मोदी सरकार का लोन अकाउंट : हर चीज के लिए लोन
इसी महीने यानी जून में मोदी सरकार ने विश्व बैंक से 500 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया है। यह कर्ज अटल भूजल योजना के लिए लिया गया है, जिसके तहत देश की धरती के नीचे जो पीने का पानी बचा हुआ है, उसका मैनेजमेंट करेंगे। पिछले महीने, यानी मई में सरकार ने विश्व बैंक से 500 मिलियन डॉलर का कर्ज और लिया था, जिसके लिए गांव की सड़कों को सुधारने का तर्क दिया गया था। सरकार बनने से लेकर अब तक, यानी जून 2014 से जून 2018 तक मोदी सरकार 70 बार में 13,570.86 मिलियन डॉलर का कर्ज अकेले विश्व बैंक से ले चुकी है। जिन दूसरे लोगों से लोन लिया गया है, उनमें एशियाई डेवलपमेंट बैंक, चीन का एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक, यूरोपियन यूनियन का यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक, जापान का ओडीए यानी ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट प्रमुख हैं, जिनसे बीते चार सालों में 300 बिलियन डॉलर से भी अधिक कर्ज लिया गया है। अकेले एडीबी यानी एशियन डेवलपमेंट बैंक मोदी सरकार को अब तक लगभग 100 बिलियन डॉलर का कर्ज दे चुका है। जिस साल मोदी जी की सरकार बनी, उस वक्त स्विस बैंकों में कुल 14 हजार करोड़ रुपये जमा थे, जिसके वापस आने पर उन्होंने हम सबको 15-15 लाख रुपये देने का जुमला फेंका था। अब तक मोदी सरकार स्विस बैंक में जमा कुल धनराशि से कई गुना अधिक लोन तो अकेले जापान से ले चुकी है। चीन का बैंक एआईआईबी मोदी जी के आने के बाद सन 2015 से अधिक ताकतवर हुआ और उसके बाद तो देश शायद ही ऐसा कोई राज्य बचा है, जिसके लिए सरकार ने चीन से लोन नहीं लिया। गुजरात के गावों की तो सारी सड़कें ही चीनी लोन से बन रही हैं।
विश्व बैंक से 13,570.86 मिलियन डॉलरचीन जापान से- 1 लाख मिलियन डॉलर से अधिकयूरोपियन यूनियन से 2 बिलियन यूरो से ज्यादा
इससे पहले कि विश्व बैंक से लिए गए सभी 70 लोन का हिसाब किताब जानें, यह देख लिया जाए कि इस सरकार में कितने लोन का खाता बंद हुआ। मई में शपथ ग्रहण के बाद अब तक सरकार ने अपने लिए गए लोन में से महज एक लोन का खाता बंद किया है। 250 मिलियन डॉलर का यह लोन राजस्थान में विद्युत वितरण में पहले सुधार के लिए लिया गया था, जो मार्च 2016 में बंद कर दिया गया। लेकिन अगर यह जानना हो कि जून 2014, यानी मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से लेकर मार्च 2016 तक इस 250 मिलियन डॉलर से कितना लाइनलॉस कम हुआ, विद्युत वितरण में कितना सुधार आया, कितनी चोरी रुकी, कितने तार लगे या जो कुछ भी हुआ, तो आरटीआई लगाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता। ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्थान एनर्जी पोर्टल, जिसे हम राजस्थान में पॉवर डिपार्टमेंट का एग्रीगेटर कह सकते हैं, वहां इसका कोई हिसाब-किताब नहीं दिया गया है।
वर्ष- 2016 बंद हुआ लोन - 250 मिलियन डॉलर
सरकार बनने के बाद यानी जून 2014 में मोदी सरकार ने पहला लोन मिजोरम में सड़क बनवाने के लिए 107 मिलियन डॉलर का लिया। यह अभी तक क्लोज नहीं हुआ है। उसी महीने 4.55 मिलियन डॉलर का लोन कर्नाटक मल्टीसेक्टोरल न्यूट्रीशियन पायलट के नाम पर लिया गया। यह भी अभी तक क्लोज नहीं हुआ है। सन 2014 में मोदी सरकार ने बस चलाने से लेकर गांव देहात के नाम पर 348.56 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया। पहले साल जो सबसे ज्यादा कर्ज लिया गया, वह नीरांचल नेशनल वॉटरशेड प्रोजेक्ट के लिए 178.50 मिलियन डॉलर का