Saturday, September 28, 2013

कॉर्नर वाला कमरा

आते जाते वो नजरों से बच नहीं पाता था
आना जाना प्रकृति तो नहीं, पर मजबूरी थी
नजरों का उठना, चीजों को देखना
जरूर प्रकृति ही थी।
हालांकि वो प्राकृति‍क नहीं था
फि‍र भी, नजरों से न बच पाना
उसकी नि‍यति थी।
वो गली में कॉर्नर वाला कमरा था।

कमरा, मकान और घर में बस समझने का फेर है।
उसने इसे कमरे का ही तो नाम दि‍या।
और साथ में बसाई
एक चारपाई, एक कुर्सी और मेज।
खि‍ड़की के पास पड़ी मेज और उसपर पड़े बरतन
अक्‍सर दि‍खाई देते थे।
खड़खड़ करते बरतन
सुनाई भी पड़ते थे, संडे के संडे।

एक दि‍न, और उस एक दि‍न के बाद के कई दि‍नों तक
अचानक उस कमरे में बरतनों की आवाज बढ़ गई।
शायद बरतन भी बढ़ गए थे।
कई दि‍नों बरतन खड़खड़ कर गली में ध्‍यान खींचते रहे
कई दि‍नों तक उस कमरे की चुप
आश्‍चर्य में भी डालती रही।
कई दि‍नों तक उस कमरे से
आवाजें भी आती रहीं।
सिर्फ बरतनों की ही नहीं
लोगों की भी।
पर उन आवाजों में कुछ कॉमन था
कॉमन थी वहां से आती
तेज, धीमी आवाज और फुसफुसाहट भी
कराह भी और खि‍लखि‍लाहट भी।
और कान भी आते जाते होने लगे थे अभ्‍यस्‍त।

एक दि‍न, उसी कॉनर्र वाले मकान पर ताला लगा था,
दूसरे दि‍न भी लगा रहा और आने वाले कई दि‍नों तक
उस मकान में ताला लटकता रहा।
उन दि‍नों, भारी बरसात का मौसम था
और सड़ने शुरू हो चुके थे, उस मकान के दरवाजे
ताला बदस्‍तूर लटका हुआ था,
पर दरवाजे कमजोर पड़ चुके थे।

और फि‍र एक दि‍न
ताले सहि‍त दरवाजा भरभराकर नीचे गि‍रा पाया गया
मोहल्‍ले में शुरू हो गईं बातें
तरह तरह की बातें
उजली पीली स्‍याह बातें
बातों का क्‍या है,
अब कमरे के भीतर तो पड़ोस वाली ताई भी तो न गई थीं।
इसीलि‍ए बातें बनीं, और खूब बनीं।
सड़ा हुआ दरवाजा पड़ा रहा, और उस पर
जमने लगी फंफूद और कुकुरमुत्‍ते।
एक एक करके गायब हुए सारे बरतन
कुर्सी और चारपाई भी।
कमरे में लोटने लगे कुत्‍ते और
खड़ी होने लगी उसमें गायें।
पूंछ हि‍लातीं, पगुरातीं और सि‍र इस तरह से हि‍लातीं
जैसे कमरे की दीवारें
उन्‍हें बता रही हों अपनी दास्‍तान
और वो कि‍सी बात से
दीवारों से असहमति जता रही हों।

कमरा गि‍र गया,
दरवाजा तो पहले ही गि‍र चुका था।
कुछ दि‍न तो चीजें यूं ही गि‍री पड़ी रहीं
और फि‍र से एक दि‍न आया
कमरे की नीवें फि‍र से डाली गईं,
कब्‍जा कर लि‍या गया उस पर
और इस बार बनाए गए उसमें
पूरे तीन कमरे
जि‍नमें से एक में
अब रोज सुबह
मंत्रोच्‍चार और घंटी की आवाज आती है,
सब सुखी हैं अब वहां।
और उन कमरों से आती आवाजें
अब बरबस ध्‍यान नहीं खींचतीं। 

Thursday, September 12, 2013

ब्राह्मणवादी पतकार का एक दिन

 इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकारि‍ता के पेशे में ब्राह्म्‍ण व अन्‍य सवर्ण जाति‍यां जरूरत से ज्‍यादा हैं। इनमें भी जबरदस्‍त ब्राह्म्‍णवाद है जि‍से जेपी नाम बदलने का नारा देने के बाद भी खत्‍म नहीं कर पाए। उनके नारे के साथ अपने नाम का नाड़ा बांध चुके ये पत्रकार किस मानसि‍कता से लैस हैं, इसका काफी अच्‍छा खुलासा भारत ने कि‍या है। भारत तेज तर्रार युवा पत्रकार हैं जो फि‍लहाल अपनी तेजी के चलते फेसबुक पर कई संपादकों के बैन का शि‍कार चल रहे हैं। प्रस्‍तुत है पूरा आलेख... 
भारत सिंह


