर जवान लगा दिए। फिर पूरे राज्य भर में गिरफ्तारियां की गईं, लोगों को नजरबंदी में रखकर उनकी जो यातना शुरू हुई, वो अभी तक जारी है। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर हुईं. दोनों याचिकाओं पर गोगोई की ही बेंच ने सुनवाई की और अगर कहें कि कुछ भी नहीं सुना तो कोई मायूब बात नहीं होगी। एक याचिका तो उन्होंने दायर होने के बाद 18 दिनों तक सुनवाई के लिए लिस्ट ही नहीं की. जब लिस्ट में डाला, तो भी गोगोई ने केंद्र को न तो कोई नोटिस भेजा और न यह जानने की कोशिश की कि लोग गैरकानूनी ढंग से हिरासत में रखे गए हैं या नहीं. उलटे उन्होंने याचिकाकर्ताओं को कहा कि वे बंदियों से कश्मीर में जाकर मिलें. और वापस लौटने पर वे अपनी वहां की यात्रा के बारे में एक हलफनामा यहां जमा करें. 

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने जब सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह उन्हें अपनी मां से मिलने की इजाजत दे, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से ही हिरासत में रखा गया है. तो गोगोई बोला कि अगर वहां के स्थानीय सरकारी अधिकारी मानेंगे, तभी वे अपनी मां से मिल सकती हैं। अदालत में ही गोगोई ने इल्तिजा मुफ्ती से पूछा कि तुम श्रीनगर में घूमना क्यों चाहती हो? आजकल तो वहां बहुत ठंड है. इस बात पर तो गोगोई साहब, एक गंदी सी गाली मेरी तरफ से स्वीकार करें, जो मैं नहीं बक रहा हूं और इस अपराध में मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं। शर्म तो आपको नहीं आती, मगर हमें आती है कि हमें ऐसा जज मिला, जो बच्चे को मां से ना मिलने दे। इतना अमानवीय? खैर, इसी तरह की गंदगी उन्होंने इंटरनेट पर रोक की याचिका पर भी फैलाई. कश्मीर टाइम्स अखबार की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने एक याचिका दाखिल की जिसमें राज्य में खबरों पर लगाई गई पाबंदी को चुनौती दी गई थी. याचिका दायर किए जाने के पांच महीने बाद गोगोई ने फैसला तो दिया, मगर इंटरनेट पर लगी रोक नहीं हटाई। ऐसे ही कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को इस शर्त पर श्रीनगर जाने दिया कि वो अपनी यात्रा में न तो किसी राजनीतिक रैली में जाएंगे और न कोई पॉलिटिकल एक्टिविटी करेंगे. जम्मू कश्मीर में नाबालिगों को हिरासत में रखने को चुनौती देने से वाली याचिका में भी गोगोई ने खूब टाल-मटोल की. बाद में गोगोई ने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को कहा कि वह एक रिपोर्ट भेजें कि क्यों उनकी अदालत तक पहुंचना मुश्किल है. इसके बाद उन्होंने अवैध रूप से जेल में बंद अपने बच्चे को तलाशते याचिकाकर्ता को धमकाया कि अगर जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट से यह संकेत मिलता है कि आपने जो कहा वह गलत है तो इसके नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहिए. 

तीसरा है बाबरी मस्जिद राम मंदिर मामला



अयोध्या में बाबरी मस्जिद वर्सेस राम मंदिर विवाद में गोगोई साहब ने तो शायद कायदे कानून की हर किताब फाड़कर सुप्रीम कोर्ट के पास ही मौजूद हैदराबाद हाउस में ले जाकर जला दी। इस महाविचित्र फैसले में गोगोई साहब ने बताया कि राम की मूर्तियों को अवैध ढंग से विवादित स्थल में रखा गया और बाबरी मस्जिद का ध्वस्त किया जाना भी अवैध था. मुस्लिमों के खिलाफ किए गए इन अवैध कृत्यों को मानने के बावजूद कोर्ट ने यह आदेश दिया कि भले वहां मस्जिद रही हो, मगर अब राम मंदिर बनेगा। और हरजाने के तौर पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में किसी अन्य स्थान पर पांच एकड़ जमीन दी जाए. इस पर टूजी मामले में फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटार्यड जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पीढ़ियों ने वहां मस्जिद देखी. उसे तोड़ा गया. उन्होंने पूछा कि कैसे इस फैसले में कहा गया कि अगर किसी जगह नमाज पढ़ी जाती है तो किसी उपासक का इस विश्वास को खारिज नहीं किया जा सकता कि वह जगह मस्जिद है. चलो 1856-57 में वहां नमाज नहीं पढ़ी जा रही थी, पर 1949 में तो पक्का पढ़ी जा रही थी. इसका सबूत भी है. तो जब हमारा संविधान लागू हुआ, उस वक्त वहां नमाज पढ़ी जा रही थी. अगर किसी जगह नमाज पढ़ी जाती है और उस जगह को मस्जिद माना जाता है। ऐसे में यह फैसला संविधान को तोड़ देता है। इंडिया टुडे की ना सही, किसी कॉन्क्लेव में गोगोई साहब क्या कभी बताएंगे कि संविधान को तोड़ने का अधिकार वो कहां से लेकर आए?