रहा। असल में यह पूरी योजना 357 मिलियन डॉलर की है, जिसमें भारत सरकार और विश्व बैंक आधा-आधा पैसा लगा रहे हैं। सिंचाई की हालत दुरुस्त करने के लिए यह योजना सन 1994-95 से ही चल रही है, जिसके तहत इस बार के लोन में देश के 9 राज्य सेलेक्ट किए गए हैं। इन सभी को अपनी ओर से इसमें 40 फीसदी लगाना पड़ेगा, 60 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार देती है और बाकी वर्ल्ड बैंक। यह पैसा उन्हीं किसानों के नाम पर लिया गया है, जो इन दिनों गांवबंदी पर हैं। इस साल विश्व बैंक से लोन के कुल 8 ट्रांजेक्शन हुए और कुल 460.11 मिलियन डॉलर का कर्ज उठाया गया। इस साल एशियन डेवलपमेंट बैंक से अकेले सड़क सुधार के नाम पर 9 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। अन्य मदों में एडीबी से 2,581.34 मिलियन डॉलर कर्ज में लिए गए हैं। एडीबी की 30 नवंबर 2014 की बैलेंस शीट 26 बिलियन डॉलर के आसपास का अमाउंट दिखा रही है। उत्तराखंड में पहाड़ों और जंगलों का सत्यानाश इन्हीं पैसों से किया जा रहा है। बाहरी देशों के बैंकों में जापान ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट - ओडीए ने भारत को वर्ष 2014 के लिए 1,141.68 मिलियन डॉलर का कर्ज दिया है।
वर्ष 2014107 मिलियन डॉलर - मिजोरम सड़क348.56 मिलियन डॉलर - गांव देहात178.50 मिलियन डॉलर - नीरांचल नेशनल वॉटरशेड प्रोजेक्ट9 बिलियन डॉलर - सड़क सुधार 1,141.68 मिलियन डॉलर - जापान ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट
अमाउंट की दृष्टि से साल 2015 सबसे बड़ा साल कहा जाएगा। इस साल मोदी सरकार ने विश्व बैंक से कुल 5299.88 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा 1500 मिलियन डॉलर का रहा, जो स्वच्छ भारत अभियान के सपोर्ट के लिए लिया गया है। निर्मल भारत अभियान का नाम बदलकर चलाए जा रहे इस कार्यक्रम में अब तक 40 से 50 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। 2019 तक लगभग 65 लाख शौचालय बनने थे, जिसमें अभी तक आधे भी नहीं बने हैं। निर्मल भारत अभियान के तहत प्रति शौचालय 1,467 रुपये से लेकर 1,797 रुपये का खर्च आता था। स्वच्छ भारत अभियान में यही खर्च प्रति शौचालय 5,294 रुपये से लेकर 5,455 रुपये का आ रहा है। शौचालयों से ग्राउंड वाटर क्वालिटी भी खराब हो चुकी है और कई जगहों पर टेस्ट के बाद सामने आया है कि इसमें जिस सोक टैंक का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी वजह से पूरे इलाके में जमीन के नीचे मौजूद पीने का पानी खराब हो चुका है। वहीं कूड़ा निस्तारण की बात करें तो देश भर में निकलने वाला 75 फीसद कूड़ा यूं ही बिखरा हुआ है, यानी अनट्रीटेड है। ये तब है, जबकि देश के 81 हजार नगरपालिका वार्डों में से सरकार अभी तक कुल 44,650 में घर-घर जाकर कूड़ा उठाने का दावा कर रही है। ये कूड़ा उठाकर सरकार क्या कर रही है, इसके बारे में सभी जानते हैं। वहीं बात अगर कूड़ा प्रबंधन से जुड़ी इकाइयों की करें तो ऐसा कोई प्रदेश नहीं, जहां सफाई कर्मचारी हड़ताल न कर चुके हों। देश की राजधानी दिल्ली तो सफाई कर्मचारियों के साथ अछूत बर्ताव को लेकर नजीर बन चुकी है।
वर्ष 2015 1500 मिलियन डॉलर - स्वच्छ भारत अभियान पहले खर्च1,467 - 1,797 रुपयेअब खर्च 5,294 -5,455 रुपये
