Saturday, December 7, 2013

फासीवाद की क्षय: कँवल भारती

लोकतंत्र में भी फासीवाद मरता नहीं है, बल्कि पूरी हनक के साथ मौजूद रहता है. यह किसी एक देश की बात नहीं है, बल्कि प्राय: सभी लोकतान्त्रिक देशों की बात है. अक्सर दो किस्म के लोग फासीवादी होते हैं, (एक) राजनेता, जो वोट की राजनीति करते हैं और (दो) धर्मगुरु, जो अज्ञानता फैलाते हैं. ज्ञान की रौशनी से ये दोनों लोग डरते हैं. इसलिए सत्य का गला दबाने के लिए ये दोनों एक-दूसरे से हाथ मिलाये रहते हैं. जब तक जनता गूंगी-बहरी बनकर जहालत की चादर ओढ़े रहती है, वे लोग खुश रहते हैं, क्योंकि इसी में उनकी तानाशाही सत्ता बनी रहती है. पर उन्हें जनता के जागरूक होने का डर हमेशा बना रहता है. इसीलिए ये दोनों लोग शान्ति और अमन की बातें करते हैं, ताकि समाज में यथास्थिति बनी रहे.

यथास्थिति का अर्थ है राजनीति और धर्मगुरुओं का गठजोड़ कायम रहे और उनके द्वारा जनता का शोषण और संसाधनों की अबाध लूट चलती रहे. इसलिए जैसे ही नेताओं को पता चलता है कि जनता जहालत की चादर उतारकर फेंकने लगी है और उनके विरोध में प्रदर्शन करने वाली है, तो वे तुरंत शान्ति बनाने के लिए धारा 144 लगा देते हैं. इस धारा के तहत दस लोग भी एक जगह न इकठ्ठा हो सकते हैं और न मीटिंग कर सकते हैं. अगर इकठ्ठा होंगे और मीटिंग करेंगे, तो पुलिस को पूरा अधिकार दिया गया है कि वह उन्हें तुरंत गिरफ्तार करके जेल भेज सकती है, अगर विरोधी उनकी सत्ता के लिए चुनौती है, तो वह उस पर रासुका लगा सकती है, उसे जिला बदर कर सकती है, यहाँ तक कि उसे देश निकला तक दे सकती है या उसे देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर सकती है. फ़िदा मकबूल हुसैन और तसलीमा नसरीन के मामले में हम यह देख भी चुके हैं. ( यहाँ मैं सिर्फ बुद्धिजीवियों तक सीमित हूँ, राजनीतिक दलों के विरोध प्रदर्शनों को इस सन्दर्भ में न देखें, क्योंकि वे फासीवादियों से अलग नहीं होते, बल्कि उनके हमशक्ल ही होते हैं, सिर्फ उनकी टीमें अलग-अलग होती हैं.)

इस फासीवाद के तहत सत्य का स्वर बुलन्द करने वाले लेखकों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों और जनता का दमन सिर्फ आज की हकीकत नहीं है, बल्कि यह दमन सदियों से होता आया है. चार्वाकों से लेकर शम्बूक तक, कबीर से लेकर मीरा तक, गैलेलियो से लेकर सुकरात तक, बहुत लम्बी सूची है. इस फासीवाद के अभी ताज़ा शिकार डा. विनायक सेन, सीमा आज़ाद, डा. दाभोलकर, तसलीमा नसरीन और शीबा फहमी हुए हैं. तसलीमा नसरीन के खिलाफ दरगाहे आला हज़रत के cleric के साहबजादे हसन रज़ा खां नूरी ने FIR लिखाई है कि उन्होंने ट्विटर पर अपने कमेन्ट से मुसलमानों की भावनाएं भड़कायी हैं. दरअसल ये भावनाएं जनता की नहीं होती हैं, वरन खुद धर्मगुरु (क्लेरिक) की होती हैं.

