वैष्णव की नई फिसलन
वैष्णव का होटल चल निकला था। शहर भर में धूम थी। बाहर से जो भी आता, स्टेशन पर ही उसे होटल का शानदार विज्ञापन दिखता। विज्ञापन तो और भी थे, लेकिन वैष्णव के होटल जितना बड़ा विज्ञापन और कोई नहीं था। फिर बत्ती भी उसी विज्ञापन पर जलती। वैष्णव ने बिजली विभाग से मिलकर जुगाड़ गांठ रखा था कि किसी और के बोर्ड पर बत्ती जले, तो तुरंत उसे नोटिस पहुंचा दिया जाए।
वैष्णव ने सारे सवालों को उठने से पहले ही समाप्त कर दिया था। वह खुश था। पहले प्रभु की आरती में कड़वे तेल की बत्ती जलाता था, अब देसी घी की बत्तियां जल रही थीं। सब कुछ सही चल रहा था कि एक दिन होटल का मुख्य रसोइया भाग गया।
ऐसा नहीं था कि वैष्णव उसे अच्छी तनख्वाह नहीं दे रहा था। मगर रसोइए को प्रेम हो गया था और वैष्णव उसे छुट्टी नहीं दे रहा था। छुट्टी के अलावा वैष्णव ने उसे ढेरों कसमें दीं, मगर जिन्होंने प्रेम किया है, वे जानते हैं कि प्रेम तो प्रेम ही होता है। चींटी की तरह प्रेमियों के भी पर निकल आते हैं।
यह भीषण आपदा थी, जिसके बारे में प्रभु ने वैष्णव को सपने में भी नहीं बताया था। वैष्णव ने प्रभु को उलाहना दी। माथा प्रभु की चौखट से टेक दिया। प्रभु ने सुन ली। वैष्णव आकर गल्ले पर बैठा तो देखा कि रसाइयों की कतार लगी है। सभी रसोइयों की विधिपूर्वक परीक्षा हुई। सबने एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनाकर दिखाए।
मगर एक रसोइया था, जिसने कुछ भी बनाकर नहीं दिखाया। बल्कि वह परीक्षा देने वाले रसोइयों की लाइन में भी खड़ा नहीं हुआ। वह फूड इंस्पेक्टर का भतीजा था और लाइसेंस कमिश्नर का साला भी। वैष्णव ने उससे पूछा, ‘क्या बनाते हो?’ रसोइया बोला, ‘मैं किसी भी तरह का लाइसेंस बनाता हूं।’
वैष्णव संतुष्ट हुआ। फिर उसने पूछा, ‘और अगर किसी ग्राहक को तुम्हारा लाइसेंस पसंद न आया तो?’ रसोइया बोला, ‘सीएमओ मेरे चाचा लगते हैं, ग्राहक का इलाज हो जाएगा।’ और अगर तुमको भर्ती करने पर बाकियों ने शोर मचाया तो? वैष्णव ने पूछा। ‘लेबर कमिश्नर मेरे जीजा हैं।’
यह सुनते ही वैष्णव ने बाकी रसोइयों को यह बोलकर वापस किया कि परिणाम रजिस्टर्ड डाक से आपके घर भेज दिए जाएंगे, और उस रसोइए को रख लिया। जब बाकी रसोइयों को इसका पता चला तो उन्होंने हंगामा कर दिया, धरने पर बैठ गए। कहने लगे कि हमारी योग्यता प्रमाणित है, फिर भी हमें नहीं रखा गया।
वैष्णव डर गया। फिर से प्रभु के पास पहुंचा। प्रभु ने पूछा, ‘तुम वैष्णव हो?’ हां प्रभु। ‘फिर तुम झूठ कैसे बोल सकते हो?’ वैष्णव की बत्ती जल गई। उसने तुरंत बयान जारी किया कि नियुक्ति पूरे पारदर्शी तरीके से हुई है। प्रभु के अलावा हम और किसी की भी सिफारिश नहीं मानते।
बात प्रभु की थी। सारे असंतुष्ट वापस चले गए। फिर वैष्णव ने होटल के बगल एक जमीन खरीद ली, और सीएमओ की मदद से उस पर तुरंत एक अस्पताल बनवा लिया। अब वैष्णव लाइसेंसी खाने के साथ लाइसेंसी इलाज भी करने लगा।