बीजेपी, फेसबुक और महान भारतीय लोकतंत्र का गैंगरेप- Part-1
कई बार आपने देखा होगा कि जो लोग फेसबुक पर गाली गलौज करते हैं, अश्लील हरकतें करते हैं, कितनी बार भी आप उनकी रिपोर्ट कर दें, फिर भी वो यह सब करते रहते हैं। कई बार तो कई कई बार उनकी रिपोर्ट करने के बावजूद वो दुगनी बेशर्मी से यह सब करने में लग जाते हैं और हम सब यूं ही गालियां खाते रह जाते हैं। लेकिन अगर हमने बगैर गाली दिए, या बगैर कोई गलत शब्द कहे उन्हें कुछ कह दिया तो उल्टे हमीं लोग फेसबुक पर ब्लॉक हो जाते हैं। फेसबुक हमसे कई तरह की आईडी जमा कराता है, कई तरह के पासवर्ड और कई तरह के फॉर्म। तब कहीं जाकर हमारी आईडी खुलती है और हमें उस काम की सजा मिलती है, जो हमने किया ही नहीं। यही चीजें अपने चेहरे का रंग नीले से हरा करते हुए व्हाट्सएप्प पर हमारे सामने होती हैं और अपना चेहरा सफेद करके इंस्टाग्राम पर भी होती हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि सोशल मीडिया पर एक ट्रॉल आर्मी है जो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक के लिए काम करती है। यह ट्रॉल आर्मी हर उस यूजर को, यानी जो कोई भी सोशल मीडिया यूज कर रहा है, अगर वह सत्ता समर्थक नहीं है और विरोध में कानून के दायरे में रहकर कुछ भी कह रहा है या कर रहा है, उसे टारगेट बना लेती है। टारगेट बनाने के बाद यह बेहद बुरी बुरी गालियों के साथ उसपर अटैक करती है और कुल मिलाकर उसकी इज्जत से खिलवाड़ करने में जुट जाती है। जिसे यह गालियां देती है, इसी ट्रॉल आर्मी का एक हिस्सा उसपर फेक यानी कि नकली खबरें तैयार करता है और सोशल मीडिया पर वायरल करता है।
मगर एक मिनट। माफ करिए लेकिन सोशल मीडिया पर चीजों को वायरल करना ट्रॉल आर्मी का काम नहीं है। यह काम है खुद फेसबुक का, खुद मार्क जकरबर्ग का, जिसने इसके लिए अलग से पूरा एक ऑफिस बना रखा है। फेसबुक का यह ऑफिस इस ट्रॉल आर्मी को हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देता है। इसी तकनीकी मदद के बल पर ट्रॉल आर्मी बेखौफ होकर लोगों के साथ गाली गलौज करती है, फेक न्यूज फैलाती है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी यानी कि भारतीय जनता पार्टी की जो ट्रॉल आर्मी है, उसे हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देने के लिए मार्क जकरबर्ग ने अमेरिका के वॉशिंगटन में भरा पूरा ऑफिस खोल रखा है। इस ऑफिस की इंचार्ज हैं केटी हरबाथ।
कैंब्रिज एनालिटिका, व्लादीमीर पुतिन और डॉनल्ड ट्रंप के साथ गैंग बनाकर अमेरिकी चुनाव में वोटर्स के साथ खेल करते हुए फेसबुक के मार्क जकरबर्ग जब रंगे हाथों पकड़े गए तो कहने लगे कि फेसबुक का किसी के भी साथ भी किसी तरह का कोई राजनीतिक गठजोड़ नहीं हैं। फेसबुक अपने सभी यूजर्स को राजनीति का बराबर मौका देता है। लेकिन मार्क जकरबर्ग बड़ी चालाकी से यह छुपा गए कि उनकी कंपनी दुनिया भर की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है। और जिनके साथ वह काम करती है, हम सभी जानते हैं कि उनके पास मौजूद ट्रॉल आर्मी किस तरह की फेक न्यूज फैलाती है और किस तरह का जहर लोगों के दिमाग में भर रही है। इतना ही नहीं, कंपनी बाकायदा अपने बिजनेस पेज पर इसका प्रचार प्रसार भी करती है कि वह कैसे लोगों को लांच कराती है या प्रोडक्ट लांच कराती है। या फिर कैसे फटाफट वह ब्लू मार्क दिलाती है। आप फेसबुक पर सालों टिक टुक करते रह जाएंगे, आपको यह कभी नहीं मिलेगा, लेकिन अगर आपके मोहल्ले का सभासद बीजेपी से होगा तो वह दो चार दिन में ये ब्लू मार्क लेकर के मोहल्ले के ही ग्रुपों में रौब गांठता फिरेगा।
