ग्वालियर में बनी इस सुरंग को कैसे देखें?
मेरे कुछ एक मित्र आलोचक को आलूचक कहते हैं। ऐसा वे इसलिए कहते हैं क्योंकि आलोचक नाम की संस्था का हाल अब कुछ आलू की चाट की तरह है। फिर चाहे आलूचक हिंदी साहित्य में हों, या राजनीति में। अब जैसे इसी मीम को जिसने बनाया, अगर उसका दिमाग पढ़ें तो उसे सिर्फ सड़कें दिख रही हैं, बल्कि नहीं भी दिख रही हैं। ऐसे ही सड़क पर बना गड्ढा दिख रहा है, मगर सड़क के नीचे की सुरंग नहीं दिख रही है। आलोचक का काम है गहरे से गहरे देखना, जैसा कि इन दिनों हिंदी साहित्य के गैंगेस्टर्स दो कमरों में गहरे से गहरे घुसकर देख रहे हैं। जबकि हिंदी साहित्य के वे गैंगेस्टर्स, जो आलूचक हैं, वे बस दरवाजे पर बिना दस्तक दिए लौट आ रहे हैं, और अपने पड़ोसी से पूछ रहे हैं कि- अरे मगर हुआ क्या था? बहरहाल, हम हिंदी साहित्य के इन गैंगेस्टरों पर बात नहीं कर रहे हैं, हम तो बस एक सुरंग की बात कर रहे हैं। एक सुरंग, जो आकाशीय चमत्कार से हमारे सामने आई। यह ईश्वर की कृपा है, जो वह हमें यह लीला दिखा रहे हैं।
आलूचक इसे सड़क में बना गड्ढा मानता है, लेकिन आलोचक इसे सुरंग मानते हैं। और आप जरा सुरंग के किनारों को देखिए। यह बिल्कुल नई सुरंग है। और सुंरग जब भी बनती है, तो जाहिर है कि उसमें सिर्फ दो सवालों के उत्तर होते हैं। सुरंग आ कहां से रही है, और सुरंग जा कहां को रही है। सीमित सूचनाओं के प्रतिमानी पुरुषों का ऐसा मानना है कि यह सुरंग सीजफायर के बाद इमरजेंसी में सरेंडर करने के लिए बनाई है। ऐसी अपुष्ट खबरें भी हैं कि सुरंग का नक्शा बक्से में बंद करके परिधानमंत्री निवास में मोर की रक्षा में रखा गया है। कोई पूछ सकता है कि परिधानमंत्री तो दिल्ली में, सुरंग ग्वालियर में ही क्यों? गुजरात में क्यों नहीं? ऐसे सवाल नादान ही पूछ सकते हैं। इतिहास के गंभीर अध्येता के उंगली दिल्ली से गुजरात कभी नहीं उठेगी। उसकी उंगली ग्वालियर की ओर ही उठेगी। ग्वालियर का सरेंडर का अपना सुनहरा अतीत रहा है। एक पूरी परंपरा रही है, जो गदर से लेकर अब तक दिल्ली आती-जाती रही है।
आलूचकों की दिक्कत यह होती है कि वे सही समय पर सही इतिहास नहीं याद कर सकते। पहले कुछ याद भी रखते थे, मगर अब हमारी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के कोर्स ज्यादा याद रखते हैं। मसलन, इन दिनों हिंदी साहित्य के गैंगेस्टरों के बीच एक से बढ़कर एक सूचनाएं फर्राटा भर रही हैं, जिनकी सत्यता का प्रमाण स्वयं उसका लेखक है। हिंदी साहित्य के इन लेखकों से क्या ज्यादा अच्छा नहीं होगा कि हम जीवन में उस सुरंग के बारे में जानें, जो पहले अपनी रियासत, और अब हमारे मुल्क के सरेंडर के लिए बनाई गई है? इस सुरंग को ध्यान से देखेंगे तो आपको दो जोड़ी कदमों के निशान भी दिखेंगे। यानी यह सुरंग न सिर्फ नई है, बल्कि यह हाल ही में प्रयोग में भी लाई गई है। आलोचक ने इस सुरंग को सेटेलाइट से भी देखा। यह सैटेलाइट से भी सुरंग ही दिखती है, गड्ढा नहीं दिखती। बड़ी बात यह कि नासा के सुरंग खोजी सैटेलाइट ने भी इसे सैटलाइट पर मार्क कर रखा है, जिसका नंबर है- SM014IN56. इतने सारे सबूतों को ध्यान में रखते हुए आलोचक आलूचकों से प्रार्थना करता है कि वे इस तस्वीर को वैसे ना देखें, जैसा इस मीम को बनाने वाला दिखाना चाह रहा है। इसे नासा की नजर से देखें।
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