आपका डाटा यहां बेचता है फेसबुक
हम सभी ने देखा कि कैसे फेसबुक ने कैंब्रिज एनालिटिका के साथ शातिर गठजोड़ करके हम सभी का डाटा रूसियों को बेचा। इस मामले में जब सवाल उठा तो पहले पहल मार्क जकरबर्ग यही कहते नजर आए कि उन्हें तो कुछ पता ही नहीं था। सन 2014 से लेकर 2016 तक रूसियों ने फेसबुक पर एक के बाद एक 80 हजार फेक न्यूज पोस्ट अपडेट की, लेकिन मार्क जकरबर्ग चैन की बंसी बजाते रहे। जब मामला खुला और अमेरिकी कांग्रेस ने उनका कान पकड़कर कांग्रेस के सामने बैठा दिया, तब कहीं जाकर मार्क जकरबर्ग के मुंह से बड़ी मुश्किल से सॉरी निकला, वह भी सूखते गले के साथ। कांग्रेस की उस पूछताछ के इसी चैनल पर ढेर सारे वीडियो मौजूद हैं, उनमें आप देख सकते हैं कि कैसे वह बार बार पानी पीकर अपना गला तर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के लोग उनके हलक में हाथ डालकर कैसे सच बाहर निकलवा रहे हैं। फेसबुक ने माना है कि उसने हम सभी भारतीयों का डाटा भी स्टोर किया है। सवाल उठता है कि क्या हमारी संसद में इतना भी दम नहीं है कि वह एक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी बनाकर मामले की जांच करे और मार्क जकरबर्ग को बिलकुल उसी तरह से कान पकड़कर हमारी संसद के सामने बैठा दे, जैसा कि अमेरिकी संसद ने किया और बिलकुल उसी तरह से उनके हलक में हाथ डालकर सच उगलवाए?
लेकिन यह बात फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के उस गठजोड़ की नहीं है, जिसके तहत दोनों ने मिलकर हम सबके डाटा के साथ खिलवाड़ किया था। बात यह है कि क्या फेसबुक खुद हमारा डाटा बेचता है? क्या फेसबुक खुद हमारा डाटा स्टोर करता है और हमारी क्लोनिंग करके हमें डॉली नाम की भेड़ बनाने पर तुला है? क्या हो अगर डेनमार्क से कोई आपके ही नाम से बिलकुल ओरिजनल आईडी बनाए? क्या हो कि अगर कोई आपके ही नाम से बिलकुल आपकी ही भाषा में फेक न्यूज या अफवाह फैलाए? क्या हो कि कोई आपके नाम से आपकी वह तस्वीरें पोस्ट करे, जो आपने कभी फेसबुक पर डाली ही नहीं और जो आपके मोबाइल के गैलरी सेक्शन में रखी हुई हैं? क्या हो कि कोई आपकी ही आवाज में आपके नाते रिश्तेदारों को फोन करे और किसी खास पार्टी को वोट देने की पैरवी करे? इन सवालों के जवाब इसी वीडियो में मिलेंगे, लेकिन पहले यह जान लें कि क्या फेसबुक हमारा डाटा खुले बाजार में बेच देता है? वह खुला बाजार, जो बेहद खतरनाक है और अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है और किसी भी हद तक जा सकता है। और हर हद तक जाने के बावजूद हमारी सरकारें, फिर चाहे वह किसी भी पार्टी की क्यों न हों, कुछ नहीं करेंगी क्योंकि वह भी सिर्फ वोटबैंक की राजनीति ही करती आई हैं और उन्होंने इसके अलावा और कुछ भी न तो सीखा है और न ही किया है। वह हम भारतीयों की औकात एक भेड़ से अधिक और कुछ नहीं समझते।