तो फेसबुक के जिस नंगेपन के बारे में मार्क जकरबर्ग ने पूरी बेशर्मी से पर्दा डाला, वह है फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट। फेसबुक के बिजनेस पेज पर दावा है कि यह पूरी तरह से न्यूट्रल है और उन सभी के साथ मिलकर काम करती है जो पॉवर यानी कि शक्ति यानी कि बेइंतिहा ताकत के तलबगार हैं। मगर सिर्फ तलबगार होने से काम कैसे चलेगा? पीछे अंबानी जी और अडानी जी भी तो चाहिए होते हैं। अमेरिका हुआ तो पीछे टॉमी हिलफिगर जी चाहिए होते हैं, या पाकिस्तान हुआ तो? इमरान खान ने किसके बल पर छक्का मारा है, आप बताइए, ये आपके सामान्य ज्ञान का बड़ा ही सामान्य सा टेस्ट है। बहरहाल, इस फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम की हेड हैं केटी हरबाथ। केटी हरबाथ पहले अमेरिकी रिपब्लिक पार्टी की डिजिटल रणनीति बनाती थीं। कभी न्यूयॉर्क के मेयर रहे और अब ट्रंप के खासमखास बने रूडी जुलियानी के लिए इन्होंने सन 2008 में प्रेसीडेंसियल कैंपेन चलाई थी। सन 2014 में मार्क जकरबर्ग ने इन्हें अपने यहां नौकरी पर रख लिया और फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम का चीफ बना दिया। तब से केटी हरबाथ अपनी टीम के चुनिंदा लोगों के साथ दुनिया भर के नेताओं से मिलकर शातिर गठजोड़ बनाने में लगी हैं। ऊपरी तौर पर उनका दावा है कि वह अपने पॉलिटिकल क्लाइंट्स को कंपनी के पॉवरफुल डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करना सिखाती हैं।
केटी हरबाथ के कनेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्याय और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद से तो हैं ही, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के चीफ सहित वहां के और दूसरे मंत्रालयों के छह हजार दूसरे अधिकारियों से भी हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में, चाहे वह भारत हो या ब्राजील, जर्मनी हो या ब्रिटेन, केटी हरबाथ जैसे ही किसी नेता के साथ चुनावी कॉन्ट्रैक्ट साइन करती हैं, उनकी टीम के लोग उस नेता के साथ उसके कैंपेन वर्कर्स की तरह जुड़ जाते हैं। वे उस नेता के लिए हर तरह का कानूनी और गैरकानूनी काम करते हैं। ज्यादातर तो वे गैरकानूनी काम ही करते हैं जिसपर पर्दा नेता के चुनाव जीतने के बाद उसके देश के सरकारी अधिकारी ही डाल देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही फेसबुक समर्थित नेता चुनाव जीतता है, केटी हरबाथ की टीम तुरंत उसके पास पहुंचकर उसके सरकारी कर्मचारियों को हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देना शुरू कर देती है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात करें तो कर्मचारियों को क्या करना है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात कहें तो कर्मचारियों या अधिकारियों को क्या कहना है। और जैसे कि जब नेता जी के मन की बात का झूठ पकड़ा जाए तो अधिकारियों को फटाफट लीपापोती कैसे करनी है।