तकार वो पूरा था पर उससे पहले था ब्राह्मणवादी, इसका पर्दाफाश बस अभी हुआ जाता है। हालांकि नाम के आगे से उसने अपना ब्राह्मण उपनाम हटा दिया था और वह अब कुछ इस तरह हो गया था- कुमार 'गजेंद्र'। फेसबुक पर अपने नामकरण के बाद उसने घोषणा कर दी थी कि वह आज से ब्राह्मणवादी नहीं रहा, पर ब्राह्मण कहाने में उसे गुदगुदी जैसा फील गुड होता था। गजेंद्र का मतलब उसे पता हो न हो लेकिन वह हमेशा सिंगल कॉमा में घिरा रहता। पतकार ऊंची कॉरपोरेट कंपनी में था, लेटेस्ट मीडियम ऑफ जर्नलिज्म में। आगे है दिन की शुरुआत का आंखों देखा हाल-

फिस पहुंचने के बाद उसने अपने बैग और शरीर को टिकाया और जेब से नए स्टाइल की मगर मैली कंघी निकाली। बालों पर कंघी मारने के बाद मुंह पोंछा और पहला नमन अपने कंप्यूटर के बाईं ओर करीने से
सजाई देवी-देवताओं की चार मिनी मूर्तियों को छोड़ा। दूसरा नमन मिला दाईं ओर लगी दो मूर्तियों को (हालांकि वाम से उसका कोई जुड़ाव नहीं था पर अपनी ही बनाई वास्तु की एक फर्जी खबर पढ़कर उसने बाईं ओर ज्यादा ताकतवर और गुस्सैल देवताओं को जगह दी थी)। गला खंखारते हुए उसने पैंट्री का नंबर मिलाया और संपादकीय अंदाज में आदेश दिया- एक पानी-एक चाय। उधर से आवाज आई- सर एचआर और आईटी में नाश्ता लगाना है, थोड़ी देर लगेगी, करीब आधा घंटा (पतकार पतंगे की तरह जल-भुन गया पर दस कदम दूर पानी और चाय लेने नहीं गया, हालांकि वह जाता तो उसे पता चल जाता कि पैंट्री वाले ने जानबूझकर पतकार को टरकाने को ऐसा कहा था जिसे कुछ गैर ब्राह्मणवादी और पापी पतकारों ने ऐसा सिखाया था)।

कंप्यूटर ऑन करते समय उसे पता चला एक मूर्ति कम है। 'बाप रे बाप'। वह घबरा उठा। इधर-उधर नजर फिराई तो मूर्ति नीचे डस्टबिन में पड़ी मिली। उठाने लगा तो उस पर लगी च्यूइंगम भी हाथ में चिपक गई। बजरंगबली की ऐसी दुर्दशा देख उसकी कंजी आंखों से दो आंसों लुढ़के और गुंदाज गालों का स्पर्श करते हुए उसके मोटे पेट पर जा अटके। यहां पर पतकार भावुक हो चुका था। लेकिन कंप्यूटर पर स्क्रॉल होती खबर देख तीन नैनो सैंकेड में ही उसके आंसू सूखकर आंखों में चमक आ गई। उसके इलाके में एक रेप की खबर चल रही थी। उसने संपादक के केबिन में नजर मारी, वो भी आ चुका था। पतकार ने वहां पहुंचकर लगभग सांष्टांग प्रणाम किया और कहा- सर, बड़ा मसाला है। आगे का हाल-

संपादक- हम्‍मम, बताओ।
पतकार- सर एक लड़की का रेप हो गया, उसी के ब्वॉयफ्रेंड और दो दोस्तों ने किया है।
संपादक- हां, ठीक है, चलाओ।
पतकार- अरे सर, लड़की रात को खाने के बाद खुद अपने ब्वॉयफ्रेंड को घर पर बुलाती थी, कल उसके दो और दोस्त आ गए, बीयर पीकर। घर के पीछे कई बोतलें भी मिली हैं।
हालांकि संपादक नहीं था प्रकाण्ड बुद्धिजीवी, फिर भी बोला- अरे कहां यार, बचा करो इससे।
पतकार- सर किसी के पास नहीं है ये मसाला, लड़की के पड़ोसी भगवान जी की कसम खाकर बता रहे हैं, अब सर झूठी कसम थोड़ी ना खाएंगे, वो भी भगवान जी की।
संपादक- देख लो यार, अपन को किसी लफड़े में नहीं पड़ना।