जब अमेरिकी कांग्रेस यानी कि अमेरिकी संसद ने मार्क जकरबर्ग के हलक में हाथ डाला, तब कहीं जाकर यह राज खुला कि फेसबुक ने अकेले कैंब्रिज एनालिटिका को ही हम सबका डाटा नहीं बेचा। ऐसी 81 कंपनियां हैं, जिनके नाम फेसबुक ने अमेरिकी संसद को दिए गए एफीडेविट में बताए हैं कि वह उन्हें डाटा बेचता आ रहा है। अपने सात सौ पेज के मेनीफेस्टो में फेसबुक ने अमेरिकी संसद की एनर्जी और कॉमर्स कमेटी को इन कंपनियों के नाम बताए हैं। कैंब्रिज एनालिटिका के साथ किए गए शातिर और आपराधिक गठजोड़ में नाम सामने आने के बावजूद इसी साल फेसबुक ने एप्पल, अमेजॉन, सैमसंग और अलीबाबा जैसी कंपनियों के साथ हमारा आपका डाटा बेचने का कॉन्ट्रैक्ट किया है। क्या आपने कभी देखा कि फेसबुक ने आपसे आपका डाटा किसी को भी बेचने के लिए अनुमति मांगी है? नहीं देखेंगे क्योंकि फेसबुक ने ऐसी कोई अनुमति कभी मांगी ही नहीं है।
हुवाई और अलीबाबा जैसी कंपनियां, जो भारत में भारतीय डाटा की स्मगलिंग के लिए पकड़ी गई हैं और जिनपर जांच भी चल रही है, फेसबुक ने हमारा सारा डाटा इन कंपनियों को बेच दिया है। फेसबुक का दावा है कि जिन 81 कंपनियों को वह हमारा डाटा बेच रहा है, उनमें से 38 कंपनियों से उसने अपनी पार्टनरशिप तोड़ दी है। लेकिन अभी भी 43 कंपनियां हैं, जिन्हें वह हमारा सारा डाटा बेच रहा है। हालांकि फेसबुक का दावा है कि वह सिर्फ 14 कंपनियों को हमारा डाटा बेच रहा है। सारा डाटा का मतलब सिर्फ हमारे फेसबुक का ही डाटा नहीं है। जो लोग मोबाइल से फेसबुक या फेसबुक का कोई भी प्रोडक्ट मसलन व्हाट्सएप्प और इंस्टाग्राम यूज करते हैं, इन एप्स को इंस्टाल करने से पहले और इंस्टाल करते ही फेसबुक हमारे मोबाइल में मौजूद सारा अपने पास फेच कर लेता है, यानी कि खींच लेता है। इसका वह बाकायदा फॉर्म भरवाता है और जिसे न भरने पर आप उसका कोई भी प्रोडक्ट यूज नहीं कर सकते। इस फॉर्म में हमारे मोबाइल का कैमरा, गैलरी, कॉन्टैक्ट लिस्ट, एसएमएस, दूसरे एप्स और मोबाइल में तकरीबन जो कुछ भी है, वहां तक पहुंचने के लिए फेसबुक को इजाजत देनी पड़ती है। इजाजत न देने की हालत में फेसबुक का कोई भी एप इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
इस बात के अप्रत्यक्ष सबूत मिल चुके हैं कि भारत में जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं, बीजेपी और उसके सहयोगी दल फेसबुक के इस डाटा के सबसे बड़े खरीदार हैं। नरेंद्र मोदी के लिए तो फेसबुक ने अपनी पूरी टीम ही भारत में तैनात कर रखी है, जिसकी ग्लोबल हेड कैथी हरबाथ लगभग हर तीसरे महीने ही भारत भागी चली आती हैं। कैथी हरबाथ के बीजेपी के सभी बड़े नेताओं और मुख्यमंत्रियों से संबंध हैं और वे भारत में तरह तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाती हैं। इसी तरह से दुनिया भर में जितने भी तानाशाह हैं, चाहे वह म्यांमार हो या अजरबैजान या फिर अमेरिका के ट्रंप, यह सभी फेसबुक से डाटा खरीदते हैं, लेकिन इस खरीद का जो चेहरा दुनिया को दिखाया जाता है, वह बिलकुल दूसरा होता है।
