लिब्राहन आयोग रिपोर्ट नही, साजिश है
जिस वक्त संघ और बी जी पी ने पूरे मुल्क को जहर की जद मे ले लिया था, कुछ कथित समाचार पत्र भी उसी जहर की जद मे आकर जहर फ़ैलाने का काम कर रहे थे, उस वक्त अयोध्या मे के पी सिंह शायद उन गिने चुने पत्रकारों मे एक थे जिन्होंने जहर को मानने से ही इनकार कर दिया था। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर के पी सिंह मानते हैं कि रिपोर्ट कोई सजा नही है, बल्कि ये मौजूदा हालात को एक बार फ़िर से भुला देने के सोची समझी कवायद है, साजिश है। और यही कारण है कि संसद सत्र के आखिर मे पेश होने वाली लिब्राहन योग की रपट लीक हुई और संसद सत्र के शुरुआत मे पेश की गई. ताकि मूलभूत समस्याओं की जगह अगर बहस हो तो मन्दिर पर-जिससे किसी का पेट नही भरने वाला, किसी हाथ को काम नही मिलने वाला. पेश है लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.....
लिब्राहन आयोग के ये जो एक्शन टेकन रिपोर्ट है, इसकी टाइमिंग से मुझे काफ़ी दिक्कत है। जो आयोग किसी रिपोर्ट मे इतना ज्यादा वक्त लगा दे, उसकी विश्वसनीयता पर मुझे संदेह है। जो आयोग अपने लिए इतने एक्सटेंशन मांगता है, और एक पीढ़ी पूरी ख़त्म हो जाती है उसकी रिपोर्ट आने मे, और उसके बाद वो रिपोर्ट देता है। रिपोर्ट देने से पहले, रिपोर्टिंग कार्यकाल मे उसके अपने ही वकील से नाइत्तेफाकी होती है, जो उसकी विश्वसनीयता पर संदेह खड़े करते हुए उससे अलग हो जाता है। ऐसे मे ये जो रिपोर्ट है, इसे मैं बहुत प्रमाणिक मानने के लिए तैयार नही हूँ। और दूसरे इस रिपोर्ट पर जो भी रियेक्शंस आ रहे हैं, वह सब राजनितिक स्वार्थ साधने वाले ऐक्संस हैं। सबने अपनी अपनी लाइन ले ली है। कांग्रे का खेल बिगाड़ने के लिए मुलायम सिंह कह रहे हैं कि विवादित स्थल पर मस्जिद बननी चाहिए, जो अब तक उन्हें याद नही थी। क्योंकि मुलायम सिंह से अल्पसंख्यक रूठ कर चले गए हैं। वही राष्ट्र के नाम संदेश मे नरसिंह राव ने बयान दिया था कि मस्जिद का निर्माण कार्य कराया जाएगा। लेकिन ऐसा नही हुआ। इसलिए अब मुझे बी जे पी से ज्यादा कुसूरवार कांग्रेस नजर आ रही है। बी जे पी का जो खेल था, वो उसने किया और उससे लाभ उठाया। अब अगर इसमे इन लोगो को सजा नही मिलती है, और मुझे विश्वास है कि नही मिलेगी। क्योंकि सी बी आई ने जो चार्जशीट फ़ाइल की है, उसमे से अडवाणी की आवाज ही गायब है। जिस वक्त अडवाणी गृहमंत्री थे, उस वक्त उन्होंने ये खेल किया। तो योग की रिपोर्ट पर बहस अब सिर्फ़ लकीर पीटने जैसा है। रिपोर्ट मे छद्म उदारवाद का जो जिक्र हुआ है उसका ठीक ठीक मतलब तो लिब्राहन साहब ही बता सकते हैं। और अगर इस शब्द पर बहस हो तो खाली ये कहने से काम नही चलेगा कि बी जे पी कैसे थी। इस शब्द का अर्थ तभी समझा जा सकेगा जब आप (कांग्रेस ) बताएँगे कि आप कैसे हैं। क्योंकि बी जे पी को जो करना था, वो वह कर के गई और देश की जनता ने उसे कूड़े पर डाल दिया। अब कांग्रेस को बताना ही पड़ेगा कि जिन लोगों ने पूरे देश को कठघरे मे खड़ा कर दिया, उनका क्या करने जा रहे हैं? लेकिन कांग्रेस से ये सवाल पूछे कौन? क्या संसद मे बैठा विपक्ष? विपक्ष देश मे है ही नही। सवाल पूछने वाले विपक्ष को अभी इस देश मे बनना है। फिलहाल दिखने वाला विपक्ष सत्ता का ही एक संस्करण है। इतनी सरकारें देश ने देखी, यहाँ तक कि कम्युनिस्टों की भी, लेकिन किसी मे कोई फर्क नजर तो नही आया। इसका सीधा सा मतलब है, संसद मे विपक्ष है ही नही। खाली संसद मे विपक्षी दीर्घा मे बैठा विपक्ष नही होता। तो कुल मिलकर ये सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सोची समझी साजिश है, खासकर कांग्रेस की। क्योंकि ऐसे वक्त मे जब देश मे बेरोजगारी चरम पर है, मंदी की मार से युवा वर्ग टूट रहा है, रही सही कसर महगाई पूरी कर दे रही है। तो इस वक्त ऐसे थोथी बातों का शिगूफा खड़ा करने का मतलब क्या है? कहीं ये देश की मूलभूत समस्याओं को एक झटके मे भुला देने की साजिश तो नही है?