साल 2015 में लिया गया दूसरा सबसे बड़ा लोन ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर-3 के लिए 650 मिलियन डॉलर का लिया गया। इस परियोजना के पहले हिस्से, मालगाड़ी से पंजाब को पश्चिम बंगाल तक जोड़ने वाले ट्रैक यानी ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर-1 का उद्घाटन इसी साल नवंबर में होने की उम्मीद है। यह कैसे होगा, यह तो गाड़ी दौड़ाने वाले जानें, क्योंकि धनबाद होकर गुजरने वाली सोन नगर से दानकुनी तक अभी तक एक किलोमीटर भी रेल लाइन नहीं बिछ पाई है। कई जगह काम बंद हो गया है। बिहार-झारखंड के ज्यादातर हिस्से में सर्वे का काम पूरा हो चुका है लेकिन पटरी बिछाने का काम शुरू नहीं हो पाया है। बिहार बंगाल में इसके लिए अभी तक उतनी जमीन का अधिग्रहण ही नहीं हो पाया है, जितनी होने के बाद रेलवे काम शुरू करता है। जगह-जगह पर किसान अपनी जमीन पर खेती ही करना चाहते हैं। 400 मिलियन डॉलर तमिलनाडु में सस्टेनबल डेवलपमेंट के लिए लिया गया है तो 250-250 मिलियन डॉलर का लोन क्रमश: आंध्र प्रदेश डिजास्टर रिकवरी प्रोजेक्ट और झेलम और तावी में आई बाढ़ को झेलने के लिए लिया था। 300 मिलियन डॉलर का लोन मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा में सुधार लाने के लिए लिया है तो 250 मिलियन डॉलर शिक्षकों में सुधार लाने के लिए लिए हैं। 500 मिलियन डॉलर का लोन मंत्री गिरिराज सिंह के विभाग सूक्षम, लघु और मध्यम उद्यम के लिए लिया गया है, जिसके तहत ऐसे उद्योगों की दशा सुधारने का लक्ष्य रखा गया था। इनके विभाग में जो महिलाओं के लिए व्यापार संबंधी उद्यमिता सहायता और विकास की योजना थी, वह इस साल बंद कर दी गई है। वर्ष 2012-13 में सूक्षम, लघु और मध्यम उद्योगों की वृद्धि दर 15.27 फीसद थी जो 2013-14 में 12.27 फीसद, 2014-15 में 9.43 फीसद और 2015-16 में घटकर 7.62 फीसद पर आ गई है। अकेले तमिलनाडु में इसी साल 49,329 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की इकाइयां बंद हो चुकी हैं, जिसकी वजह से सवा पांच लाख से भी अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं। बाकी के प्रदेशों का हाल भी तमिलनाडु से कुछ जुदा नहीं है। वैसे अनुसूचित जाति-जनजाति की उद्यमिता के नाम पर लुधियाना में 490 करोड़ रुपये खर्च करने थे, जिसका हिसाब भी मंत्री जी से लिया जाना जरूरी है। इस साल विश्व बैंक से लोन के कुल 16 ट्रांजेक्शन हुए। इस साल एशियन डेवलपमेंट बैंक से 2000 मिलियन डॉलर से कुछ अधिक का कर्ज लिया गया। दूसरे मदों में भी एडीबी से ही लोन के तहत 11.09 बिलियन डॉलर की प्राप्ति हुई। इसी साल जापान ने मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के लिए 1.5 ट्रिलियन येन का ऋण भी जारी किया, यानी लगभग 83 हजार करोड़ रुपये। इसी साल चीन ने अपने एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक को भारत में उतारा।
वर्ष 2015 650 मिलियन डॉलर - ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर-3 250 मिलियन डॉलर - आंध्र प्रदेश डिजास्टर रिकवरी प्रोजेक्ट250 मिलियन डॉलर - झेलम और तावी की बाढ़ एशियन डेवलपमेंट बैंक - 2000 मिलियन डॉलर 1.5 ट्रिलियन येन - मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के लिए जापान से
वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने विश्व बैंक से कुल 2355.63 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया। इसमें सबसे बड़ा कर्ज 500 मिलियन डॉलर का है जो ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम के लिए है। टारगेट है कि सन 2022 तक भारत सोलर पॉवर से 100 जीगा वाट बिजली का उत्पादन करेगा, जिसमें से अभी तक कई शर्तों के साथ 40 जीगा वाट के उत्पादन तक पहुंचा गया है। इसके अलावा एशियन डेवलपमेंट बैंक से भी सोलर रूफटॉप के लिए बड़ा अमाउंट कर्ज में लिया गया है। वैसे एडीबी को भारत सरकार