जैसा कि पहले बताया कि फेसबुक हमारा डाटा प्राइवेट कंपनियों को बेच रहा है। पहले जान लें कि इस डाटा में क्या क्या है। मोटे तौर पर हम अपना फेसबुक डाटा दो कैटेगरी में बांट सकते हैं। पहली कैटेगरी है आम लोग जो फेसबुक का इस्तेमाल अपने लोगों से जुड़ने और सूचनाओं को पाने के लिए करते हैं। दूसरी कैटेगरी है उन लोगों की, जो फेसबुक पर विज्ञापन देते हैं और कई तरह के बिजनेस या राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं। कैंब्रिज एनालिटिका के घोटाले में जब फेसबुक पकड़ा गया तो उसने हमें अपना डाटा डाउनलोड करने की सुविधा दी। अब कोई भी अपनी फेसबुक की सेटिंग में जाकर अपना डाटा डाउनलोड कर सकता है। डाटा डाउनलोड करने के बाद अब हर कोई देख सकता है कि फेसबुक ने उसकी क्या क्या चीजें अपने पास स्टोर कर रखी हैं। आम लोगों की कैटेगरी में फेसबुक का स्टोरेज दिखाता है कि वह अबाउट यू, एप्स एंड वेबसाइट, कॉल्स एंड मैसेजेस, कमेंट्स, ईवेंट्स, फ्रेंड एंड फालोइंग, ग्रुप्स, लाइक्स एंड रियेक्शन, लोकेशन हिस्ट्री, इनबॉक्स की सारी बातचीत, दूसरी एक्टीविटी, फोटो और वीडियो, पोस्ट, प्रोफाइल फॉरमेट, सर्च हिस्ट्री, सीक्योरिटी और लॉगिन करने की जगहें और मशीन वगैरह रिकॉर्ड करता है। विज्ञापन देने वाले लोगों में मार्केटप्लेस, फेसबुक के पेज, पेमेंट हिस्ट्री वगैरह बढ़ जाती है। यह तो वह डाटा है जो फेसबुक हमें बताता है कि उसने स्टोर किया है। अब एक छोटा सा प्रयोग करें। अमेजन या फ्लिपकार्ट पर जाकर पेन ड्राइव के बारे में सर्च करें और बगैर कुछ खरीदे वापस आकर अपना फेसबुक रीफ्रेश करें। आप पाएंगे कि जो चीज आप उन वेबसाइटों पर सर्च कर रहे थे, उन्हीं चीजों का विज्ञापन फेसबुक आपको दिखा रहा है। यानि कि जो चीजें आपने फेसबुक पर की ही नहीं, वह भी फेसबुक रिकॉर्ड कर रहा है। इसी तरह से हम मोबाइल पर किससे क्या बातचीत करते हैं या किसे क्या एसएमएस करते हैं कि किसी कौन सी फोटो खींचते हैं, यह सबकुछ फेसबुक रिकॉर्ड कर रहा है, और उन सभी कंपनियों को बेच रहा है, जिनके प्रोडक्ट हम सर्च कर रहे हैं। अब जरा इसी सर्च को राजनीतिक पार्टियों के रूप में सर्च करके देखें। इसी तरह से हमारा सारा डाटा उन्हें भी बेचा जा रहा है।
फेसबुक बार बार यह कहता है कि वह किसी को भी हमारा डाटा नहीं बेचता है। लेकिन फिर वह अमेरिकी कांग्रेस को उन कंपनियों की लिस्ट भी पकड़ाता है, जिन्हें वह हमारा डाटा बेचता है या जिन्हें उसने पहले कभी हमारा डाटा बेचा। फेसबुक का कहना है कि वह कंपनियों को डाटा नहीं बेचता, लेकिन जिस तरह के डाटा पर कंपनियां अपना विज्ञापन दिखाना चाहती हैं, उस जगह पर वह उन कंपनियों का विज्ञापन ले जाकर रख देता है। जाहिर है कि बीजेपी अपना विज्ञापन वहीं या उन्हीं लोगों को सबसे पहले दिखाना चाहेगी, जो बीजेपी के बारे में जानना चाहते हैं या जिनके दिमाग में बीजेपी को लेकर कुछ चल रहा है। लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है, फेसबुक से ज्यादा इस बारे में कौन जानेगा? आखिर फेसबुक खुलते ही जो सबसे पहला सवाल हमारे सामने आता है, वह होता है- व्हाट्स इन योर माइंड? इसमे जो सबसे ज्यादा चिंता की बात है, और जिसपर अमेरिकी कांग्रेस ने सवाल भी उठाया था और जिसका जवाब मार्क जकरबर्ग नहीं दे पाए थे, वह ये कि क्या वह हमारा डाटा किसी को भी बेचने से पहले, फिर चाहे वह उन्हीं की वेबसाइट पर विज्ञापन देने वाले ही क्यों न हों, उससे पहले क्या कभी उन्होंने हमसे पूछा या हमें बताया कि वह हमारा डाटा किसे बेच रहे हैं?