शीबा फहमी ने ऐसा क्या लिख दिया कि जज ने उनके खिलाफ गिरफ़्तारी का वारंट निकाल दिया? उन्होंने एक साल पहले मोदी के खिलाफ फेसबुक पर लिखा था, जिसके विरुद्ध एक संघी ने FIR लिखाई थी, मामला अदालत में था, पर जज भी उसी शान्ति का पक्षधर निकला, जिसे मोदी जैसे नेता और धर्मगुरु चाहते हैं और जो फासीवाद चाहता है, सो जज ने शीबा के खिलाफ वारंट इशु कर दिया. यहाँ यही कहने को मन करता है कि जज ने साम्प्रदायिकता का साथ दिया, न्याय का नहीं. बहरहाल, ऐसे हजार जज मिलकर भी सत्य का गला नहीं घोंट सकते और न लेखक की आवाज़ को दबा सकते हैं. ख़ुशी है कि शीबा फहमी को उच्च अदालत से जमानत मिल गयी है. लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हम सारे लेखक, कलाकार और बुद्धिजीवी तसलीमा नसरीन और शीबा फहमी के साथ पूरी तरह एकताबद्ध हैं. जितना संभव हो सकेगा, हम फासीवाद के विरुद्ध मिलकर लड़ेंगे. हम सब उनके साथ हैं. लोकतंत्र की जय और फासीवाद की क्षय होकर रहेगी.

FB account of writer- Kanwal Bharti

Sunday, December 1, 2013

मिल मजदूरों का दस्‍ता तैयार हो गया है

टेलमार्क में जनसुनवाई
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टेलमार्क के वल्‍योची चौराहे पर आज हमने जनसुनवाई की। इस जनसुनवाई में बहुत से लोग पहुंचे।

दक्षिण कैरोलिना के चरवाहे टेंस टीका ने हमें बताया कि हिटलर बर्फ में रहने वाले लोगों को पिघलाने की कोशिश कर रहा है, पर गर्मी लाने के लिए उसने किराए का तंबू लगा रखा है।

इतना ही नहीं, उसने तो बर्फ के राजा तक का आह्वान कर दिया, जिसके बाद से साउथ कैरोलिना के बोल्‍शेविक उससे खफा हैं। हमारे पास हिटलर पर हमला करने के लिए अकेले साउथ कैरोलिना से ही 50 हजार मिल मजदूरों का दस्‍ता तैयार हो गया है।

बंदूकें मंगाई हैं। अब हमारी मदद कौन सा देश कर रहा है, ये हम नहीं बताएंगे।

(जनसुनवाई मंच- Dr. Bharat Singh Dr. Pintu Tiwari Dr. Rising Rahul)

तस्‍वीर- हिटलर के बारे में हमें सूचना देते टेंस टीका। पीछे खड़े हैं डा.भारत। — in Telemark, Norway.

छत्रपति प्रधानमंत्री

पुन:श्‍च
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मेरे कई मित्रों को अभी तक विश्‍वास नहीं हुआ है कि अब मैनें इंडिया/भारत में रहना छोड़ दिया है। ऐसा नहीं है कि मुझे मेरे देश से कोई लगाव नहीं है या फिर मुझे नॉर्वे इंडिया से ज्‍यादा अच्‍छा लगता है।

मुझे भी उन सभी गलियों सड़कों से उतना ही लगाव है जितना किसी को या आपको है। पर इन भाई साहब (नीचे तस्‍वीर) ने जबसे खुद को भारत का छत्रपति प्रधानमंत्री घोषित किया है, हम विरोध स्‍वरूप नॉर्वे चले आए हैं।

अब हम नॉर्वे में तब तक रहेंगे, जब तक ये आदमी जबरिया मेरे देश का प्रधानमंत्री बना रहेगा। ....यहां फासिस्‍टों के नाश के लिए सेना तैयार कर रहे हैं। — with Comrade Aman Mishra Dyfi in Telemark, Norway.

