नंदीग्राम नही , हमे तो पैसे से मतलब है ..
मैं ख़ुद ..
मैं ख़ुद ..
दुकानें बहस बजार, मुद्दों का बजार at 11:07 AM 2 आपकी बात
दुकानें बहस बजार, मुद्दों का बजार at 1:51 PM 1 आपकी बात
वैसे तो हम सब इस बज़ार के अंग हैं और रहते भी इसी के इर्द गिर्द हैं इसी मे रोज़ हम कुछ ख़रीदते हैं और बेचते हैं लोगो को देखते हैं और उनसे मिलते भी हैं हँसी तहाके लगते हैं और कभी कभी इसी बाज़ार मे गला फाड़कर रोते हैं ये बाज़ार है यहाँ सभी रंग हैं एक दूसरे से मिलते हुए रंग, सबमे सिमते हुए रंग, बे-रंगो से रंग और रंगो जैसे रंग, ये बज़ार है.....स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग बाज़ार में,रंगो के बाज़ार में,और हाँ..बे-रंगों के भी बज़ार मे....
दुकानें बजार का रजिस्ट्रेशन at 1:06 PM 1 आपकी बात
रमन कौल
रमन भाई ने बहुत अच्छी बात कही अपने कॉमेंट में . तुरंत मन हुआ कि इसे तो ज़रूर पब्लीश करना चाहिए जिस से ये बात वो सभी लोग पढ़ सकें जो गलियों के ही अनुयायी हैं ...
जनता बेवकूफ नहीं है। न यह मुसोलिनी की इटली है, न हिटलर की जर्मनी। जनता नहीं चाहेगी तो आर.एस.एस. वहीं रह जाएगी जहाँ है, और चाहेगी तो फिर आप कुछ नहीं कर सकते। यदि आप वास्तव में आर.एस.एस. पर रोक लगाना चाहते हैं, तो अपनी छद्म धर्मनिरपेक्षता पर रोक लगाएँ। इस जैसे बेबुनियाद इलज़ामों वाली पोस्टें और इस जैसी सोच ही लोगों को भाजपा की ओर खींचती है। अब आप के किस किस वाक्य को असत्य साबित किया जाए, यदि आप कुछ पूर्वनिर्धारित धारणाओं को ठान कर चले हैं। आप को आर.एस.एस. के हिन्दूवाद से डर लगता है, तो औरों को अन्य पार्टियों के हिन्दूविरोध से। सही विकल्प होगा तो कौन नहीं चाहेगा। यदि आप को यह पार्टियाँ ग़लत लगती हैं, तो एक दूध से धुली पार्टी या संगठन का नाम बताएँ। सिमी?
Divyabh Aryan
divine india said..
भाई साहब इसप्रकार की टिप्पणियों का कोई फायदा नहीं है…और लोगों को कहने का मौका देते है… समेकित संस्कृति में आप रहते है तो सभी को देखना पढ़ेगा… कोई धर्म पर राजनीति कर रहा है तो कोई जाति पर्…जबकि दोनों पहलु गलत है…। मुद्दा क्या लोगों के पास…???
दुकानें बहस बजार, मुद्दों का बजार at 11:55 AM 2 आपकी बात
गालियों के लिए साधुवाद , ख़ासकर उन्हे जिन्हे शाखाओं मे संस्कार और सभ्यता का पाठ पढ़ाया जाता है , अब जब बहस चल ही चुकी है तो क्यों ना सब कुछ साफ़ साफ़ कर लिया जाए . सबूत भी हैं और भूक्त भोगी भी . लेकिन वे सब अभी निरर्थक हैं , बात तो विचारधारा की हो रही है और कम से कम अक्ल्मण्दो से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि हम एक स्वस्थ बहस करें . इसी क्रम मे अरविंद भाई ने अपने कुछ विचार बजार मे "बेचे" हैं , है कोई ख़रीददार ?
सवाल हिंदू मुस्लिम का नही है सवाल है उस वैचारिक बवाल का जिस ओर संघ परिवार देश को ले जाना चाहता है इसी नक्शे क़दम पर चल कर दुनिया के कितने राष्ट्र धूल धूसरित हुए उसका इतिहास हमारे सामने है . राष्ट्रों के उत्थान पतन को सिर्फ़ एक राजनीतिक परीघटना कहकर बाक़ी चीज़ों को हम नकार नही सकते . जिस राष्ट्र के निर्माण मे ही उसके विनाश के बीज मिले हो , उसके नष्ट होने का सिर्फ़ इंतज़ार किया जा सकता है - इनकार नही . राष्ट्रवाद का दंभ भरने वाली आर एस एस क्या स्वयम सेवक संघ के उन मानकों से अलग है जिसका निर्माण मुसोंलिनि ने किया था ? या संघ अपने आकाओं के उन बयानो को ख़ारिज करेगा जिसमे उन्होने ने कहा था कि अँग्रेज़ नही बल्कि मुसलमान राष्ट्र के वास्तविक दुश्मन हैं . आज़ादी के बाद से इनके राजनीतिक संगठन जनसंघ से लेकर भाजपा तक का सफ़र अपनी इसी विचारधारा पर आधारित रहा . इस राजनीतिक दल ने केवल जनता की भावनाओं का मसाज कर सत्ता सुख पाने की कोशिश की . जब गाँधी और लोहिया दोनो का क्रेज़ था तो गाँधीवादी समाजवाद के नाम ओए वोट माँगा . भाजपा दो सीटों से आगे नही बढ़ पाई .