लेकिन यह बात फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के उस गठजोड़ की नहीं है, जिसके तहत दोनों ने मिलकर हम सबके डाटा के साथ खिलवाड़ किया था। बात यह है कि क्या फेसबुक खुद हमारा डाटा बेचता है? क्या फेसबुक खुद हमारा डाटा स्टोर करता है और हमारी क्लोनिंग करके हमें डॉली नाम की भेड़ बनाने पर तुला है? क्या हो अगर डेनमार्क से कोई आपके ही नाम से बिलकुल ओरिजनल आईडी बनाए? क्या हो कि अगर कोई आपके ही नाम से बिलकुल आपकी ही भाषा में फेक न्यूज या अफवाह फैलाए? क्या हो कि कोई आपके नाम से आपकी वह तस्वीरें पोस्ट करे, जो आपने कभी फेसबुक पर डाली ही नहीं और जो आपके मोबाइल के गैलरी सेक्शन में रखी हुई हैं? क्या हो कि कोई आपकी ही आवाज में आपके नाते रिश्तेदारों को फोन करे और किसी खास पार्टी को वोट देने की पैरवी करे? इन सवालों के जवाब इसी वीडियो में मिलेंगे, लेकिन पहले यह जान लें कि क्या फेसबुक हमारा डाटा खुले बाजार में बेच देता है? वह खुला बाजार, जो बेहद खतरनाक है और अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है और किसी भी हद तक जा सकता है। और हर हद तक जाने के बावजूद हमारी सरकारें, फिर चाहे वह किसी भी पार्टी की क्यों न हों, कुछ नहीं करेंगी क्योंकि वह भी सिर्फ वोटबैंक की राजनीति ही करती आई हैं और उन्होंने इसके अलावा और कुछ भी न तो सीखा है और न ही किया है। वह हम भारतीयों की औकात एक भेड़ से अधिक और कुछ नहीं समझते।
जब अमेरिकी कांग्रेस यानी कि अमेरिकी संसद ने मार्क जकरबर्ग के हलक में हाथ डाला, तब कहीं जाकर यह राज खुला कि फेसबुक ने अकेले कैंब्रिज एनालिटिका को ही हम सबका डाटा नहीं बेचा। ऐसी 81 कंपनियां हैं, जिनके नाम फेसबुक ने अमेरिकी संसद को दिए गए एफीडेविट में बताए हैं कि वह उन्हें डाटा बेचता आ रहा है। अपने सात सौ पेज के मेनीफेस्टो में फेसबुक ने अमेरिकी संसद की एनर्जी और कॉमर्स कमेटी को इन कंपनियों के नाम बताए हैं। कैंब्रिज एनालिटिका के साथ किए गए शातिर और आपराधिक गठजोड़ में नाम सामने आने के बावजूद इसी साल फेसबुक ने एप्पल, अमेजॉन, सैमसंग और अलीबाबा जैसी कंपनियों के साथ हमारा आपका डाटा बेचने का कॉन्ट्रैक्ट किया है। क्या आपने कभी देखा कि फेसबुक ने आपसे आपका डाटा किसी को भी बेचने के लिए अनुमति मांगी है? नहीं देखेंगे क्योंकि फेसबुक ने ऐसी कोई अनुमति कभी मांगी ही नहीं है।
