गोल वार्निंग : नहाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
अब भई , अपनी उत्तर प्रदेश सरकार के इस रवैये से हम भी इत्तेफाक रखते हैं। आदमी को नहाना नही चाहिए। नहाना खतरनाक हो सकता है। और ये कोई आज से नही, बचपन से झेल रहे हैं। बचपन मे जब हम चुपके से गुप्तार घाट पर पतारू के साथ भागकर नहाते थे, और लौटकर आते थे तो अनिल की अम्मा से लेकर अगम और मेरी अम्मा तक सोंटी लेकर पीछे पड़ जाती थीं। कि कैसे हिम्मत हुई बगैर पूछे गुप्तार घाट जाने की और वहां नहाने की। दो चार सोंटी का परसाद देकर ही मेरी और बाकी मोहल्ले की अम्माओं को चैन मिलता था। उसके बाद जब मौसी के यहाँ बाथरूम की नाली बंद करके बाथरूम मे पानी भरकर नहाते थे, तो मौसी पीछे पड़ती थी। तब से आज का दिन है, हम बेवजह नहाते ही नही। भले ही दो-दो दिन गुजर जायें। और वैसे भी उत्तर प्रदेश का जो इतिहास रहा है, उसमे नहाना काफी बुरा विषय माना गया है। अपने मुरलीवाले (अरे मुरली मनोहर ही, जोशी नही ! ) अक्सर गोपियों के कपड़े नहाते वक्त ही चुराते थे। पूरा गाँव उल्हाना देता फिरता था। कुम्भ के मेले मे एक बस नहाने के लिए लाखों लोग भागे चले जाते हैं। काहे भई? घर पे पानी नही आ रहा होता है क्या? एक बार तो इसी नहान के चक्कर मे अयोध्या के पास बड़ी रेल दुर्घटना हुई थी, कई लोगो की जान चली गई थी। नहाने से बचने का उल्लेख हमारी पुरानी किताबों मे भी मिलता है। कि फला देवता नहाने ही तो गए थे कि कोई उनका पैर ही पकड़े खीचे चला जा रहा था। बड़ी मुश्किल से अपने साथी देवताओं का ध्यान किया, मख्खन लगाया, तब कही जाकर छूटे। अब ऐसे मे कांग्रेस देस के युवराज भइया राहुल गाँधी अपने छेदी भइया के घर हैंडपंप से नहा लें, तो उत्तर प्रदेश सरकार और अब बहन नही, अम्मा मायावती को बुरा लग जाय तो इसमे हैरानी की कोई बात ही नही। भई , पुराना इतिहास रहा है प्रदेश का। उत्तर से उत्तम होते हुए भले चाहे गन्धैलों का प्रदेश हो जाए। छेदी भइया भले ही गदगद हो जाए, नहाना खतरे से खाली नही है। एक बात नही समझ आ रही है, अम्मा मायावती का झगडा राहुल के हैंडपंप के नीचे बैठकर नहाने से है, या सिर्फ़ नहाने से है या फ़िर एस पी जी वालों की सुरक्षा मे नहाने से है? अब ये तो खैर वही बता सकती हैं। लेकिन एक नहाने के मुद्दे पर पूरी एक सरकार का भड़कना.....
लेकिन ठीक भी है। रोज रोज नहाने से एक तो साबुन घिसता है और अगर ऐसे मे किसी छेदी भइया जैसे के घर पर नहाया जाय तो क्या पता? कल को वह घिसे हुए साबुन का हर्जाना मांग बैठे? ऐसे मे तो प्रदेश सरकार के राजकोष पर बुरा असर पड़ेगा। पार्क बनने बंद हो जायेंगे, लखनऊ की विकास योजनायें अधूरी रह जाएँगी, बिजली तो वैसे ही रुला रही है, तब और भी रुलाने लगेगी। सरकार का पूरा ध्यान साबुन की आपूर्ति मे ही लग जाएगा। अब एक साबुन के लिए तो सरकार बैठी नही है। बिजली की कोई जिम्मेदारी नही है। सड़क क्या होती है, अभी तक समझ मे ही नही आया, हाँ, साबुन क्या होता है, ये जरूर समझ मे आ रहा है। आखिर राजकोष से चवन्नी निकल जाने का खतरा जो है। लेकिन सरकार के पंच प्यारों पर भरोसा रखिये। जल्द ही वह प्रदेश का साबुनीय घाटा पूरा करने के लिए साढ़े दो हजार करोड़ का एक मांग बजट केन्द्र के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं। अब इस साबुन से लखनऊ के तरह तरह के पार्कों मे लगे पत्थर नहायेंगे या फ़िर छेदी पासवान। इसके बारे मे सूचनाएँ अभी गोपनीय रखी जा रही हैं। बहरहाल, प्रदेश मे रहने वालों के लिए इतना ही संदेस काफ़ी है कि नहाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।