अमेरिका के चुनाव में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और कैंब्रिज एनालिटिका के साथ गैंग बनाकर साजिश करने के आरोप में जब फेसबुक पकड़ा गया तो अमेरिकी संसद ने मार्क से पूछा कि बताओ भैया, जब अमेरिका में चुनाव हो रहा था तो तुम्हारे खाते में रूस से इतना ढेर सारा पैसा कहां से आया? आपको बता दें कि अमेरिकी चुनाव के वक्त रूसी विज्ञापनों से फेसबुक की इनकम में दो चार दस या बीस नहीं, सीधे सेवेंटी नाइन पर्सेंट का इजाफा हुआ था और इस इजाफे की एकमात्र वजह रूस से मिलने वाले विज्ञापन थे। यह विज्ञापन अमेरिकी नामों से चलाए जा रहे थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने ऐसे दर्जनों फर्जी विज्ञापन पकड़े हैं जो ट्रंप को जिताने से लेकर जनता को भरमाने का काम पूरे धड़ल्ले से कर रहे थे। मार्क जकरबर्ग ने अभी इन विज्ञापनों से मिलने वाले पैसे का न तो हिसाब दिया है और न ही अमेरिकी संसद के इस सवाल का जवाब दिया है कि इतना ढेर सारा पैसा उनकी जेब में आखिर आया कहां से? उल्टे वह तो इस कोशिश में ही लगे रहे कि कैसे भी करके इस मामले पर पर्दा डाल दिया जाए। हमारे न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद फेसबुक को बड़ी मीठी मीठी धमकियां देते हैं, पर क्या कभी किसी ने सुना कि सन 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने फेसबुक को कितना पैसा दिया? कभी मार्क जकरबर्ग का कान पकड़कर कोर्ट के कटघरे में खड़ा करके किसी ने उस तरह से पूछने की हिम्मत की जैसे अमेरिकी संसद ने इस धोखेबाज को इन दिनों घुटने पर बैठा रखा है? वैसे अपने लालाजी ऐसी हिम्मत करेंगे ही क्यों जब केटी हरबाथ जब चाहें, उनके बगल आ बैठती हैं
और उन्हें 2019 के चुनावों में जीतने का सब्जबाग दिखाने लगती हैं। इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के हर सांसद से कहा है कि हर एक सांसद के फेसबुक पेज को कम से कम तीन लाख जेनुइन लाइक्स करने वाले होने चाहिए वरना टिकट मिलना मुश्किल है। यह बयान भले ही हमारे मोदी जी के मुखारबिंद से निकला है, लेकिन सप्लाई फेसबुक की ओर से ही हुआ है। फेसबुक का पेज लाइक रेट पर लाइक अस्सी पैसे से ढाई रुपये के बीच बैठता है। सन 2014 के इलेक्शन में बीजेपी के 355 उम्मीदवार सांसद बने थे। मोदी का यह आदेश चुनाव के चार साल बाद का है। चुनाव के बाद रकम कम लगती है, और चार साल बाद तो और भी कम रकम लगती है, इसलिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव के वक्त बीजेपी ने फेसबुक को कितने पैसे दिए होंगे। अंदाजा ही लगाना पड़ेगा क्योंकि आप चाहे जितने घोड़े दौड़ा लें, बीजेपी आपको चुनावी खर्च का असल ब्योरा नहीं देगी। और फिर ये अमेरिका भी नहीं कि वहां की तरह यहां भी जो चाहे, सबूतों के साथ राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, उसे कटघरे में लाकर खड़ा कर दे। जस्टिस बृज गोपाल लोया की हत्या के मामले में हम सबने देखा कि कैसे सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक गुजराती तड़ीपार को बचाने के लिए खड़ा हो गया था। अपने देश में हमारी औकात इतनी भी नहीं है कि हम अपने एक जज की हत्या की सिर्फ जांच करा सकें, उसके हत्यारों को सजा दिलाना तो बहुत दूर की बात है।
