नई चीज शहादत-ऐ-शोहदा है
मुझे आज शहीद होना है। मैं उस जगह की तलाश में हूं, जहां जाकर मैं शहीद हो सकता हूं। मैं उस मौके की तलाश में हूं जिसके अंदर घुसकर मैं शहीद हो सकता हूं। दे ही देनी है मुझे शहादत, बस कोई बता दे कि कहां जाकर दे दूं। शहीद हो जाने का शोर तो सबने मचा लिया, लेकिन जोर से न बताना चाहे तो कान में ही फुसफुसा दे। तब तक मैं मेरी आंख में मीठा पोलियो लगवाकर बैठा हूं। मनन कर रहा हूं या नहीं, लेकिन पलक दबाकर बैठा हूं। हर तरफ से मर जाने की जो आवाजें मेरे कानों में गिर रही हैं, वो मुझे शहादत की राह पर और भी गिरा दे रही हैं। क्या असेंबली में बम फेंक दूं? कहलाउंगा शहीद? कोई फर्क है अब की और तब की असेंबली में? या उन धनपशुओं के कार्य व्यापार पर जाकर जमीनी सुरंग बिछा दूं जो सारे कामगारों का खून चूसकर उनसे पशुवत व्यवहार करते हैं? क्या ये दोनों काम मुझे शहीद का दर्जा देंगे? सरकारी नहीं हूं तो सरकारी शहीद तो कहलाउंगा नहीं। सरकारी शहीद के अलावा भी क्या कोई शहीद हुआ है? आजादी के बाद से कौन कौन गैर सरकारी शहीद हुआ है, क्या वक्त नहीं आ गया है कि उनकी शहादत का हिसाब हो? बहुत लोग कहेंगे कि जा, सीमा पे जाके मर। मैं सीमा पर मर भी जाऊं तो क्या गारंटी है कि मैं शहीद ही कहलाउंगा, शोहदा नहीं? अब जो शहीद होने को शहीदातुर लोग हैं, क्या ये सही वक्त नहीं कि उनमें और शोहदों में व्याप्त समानताएं लोगों को बताई जाएं? शोहदे कैसे होते हैं और शहीद कैसे होते हैं, क्या पीएम को मन की बात में इसका जरा भी जिक्र नहीं करना चाहिए? पीएम को शोहदों का नाम लेने में शर्म क्यूं आती है? मन तो उनका भी वही रहा है। नहीं?
मैं वादा करता हूं कि अगले तीन महीने में मैं या तो शहीद हो जाउंगा या फिर क्रांति कर दूंगा। तीन महीने बाद हिसाब लगाउंगा कि वो कौन कौन लोग थे जो क्रांति के रास्ते में डंडा लेकर खड़े थे। वो कौन कौन लोग थे, जो मेरी शहादत की राह में अंडा लेकर खड़े थे? झंडा लेके कौन कौन खड़ा था सर? सबका हिसाब होगा। क्या चंपक शहीद होते हैं? क्या शोहदे शहीद होते हैं? कौन हैं वो लोग जो यूं ही शहीद हो जाते हैं? कहां से आते हैं भारत सरकार के पास यूं ही शहीद हो जाने वाले लोग? क्यों करा देती है सरकार उन्हें बस यूं ही शहीद? जनगण देश के निवासियों, सब लोग वनवासियों हो जाओ। तुरई की सब्जी लहसुन डालके उगाओ। संकर का जमाना है, शोहदों का जमाना है, शहीदों को इनसे बचकर कैसे भी निकल जाना है। उन्हें तो लौकी से भी नहीं मतलब और शोहदे शहादत का अचार डाल रहे हैं। कौन हैं वो शोहदे जो देश को चला रहे हैं? कौन हैं वो शोहदे जो पूरी दुनिया में गंध फैलाते हुए हीं-हीं, ठीं-ठीं करके दांत दिखा रहे हैं?
