Monday, July 13, 2015

मि‍लेगा तो देखेंगे- 13

नि‍शान खो जाएंगे, बातें बह जाएंगी, रातें कट जाएंगी, दि‍न फि‍सलते रहेंगे, फूल सूखते रहेंगे और पेड़ भी, नदी बहती रहेगी और पानी भी ठहरकर सड़ता रहेगा, दि‍शाएं भी बदलती रहेंगी, दशाओं का कोई नामलेवा न होगा, फि‍र भी...

फि‍र भी आदमी होगा और औरत भी। वहीं पर रुके, ठहरे, ठि‍ठके, सि‍हरे, डरे-सहमे से ही, लेकि‍न होंगे और होते रहेंगे। आवेग अनायास ही नहीं होगा, उसके सायास कारण उसके होने का आधार होंगे और वो कि‍सी के होने न होने के इंतजार में न होंगे। औरत खोती जाएगी और बहती भी, आदमी डूबता और चुप होता जाएगा। समय के न तो उनमें कोई घाव होंगे न ही खरोंचों के कोई दूसरे नि‍शान। दोनों नहीं भी रहेंगे, तो भी ऐसा कुछ बचा नहीं रहेगा जो दोनों के होने या न होने की कहानी बयान करेगा। दोनों खो भी जाएंगे तो भी उन्‍हें न तो कोई खोजने वाला होगा और न ही कि‍सी की उन्‍हें खोजने में कोई दि‍लचस्‍पी होगी। दि‍लचस्‍पी जैसी कि‍सी चीज या भावना से दोनों पहले ही खुद को दूर कर चुकेंगे। इतनी दूर कि जहां क्षि‍ति‍ज भी न पहुंचता हो, जहां अंधेरा भी न पसर पाता हो, जहां उजाले की बरसात कि‍सी के सपने में भी न आती हो। उस दूरी पर भी दोनों दूर नहीं होंगे, न हो पाएंगे क्‍योंकि ये शाप ही ऐसा है कि जहां सपने न आते हों, वहां पर भी ये शाप सपनों की चौखट डांककर उन दोनों में पैवस्‍त होगा, अंदर तक... उतने ही अंदर तक, जि‍तनी कि दूरी होगी।

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