हुवाई और अलीबाबा जैसी कंपनियां, जो भारत में भारतीय डाटा की स्मगलिंग के लिए पकड़ी गई हैं और जिनपर जांच भी चल रही है, फेसबुक ने हमारा सारा डाटा इन कंपनियों को बेच दिया है। फेसबुक का दावा है कि जिन 81 कंपनियों को वह हमारा डाटा बेच रहा है, उनमें से 38 कंपनियों से उसने अपनी पार्टनरशिप तोड़ दी है। लेकिन अभी भी 43 कंपनियां हैं, जिन्हें वह हमारा सारा डाटा बेच रहा है। हालांकि फेसबुक का दावा है कि वह सिर्फ 14 कंपनियों को हमारा डाटा बेच रहा है। सारा डाटा का मतलब सिर्फ हमारे फेसबुक का ही डाटा नहीं है। जो लोग मोबाइल से फेसबुक या फेसबुक का कोई भी प्रोडक्ट मसलन व्हाट्सएप्प और इंस्टाग्राम यूज करते हैं, इन एप्स को इंस्टाल करने से पहले और इंस्टाल करते ही फेसबुक हमारे मोबाइल में मौजूद सारा अपने पास फेच कर लेता है, यानी कि खींच लेता है। इसका वह बाकायदा फॉर्म भरवाता है और जिसे न भरने पर आप उसका कोई भी प्रोडक्ट यूज नहीं कर सकते। इस फॉर्म में हमारे मोबाइल का कैमरा, गैलरी, कॉन्टैक्ट लिस्ट, एसएमएस, दूसरे एप्स और मोबाइल में तकरीबन जो कुछ भी है, वहां तक पहुंचने के लिए फेसबुक को इजाजत देनी पड़ती है। इजाजत न देने की हालत में फेसबुक का कोई भी एप इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
इस बात के अप्रत्यक्ष सबूत मिल चुके हैं कि भारत में जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं, बीजेपी और उसके सहयोगी दल फेसबुक के इस डाटा के सबसे बड़े खरीदार हैं। नरेंद्र मोदी के लिए तो फेसबुक ने अपनी पूरी टीम ही भारत में तैनात कर रखी है, जिसकी ग्लोबल हेड कैथी हरबाथ लगभग हर तीसरे महीने ही भारत भागी चली आती हैं। कैथी हरबाथ के बीजेपी के सभी बड़े नेताओं और मुख्यमंत्रियों से संबंध हैं और वे भारत में तरह तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाती हैं। इसी तरह से दुनिया भर में जितने भी तानाशाह हैं, चाहे वह म्यांमार हो या अजरबैजान या फिर अमेरिका के ट्रंप, यह सभी फेसबुक से डाटा खरीदते हैं, लेकिन इस खरीद का जो चेहरा दुनिया को दिखाया जाता है, वह बिलकुल दूसरा होता है।
जैसा कि पहले बताया कि फेसबुक हमारा डाटा प्राइवेट कंपनियों को बेच रहा है। पहले जान लें कि इस डाटा में क्या क्या है। मोटे तौर पर हम अपना फेसबुक डाटा दो कैटेगरी में बांट सकते हैं। पहली कैटेगरी है आम लोग जो फेसबुक का इस्तेमाल अपने लोगों से जुड़ने और सूचनाओं को पाने के लिए करते हैं। दूसरी कैटेगरी है उन लोगों की, जो फेसबुक पर विज्ञापन देते हैं और कई तरह के बिजनेस या राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं। कैंब्रिज एनालिटिका के घोटाले में जब फेसबुक पकड़ा गया तो उसने हमें अपना डाटा डाउनलोड करने की सुविधा दी। अब कोई भी अपनी फेसबुक की सेटिंग में जाकर अपना डाटा डाउनलोड कर सकता है। डाटा डाउनलोड करने के बाद अब हर कोई देख सकता है कि फेसबुक ने उसकी क्या क्या चीजें अपने पास स्टोर कर रखी हैं। आम लोगों की कैटेगरी में फेसबुक का स्टोरेज