Thursday, August 9, 2007

अभी और कितनी मंहगी होगी खेती बाड़ी ?

किसानो से वसूला जाएगा सिचाई का खर्चा
मदन जैडा
देश के अन्नदाता की दुश्वारियाँ बढ़ने वाली हैं। खाद,बीज और अन्य जरूरतों के लिए , लिए गए कर्ज़ का जाल , मंडी और मौसम की मार के बाद अब सरकार भी किसान की जेब से पैसा निकलने की तयारी मे है। पहले ही घाटे का सौदा साबित हो रही खेती बाड़ी अब और मंहगी होने वाली है। योजना आयोग की योजना है कि सिंचाई परियोजनाओं के संचालन और रख रखाव की लागत किसानो स वसूल की जाय।
इस बारे मे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर शरद पवार के नेतृत्व मे बनी राष्ट्रिय विकास परिषद की उप समिति की सिफारिशों को आयोग अन्तिम रुप देने मे जुटा है। आयोग सूत्रों का कहना है कि कई दक्षिणी राज्यों ने सैधान्तिक तौर पर सहमति व्यक्त कर दी है लेकिन उत्तरी राज्यों -उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा अदि ने भारी विरोध किया है। बहरहाल , इसी महीने संभावित एन डी सी बैठक मे इस मुद्दे पर विचार किये जाने की सम्भावना है। ११ वीं योजना के दौरान एक करोड़ दस लाख हेक्टेयर असिंचित भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस मद मे १,३७,५०० करोड़ रुपये खर्च होंगे। केंद्र चाहता है कि एक बार योजना बना देने के बाद सरकार को योजनाओं के संचालन और रख रखाव पर किये जाने वाले खर्चे से मुक्ति मिल जाय। पहले से चल रही सिंचाई परियोजनाओं के संचालन और रख रखाव पर सालाना १५-२० हज़ार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। यदि पुरानी योजनाओं पर ही सरकार इतना खर्च करती रहेगी तो नई योजनायें कैसे शुरू हो पाएँगी। इसलिये योजनाओं का खर्च किसानो की जेब काटकर निकला जाएगा। जो खाका आयोग ने तैयार किया है उसके अनुसार सिंचाई परियोजनाओं की लगत पांच साल के भीतर वसूल की जाय। इसके लिए किसानो को सिंचाई के पानी का हज़ारों रुपये प्रतिमाह शुल्क देना पड़ेगा । ज़्यादातर राज्यों मे सिंचाई सुविधा किसानो को निः शुल्क हासिल है। कुछ राज्यों मे बहुत मामूली शुल्क लिया जाता है। आयोग कमेटी के इस सिफारिश पर सहमत है कि शुल्क तय करने का अधिकार राज्यों को दिया जाय ताकी वह अपने हिसाब से निर्धारण कर सकें।

1 comment:

Sanjay Tiwari said...

इस बात की कभी ठीक से पड़ताल नहीं होती कि आम किसान सरकार को कितना टैक्स देता है. कहा यह जाता है कि शहरी लोग ही टैक्स देते हैं और उसी से देश चलता है लेकिन गांव के किसानों से ऐसे छोटे-छोटे टैक्स से जो कमाई की जाती है उसकी चर्चा कहीं नहीं होती.
अच्छी जानकारी,