ने एक जगह पर वर्ष 2022 तक सोलर पॉवर से 40 जीगा वाट के उत्पादन का लक्ष्य बताया है, तो दूसरी जगह, जो कि एडीबी और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का संयुक्त प्रोजेक्ट है, उसमें 2022 तक वापस 100 जीगा वाट का लक्ष्य बताया गया है। दूसरा बड़ा लोन 470 मिलियन डॉलर का रहा जो नॉर्थ ईस्ट में बिजली सिस्टम इंप्रूव करने के लिए लिया गया है। इसी साल एचआरडी मिनिस्ट्री ने देश भर की आईआईटी को सर्कुलर जारी करके कहा कि पैसों का इंतजाम खुद करो, अब केंद्र सरकार मदद नहीं देगी और इसी साल इन्हीं के लिए सरकार ने 201 मिलियन डॉलर का लोन तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी सुधारने के लिए ले लिया। वैसे अकेले बिहार की सड़कों के खाते में दो बार क्रमश: 235 और 290 मिलियन डॉलर गए हैं। इसी के बाद बिहार में नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिलाकर दोबारा शपथ ली। इस साल विश्व बैंक से लोन के कुल 13 ट्रांजेक्शन हुए। इस साल एशियन डेवलपमेंट बैंक से 3,076.19 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। अन्य मदों में 11.42 बिलियन डॉलर एडीबी से बतौर लोन लिए गए। बाहरी देशों के बैंकों में जापान ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट - ओडीए ने भारत को वर्ष 2016-17 के लिए 21,590 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। इसके अलावा इसी साल ओडीए ने दूसरे 400 बिलियन डॉलर के कर्ज में से 390 बिलियन डॉलर भी जारी किए हैं।
वर्ष 2016500 मिलियन डॉलर - ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम470 मिलियन डॉलर - नॉर्थ ईस्ट में बिजली सिस्टम201 मिलियन डॉलर - तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी3,076.19 मिलियन डॉलर - एशियन डेवलपमेंट बैंक21,590 करोड़ रुपये - ओडीए जापान
साल 2017 में जब तमिलनाडु के किसान जंतर मंतर पर अपने यहां मरे किसानों की खोपड़ियां रखकर बैठे थे और अपना मूत्र पी रहे थे, तब सरकार ने तमिलनाडु में रूरल ट्रांसफॉरमेशन प्रोजेक्ट के लिए 100 मिलियन तो सिंचाई व्यवस्था सुधारने के नाम पर 318 मिलियन डॉलर ले लिए। तमिलनाडु में किसान अभी भी सड़क पर ही हैं और पिछले दिनों वहां के थिरुचेंधुर में जब वह प्रदर्शन कर रहे थे, तब उनके नेता पी अय्याकन्नू से बीजेपी की नेता नेल्लैयामल भिड़ गईं और किसानों पर चप्पल चलाते हुए उनकी वीडियो खूब वायरल भी हुई। रिजर्व बैंक की एग्रीकल्चर लोन बुक अकाउंट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2015-16 में सबसे ज्यादा कृषि ऋण लेने वाले किसान तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश से हैं। इनपर औसतन दो लाख रुपये का कर्ज है और पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जो लोन माफ किया है, वह अधिकतम 1 लाख रुपये का है। योगी जी के पुअर टूरिज्म सेक्टर को सुधारने के लिए 40 मिलियन डॉलर का भी कर्ज लिया है, इसके बावजूद वाराणसी में पुल गिर गया। स्किल इंडिया मिशन के लिए भी इस साल 250 मिलियन डॉलर का कर्ज विश्व बैंक से लिया गया है तो आंध्र प्रदेश में चौबीस घंटे निर्बाध विद्युत आपूर्ति देने के लिए 240 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया है। स्किल इंडिया मिशन कामयाब नहीं हुआ और इसके मंत्री को बदलते हुए मंत्रालय का दर्जा भी कम कर दिया गया। नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की वेबसाइट के मुताबिक नोएडा में एसनीईजी नाम का कौशल विकास केंद्र चल रहा है लेकिन असलियत यह है कि वहां एक हॉस्टल चल रहा है, जबकि वेबसाइट के मुताबिक वहां 480 छात्रों को ब्यूटी और हेयरड्रेसिंग की ट्रेनिंग दी जा रही है। ऐसे ही काफी संस्थान या तो कागजों पर हैं, या फिर उनका ढांचा ही खड़ा हो पाया है, वहां संसाधन ही नहीं हैं। 