केबिन से बाहर को लपकते हुए उसने अगला फोन (ऑफिस के नंबर से) उसने अपने अधीन और सुदूर बैठे पतकार को मिलाया, आगे की बातचीत-

पतकार- कहां रहते हो, सुबह से पांच बार फोन मिला दिया है उठाते क्यों नहीं हो।
छोटा पतकार- सर, नहीं सर, मेरे पास तो कोई फोन नहीं आया।
पतकार- अनरीचेबल रहोगे तो फोन कैसे आएगा, सुनो आज यूनिवर्सिटी का चक्कर लगा लेना।
छोटा पतकार- पर सर, परसों ही गया था, कोई खबर नहीं मिलती।
पतकार- अरे मिकी (बहन) को घी का डिब्बा और फेयर एंड लवली पहुंचाना है, अब भी कह रहा हूं काम करना भी सीख लो, संपादक जी पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में, मैंने कहा ढीला है पर ठीक हो जाएगा।
छोटा पतकार- मन ही मन गाली देते हुए- ठीक है सर।
पतकार ने दो मिनट आंखें बंद कर सोचा
पतकार- और सुनो जो रेप हुआ है उसे पड़ोसियों से बुलवाओ कि लड़की- लौंडे से अपने घर पर मिलती थी, उनसे कहो कि नाम नहीं जाएगा किसी का।
छोटा पतकार- मन ही मन नई गाली देते हुए- ठीक है सर।

तकार ने मन ही मन बजरंग बली को नमन किया और धांसू स्टोरी के आइडिए के बारे में सोचने लगा। सोचते-सोचते उसे एक झपकी आ गई और वह कुर्सी समेत लुढ़कते-लुढ़कते बचा। झटके से आंख खुली तो आंखें लगभग चमक रही थी, उसने कुंभ में तैनात दूसरे छोटे पतकार को फोन लगाया।

पतकार फिर से संपादकीय अंदाज में-  हां, कुछ कर नहीं रहे हो, ऐसे काम चलेगा नहीं।
छोटा पतकार- अरे सर क्या करूं, ये बाबाओं का मेला है और आपको चाहिए मसाला।
पतकार- हम्मम। चलेगा तो वही, कितने बाबा दिखाओगे, ज्यादा बाबा किया तो लोग देखने आएंगे नहीं।
छोटा पतकार- सर आप ही बता दो क्या करूं।
पतकार- यार हम तो जब भी इलाहाबाद में गंगा घाट पर जाते थे वहां कोई न कोई महिला या लड़की नहाते दिख जाती थी और झीने कपड़ों में हो तो भीड़ लग जाती थी उसे देखने को। किसी घाट से ऐसी फोटो नहीं ला सकते हो तुम?
छोटा पतकार- अरे सर लेकिन...
पतकार- अरे यार कोई काम तो कर लिया करो, एक तो तुम्हें खबरों की समझ है नहीं ऊपर से बहस करते हो। आज तक मीडियम ही नहीं समझ पाए हो तुम, अखबार की तरह नहीं है ये मीडियम।
छोटा पतकार- सर किसी ने कैमरा छीन लिया तो, वैसे भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है।
पतकार- अरे यार तुम तो लोगों के लिए काम कर रहे हो ना, कोई रोके तो बोलना कि अपने घर के लिए थोड़ी ना कर रहे हैं, लोगों की डिमांड है उनके लिए कर रहे हैं। कल तक मुझे कम से कम तीन सौ फोटो चाहिए लड़कियों के नहाने की। चाहे कपड़ों में हो या बिना कपड़ों के, यहां हम ब्लर करके काम चला लेंगे। बाबा-साबा बहुत दिखा लिए। कुछ ढंग का काम करो।

तकार ने सशरीर शांति ढूंढने की कोशिश की और कुंभ में नहाती लड़कियों के लिए हेडिंग भी ढूंढ ली- देखिए क्या हो रहा है संगम में, नहीं-नहीं....संगम में देखिए स्वीमिंग पूल की मस्ती..हां, ये जबरदस्त रहेगा। इसी बीच फोन घनघना उठा। नंबर देख वह फिर से गिरते-गिरते बचा। सीधे समूह संपादक जी का फोन था।

