Wednesday, January 30, 2019

खजुराहो की इस तस्वीर को कैसे देखें


(चेतावनी- अगर आप प्रेम में नहीं हैं, या फिर जीवन में आप कभी प्रेम में नहीं रहे हैं तो इस तस्वीर को न देखें। इसलिए नहीं कि तस्वीर समझ में नहीं आएगी, इसलिए क्योंकि इसके भावों में उतर पाना उसी के लिए मुमकिन है, जो ऐन उसी भाव में रहा है, जिसकी कि यह एक भंगिमा है।) 

संदर्भ : खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर के एक दर्जन से अधिक कोने है और हरएक कोने में स्त्री-पुरुष के प्रगाढ़तम प्रेम की भंगिमाएं बनी हुई हैं। यह तस्वीर प्रेम का उद्दीपक है, बोले तो प्रेम की शुरुआत। खजुराहो में कामकला की प्रत्यक्ष मूर्तियां कामसूत्र से कॉपी की गई हैं, लेकिन इन दर्जन भर कोनों में जो मूर्तियां हैं, वे कामसूत्र को बहुत ज्यादा फॉलो नहीं करतीं। कोने की अधिकतर मूर्तियों में ठीक उसी तरह का झटपट प्रेम दिखता है, जैसा कि हम सभी कोने में घुसकर करते हैं।

प्रसंग : स्त्री सजी हुई है, पुरुष भी। दोनों ने यथासंभव श्रृंगार कर रखा है और एक दूसरे को आकर्षित करने के लिए गले में रत्नजड़ित माला, हाथ में मोटे बाजूबंद पहन रखे हैं। पुरुष ने कमर में रत्नजड़ित कमरबंद बांध रखा है जो शायद हथियार बांधने के भी काम में आता होगा। पुरुष के बाल बड़े हैं जिन्हें उसने सिर के ठीक ऊपर जूड़ा बनाकर बांधा हुआ है। हो सकता है कि उसी जूड़े पर उसने एक मुकुट भी पहना हो। स्त्री ने भी लगभग उसी अंदाज में जूड़ा बांध रखा है। जिस तरह से दोनों तैयार हो रखे हैं, हो सकता है कि दोनों मैटिनी शो देखने जा रहे हों और ये भी हो सकता है कि मैटिनी शो उन्हें दिखने के लिए खुद उनके पास आ रहा हो। स्त्री के जेवर ही उसके वस्त्र हैं, तो पुरुष ने अपनी पीठ पर कपड़े का लंबा लबादा टांग रखा है, जो कुछ-कुछ रोमन साम्राज्य के राजाओं के लबादे से मिलता है। समय के साथ साथ पुरुष का पुरुषत्व टूट चुका है, लेकिन स्त्री का स्त्रीत्व अभी तक कायम है।

भावार्थ : दोनों बहुत खुश हैं। लगभग हजार साल बाद भी दोनों के चेहरे पर प्रेम की वही गर्मी अभी तक बनी हुई है, जो हजार साल पहले उठी थी। प्रेम की इसी गर्मी से स्त्री का चेहरा भर आया है और गाल थोड़े से और गोल हो गए हैं। यही गर्मी पुरुष के भी चेहरे पर है, लेकिन उसमें काम तत्व अधिक दिख रहा है, इसलिए वह प्रेम में स्त्री जितना नहीं  बह रहा, उसका चेहरा गर्म तो है, लेकिन नियंत्रित है और गंभीर भी। दाहिने हाथ की तर्जनी से वह स्त्री की ठोड़ी थोड़ा ऊपर उठा रहा है कि उसके अंदर वह थोड़ा सा और उतर सके और उसे अपने अंदर थोड़ा सा और उतार सके। देखना महज देखना नहीं होता, वह पीना भी होता है, उतरना भी होता है, उतारना भी होता है और जज्ब करना भी होता है। देखा कैसे जाता है, यह हम इस तस्वीर में देखकर आसानी से सीख सकते हैं। पुरुष स्त्री को खुद में जज्ब कर रहा है, जबकि दैहिक रूप से यह काम स्त्री का माना जाता है। लेकिन यही तो प्रेम होता है जो स्त्री पुरुष की सभी मान्य अवधारणाएं तोड़कर छिन्न भिन्न कर देता है। इस तस्वीर में पुरुष भले ही पुरुष दिख रहा है, लेकिन वह पूरी तरह से स्त्री बन चुका है और जो कुछ भी है, सब अपने अंदर भर लेना चाह रहा है। वहीं स्त्री जानती है कि वह इसी रास्ते से पुरुष के अंदर जा रही है, घर बना रही है, विजय पा रही है। विजय के इस आनंद में स्त्री की आंखें बंद हो चुकी हैं, नाक फूल चुकी है और होंठ एक प्रगाढ़ चुंबन के लिए आधे खुलकर ऊपर की ओर उठ चुके हैं। स्त्री जानती है कि चुंबन शुरुआत नहीं, बल्कि देखने का और पुरुष पर विजय पाने का अंत ही होगा क्योंकि फिर देखना खत्म होकर महसूसना शुरू हो जाएगा। लेकिन स्त्री महसूसने तक जाना चाहती है, इसीलिए वह अपनी कमर का दाहिना हिस्सा पुरुष की बाईं टांग से रगड़ रही है। स्त्री के स्तन गोल हैं, कामोत्तेजक हैं, फिर भी पुरुष उसके चेहरे में ही फंसा हुआ है तो इसका एक अर्थ ये भी हो सकता है कि तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नजारे हम क्या देखें? ये तस्वीर हमें बताती है कि अंत पंत में हमारी पर्सनालिटी का सबसे बड़ा हिस्सा हमारे गुप्तांग नहीं होते, बल्कि हमारा चेहरा होता है, प्रेम होता है और स्त्री पुरुष के बीच हमेशा बनी रहने वाली गर्मी होती है।

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