इंसानियत का तकाजा
शंभु रैगर याद है? वही, जिसने एक मासूम मजूदर को कुल्हाड़ी से सिर्फ इसलिए काट डाला, क्योंकि वह मुसलमान था। उस वक्त उसके जैसे कुछ एक लोगों ने दम भरने की कोशिश की, लेकिन वे चुप इसलिए हो गए, क्योंकि हममें से किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। हम ऐसे लोगों का साथ दे भी नहीं सकते। कैसे दे सकते हैं? क्या हमारे संस्कार ऐसे हैं? क्या हमारे मां-बाप ने हमें हत्या करना या हत्यारों का साथ देना सिखाया है या फिर क्या हममें से किसी का भी धर्म ये करना सिखाता है? फिर कोई शंभु रैगर न बने, इसलिए उस वारदात के बाद बहुत सारे मां-बाप ने अपने बच्चों को लेकर अतिरिक्त सावधानी भी बरतनी शुरू कर दी। एक हत्या ने समूचा देश हिला दिया था, लेकिन हममें से किसी ने उसके परिवार के बारे में गलत नहीं सोचा।
अखलाक याद है? वही, जिसे दादरी में गोरक्षक होने का झूठा दावा करने वाले लोगों ने घर में घुसकर जान से मार डाला था। गुंसाई इंसान नहीं मारते। हम उन हत्यारों का नाम और गांव जानते हैं। हममें से किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि उनका गांव खत्म कर देंगे। सभी सुरक्षित हैं, पूरा गांव वहीं है और सभी उतने ही भारतीय हैं, जितने कि हम-आप हैं। बुलंदशहर वाले शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार याद हैं? हमें पता है कि हत्यारे कौन हैं और यह भी कि हत्याएं करते जाने की यह अक्ल कौन दे रहा है। लेकिन क्या हमने सबको खत्म करना शुरू कर दिया? नहीं। हम ऐसा कभी भी नहीं कर सकते। संविधान तो है ही, लेकिन संविधान के पहले तो हम सब इंसान हैं। हम सभी इंसानियत के रास्ते ही आगे बढ़ते आए हैं। हैवानियत तो हमारी तरक्की तोड़ देती है।
अभी पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और हमारे बच्चे बेमौत मारे गए। हम सब बेहद दुखी हैं। हमें प्रतिकार चाहिए। कुछ भटके लोग मासूम कश्मीरी बच्चों पर हमला कर रहे हैं। चीखते हैं कि सारे कश्मीरी आतंकवादी हैं। फिर अगर कोई पूछे कि शंभू रैगर या दादरी का वह पूरा गांव आतंकवादी है? या बुलंदशहर में जिसने इंस्पेक्टर सुबोध को मारा, वह तो पूरा गांव लेकर आया था- सारे आंतकवादी हैं? नहीं। एक की वजह से गांव बदनाम तो होता है, पर खराब नहीं होता। उत्तर प्रदेश और राजस्थान की ही तरह भटके लोग कश्मीर में भी हैं। इसका मतलब यह नहीं कि सबको खत्म कर देंगे। दुख की इस बेला में वैसे तो अक्ल की बात करना बेमानी है, लेकिन इंसानियत की बात हर हाल में कही जाएगी। कश्मीरियों पर हमले बंद करिए। तुरंत। वे हमारे अपने हैं। और कोई भी कश्मीरी अगर दुख में पागल हो चुके किसी दूसरे भारतीय से डर रहा है, मेरे घर आए। मैं नोएडा में रहता हूं।
अखलाक याद है? वही, जिसे दादरी में गोरक्षक होने का झूठा दावा करने वाले लोगों ने घर में घुसकर जान से मार डाला था। गुंसाई इंसान नहीं मारते। हम उन हत्यारों का नाम और गांव जानते हैं। हममें से किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि उनका गांव खत्म कर देंगे। सभी सुरक्षित हैं, पूरा गांव वहीं है और सभी उतने ही भारतीय हैं, जितने कि हम-आप हैं। बुलंदशहर वाले शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार याद हैं? हमें पता है कि हत्यारे कौन हैं और यह भी कि हत्याएं करते जाने की यह अक्ल कौन दे रहा है। लेकिन क्या हमने सबको खत्म करना शुरू कर दिया? नहीं। हम ऐसा कभी भी नहीं कर सकते। संविधान तो है ही, लेकिन संविधान के पहले तो हम सब इंसान हैं। हम सभी इंसानियत के रास्ते ही आगे बढ़ते आए हैं। हैवानियत तो हमारी तरक्की तोड़ देती है।
अभी पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और हमारे बच्चे बेमौत मारे गए। हम सब बेहद दुखी हैं। हमें प्रतिकार चाहिए। कुछ भटके लोग मासूम कश्मीरी बच्चों पर हमला कर रहे हैं। चीखते हैं कि सारे कश्मीरी आतंकवादी हैं। फिर अगर कोई पूछे कि शंभू रैगर या दादरी का वह पूरा गांव आतंकवादी है? या बुलंदशहर में जिसने इंस्पेक्टर सुबोध को मारा, वह तो पूरा गांव लेकर आया था- सारे आंतकवादी हैं? नहीं। एक की वजह से गांव बदनाम तो होता है, पर खराब नहीं होता। उत्तर प्रदेश और राजस्थान की ही तरह भटके लोग कश्मीर में भी हैं। इसका मतलब यह नहीं कि सबको खत्म कर देंगे। दुख की इस बेला में वैसे तो अक्ल की बात करना बेमानी है, लेकिन इंसानियत की बात हर हाल में कही जाएगी। कश्मीरियों पर हमले बंद करिए। तुरंत। वे हमारे अपने हैं। और कोई भी कश्मीरी अगर दुख में पागल हो चुके किसी दूसरे भारतीय से डर रहा है, मेरे घर आए। मैं नोएडा में रहता हूं।
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