Tuesday, March 12, 2013

संवि‍धान पर हमला


संवि‍धान पर हमला 

दो हफ्ते तक नगर पालि‍का का चक्‍कर लगाने के बाद
कलंदर का बीपीएल कार्ड जब नहीं बना,
और जब परसों रात से उसकी रसोई से धुंआ भी नहीं उठा,
और जब भूख से चौकड़ी करने लगी अंतड़ि‍यां
तो कलंदर ने नगर पालि‍का पर
हमला कर दि‍या।

हमले में कलंदर ने इस्‍तेमाल कि‍ए कुछ पत्‍थर
नेता जी के बैनर से नि‍कला डंडा और
और कुछ भी नहीं।
उसके एक हाथ में पत्‍थर था दूसरे में डंडा
इतना देखते ही चार चौकीदार,
जो गेट के पीछे बने पार्क में खैनी खा रहे थे,
उनने कलंदर को दबोचा।

कलंदर की पेशी मजि‍स्‍ट्रेट के सामने हुई,
मजि‍स्‍ट्रेट ने माना कि यह हमला
भारतीय संवि‍धान पर हुआ।
कलंदर को सजा सुनाई गई,
नहीं नहीं, फांसी की नहीं सुनाई गई।
बस एक महीने की जेल।

कलंदर खुश हुआ कि उसे जेल हुई
अब भरपेट खाना तो मि‍लेगा।

Saturday, March 9, 2013

हल्‍ला बोल मोहल्‍ला बोल


हल्‍ला बोल मोहल्‍ला बोल


हल्‍ला बोल मोहल्‍ला बोल

चुप है क्‍यूं तू लल्‍ला बोल
खोल जुबां का तल्‍ला खोल
हल्‍ला बोल भई हल्‍ला बोल

रोटी सूखी तेल बीमार

लगने से पहले बि‍का बजार
नींद में है सारी सरकार
पूछो तो बोलें अल्‍ला बोल
अब खोल जुबां का तल्‍ला खोल
हल्‍ला बोल भई हल्‍ला बोल।

बरसी धूप फसल बेकार

आया पानी बह गया ज्‍वार
सोती ससुरी ये सरकार
मांगो तो बोलें लल्‍ला बोल
खोल जुबां का तल्‍ला खोल
हल्‍ला बोल भई हल्‍ला बोल।

भाग री ऐ सरकार


भाग री ऐ सरकार 



भाग री ऐ सरकार 
कि आती है फौजे बेकार 
कर देगी तुझको लाचार 
कबीरा सारा रा रा 

पकड़ी हाथ नहीं तलवार 
कर दी कलम की पैनी धार 
होगी पंचर तेरी कार 
कबीरा सारा रा रा 

पंजा पकड़े है गद्दार 
कमल बि‍छाए लाश हजार 
साइकि‍ल पर है गुंडा सवार 
हाथी भटके बारम्‍बार 
कबीरा सारा रा रा 

छीने खेत और घर बार 
बनाए लाखों बेरोजगार 
कैसे कर लें तुमसे प्‍यार 
कबीरा सारा रा रा 

आने वाला है त्‍योहार 
कालि‍ख मलेंगे अबकी बार 
मारें पटक के सौ सौ बार 
कबीरा सारा रा रा... 
कबीरा सारा रा रा... 
कबीरा सारा रा रा....

कलंदर की मौत


कलंदर की मौत 

कल रात कलंदर के घर से
गाने की आवाज नहीं आई
और न ही आई देर रात
बटुली में लड़कर खनखनाती कलछुल की आवाज,
सारी रात बस टीवी पर चलने वाले डायलॉग
ही सुनाई देते रहे।

सुबह भी यही लगा कि
कलंदर के घर टीवी ही चल रहा होगा
पर डायलॉग कुछ बदले से लगे
दरअसल डायलॉग फुसफुसाहट में बदल चुके थे
टीवी बंद हो चुका था
कलंदर भी।

जि‍तने मुंह उतनी बातें
जि‍तनी मात्राएं उतनी कहानि‍यां
चलने लगी थीं कलंदर के दरवाजे पर
और जो नहीं चलीं,
वो आइंदा दि‍नों के लि‍ए
पलने लगी थीं लोगों के पेट में।

कलंदर की मौत का पता चलने के ठीक दो घंटे बाद
कलंदर की कहानि‍यां उसका दरवाजा छोड़कर
मेहता, मि‍श्रा, गुप्‍ता और बंसल जी की
नाश्‍ते की प्‍लेट में अचार का
जायका बढ़ा रही थीं।

कलंदर जिंदा था तो रात में गाना सुनाता था
कलंदर मर गया तो अचार की लज्‍जत लाता है।