नवयुग में निसपच्छता के पराठे (सिर्फ सहाफियों के लिए)
निसपच्छता नामक एक चीज होती है। यह नामक भी होती है और मानक भी होती है। जो लोग इसे नामक मानते हैं वो इसे नमक की तरह लेते हैं। जो लोग इसे मानक मानते हैं वो इसे मन में बसा लेते हैं। निसपच्छता स्वच्छता की अम्मा भी होती है। अगर कोई निसपच्छ नाली में भी पड़ा होगा, तो भी वह साफ माना जाएगा क्योंकि वो निसपच्छ है। निसपच्छ है इसलिए स्वच्छ है। जो लोग निसपच्छ नहीं होते, वो स्वस्थ नहीं होते। अस्वस्थ लोगों के मन में अस्वस्थ दिमाग का वास होता है। अस्वथ दिमाग में स्वच्छ निसपच्छता नहीं रह सकती क्योंकि वहां पहले से ही पक्षधरता के कीड़े बिलबिला रहे होते हैं। निसपच्छता के लिए दिमाग को धोकर स्वच्छ बनाना होता है। उसके बाद उसमें निसपच्छता भरनी होती है। यह कार्य हमें मंगल, गुरु और शनि की शामों में अगरबत्ती जलाकर करना होता है। सोम, बुध और शुक्र को हम निसपच्छता का स्वच्छता के साथ प्रयोग कर सकते हैं। इतवार को निसपच्छता की छुट्टी होती है तो वह संडास नहीं जाती।
हमें अपने मन में निसपच्छ रहना चाहिए। फैसला करते हुए हमें अपने मन की नहीं सुननी चाहिए। हमें अपने दिमाग की सुननी चाहिए। मन में निसपच्छता पक्षधारी हो जाती है। इसलिए उसे दिमाग में शिफ्ट कर देना चाहिए। इसके लिए अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स की मदद लेने में कुछ भी मायूब बात नहीं। निसपच्छ लोगों को चाहिए कि वह अपनी अपनी कुर्सी से उतरकर सावधान खड़े हो जाएं। हिलना डुलना पूरी तरह से मना है क्योंकि इससे किसी एक पक्ष की तरफ गिरने का खतरा है। गिरने पर निसपच्छता टूट जाती है और गंदी भी हो जाती है। वैसे बाद में इसे फेवीक्विक लगाकर जोड़ भी सकते हैं और नए निसपच्छ बनने वालों को सहाफत डे पर गिफ्ट दे सकते हैं। निसपच्छता को आप बाहर से नहीं सीख सकते। इसे आपको अपने अंदर उगाना होता है। यह दिमाग पर उगने वाला आत्मा का हरा पेड़ है जिसकी पत्ती उसी के सिर पर निकली नजर आती है, जो वाकई निसपच्छ होता है।
जब व्यक्ति वाकई निसपच्छ होता है तो वह अपने मन को बराबर के सत्तर-सत्तर खानों में बांटकर उसमें मोजे रख देता है। यह सारे मोजे वक्त आने पर निसपच्छ रहते हुए सभी पक्षों में बराबर-बराबर बांट दिए जाते हैं। इससे सब खुश हो जाते हैं और निसपच्छता का भी धंधा चलता रहता है। निसपच्छ दिमाग को याद रहना चाहिए कि निसपच्छता का धंधा होता है, न कि धंधे में निसपच्छता। उसे धंधे की पक्षधारिता का सम्मान करते हुए पूरी तरह से निसपच्छ पराठे ही खाने चाहिए, वह भी पत्तागोभी भरे हुए। याद रखिए, अगर आप निसपच्छ रहेंगे तो सब आपसे प्रेम करेंगे, लेकिन अगर आप पक्षधारी होंगे तो कुछ ही आपसे प्रेम करेंगे। धंधा सबके प्यार से चलता है, कुछ के प्यार से नहीं।
हमें अपने मन में निसपच्छ रहना चाहिए। फैसला करते हुए हमें अपने मन की नहीं सुननी चाहिए। हमें अपने दिमाग की सुननी चाहिए। मन में निसपच्छता पक्षधारी हो जाती है। इसलिए उसे दिमाग में शिफ्ट कर देना चाहिए। इसके लिए अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स की मदद लेने में कुछ भी मायूब बात नहीं। निसपच्छ लोगों को चाहिए कि वह अपनी अपनी कुर्सी से उतरकर सावधान खड़े हो जाएं। हिलना डुलना पूरी तरह से मना है क्योंकि इससे किसी एक पक्ष की तरफ गिरने का खतरा है। गिरने पर निसपच्छता टूट जाती है और गंदी भी हो जाती है। वैसे बाद में इसे फेवीक्विक लगाकर जोड़ भी सकते हैं और नए निसपच्छ बनने वालों को सहाफत डे पर गिफ्ट दे सकते हैं। निसपच्छता को आप बाहर से नहीं सीख सकते। इसे आपको अपने अंदर उगाना होता है। यह दिमाग पर उगने वाला आत्मा का हरा पेड़ है जिसकी पत्ती उसी के सिर पर निकली नजर आती है, जो वाकई निसपच्छ होता है।
जब व्यक्ति वाकई निसपच्छ होता है तो वह अपने मन को बराबर के सत्तर-सत्तर खानों में बांटकर उसमें मोजे रख देता है। यह सारे मोजे वक्त आने पर निसपच्छ रहते हुए सभी पक्षों में बराबर-बराबर बांट दिए जाते हैं। इससे सब खुश हो जाते हैं और निसपच्छता का भी धंधा चलता रहता है। निसपच्छ दिमाग को याद रहना चाहिए कि निसपच्छता का धंधा होता है, न कि धंधे में निसपच्छता। उसे धंधे की पक्षधारिता का सम्मान करते हुए पूरी तरह से निसपच्छ पराठे ही खाने चाहिए, वह भी पत्तागोभी भरे हुए। याद रखिए, अगर आप निसपच्छ रहेंगे तो सब आपसे प्रेम करेंगे, लेकिन अगर आप पक्षधारी होंगे तो कुछ ही आपसे प्रेम करेंगे। धंधा सबके प्यार से चलता है, कुछ के प्यार से नहीं।
No comments:
Post a Comment