महान भारतीय जनता

गुरि‍ल्‍ला ट्रेनिंग
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परसों की बात है। Yuva Deep दा ने यहां (नॉर्वे के टमेरलान में) भेड़ें चराने का वादा कि‍या, पर खि‍चड़ी खि‍ला दी। ...नहीं आए।

मजबूरी में मुझे और डा. Bharat को भेड़ों को लेकर नि‍कलना पड़ा। हमारी भेड़ों पर जंगल में मौजूद चंद नारंगी गुरि‍ल्‍लाओं ने हमला कर दि‍या।

वो हमारी भेड़ तेरेना के पीछे पड़े थे और दोषि‍यों पर खुद कार्यवाही करने की बात कह रहे थे।तेरेना छोटी सी प्‍यारी सी भेड़ है।
हमने तेरेना को बचाते हुए गुरि‍ल्‍लाओं की फौज पर हमला कर दि‍या और उन्‍हें ट्रेनिंग दी कि वो भेड़ों के चरते समय पेड़ पर ही बैठे रहें। मुझे लगा कि इसी की जरूरत महान भारतीय जनता
को भी है... — in Telemark, Norway.

सर्बिया की सुबह

सर्बिया की सुबह
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इन दि‍नों हम लोग सर्बिया में सर्दियों की शुरुआत का मजा लेने आए हैं। दरअसल हम जि‍स रास्‍ते से आए थे, वो दो पहाड़ों के बीच से गुजरता था।

दोनों को जोड़ने के लि‍ए बांस का पुल था जो रस्‍सी पगहा व खाद बीज वि‍ज्ञानी डा. Pintu के भारी भरकम वजन से टूट गया। यहां काम आए फल फ्रूट व अंतरि‍क्ष पत्‍थर वि‍ज्ञानी डा. Bharat।

उन्‍होंने अपने गुप्‍त हथि‍यार से ढेर सारी घास काटी और डा. पिंटू ने तुरंत उसकी रस्‍सी बनाई। देखते ही देखते हमने पहाड़ पार कर लि‍या।

लोग मंगल जाने को तैयार हैं

यहां नॉर्वे में बहुत लोग मंगल जाने को तैयार हैं। हमारे टेलमार्क में सात पड़ोसि‍यों ने पैसा भी जमा कर दि‍या है।

पर खुशी की बात ये है कि इनमें से कि‍सी ने भारतीय मंगल अभि‍यान के लि‍ए बुकिंग नहीं कराई है। अब ले लो मोदी की बधाइयां।

तेरा शहर कितना अजीब है

‘न दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है।’
(सुबह से भेड़ें मि‍मि‍या रही हैं। उन्‍हें चारागाह की तरफ भेज दि‍या है। अब खि‍ड़की के कि‍नारे बैठा हूं। Deep दा, यहां गोरि‍यां नहीं... ) — feeling lonely in Telemark, Norway.

न भागा जाये है मुझसे न ठहरा जाये है मुझसे

हुये हैं पाँव ही पहले नबर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी...
न भागा जाये है मुझसे न ठहरा जाये है मुझसे.
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यहां नॉर्वे में आज बर्फ गि‍री है, भेड़ों को बाड़े में बंद करके बाहर जग्‍गू और बादल (एक मेरा और एक फल पत्‍थरर वि‍ज्ञानी भारत का) छोड़ दि‍ए हैं।

रजाई में बैठकर अंडे की भुजि‍या की भाप देख रहे हैं। भुजि‍या की महक कमरे से नि‍कलकर पड़ोसि‍यों तक पहुंचने लगी है।

कई सारे पड़ोसि‍यों से चर्चा भी हुई कि भाप ज्‍यादा इंपॉर्टेंट है या भुजि‍या की महक या उसे देखना...
तो अब बस फि‍ल्‍म शोले और हमप्‍याला..
(पायरेसी के जमाने में ये फोटो शायद पाइरेसी में नहीं आती। इसलि‍ए कानूनन माना जाए कि हम शोले ही देख रहे हैं। और अब भुजि‍या खाकर खत्‍म कर दि‍ए हैं)

