पतझड़ से पहले और बाद की एक बकवास
सबसे पहले शहतूत छोड़ता है अपनी पत्तियां
और लगभग एक साथ ही हो जाता है नंगा
डालें, टहनियां सब की सब नंगी
हवा चलती है तो सर्र से गुजर जाती है
एक भी टहनी नहीं हिलती शहतूत की
फिर आती है बारी नीम की
शहतूत के बाद नीम को नंगा होते देखना
इतना आसान नहीं है
वो एक साथ नंगा भी नहीं होता
धीमे-धीमे मरता है नीम
और रोज हमें पता चलता है कि
नीम कितनी तकलीफ में है
जैसे कि ट्रॉमा सेंटर में बेहोश पड़ा कोई मरीज
जिसकी रुक-रुक कर सांस चलती है
जैसे सड़क पर हुआ कोई एक्सीडेंट
जिसमें भीड़ तो होती है, बस जान नहीं होती
एक हिस्सा छोड़ने के बाद
दूसरा हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं होता नीम
लेकिन मौसम उसे नंगा करके ही छोड़ता है।
जब शहतूत पकने लगती है
और नीम में आते हैं नए फूल
तो चलाचली की बेला में होता है बेल
चार छह बच गए सूखे बेल लटकाए यह पेड़
हर हरे के बीच ठूंठ सा खड़ा रहता है
जैसे कोई बूढ़ा जर्जर खेलता हो बच्चों के साथ
जैसे समुद्र मे कोई तालाब सा हो
या फिर बहती नदी के बगल ठहरा हुआ हरा पानी
फिर एक दिन बूंदे बरसती हैं
और बढ़ता है नदी में पानी
और ले जाता है अपने साथ
नीम, शहतूत और बेल को भी।