375 मिलियन डॉलर नदियों में जहाज चलाने के नाम पर भी ले लिए गए, जिसके बारे में अभी हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि नेशनल वॉटरवे परियोजना फिसड्डी हो चुकी है। उत्तराखंड में इसी साल हेल्थ सिस्टम सुधारने के नाम पर 100 मिलियन डॉलर ले लिए तो वहां पर एम्स के डायरेक्टर ने गरीब ग्रामीणों से अनाप शनाप फीस वसूली करनी शुरू कर दी। बाद में जब मामला मीडिया की सुर्खी बना तो वसूली तो बंद की, लेकिन वसूले गए पैसे आज तक न तो वापस किए हैं, और न ही उसका कोई हिसाब दिया है। साल 2017 में मोदी सरकार ने अकेले वर्ल्ड बैंक के साथ 21 लोन ट्रांजेक्शन करते हुए 2885.54 मिलियन डॉलर का कर्ज उठाया। इसी साल एशियन डेवलपमेंट बैंक से 32 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा ऊर्जा, फाइनांस और ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर का रहा। 160 मिलियन डॉलर का लोन चीन के एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक से आंध्र प्रदेश में बिजली ठीक करने के नाम पर लिए गए। गुजरात के गावों में सड़क बनाने के लिए इसी चीनी बैंक से 329 मिलियन डॉलर, बैंगलोर में मेट्रो के नाम पर 335 मिलियन डॉलर, देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने के नाम पर 150 मिलियन डॉलर, बंगाल में सिंचाई सुधारने और बाढ़ राहत के नाम पर 145 मिलियन डॉलर, तमिलनाडु के ट्रांसमिशन सिस्टम दुरुस्त करने के लिए 100 मिलियन डॉलर और मुंबई मेट्रो के लिए 500 मिलियन डॉलर का लोन लिया है। देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य है, जहां चीनी सामान के साथ ही चीनी लोन न पहुंच सका हो। बंगलुरु मेट्रो के ही नाम पर 500 मिलियन यूरो और 300 मिलियन यूरो के दो लोन यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक यानी यूआईबी से लिए गए हैं। स्टेट बैंक की दशा सुधारने के लिए यहीं से 200 मिलियन यूरो का लोन लिया गया है।
साल 2017 100 मिलियन डॉलर - तमिलनाडु में रूरल ट्रांसफॉरमेशन प्रोजेक्ट, तमिलनाडु 318 मिलियन डॉलर - सिंचाई व्यवस्था, तमिलनाडु375 मिलियन डॉलर - नदियों में जहाज चलाने के लिए100 मिलियन डॉलर - हेल्थ सिस्टम, उत्तराखंड32 बिलियन डॉलर - एशियन डेवलपमेंट बैंक 335 मिलियन डॉलर - बंगलुरु मेट्रो200 मिलियन यूरो - स्टेट बैंक500 मिलियन यूरो - बंगलुरु मेट्रो300 मिलियन यूरो - बंगलुरु मेट्रो
इस साल, यानी 2018 के जून तक मोदी सरकार विश्व बैंक से 2569.70 मिलियन डॉलर का कुल कर्ज ले चुकी है। 500-500 मिलियन डॉलर के दो सबसे बड़े कर्ज अटल भूजल योजना और पीएमजीएसवाई रूरल रोड प्रोजेक्ट हेतु लिए गए हैं। 420 मिलियन डॉलर का कर्ज महाराष्ट्र में जलवायु पर टिकी किसी लचीली परियोजना के को चलाने के लिए लिया गया है। इसके बावजूद महाराष्ट्र में किसानों का बुरा हाल है। गांव और ग्रामीणों की हालत सुधारने के नाम पर भी पांच सौ मिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया है, उसके बावजूद आज गांव बंद हैं। किसान सड़क पर दूध गिरा रहे हैं, तो दूसरी ओर सरकार डेरी बढ़ाने के नाम पर जापान से लोन ले रही है। इस साल एशियन डेवलपमेंट बैंक से अपनी रिपोर्ट में यह साफ कहा है कि मोदी जी ने जो नोटबंदी की थी, वह भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले साल यानी वर्ष 2017 तक डुबोती रही। इस साल इस