और अगला, यानी कि चौथा है पोस्टिंग प्रमोशन का मामला

जब गोगोई चीफ जस्टिस थे, तब उनकी निगरानी में ढेरों कंट्रोवर्सियल पोस्टिंग्स हुईं. पहले सौमित्र सैकिया को गौहाटी हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनाया, जो किसी जमाने में गोगोई के जूनियर थे. इसी तरह जज सूर्यकांत की नियुक्ति की गई, जिनके बारे में हमने पहले भी बताया था कि अब सुप्रीम कोर्ट में प्रॉपर्टी डीलर जज आ रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत पर भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के भी आरोप थे. ऐसे ही संजीव खन्ना की नियुक्ति की गई और यह नियुक्ति करते वक्त कोलेजियम की उस रिकमेंडेशन की अनदेखी की गई जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट में खन्ना के सीनियर प्रदीप नंदराजोग को प्रमोट करने बात कही गई थी. इसी तरह दिनेश माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट में एंट्री मिली, जबकि उन पर आरोप थे कि वे कार्यपालिका के प्रभाव में काम करते हैं. गोगोई पर अपने बचपन के दोस्त और कलीग अमिताभ राय की पोस्टिंग में देर लगाने का भी आरोप है. जिससे दोनों की पदोन्नतियां एक साथ न हो सकें.  2000 में दोनों के नामों की सिफारिश साथ-साथ हुई. 2001 में गोगोई  जज बन गए और अमिताभ राय इसके 17 महीनों बाद जज बने. अगर फाइलें साथ-साथ चली होतीं, तो कुल मिला कर अमिताभ राय गोगोई से सीनियर हो जाते और तब शायद अमिताभ राय भारत के चीफ जस्टिस के पद से और गोगोई गौहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होते. कहते हैं कि तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली और गोगोई  बड़े अच्छे दोस्त थे और जेटली ने ही गोगोई को कहा था कि अमिताभ राय कभी भी गोगोई से सीनियर नहीं होंगे. अपने बचपन के मित्र के साथ ऐसा सुलूक करने वाला किस तरह का व्यक्ति हो सकता है, आप सभी ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं।  

 


और आखिरी यानी पांचवा है सीएए / एनआरसी का मामला

 अगर पूछें कि गोगोई ने मोदी शाह की जोड़ी को ऐसा कौन सा तोहफा दिया, जो राम मंदिर मुद्दे से कहीं ज्यादा बड़ा है तो उसका सिर्फ और सिर्फ एक ही जवाब है, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी। राम मंदिर के बाद बीजेपी इसी में अपना राजनीतिक भविष्य देख रही है। अक्टूबर 2013 से अक्टूबर 2019 तक गोगोई ने एनआरसी के कई मामलों की सुनवाई की. उनके जरिए उन्होंने एक खाका तैयार किया जिससे राज्य में विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जा सके. इसके लिए उन्होंने जो तरीका सुझाया वह इतना भयानक था कि जिसमें गड़बड़ी होनी तय थी और इसकी वजह से लाखों भारतीयों की नागरिकता जाने का खतरा था. सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने राज्य के डिटेंशन सेंटर्स की अमानवीय हालत के खिलाफ एक याचिका लगाई, पर गोगोई के चलते नतीजा सिफर रहा। फिर हर्ष मंदर ने कहा कि गोगोई को इस मामले की सुनवाई से अलग किया जाए। इसकी वजह उन्होंने बताई कि सुनवाई के दौरान गोगोई का व्यवहार पूरी तरह से पूर्वाग्रह ग्रस्त है. हर्ष मंदर की यह याचिका भी खारिज कर दी गई. मोदी सरकार ने कुछ आदेश पारित किए, जिसमें भारत में प्रवेश के लिए जो नियम तैयार किए गए उसमें धार्मिक भेदभाव को भी जोड़ दिया गया.  नागरिकता संशोधन कानून पारित किया, जिसमें इस बात का प्रावधान है कि गैर मुस्लिम समुदायों के अधिकांश लोगों के लिए अब नागरिकता लेना आसान हो जाएगा. गोगोई के ही चलते सीएए और देशव्यापी एनआरसी का खतरा भारत के लगभग बीस करोड़ मुसलमानों सहित 50 करोड़ से अधिक एससी, एसटी ओबीसी और आदिवासियों की नागरिकता पर मंडराने लगा है।