भांटा कैसे फोड़ें उर्फ प्रेम का क्या करें उर्फ चोखा कैसे बनाएं?
देखिए नेतराम जी, कह तो आप बहुत कुछ रहे हैं लेकिन हम भी कह दे रहे हैं कि चोखा बनाने वास्ते जीवन में प्रेम होना होता है। न हो तो कहीं गांठ-वांठ बांध लीजिए काहेकि एक बार कह रहे हैं, दुबारा तभी कहेंगे जब दुबारा प्रेम होगा। हां तो करेंगे, पांच बार करेंगे, पचास बार करेंगे! का आदमी अपना जीवन में पचासो बार चोखा नहीं खाता बनाता होगा? आप पंचावन साल का सप्तसदी लांघ रहे हैं, का आठ बार भी अपना हाथ से चोखा नहीं बनाए होंगे? माने कि तेवराइन वाला मामला हमसे छुपा ले गए, मगर चोखा बनता है न नेतराम लाला, त इहां तक महकता है। अब हमसे न पूछो, जो बता रहे हैं, कहीं बांध लो, नहीं तो रस्ता में गिर-विर गया तो ललाइन तड़ लेंगी कि आज ई पक्का नक्खास होके आए हैं। अब ललाइन को कैसे समझाया जाए तुम्हीं बताओ लाला, कि प्रेम नहीं होगा त चोखा में तेल कितना पड़ता है, कइसे पता चलेगा आं? रस की धार बगैर प्रेम के फूल भले जाए, फुरेरी नहीं छोड़ेगी लाला, तुम्हीं बताए थे हमें ना?
फिर नमक का सवाल तो हइये है। बिगेर प्रेम के नमक पीसना कितना पिसने वाला काम है, ई उससे पूछो, जो बगैर प्रेम के रोज-रोज लेके सिल पे बट्टा रगड़ता रहता है, रगड़ता रहता है। ऊ गली नंबर पांच वाला मंटुआ है, सुबे-सुबे आके अपना घिसा अंगूठा दिखा रहा था। बेचारे का जीवन में जौबन तो है मगर प्रेम नहीं है। अइसा जीवन मा जौबन दैके राम आखिर कौन चीज का भली कराना चाह रहे हैं लाला, न पूछो! पूछ रहा था कि अइसे कइसे कब तक नमक पीसते रहें चाचा? कब बनाएंगे तुम्हरी तरह चोखा? मन मारके उसे हम प्रेम से बनाया हुआ दू चम्मच चोखा जबरदस्ती खिलाए, तब कहीं जाके उसके मुंह से प्रेम का फ्रेम निकला।
फिर भी ई बात अच्छे से समझ ल्यो लाला कि अगर तुमको प्रेम नहीं होगा त सही साइज का भांटा तुमको पूरी मंडी में का मजाल कहीं दिख जाए? और ई चैलेंज है, ललकार है, तुम्हरे ही नहीं, पूरा पुरुस समाज के पुरसत्त को कि बगैर प्रेम किए चोखा वास्ते सही साइज का भांटा खोजके दिखा दें तो जिन्नगी भर पुरुस समाज को चोखा खिलाएंगे, वहू कड़ुवा तेल में नट्टी तलक डुबो के! भांटा लेना इतना आसान है जी कि गए बजार औ ले आए भर डोलची? न कौनो रूप न कौनो रंग, न कौनो डील न कौनो ढंग। अब अइसा है नेतराम लाला कि रूप-रंग और डील-ढंग बगैर प्रेम किए तो अचार्र फुरसोत्तमो को नहीं समझ मा आवा, जो भांटा कैसे बोएं कि आत्मकथा लिखे रहे, त ललाइन को कइसे समझ में आएगा जी?
प्रेम करो त तुम्हरे पास कितनी आसानी से तेल मिल जाता है, नमक पिस जाता है, भांटौ आ जाता है। फिर करना का है, जितने प्रेम से तेवराइन का जूड़ा मा गेंदा ठूंसते हो, बस उतने ही प्रेम से भांटा मा लहसुन का जवा खोंस दो। हां ठीक है, जानते हैं कि तेवराइन तुमको बस चौथाई जूड़े में ही फूल लगाने को देती हैं और बकिया जूड़ा तेवारी के लिए बचा लेती हैं, लेकिन लाला, सच-सच बताओ, का तुम्हरा दिल चौथाई जूड़े के गेंदे में गेंद नहीं बन जाता? हम देखे हैं लाला, अब अइसे भी न छुपाओ। हमसे कुछ छुपा नहीं है लाला, तुम्हरी बाईं जेब मा पड़ी माचिस मा कितनी तीली है, कहो तो बता दें? लाओ माचिस लाओ लाला, आग लगानी है।
आग का सवाल सबसे इम्पारटैंट है लाला। बगैर प्रेम के आग लग जाएगी? कैसे लगेगी आग अगर पास में प्रेम नहीं होगा? हां, मानते हैं कि ई दुनिया में बहुत सारा लोग माचिस, लैटर औ सबसे जादा त फुसफुस से आग लगाता रहता है, मगर लाला, ई चोखा वाली आग है! इसका खातिर प्रेम चाहिए होता है और चौथाई जूड़ा से ज्यादा चाहिए होता है। रहने दो लाला, तुमसे न लगेगी आग! तुम ससुर चौथाई जूड़े के गेंदे में ही गेंद बन जाते हो, अगर कहीं तेवराइन एक बटा तीन कर दीं तो तुम तो भांटा में ही आगी फोड़ दोगे। आग लगाना हर किसी के बस का काम नहीं है लाला, चोखा तो कोई बना ले। चोखा त ऊ ससुर मंटुआ भी बनाता है, औ खुदै खाता है। बड़ा चोर है भाई ई मंटुआ! पहिले दस तरफ देखता है कि कौनो देख तो नहीं रहा। फिर धीमे से चोखा निकालता है, गोड़ पसारता है औ चभर-चभर करता सब चाट जाता है। हमको त यही नहीं समझ में आया कि सार चोखा चाट रहा है कि जीवन चाट रहा है कि जोबन चाट रहा है।