कभी फेसबुक की इसी फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम में काम करने वाली एलिजाबेथ लिंडर बताती हैं कि किसी भी राजनीतिक कैंपेन से जुड़ना कम से कम फेसबुक का काम तो नहीं ही है। एलिजाबेथ ने सन 2016 में फेसबुक की इसी यूनिट के साथ यूरोप, मिडल ईस्ट और अफ्रीका में काम किया है। पहले पहल तो एलिजाबेथ अपने काम को लेकर बहुत एक्साइटेड थीं, लेकिन जब उन्होंने इस टीम की गैरकानूनी और लोकतंत्र को गहरी चोट पहुंचाने वाली हरकतों को अपनी आंख के सामने होते देखा तो उन्होंने वहां से नौकरी छोड़ दी। अमेरिका में तो अब सब जान गए हैं कि फेसबुक की इस अवैध टीम ने किस तरह से डॉनल्ड ट्रंप को चुनाव जीतने में मदद की। वैसे इस टीम ने हिलेरी क्लिंटन को भी ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउसेस में से एक ब्लूमबर्ग बताता है कि इसी टीम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फेसबुक पर स्टैब्लिश किया। इसी यूनिट ने नरेंद्र मोदी के फेसबुक पेज में इतने फॉलोवर्स जोड़ दिए, जितने कि दुनिया के किसी भी नेता के पास नहीं हैं। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पास भी नहीं हैं। यह इस यूनिट का ही काम है कि जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पेज को लाइक नहीं भी किया, उसकी आईडी से चुपके से इस पेज को लाइक करा दिया गया। ऐसे ही फिलीपींस के हत्यारे तानाशाह रोड्रिगो दुत्रेते के लिए भी इसी यूनिट ने काम किया। जर्मनी में इस यूनिट ने अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी की भरपूर मदद की और इसे वहां से पहला चुनाव बंडेस्टाग से जितवाया। यह वही पार्टी है जो जर्मनी में शरणार्थियों के खिलाफ क्रिमिनल कैंपेनिंग करती रही है।
वैसे फेसबुक का कहना है कि वह हर तरह से सभी लोगों के लिए खुला प्लेटफॉर्म है और जो चाहे इसका यूज कर सकता है। फेसबुक तो बस उसे पैसे देने वालों को इतना बताता है कि उसकी तकनीक का प्रयोग कैसे करना है, न कि वह ये बताता है कि फेसबुक पर आकर कहना क्या है। इस मामले में हमने जब फेसबुक की ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट की हेड केटी हरबाथ को ईमेल लिखकर पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें गर्व है कि वह दुनिया के ऐसे हजारों नेताओं के साथ काम करती हैं जो चुनाव जीत चुके हैं और उनके सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग देती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी अब इस काम में आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर रही है। बहाना बनाया कि कंपनी हेट स्पीच और धमकियों को रोक रही है। बीजेपी का पैसा खाकर केटी की कंपनी यानी कि फेसबुक की सारी आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस डकार लेकर सो जाती है और हमारे यहां कोई शंभू रैगर हिंदुत्व के नाम पर कुल्हाड़ी से बेगुनाह इंसान को काटते हुए बेरोकटोक फेसबुक लाइव करता है तो सिर्फ इसलिए कि कहीं न कहीं से उसे भी इसी फेसबुक की ऑफिशियल ट्रॉल आर्मी का समर्थन मिला हुआ है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आईटी सेल उस वीडियो को हाथोंहाथ शेयर करती है और उसपर भी कहीं कोई रोक नहीं लगती तो सिर्फ और सिर्फ केटी की टीम की वजह से। आप अभी चेक करें तो अभी भी फेसबुक पर शंभु रैगर की यह हैवानियत आपको देखने को मिल जाएगी। केटी ने ईमेल के जवाब में यह भी कहा कि उनकी कंपनी अभी इस गठजोड़ को और मजबूत करने में लगी हुई है। यानी आइंदा दिनों में हमें हिंदुत्व के नाम पर होने वाली कई और हत्याओं के फेसबुक लाइव देखने के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिए।
to be continued...