इसके बाद 80 के दशक से राष्ट्रवाद और उग्र राष्ट्रवाद का इनका सफ़र ख़त्म होता है . सत्ता पाने की दूर दूर तक कोई आस नही दिखती . और 90 के दशक मे राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद को सीढ़ी बना ये सत्ता तक का सफ़र तय करते हैं . फासीवाद कि मुख्य विचारधारा है कि अगर बहुसंख्यक को अपने साथ करना है तो अल्पसंख्यक पर आक्रमण कर दो . रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद मे भी संघ परिवार ने इन्ही बिंदुओ का इस्तेमाल कर भाजपा को सत्ता मे पहुचाया . 5 साल सत्ता सुख के साथ कई प्रांतों मे अपनी सरकार चला रही इस ईश्वारवादी ताक़त के पास देश की आम जनता के लिया कुछ भी नही है . 21वीं सदी मे फासीवाद के सबसे ज़्यादा प्रयोग हिंदुस्तान मे हुए हैं और इसे संघ परिवार ने ही किए हैं , आख़िर इससे इनका पुराना रिश्ता जो रहा है .उपर किए इशारे अतीत से वर्तमान के सफ़र मे इनके चरित्र को समझने के लिए काफ़ी हैं .
जिग्यासू पाठक एक एक मुद्दे पर विस्तार से चर्चा के लिए आमंत्रित हैं .
दुकानें बहस बजार, मुद्दों का बजार at 9:18 PM 1 आपकी बात
के पी सिंह
सोचता है रामभरोसे सऱ्यू तट पर अपनी झोपड़ी मे बैठा हुआ - इसी झोपड़ी मे आकर मौक़ा ताड़ते , गुर्रते या गुनगुनाते थे - 'राम लला हम आए हैं ' और उपर से कोई वायु यान गुज़रता तो हसरत से उसे निहारने लगते थे . बाद मे राम लला की 'कृपा' से वे विमान पर चढ़े और गगन बिहारी हो गाये तो उन्हे इतनी फ़ुरसत ही नही रही कि जानें कि सऱ्यू माता की कृपा से राम भरोसे की झोपड़ी अभी तो बची हुई है , मगर बाढ़ का पानी चढ़ते चले आने से उसकी नींद उड़ी हुई है .
पानी और बढ़ा तो यह झोपड़ी तो डूब ही जाएगी . गगन बिहारी जी से मादा क्यों नही माँग लेते ? तुम्हारी तो जान - पहचान भी है . उन दिनों तो हुक्का पानी भी था . पूछा तो आँखे दबदबा आईं उसकी . बोला - अंधे के आगे क्या रोना भैया ! आजकल तो उन्हे सब बँटाधार ही दिखता है . इधर इतना सैलाब है और उधर उनकी आँखो का पानी ही मर गया है . अब तो जानें सऱ्यू मैया या जाने रामचंद्र जी . उन्ही का भरोसा है .
मन हुआ कहूँ, तभी तो तुम्हारा नाम रामभरोसे है . मगर नहीं कहा . इसीलिए कि राम की नगरी में राम के भरोसे एहने वाला रामभरोसे अकेला नही है . और भी कई लोग हैं जो तख़्त बिछाए और झंडा लगाए पसेरियँ लूढ़काते रहते हैं कि राम के जन आएँ और उनकी झोली भर जाएँ . पंडे कहलाते हैं बेचारे और इस अर्थ मे भले हैं कि गाँठ पर ही नज़र रखते हैं , ख़ून नही खौलाते . रामभरोसे की झोपड़ी मे से ही देखा - एक पंडे का तख़्त बहता हुआ चला आ रहा है . बाढ़ के चलते ? नहीं , मैं ग़लती पर था . पीछे-पीछे बचाने की कोशिश मे पंडा जी और उभे रोकते सिपाही जी भी थे . राम भरोसे ने कहा - बोलीएगा कुछ मत . बस,देखते रहिए . ये दोनो घाट घाट का पानी पी चुके हैं और रोज़ ही कितनो को पिलाते रहते हैं . मैने बात मान ली .
जारी ....
दुकानें के पी भाई का ठेला at 9:24 PM 0 आपकी बात
पहली :- तालिबान और आर एस एस ड्रेस कोड को मानते हैं .
दूसरी :- दोनो फासीवादी हैं .
तीसरी :- दोनो ही एक ख़ास समुदाय का क़त्ल करते हैं .
चौथी :- दोनो औरतों पर विशेष वक्र दृष्टि रखते हैं .
पाँचवी :- दोनो ही ख़ुद को धर्म का ठेकेदार मानते हैं .
दुकानें बहस बजार, मुद्दों का बजार at 8:36 PM 7 आपकी बात
अशोक नरायन गुजरात के गृह सचिव रहे हैं। 2002 के दंगों के दौरान सूबे के गृह सचिव वही थे। नरायन रिटायर होने के बाद अब गांधीनगर में रहते हैं।...