शर्मिंदा शहादत जैसी भी कोई चीज होती है? शहादत शर्मिंदा होती है? या शर्म ही शहीद हो जाया करती है? देश की शर्म शहीद हो चुकी है। किसी के पास कोई आइडिया है कि शहीद हुई शर्म पर फूल कौन से रंग के चढ़ाए जाएं? आप बहाना बना सकते हैं, चाहें तो शरीर के किसी अंग पर खुजली करके शहीद शर्म के अपमान पर बयान भी जारी कर सकते हैं। कुछ नहीं तो चौराहे वाली पान की दुकान पर दांत खोदते हुए मेरे मुर्दाबाद का नारा भी लगा सकते हैं। लेकिन शहीदों को शोहदों ने इस वक्त जो बना दिया है, उसपर कोई बयान क्या जारी कर सकते हैं?
रोटी के लिए मारा जाऊं तो शहीद कहलाउंगा? बोटी के लिए मारा जाऊं तो? मोटी के लिए मारा जाऊं तो क्या पक्का शहीद कहलाउंगा? वैसे ये सब लिखने पर मुझे कोई छोड़ेगा तो है नहीं, चिकोटी के लिए मारा जाऊं तो क्या सच्चा शहीद कहलाउंगा? सरकार पर मेरा आरोप है कि उसने हम देशवासियों से शहादत का सारा हक छीन लिया है। एक बार ये हक दे के तो देखे, गली गली में शहीद न पैदा हो गए तो कहिएगा। देश में शहीद हो जाने की ऐसी बयार, ये व्यवहार आखिरी बार कब देखा? क्या कहा? चीनी हमले में? लेकिन तब तो सारे भड़बांकुरे अपनी अपनी हाफ पैंटों में नहीं घुसे हुए थे? क्या कहा? गए थे? कहां? बदरीनाथ? ओह ओह, अहा अहा। बाई दि वे, नॉर्थ ईस्ट में कितने शहीद हुए किसी के पास कोई आंकड़ा है? फर्जी ही दिखा दीजिए, न मैं बुरा मानूंगा और न ही मेरी चिकोटी। मेरी धोती तो बिलकुल बुरा नहीं मानेगी।
मुझे पूरा यकीन है कि शोहदों ने शहादत के सात रास्ते खोज अपनी पतित शर्म की पूरी बेशर्मी दिखाने का पूरा इंतजाम कर रखा है। मेरा रंग दे बसंती चोला पुराना हुआ, शोहदों को अब बसंती चाहिए वो भी बगैर चोली के। भारत माता अगर कहीं है और वो भी रात में अगर पूरे कपड़ों में निकल गई तो परमभक्त शोहदे न तो उसे छोड़ेंगे और न तो...। बाकी रॉड वॉड तो वो अपने साथ रखते ही हैं, असल चीज उनकी काम नहीं करती ना। मेरी मांग है कि देश के सारे शहीदों की कहानियों को ड्रॉप कर नवयुग के शोहदों की आदतों पर बीए सेकेंडियर की आधुनिक हिंदी में ललित निबंध अवश्य शामिल होना चाहिए। घर में नहीं दाने औ अम्मा चली भुनाने जैसी चीजें अब पुरानी हुई। नई चीज शहादत-ऐ-शोहदा है। मार्केट में एकदम नई। टिंच माल। जगह घेरते ही बिक जाने की गारंटी के साथ।
मैं वादा करता हूं कि अगले तीन महीने में मैं या तो शहीद हो जाउंगा या फिर क्रांति कर दूंगा। तीन महीने बाद हिसाब लगाउंगा कि वो कौन कौन लोग थे जो क्रांति के रास्ते में डंडा लेकर खड़े थे। वो कौन कौन लोग थे, जो मेरी शहादत की राह में अंडा लेकर खड़े थे? झंडा लेके कौन कौन खड़ा था सर? सबका हिसाब होगा। क्या चंपक शहीद होते हैं? क्या शोहदे शहीद होते हैं? कौन हैं वो लोग जो यूं ही शहीद हो जाते हैं? कहां से आते हैं भारत सरकार के पास यूं ही शहीद हो जाने वाले लोग? क्यों करा देती है सरकार उन्हें बस यूं ही शहीद? जनगण देश के निवासियों, सब लोग वनवासियों हो जाओ। तुरई की सब्जी लहसुन डालके उगाओ। संकर का जमाना है, शोहदों का जमाना है, शहीदों को इनसे बचकर कैसे भी निकल जाना है। उन्हें तो लौकी से भी नहीं मतलब और शोहदे शहादत का अचार डाल रहे हैं। कौन हैं वो शोहदे जो देश को चला रहे हैं? कौन हैं वो शोहदे जो पूरी दुनिया में गंध फैलाते हुए हीं-हीं, ठीं-ठीं करके दांत दिखा रहे हैं?