बि‍जली उत्‍पादन तो सीख लि‍या, उसे काटना अभी नहीं सीख पाए

नॉर्वे के टेलमार्क के दोल्‍वा गांव में मेरा मकान (बायें दूर सफेद वाला)। दाहि‍ने हाथ खर पतवार और भूगर्भ वि‍ज्ञानी डा.भारत सिंह का मकान (कार वाला)।

दाहि‍ने हाथ ही दूर से नजर आता पानी व पहाड़ पत्‍थर वि‍ज्ञानी डा.अर्चना का मकान (हलका पीला वाला)। हमारा खच्‍चर रोज रोज भाग जाता है तो खोजकर लाना पड़ता है।

पि‍छले साल ही हमने भेड़ों के लि‍ए बाड़ा लगाया। दि‍न में लाइट इसलि‍ए जल रही है कि हमने बि‍जली उत्‍पादन तो सीख लि‍या, उसे काटना अभी नहीं सीख पाए। बि‍जली हमारे पास इफरात है, अमेरि‍का ने कोशि‍श की थी पर हम समाजवादी देशों को ही बि‍जली निर्यात करना चाहते हैं।
फोटो- Dr. Archana लाइट्स- Dr. Bharat

आम बात है

अजरबैजान के बि‍लासुवेर के फि‍लेवोत्‍येका गांव में आज 17 डि‍ग्री टेंपरेचर है। ये काफी भीड़भाड़ वाला गांव है।

 इसी में वहां की असलेफास्‍प मस्‍जि‍द के पीछे वाली गली में पानी को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हो गया। आर्मेनि‍या के जंगल में बैठे बैठे अचानक फोन आया कि जल्‍द वहां पहुंचो, रि‍पोर्टिंग करनी है।

हमने तुरंत एस्‍कॉर्ट साथ लि‍या और मौके पर जांच के लि‍ए पहुंचे। ताजा अपडेट ये है कि गांव में एक हत्‍या हो चुकी है। गांव वालों का कहना है कि आम बात है.

जहां कोई हमसुखन न हो

आर्मेनि‍या के जंगलों में जा रहा हूं। जहां कोई हमसुखन न हो। न ही कोई हम जुबां हो।

आर्मेनि‍या के जंगल में हमें कई तरह के जानवर मि‍ले। कुछ जानवर तो ऐसे थे, जि‍नके हाथ पैर कुछ भी नहीं थे मगर वो चले ही जा रहे थे।

कुछ जानवर ऐसे थे जि‍नके अंदर कभी दो तो कभी दो ढाई सौ जानवर एक साथ दि‍खाई दे रहे थे।

बाकी छोटे मोटे जानवर बगैर हाथ पैर वाले जानवरों को क्रीमरोल खाते हुए देख रहे थे।

नाईजीरीया के मजदूर साथी

नाईजीरीया के मजदूर साथी प्‍लेटेऊ राज्‍य वासे और बशर जि‍ले के बीच एक गुमनाम गांव।

इस गांव में तय संख्‍या से ज्‍यादा लोग हैं जि‍से हमारे हड्डी एंव फल विज्ञानी डा. पिंटू ति‍वारी यहां लगातार आती बि‍जली सुवि‍धा को मानते हैं।

साथ में जल फल व कल वि‍ज्ञानी राहुल व भूगर्भ व मौसम वि‍ज्ञानी डा.भारत।

लव जि‍हाद

उज्बेकिस्तान के सोख एन्क्लेव के गांव खुशयार में लव जि‍हाद के नि‍शानात देखता हमारा समाज सुधार वि‍ज्ञानी दल।

यहां पर फैला लव जि‍हाद दीवारों, पत्‍थरों पर तो देखा ही जा सकता है, छतें भी इससे अछूती नहीं रही हैं। हमारे हड्डी सुधार वि‍ज्ञानी डा.पिंटू ति‍वारी की राय थी कि अगर इतना ही लव है तो जि‍हाद की क्‍या जरूरत।