मगर एक मिनट। माफ करिए लेकिन सोशल मीडिया पर चीजों को वायरल करना ट्रॉल आर्मी का काम नहीं है। यह काम है खुद फेसबुक का, खुद मार्क जकरबर्ग का, जिसने इसके लिए अलग से पूरा एक ऑफिस बना रखा है। फेसबुक का यह ऑफिस इस ट्रॉल आर्मी को हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देता है। इसी तकनीकी मदद के बल पर ट्रॉल आर्मी बेखौफ होकर लोगों के साथ गाली गलौज करती है, फेक न्यूज फैलाती है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी यानी कि भारतीय जनता पार्टी की जो ट्रॉल आर्मी है, उसे हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देने के लिए मार्क जकरबर्ग ने अमेरिका के वॉशिंगटन में भरा पूरा ऑफिस खोल रखा है। इस ऑफिस की इंचार्ज हैं केटी हरबाथ।
कैंब्रिज एनालिटिका, व्लादीमीर पुतिन और डॉनल्ड ट्रंप के साथ गैंग बनाकर अमेरिकी चुनाव में वोटर्स के साथ खेल करते हुए फेसबुक के मार्क जकरबर्ग जब रंगे हाथों पकड़े गए तो कहने लगे कि फेसबुक का किसी के भी साथ भी किसी तरह का कोई राजनीतिक गठजोड़ नहीं हैं। फेसबुक अपने सभी यूजर्स को राजनीति का बराबर मौका देता है। लेकिन मार्क जकरबर्ग बड़ी चालाकी से यह छुपा गए कि उनकी कंपनी दुनिया भर की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है। और जिनके साथ वह काम करती है, हम सभी जानते हैं कि उनके पास मौजूद ट्रॉल आर्मी किस तरह की फेक न्यूज फैलाती है और किस तरह का जहर लोगों के दिमाग में भर रही है। इतना ही नहीं, कंपनी बाकायदा अपने बिजनेस पेज पर इसका प्रचार प्रसार भी करती है कि वह कैसे लोगों को लांच कराती है या प्रोडक्ट लांच कराती है। या फिर कैसे फटाफट वह ब्लू मार्क दिलाती है। आप फेसबुक पर सालों टिक टुक करते रह जाएंगे, आपको यह कभी नहीं मिलेगा, लेकिन अगर आपके मोहल्ले का सभासद बीजेपी से होगा तो वह दो चार दिन में ये ब्लू मार्क लेकर के मोहल्ले के ही ग्रुपों में रौब गांठता फिरेगा।
तो फेसबुक के जिस नंगेपन के बारे में मार्क जकरबर्ग ने पूरी बेशर्मी से पर्दा डाला, वह है फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट। फेसबुक के बिजनेस पेज पर दावा है कि यह पूरी तरह से न्यूट्रल है और उन सभी के साथ मिलकर काम करती है जो पॉवर यानी कि शक्ति यानी कि बेइंतिहा ताकत के तलबगार हैं। मगर सिर्फ तलबगार होने से काम कैसे चलेगा? पीछे अंबानी जी और अडानी जी भी तो चाहिए होते हैं। अमेरिका हुआ तो पीछे टॉमी हिलफिगर जी चाहिए होते हैं, या पाकिस्तान हुआ तो? इमरान खान ने किसके बल पर छक्का मारा है, आप बताइए, ये आपके सामान्य ज्ञान का बड़ा ही सामान्य सा टेस्ट है। बहरहाल, इस फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम की हेड हैं केटी हरबाथ। केटी हरबाथ पहले अमेरिकी रिपब्लिक पार्टी की डिजिटल रणनीति बनाती थीं। कभी न्यूयॉर्क के मेयर रहे और अब ट्रंप के खासमखास बने रूडी जुलियानी के लिए इन्होंने सन 2008 में प्रेसीडेंसियल कैंपेन चलाई थी। सन 2014 में मार्क जकरबर्ग ने इन्हें अपने यहां नौकरी पर रख लिया और फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम का चीफ बना दिया। तब से केटी हरबाथ अपनी टीम के चुनिंदा लोगों के साथ दुनिया भर के नेताओं से मिलकर शातिर गठजोड़ बनाने में लगी हैं। ऊपरी तौर पर उनका दावा है कि वह अपने पॉलिटिकल क्लाइंट्स को कंपनी के पॉवरफुल डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करना सिखाती हैं।