- बाकी की रेसिपी फिर कभी मूड हुआ तो।
फिर नमक का सवाल तो हइये है। बिगेर प्रेम के नमक पीसना कितना पिसने वाला काम है, ई उससे पूछो, जो बगैर प्रेम के रोज-रोज लेके सिल पे बट्टा रगड़ता रहता है, रगड़ता रहता है। ऊ गली नंबर पांच वाला मंटुआ है, सुबे-सुबे आके अपना घिसा अंगूठा दिखा रहा था। बेचारे का जीवन में जौबन तो है मगर प्रेम नहीं है। अइसा जीवन मा जौबन दैके राम आखिर कौन चीज का भली कराना चाह रहे हैं लाला, न पूछो! पूछ रहा था कि अइसे कइसे कब तक नमक पीसते रहें चाचा? कब बनाएंगे तुम्हरी तरह चोखा? मन मारके उसे हम प्रेम से बनाया हुआ दू चम्मच चोखा जबरदस्ती खिलाए, तब कहीं जाके उसके मुंह से प्रेम का फ्रेम निकला।
फिर भी ई बात अच्छे से समझ ल्यो लाला कि अगर तुमको प्रेम नहीं होगा त सही साइज का भांटा तुमको पूरी मंडी में का मजाल कहीं दिख जाए? और ई चैलेंज है, ललकार है, तुम्हरे ही नहीं, पूरा पुरुस समाज के पुरसत्त को कि बगैर प्रेम किए चोखा वास्ते सही साइज का भांटा खोजके दिखा दें तो जिन्नगी भर पुरुस समाज को चोखा खिलाएंगे, वहू कड़ुवा तेल में नट्टी तलक डुबो के! भांटा लेना इतना आसान है जी कि गए बजार औ ले आए भर डोलची? न कौनो रूप न कौनो रंग, न कौनो डील न कौनो ढंग। अब अइसा है नेतराम लाला कि रूप-रंग और डील-ढंग बगैर प्रेम किए तो अचार्र फुरसोत्तमो को नहीं समझ मा आवा, जो भांटा कैसे बोएं कि आत्मकथा लिखे रहे, त ललाइन को कइसे समझ में आएगा जी?
प्रेम करो त तुम्हरे पास कितनी आसानी से तेल मिल जाता है, नमक पिस जाता है, भांटौ आ जाता है। फिर करना का है, जितने प्रेम से तेवराइन का जूड़ा मा गेंदा ठूंसते हो, बस उतने ही प्रेम से भांटा मा लहसुन का जवा खोंस दो। हां ठीक है, जानते हैं कि तेवराइन तुमको बस चौथाई जूड़े में ही फूल लगाने को देती हैं और बकिया जूड़ा तेवारी के लिए बचा लेती हैं, लेकिन लाला, सच-सच बताओ, का तुम्हरा दिल चौथाई जूड़े के गेंदे में गेंद नहीं बन जाता? हम देखे हैं लाला, अब अइसे भी न छुपाओ। हमसे कुछ छुपा नहीं है लाला, तुम्हरी बाईं जेब मा पड़ी माचिस मा कितनी तीली है, कहो तो बता दें? लाओ माचिस लाओ लाला, आग लगानी है।
आग का सवाल सबसे इम्पारटैंट है लाला। बगैर प्रेम के आग लग जाएगी? कैसे लगेगी आग अगर पास में प्रेम नहीं होगा? हां, मानते हैं कि ई दुनिया में बहुत सारा लोग माचिस, लैटर औ सबसे जादा त फुसफुस से आग लगाता रहता है, मगर लाला, ई चोखा वाली आग है! इसका खातिर प्रेम चाहिए होता है और चौथाई जूड़ा से ज्यादा चाहिए होता है। रहने दो लाला, तुमसे न लगेगी आग! तुम ससुर चौथाई जूड़े के गेंदे में ही गेंद बन जाते हो, अगर कहीं तेवराइन एक बटा तीन कर दीं तो तुम तो भांटा में ही आगी फोड़ दोगे। आग लगाना हर किसी के बस का काम नहीं है लाला, चोखा तो कोई बना ले। चोखा त ऊ ससुर मंटुआ भी बनाता है, औ खुदै खाता है। बड़ा चोर है भाई ई मंटुआ! पहिले दस तरफ देखता है कि कौनो देख तो नहीं रहा। फिर धीमे से चोखा निकालता है, गोड़ पसारता है औ चभर-चभर करता सब चाट जाता है। हमको त यही नहीं समझ में आया कि सार चोखा चाट रहा है कि जीवन चाट रहा है कि जोबन चाट रहा है।
- बाकी की रेसिपी फिर कभी मूड हुआ तो।
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