पतकार- जी सर, नमस्ते सर, आदेश सर
बड़ा संपादक- ये रेप वाली खबर कौन लगाया।
पतकार- सर मैंने लगाई, हटा दूं क्या
बड़ा संपादक- अगर हटानी थी तो लगाई क्यों
पतकार- जी..वो...
बड़ा संपादक- तुम्हें नहीं पता रेप पीड़ित का नाम और पहचान छुपाई जाती है।
पतकार- जी सर, वो लड़की खुद सामने आकर बोली है।
बड़ा संपादक- अरे यार... खट्टाक से फोन रखा
पतकार के हाथ-पांव फूल गए। तुरंत रेप पीड़ित की फोटो ब्लर की लेकिन बड़बड़ाना छूटा नहीं- फोटो ब्लर कर देंगे तो खबर देखेगा कौन, पता नहीं सर भी नहीं समझते हैं। ज्याद कुछ कहूंगा तो कह देंगे डेमो पिक लगाओ...

सके बाद दिन भर पतकार ने दूसरा काम नहीं किया। दोपहर बाद तक पतकार की खबर खूब चली और पतकार ने 35 रुपये के सात समोसे खरीदे और संपादक समेत अपने छह सीनियरों को खिला दिए (चाय फ्री की थी ही)। शाम तक फ्री की पंद्रह-बीस चाय पीने और आधे समोसे के अलावा कुछ न खाने से पतकार के पेट में गैस बनने लगी थी, लेकिन संपादक जी से पहले घर तो नहीं ना जा सकता था। एक लिफ्ट भी मिली थी, लेकिन पतकार ने कह दिया- संपादक जी कहते हैं कि उनके साथ ही जाया करूं (हालांकि संपादक रिक्शे से जाता था और पतकार का घर ठीक उससे उलट था, लेकिन स्वामिभक्ति भी कोई चीज होते है कि नहीं)। इसी बीच उसने सोचा कि ऑफिस में ही हल्का हो लूं तो संपादक जी ने उंगली से इशारा किया कि चलो तो उसने प्रेशर को हैंडल करते हुए राम और हनुमान का नाम लिया और कमर कसकर घर की ओर निकल पड़ा। उसकी चाल में कुछ लंगड़ाहट थी और इसे देख जमाने ने अफसाना बना दिया। 

Monday, September 9, 2013

भक्‍त पत्रकार और नरेंद्र मोदी की काल्‍पनि‍क मुलाकात

पाठकों की सुवि‍धा के लि‍ए पत्रकार का नाम हम महर्षि रख लेते हैं। महर्षि ने दो दि‍न पहले ही फेसबुक पर घोषणा कर दी थी कि मोदी आ रहे हैं, बहुत दि‍नों बाद उनसे मि‍लना हो रहा है। (हालांकि मोदी की ओर से उन्‍हें टाइम नहीं दि‍या गया था, इसलि‍ए डर भी लग रहा था कि मोदी उनका हाल आसाराम वाला न कर दें)

भाषण के बाद जब मोदी मंच से नीचे उतरे तो महर्षि साहब सीढ़ी की रेलिंग कि‍सी तरह से थामे उड़ रहे थे। (उड़ इसलि‍ए रहे थे क्‍योंकि मोदी के बाकी समर्थकों को भी मोदी का आर्शीवाद लेना था और वो उन्‍हें धकि‍याए जा रहे थे) बहरहाल, जैसे ही मोदी मंच से नीचे उतरे, महर्षि साहब धड़ाम से उनके पैरों में जा गि‍रे। हल्‍ला मच
गया। मोदी का पीआरओ महर्षि जी को पहचानता था, सो तुरंत बाकि‍यों को उनके ऊपर से धक्‍का मार मारकर हटाया और उन्‍हें उठाकर उनकी झाड़ पोंछ की। उन्‍हें बताया कि अरे, आप तो पतकार हैं, आपके मि‍लने का खास इंतजाम कि‍या गया है। वहां ढोकला भी खाने को मि‍लेगा टोमेटो सास और प्‍लास्‍टिक वाली चम्‍मच के साथ। पतकार जी के मुंह में पानी आ गए और चश्‍मा ठीक करते, बटन बंद करते हुए वो फटाफट मीटिंग रूम की तरफ भागे, लेकि‍न भाग नहीं पा रहे थे क्‍योंकि कि‍सी समर्थक ने लंगड़ी मारकर उनकी चप्‍पल तोड़ दी। राम राम करते मीटिंग रूम में पहुंचे और आधा कि‍लो ढोकला मोदी के आने से पहले से सूत दि‍ए। हालांकि बाद में उन्‍हें याद आया कि अरे, उनका तो गणेश चतुर्थी का व्रत है। जीवन में ऐसी भूल उनसे पहली बार हुई। उन्‍होंने सोचा, खैर, आज साक्षात दर्शन हो रहे हैं तो व्रत भंग होना कोई बड़ी बात नहीं। आधा घंटा इंतजार कराने के बाद आखि‍रकार मोदी कमरे में आए। आगे पढ़ें महर्षि मोदी संवाद:-