- साथ में भू समाज सुधार वि‍ज्ञानी भारत सिंह।

परत दर परत नीचे

नॉर्थ कोरि‍या के युयुत्‍सु जि‍ले के प्‍योंगसांग गांव में आई भीषण वि‍भीषि‍का में सैकड़ों लोग गांव के दाहि‍ने तरफ वाले टीले पर फंसे हुए थे।

हड्डी वि‍ज्ञानी डा. पिंटू ति‍वारी ने उन्‍हें नीचे उतारने की चीनी वि‍धि वाली योजना बनाई।

हालांकि भूगर्भ वि‍ज्ञानी डा.भारत का कहना था कि टीले को नीचे से खोदा जाए तो वो लोग परत दर परत नीचे आ
जाएंगे।

सैन मातेओ जि‍ले के पोर्टोला वैली कस्‍बे में

अमेरि‍का के फोनि‍क्‍स में तीन दि‍न चार रात लगातार मौसम का अध्‍ययन करने के बाद हम उसी देश के सैन मातेओ जि‍ले के पोर्टोला वैली कस्‍बे में
पहुंचे।

वहां की गर्मी और कुकुरमुत्‍ते की तरह उगे मैक्‍डॉनल्‍ड के बर्गर और फ्रेंच फ्राई खा-खाकर हमारा पेट खराब हो चुका था। पोर्टोला वैली कस्‍बे में हमें कच्‍चे मांस का आयात करने वाले पीटरसन मि‍ले।

पीटरसन ने हमें राजमा चावल और रायता उबले अंडों के साथ खाने को दि‍या। साथ में वहां की देसी शराब भी थी।
(जल-फल और कल वि‍ज्ञानी डा. राहुल रि‍पोर्टिंग वि‍द मौसम और हड्डी वि‍ज्ञानी डा. पिंटू ति‍वारी एंड भूगर्भ और आसमान वि‍ज्ञानी डा. भारत सिंह)

एक नया वि‍श्‍व रि‍कॉर्ड

और लीजि‍ए, बना दि‍या एक नया वि‍श्‍व रि‍कॉर्ड. हम अमेरि‍का के सबसे गर्म शहर फोनि‍क्‍स के पलोमा गांव में मौसम के अध्‍ययन के लि‍ए गए।

वहां हमने (जल-फल व मौसम वि‍ज्ञानी राहुल व हड्डी तथा चट्टान वि‍ज्ञानी डा.पिंटू ति‍वारी) सबसे गर्म चट्टान पर पूरे साढ़े 17 सेकेंड तक खुद को टि‍काए रखा।

हालांकि हमारे साथ भूगर्भ विज्ञानी भारत सिंह भी थे, पर उन्‍होंने खुद को हमारे जले बदन के इलाज के लि‍ए बचाए रखा। बाद में बरनॉल उन्‍हीं ने लगाया।

अमरूद और सेब के निषेचन से उपजा उन्‍नत कि‍स्‍म का फल

तजाकि‍स्‍तान के दि‍शि‍खेर और देवान गांव के बीच भीषण सूखाग्रस्‍त इलाकों में मुआयना करने के बाद अमरूद और सेब के निषेचन से उपजे उन्‍नत कि‍स्‍म का फल
दि‍खाते घास फूस और फल फूल वि‍ज्ञानी राहुल। उम्‍मीद है कि इस एक छोटे से फल से हम एक बोरी चीनी बनाने में महारत हासि‍ल कर लेंगे। (साथ में पशु वि‍ज्ञानी भारत और हड्डी वि‍ज्ञानी पिंटू ति‍वारी)

पत्‍थर पर राम लि‍ख लि‍खकर नदी में फेंका

तस्‍वीर उस वक्‍त की है जब हम लोग आर्मेनि‍या में थे और लगातार होती बारि‍श के चलते बाढ़ में फंस गए थे। दो दि‍न तक हमने रामायण से प्रेरणा ली और पत्‍थर पर राम लि‍ख लि‍खकर नदी में फेंका... इसके बाद भी पुल न बन पाया तो हमारे भूगर्भ वि‍शेषज्ञ भारत सिंह ने दूसरे तरीके से हमें नदी पार करा
ई।