केटी हरबाथ के कनेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्याय और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद से तो हैं ही, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के चीफ सहित वहां के और दूसरे मंत्रालयों के छह हजार दूसरे अधिकारियों से भी हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में, चाहे वह भारत हो या ब्राजील, जर्मनी हो या ब्रिटेन, केटी हरबाथ जैसे ही किसी नेता के साथ चुनावी कॉन्ट्रैक्ट साइन करती हैं, उनकी टीम के लोग उस नेता के साथ उसके कैंपेन वर्कर्स की तरह जुड़ जाते हैं। वे उस नेता के लिए हर तरह का कानूनी और गैरकानूनी काम करते हैं। ज्यादातर तो वे गैरकानूनी काम ही करते हैं जिसपर पर्दा नेता के चुनाव जीतने के बाद उसके देश के सरकारी अधिकारी ही डाल देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही फेसबुक समर्थित नेता चुनाव जीतता है, केटी हरबाथ की टीम तुरंत उसके पास पहुंचकर उसके सरकारी कर्मचारियों को हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देना शुरू कर देती है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात करें तो कर्मचारियों को क्या करना है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात कहें तो कर्मचारियों या अधिकारियों को क्या कहना है। और जैसे कि जब नेता जी के मन की बात का झूठ पकड़ा जाए तो अधिकारियों को फटाफट लीपापोती कैसे करनी है।
अमेरिका के चुनाव में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और कैंब्रिज एनालिटिका के साथ गैंग बनाकर साजिश करने के आरोप में जब फेसबुक पकड़ा गया तो अमेरिकी संसद ने मार्क से पूछा कि बताओ भैया, जब अमेरिका में चुनाव हो रहा था तो तुम्हारे खाते में रूस से इतना ढेर सारा पैसा कहां से आया? आपको बता दें कि अमेरिकी चुनाव के वक्त रूसी विज्ञापनों से फेसबुक की इनकम में दो चार दस या बीस नहीं, सीधे सेवेंटी नाइन पर्सेंट का इजाफा हुआ था और इस इजाफे की एकमात्र वजह रूस से मिलने वाले विज्ञापन थे। यह विज्ञापन अमेरिकी नामों से चलाए जा रहे थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने ऐसे दर्जनों फर्जी विज्ञापन पकड़े हैं जो ट्रंप को जिताने से लेकर जनता को भरमाने का काम पूरे धड़ल्ले से कर रहे थे। मार्क जकरबर्ग ने अभी इन विज्ञापनों से मिलने वाले पैसे का न तो हिसाब दिया है और न ही अमेरिकी संसद के इस सवाल का जवाब दिया है कि इतना ढेर सारा पैसा उनकी जेब में आखिर आया कहां से? उल्टे वह तो इस कोशिश में ही लगे रहे कि कैसे भी करके इस मामले पर पर्दा डाल दिया जाए। हमारे न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद फेसबुक को बड़ी मीठी मीठी धमकियां देते हैं, पर क्या कभी किसी ने सुना कि सन 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने फेसबुक को कितना पैसा दिया? कभी मार्क जकरबर्ग का कान पकड़कर कोर्ट के कटघरे में खड़ा करके किसी ने उस तरह से पूछने की हिम्मत की जैसे अमेरिकी संसद ने इस धोखेबाज को इन दिनों घुटने पर बैठा रखा है? वैसे अपने लालाजी ऐसी हिम्मत करेंगे ही क्यों जब केटी हरबाथ जब चाहें, उनके बगल आ बैठती हैं
और उन्हें 2019 के चुनावों में जीतने का सब्जबाग दिखाने लगती हैं। इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के हर सांसद से कहा है कि हर एक सांसद के फेसबुक पेज को कम से कम तीन लाख जेनुइन लाइक्स करने वाले होने चाहिए वरना टिकट मिलना मुश्किल है। यह बयान भले ही हमारे मोदी जी के मुखारबिंद से निकला है, लेकिन सप्लाई फेसबुक की ओर से ही हुआ है। फेसबुक का पेज लाइक रेट पर लाइक अस्सी पैसे से ढाई रुपये के बीच बैठता है। सन 2014 के इलेक्शन में बीजेपी के 355 उम्मीदवार सांसद बने थे। मोदी का यह आदेश चुनाव के चार साल बाद का है। चुनाव के बाद रकम कम लगती है, और चार साल बाद तो और भी कम रकम लगती है, इसलिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव के वक्त बीजेपी ने फेसबुक को कितने पैसे दिए होंगे। अंदाजा ही लगाना पड़ेगा क्योंकि आप चाहे जितने घोड़े दौड़ा लें, बीजेपी आपको चुनावी खर्च का असल ब्योरा नहीं देगी। और फिर ये अमेरिका भी नहीं कि वहां की तरह यहां भी जो चाहे, सबूतों के साथ राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, उसे कटघरे में लाकर खड़ा कर दे। जस्टिस बृज गोपाल लोया की हत्या के मामले में हम सबने देखा कि कैसे सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक गुजराती तड़ीपार को बचाने के लिए खड़ा हो गया था। अपने देश में हमारी औकात इतनी भी नहीं है कि हम अपने एक जज की हत्या की सिर्फ जांच करा सकें, उसके हत्यारों को सजा दिलाना तो बहुत दूर की बात है।