शर्मिंदा शहादत जैसी भी कोई चीज होती है? शहादत शर्मिंदा होती है? या शर्म ही शहीद हो जाया करती है? देश की शर्म शहीद हो चुकी है। किसी के पास कोई आइडिया है कि शहीद हुई शर्म पर फूल कौन से रंग के चढ़ाए जाएं? आप बहाना बना सकते हैं, चाहें तो शरीर के किसी अंग पर खुजली करके शहीद शर्म के अपमान पर बयान भी जारी कर सकते हैं। कुछ नहीं तो चौराहे वाली पान की दुकान पर दांत खोदते हुए मेरे मुर्दाबाद का नारा भी लगा सकते हैं। लेकिन शहीदों को शोहदों ने इस वक्त जो बना दिया है, उसपर कोई बयान क्या जारी कर सकते हैं?
रोटी के लिए मारा जाऊं तो शहीद कहलाउंगा? बोटी के लिए मारा जाऊं तो? मोटी के लिए मारा जाऊं तो क्या पक्का शहीद कहलाउंगा? वैसे ये सब लिखने पर मुझे कोई छोड़ेगा तो है नहीं, चिकोटी के लिए मारा जाऊं तो क्या सच्चा शहीद कहलाउंगा? सरकार पर मेरा आरोप है कि उसने हम देशवासियों से शहादत का सारा हक छीन लिया है। एक बार ये हक दे के तो देखे, गली गली में शहीद न पैदा हो गए तो कहिएगा। देश में शहीद हो जाने की ऐसी बयार, ये व्यवहार आखिरी बार कब देखा? क्या कहा? चीनी हमले में? लेकिन तब तो सारे भड़बांकुरे अपनी अपनी हाफ पैंटों में नहीं घुसे हुए थे? क्या कहा? गए थे? कहां? बदरीनाथ? ओह ओह, अहा अहा। बाई दि वे, नॉर्थ ईस्ट में कितने शहीद हुए किसी के पास कोई आंकड़ा है? फर्जी ही दिखा दीजिए, न मैं बुरा मानूंगा और न ही मेरी चिकोटी। मेरी धोती तो बिलकुल बुरा नहीं मानेगी।
मुझे पूरा यकीन है कि शोहदों ने शहादत के सात रास्ते खोज अपनी पतित शर्म की पूरी बेशर्मी दिखाने का पूरा इंतजाम कर रखा है। मेरा रंग दे बसंती चोला पुराना हुआ, शोहदों को अब बसंती चाहिए वो भी बगैर चोली के। भारत माता अगर कहीं है और वो भी रात में अगर पूरे कपड़ों में निकल गई तो परमभक्त शोहदे न तो उसे छोड़ेंगे और न तो...। बाकी रॉड वॉड तो वो अपने साथ रखते ही हैं, असल चीज उनकी काम नहीं करती ना। मेरी मांग है कि देश के सारे शहीदों की कहानियों को ड्रॉप कर नवयुग के शोहदों की आदतों पर बीए सेकेंडियर की आधुनिक हिंदी में ललित निबंध अवश्य शामिल होना चाहिए। घर में नहीं दाने औ अम्मा चली भुनाने जैसी चीजें अब पुरानी हुई। नई चीज शहादत-ऐ-शोहदा है। मार्केट में एकदम नई। टिंच माल। जगह घेरते ही बिक जाने की गारंटी के साथ।