बैंक से 600 मिलियन डॉलर कर्ज उठाया गया। चीन से भी इसी साल 1-5 बिलियन डॉलर का लोन इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए तो लिया ही है, अरबन आंध्र प्रदेश में पानी और सेप्टेज के नाम पर 400 मिलियन डॉलर, नेशनल इन्वेस्टमेंट और इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के नाम पर 200 मिलियन डॉलर, मध्य प्रदेश रुरल कनेक्टिविटी के नाम पर 140 मिलियन डॉलर लिया गया है। इसी साल मार्च में सरकार ने यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक यानी यूआईबी से भी 150 मिलियन यूरो यानी साढ़े सत्रह करोड़ डॉलर से भी अधिक लोन ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए लिया है। यहीं से 1.7 बिलियन यूरो का लोन और पास हुआ है, जिनसे मिले पैसों का प्रयोग देश में चल रहे आठ अलग अलग प्रोजेक्ट में लगाने की बात कही गई है। ये सारे आंकड़े इंटरनेट पर उपलब्ध इन सभी बैंकों की वेबसाइट से लिए गए हैं। पूरे मामले में गौर करने वाली एक इम्पॉर्टेंट बात यह दिखती है कि अधिकतर विदेशी बैंकों ने अपनी रकम का अधिकतर आंकड़ा ऑनलाइन कर रखा है। लेकिन भारत सरकार ने उन पैसों का क्या किया, या उसका क्या रिजल्ट आया, इसकी जानकारी कहीं भी नहीं दी है। इनकी जितनी योजनाएं चल रही हैं, किसी की भी ताजा जानकारी या आंकड़े इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है, जिसकी पर्देदारी है?
वर्ष - 2018500 मिलियन डॉलर - अटल भूजल योजना 500 मिलियन डॉलर - पीएमजीएसवाई रूरल रोड प्रोजेक्ट420 मिलियन डॉलर - महाराष्ट्र जलवायु 1-5 बिलियन डॉलर - चीन से 400 मिलियन डॉलर - आंध्र प्रदेश में पानी और सेप्टेज200 मिलियन डॉलर - नेशनल इन्वेस्टमेंट और इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड 140 मिलियन डॉलर - मध्य प्रदेश रुरल कनेक्टिविटी 150 मिलियन यूरो - ऊर्जा संबंधी जरूरतें 1.7 बिलियन यूरो का लोन - यूरोपियन यूनियन
2017 की आखिरी तिमाही, यानी पिछले साल के दिसंबर में भारत पर 513438 मिलियन डॉलर का बाहरी कर्ज चढ़ चुका था। यह पिछले 70 वर्षों के इतिहास में सबसे ज्यादा बड़ा अमाउंट है। सन 1999 से बाहरी कर्ज का औसत 260273.96 मिलियन डॉलर पर बना हुआ था जो पिछले साल के अंत के साथ ही टूट चुका है। लोन लेने में इस सरकार ने पिछले 70 सालों में सारी सरकारों को पीछे छोड़ दिया है।
Research References-
वर्ल्ड बैंक: प्रोजेक्ट एंड ऑपरेशंस- इंडिया
आईबीआरडी लोन एंड क्रेडिट - वर्ल्ड बैंक डाटा शीट-
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक : सर्च कीवर्ड- इंडिया - 147 खोज परिणाम
सर्च कीवर्ड- लोन टु इंडिया - 304 खोज परिणाम
एशियन डेवलपमेंट बैंक - MEMBER FACT SHEET 23 अप्रैल 2018 को प्रकाशित
एशियन डेवलपमेंट बैंक -लोन टु इंडिया- 4272 सर्च रिजल्ट
ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट, जापान
ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट, जापान - भारत
यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक - सर्च - लोन टु इंडिया - 500 खोज परिणाम
यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक- बंगलुरु मेट्रो प्रोजेक्ट
बिजनेस स्टैंडर्ड: 70 साल में सबसे ज्यादा लोन लेने वाला देश बना भारत
ट्रेंडिंग इकोनॉमिक्स के मुताबिक कर्ज का हाल-
स्वच्छ भारत मिशन - डाउन टु अर्थ
स्वच्छ भारत मिशन इन्डेक्स
कारवां- स्वच्छ भारत मिशन
एमएसएमई मिनिस्ट्री- सालाना रिपोर्ट- 2017-18
ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
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