मोदी के पैरों में गि‍रते हुए महर्षि: नमस्‍कार सर।
मोदी: अरे, उठि‍ए उठि‍ए, आप की जगह तो दि‍ल में है। और नमस्‍कार वैसे भी खड़े होकर कि‍या जाता है।
महर्षि: ही ही ही ही, अरे सर, क्‍या कहें, हम गंगा कि‍नारे वाले हैं ना, तनि‍क नरभसा गए थे। वैसे सर, आपका भासण बहोत अच्‍छा रहा। आपका जो भाइयो बहनों और मेरे मि‍त्रों कहने का इस्‍टाइल है, इसपर हम इस्‍पेसल कवरेज करने जा रहे हैं। ऐसे जोसीले तरीके से भासण की सुरुआत कोई नहीं करता। हमने तो ईएनटी इस्‍पेसलि‍स्‍ट को आपके दो दर्जन भासण सुनाकर पता लगाया है कि आपकी 40 फीसदी ऊर्जा मेरे भाइयो बहनों और मेरे मि‍त्रों में नि‍कलती है। इसीलि‍ए, वहां से जोस आ जाता है।

मोदी: ह ह ह ह। नाम क्‍या बताया आपने अपना।
महर्षि: सर महर्षि सर।
मोदी: महर्षि या सर महर्षि सर। या फि‍र ये दोनों।
महर्षि: आपके लि‍ए सिर्फ महर्षि। सर वैसे इंटरव्‍यू मैनें लेना है आपका।
मोदी: अरे वो तो हो जाएगा महर्षि जी। और बताइये, घर में सब कुशल मंगल। कहां कहां काम कि‍या है आपने।
महर्षि: बस सर, सब आपकी कृपा है। हमने तो घाट घाट, घर घर का पानी पि‍या है। पढ़ाई यूपी में की तो काम कि‍या एमपी और महाराष्‍ट्र में। ननि‍हाल ठहरा राजस्‍थान में तो सभी जगह की पॉलि‍टि‍क्‍स में हाथ तंग है। सॉरी सॉरी, पॉलि‍टि‍क्‍स में अपना हाथ है।
मोदी: हमारे साथ काम करेंगे महर्षि जी। (क्‍वेश्‍चन मार्क इसलि‍ए नहीं है क्‍योंकि ये आदेश टाइप में दि‍या गया था।)
महर्षि: ही ही ही ही...सरजी। (हीहीहीही करने पर महर्षि जी का थोड़ा थूक भी मोदी के चप्‍पल पर गि‍र गया जि‍से महर्षि ने लपककर अपना कुर्ता फाड़कर साफ कि‍या।)
महर्षि: सर, दि‍न में तो नौकरी करनी होती है। हम रात में आपका सारा प्‍लान बनाकर दे देंगे। और आपको अपने यहां पूरा स्‍पेस भी देंगे सर। ऑल एडीशन। मैं सर लोगों से बात कर लूंगा। पता नहीं क्‍यूं कांग्रेस के पीछे लगे रहते हैं ये लोग।
मोदी: ठीक है, अपना बायोडाटा भेज देना। देखेंगे। नेक्‍स्‍ट.
महर्षि: अरे सर, इंटरव्‍यू...
मोदी: नेक्‍स्‍ट प्‍लीज..
महर्षि: सर, एक ऑटोग्राफ तो दे दीजि‍ए।
मोदी: अरे भगाओ यार इसको। सारा ढोकला खा गया और चप्‍पल खराब कर दी।
कमरे से नि‍कलते हुए महर्षि: ही ही ही ही, सर भी बड़े मजाकि‍या हैं। (संपादक को फोन करते हुए- सर बहोत अच्‍छा इंटरभ्‍यू रहा। मुझे तो उन्‍होंने अपनी पूरी प्‍लानिंग बता दी।)


(डि‍स्‍क्‍लेमर: पूरी वारदात, आई मीन मुलाकात का कि‍सी जीवि‍त या मृत पतकार से कोई लेना देना नहीं है। वैसे जो ले या दे रहे हों, वो दि‍ल पर ले या दे सकते हैं।)