दिखाता है कि वह अबाउट यू, एप्स एंड वेबसाइट, कॉल्स एंड मैसेजेस, कमेंट्स, ईवेंट्स, फ्रेंड एंड फालोइंग, ग्रुप्स, लाइक्स एंड रियेक्शन, लोकेशन हिस्ट्री, इनबॉक्स की सारी बातचीत, दूसरी एक्टीविटी, फोटो और वीडियो, पोस्ट, प्रोफाइल फॉरमेट, सर्च हिस्ट्री, सीक्योरिटी और लॉगिन करने की जगहें और मशीन वगैरह रिकॉर्ड करता है। विज्ञापन देने वाले लोगों में मार्केटप्लेस, फेसबुक के पेज, पेमेंट हिस्ट्री वगैरह बढ़ जाती है। यह तो वह डाटा है जो फेसबुक हमें बताता है कि उसने स्टोर किया है। अब एक छोटा सा प्रयोग करें। अमेजन या फ्लिपकार्ट पर जाकर पेन ड्राइव के बारे में सर्च करें और बगैर कुछ खरीदे वापस आकर अपना फेसबुक रीफ्रेश करें। आप पाएंगे कि जो चीज आप उन वेबसाइटों पर सर्च कर रहे थे, उन्हीं चीजों का विज्ञापन फेसबुक आपको दिखा रहा है। यानि कि जो चीजें आपने फेसबुक पर की ही नहीं, वह भी फेसबुक रिकॉर्ड कर रहा है। इसी तरह से हम मोबाइल पर किससे क्या बातचीत करते हैं या किसे क्या एसएमएस करते हैं कि किसी कौन सी फोटो खींचते हैं, यह सबकुछ फेसबुक रिकॉर्ड कर रहा है, और उन सभी कंपनियों को बेच रहा है, जिनके प्रोडक्ट हम सर्च कर रहे हैं। अब जरा इसी सर्च को राजनीतिक पार्टियों के रूप में सर्च करके देखें। इसी तरह से हमारा सारा डाटा उन्हें भी बेचा जा रहा है।
फेसबुक बार बार यह कहता है कि वह किसी को भी हमारा डाटा नहीं बेचता है। लेकिन फिर वह अमेरिकी कांग्रेस को उन कंपनियों की लिस्ट भी पकड़ाता है, जिन्हें वह हमारा डाटा बेचता है या जिन्हें उसने पहले कभी हमारा डाटा बेचा। फेसबुक का कहना है कि वह कंपनियों को डाटा नहीं बेचता, लेकिन जिस तरह के डाटा पर कंपनियां अपना विज्ञापन दिखाना चाहती हैं, उस जगह पर वह उन कंपनियों का विज्ञापन ले जाकर रख देता है। जाहिर है कि बीजेपी अपना विज्ञापन वहीं या उन्हीं लोगों को सबसे पहले दिखाना चाहेगी, जो बीजेपी के बारे में जानना चाहते हैं या जिनके दिमाग में बीजेपी को लेकर कुछ चल रहा है। लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है, फेसबुक से ज्यादा इस बारे में कौन जानेगा? आखिर फेसबुक खुलते ही जो सबसे पहला सवाल हमारे सामने आता है, वह होता है- व्हाट्स इन योर माइंड? इसमे जो सबसे ज्यादा चिंता की बात है, और जिसपर अमेरिकी कांग्रेस ने सवाल भी उठाया था और जिसका जवाब मार्क जकरबर्ग नहीं दे पाए थे, वह ये कि क्या वह हमारा डाटा किसी को भी बेचने से पहले, फिर चाहे वह उन्हीं की वेबसाइट पर विज्ञापन देने वाले ही क्यों न हों, उससे पहले क्या कभी उन्होंने हमसे पूछा या हमें बताया कि वह हमारा डाटा किसे बेच रहे हैं?
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