कभी फेसबुक की इसी फेसबुक ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम में काम करने वाली एलिजाबेथ लिंडर बताती हैं कि किसी भी राजनीतिक कैंपेन से जुड़ना कम से कम फेसबुक का काम तो नहीं ही है। एलिजाबेथ ने सन 2016 में फेसबुक की इसी यूनिट के साथ यूरोप, मिडल ईस्ट और अफ्रीका में काम किया है। पहले पहल तो एलिजाबेथ अपने काम को लेकर बहुत एक्साइटेड थीं, लेकिन जब उन्होंने इस टीम की गैरकानूनी और लोकतंत्र को गहरी चोट पहुंचाने वाली हरकतों को अपनी आंख के सामने होते देखा तो उन्होंने वहां से नौकरी छोड़ दी। अमेरिका में तो अब सब जान गए हैं कि फेसबुक की इस अवैध टीम ने किस तरह से डॉनल्ड ट्रंप को चुनाव जीतने में मदद की। वैसे इस टीम ने हिलेरी क्लिंटन को भी ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउसेस में से एक ब्लूमबर्ग बताता है कि इसी टीम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फेसबुक पर स्टैब्लिश किया। इसी यूनिट ने नरेंद्र मोदी के फेसबुक पेज में इतने फॉलोवर्स जोड़ दिए, जितने कि दुनिया के किसी भी नेता के पास नहीं हैं। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पास भी नहीं हैं। यह इस यूनिट का ही काम है कि जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पेज को लाइक नहीं भी किया, उसकी आईडी से चुपके से इस पेज को लाइक करा दिया गया। ऐसे ही फिलीपींस के हत्यारे तानाशाह रोड्रिगो दुत्रेते के लिए भी इसी यूनिट ने काम किया। जर्मनी में इस यूनिट ने अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी की भरपूर मदद की और इसे वहां से पहला चुनाव बंडेस्टाग से जितवाया। यह वही पार्टी है जो जर्मनी में शरणार्थियों के खिलाफ क्रिमिनल कैंपेनिंग करती रही है।
वैसे फेसबुक का कहना है कि वह हर तरह से सभी लोगों के लिए खुला प्लेटफॉर्म है और जो चाहे इसका यूज कर सकता है। फेसबुक तो बस उसे पैसे देने वालों को इतना बताता है कि उसकी तकनीक का प्रयोग कैसे करना है, न कि वह ये बताता है कि फेसबुक पर आकर कहना क्या है। इस मामले में हमने जब फेसबुक की ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट की हेड केटी हरबाथ को ईमेल लिखकर पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें गर्व है कि वह दुनिया के ऐसे हजारों नेताओं के साथ काम करती हैं जो चुनाव जीत चुके हैं और उनके सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग देती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी अब इस काम में आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर रही है। बहाना बनाया कि कंपनी हेट स्पीच और धमकियों को रोक रही है। बीजेपी का पैसा खाकर केटी की कंपनी यानी कि फेसबुक की सारी आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस डकार लेकर सो जाती है और हमारे यहां कोई शंभू रैगर हिंदुत्व के नाम पर कुल्हाड़ी से बेगुनाह इंसान को काटते हुए बेरोकटोक फेसबुक लाइव करता है तो सिर्फ इसलिए कि कहीं न कहीं से उसे भी इसी फेसबुक की ऑफिशियल ट्रॉल आर्मी का समर्थन मिला हुआ है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आईटी सेल उस वीडियो को हाथोंहाथ शेयर करती है और उसपर भी कहीं कोई रोक नहीं लगती तो सिर्फ और सिर्फ केटी की टीम की वजह से। आप अभी चेक करें तो अभी भी फेसबुक पर शंभु रैगर की यह हैवानियत आपको देखने को मिल जाएगी। केटी ने ईमेल के जवाब में यह भी कहा कि उनकी कंपनी अभी इस गठजोड़ को और मजबूत करने में लगी हुई है। यानी आइंदा दिनों में हमें हिंदुत्व के नाम पर होने वाली कई और हत्याओं के फेसबुक लाइव देखने के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिए।
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